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पुलिस क्या करती है? पुलिस को लोग क्यों बदनाम करते हैं?

पुलिस का नाम सुनते ही हमारे मन में एक अजीब सा डर व घबराहट का माहौल बन जाता है। लोग कहते हैं कि अब वो पुलिस नहीं रही जिसका नाम सुनते ही सुरक्षा का आभास होता था।
कुछ लोग तो पुलिस को देखते ही अपने घरों में दुबक जाते हैं तो कहीं कुछ लोग पुलिस से भिड़ भी जाते हैं। लोगो का कहना है कि पुलिस का नाम समाज में इतना बदनाम नाम हो चुका है कि पुलिस का नाम लेते ही एक डर का अहसास होता है।

लोग कहावत कहने लगे हैं, "पुलिस की न दोस्ती अच्छी न दुश्मनी।"

हमारी भारतीय फिल्मों में भी पुलिस का जो चेहरा देखने को मिला वह भी अधिकतर नकारात्मक ही रहा है। नेताओ की जी हुजूरी करने वाली लालच और गुस्से से भरी पुलिस ही फिल्मों में दिखी जो वारदात की जगह पर हमेशा देर से पहुँचती है।
इक्का-दुक्का फिल्में ही रही जिसमें पुलिस का सकारात्मक रूप देखने को मिला हो?पुलिस की ताकत और सुरक्षात्मक समझ को दर्शाती फिल्में गिनी चुनी ही हैं।

अब सवाल यह है कि पुलिस का जो चेहरा हम देखते हैं क्या वाकई पुलिस ऐसी ही है?
क्या पुलिस सिर्फ घूसखोरी, दबंगई, चाटुकारिता के लिए जानी जाती है?
क्या आप भी ऐसा सोचते हैं?

यदि हाँ, तो इसका सीधा सा अर्थ है कि शायद आप पुलिस को बहुत करीब से नहीं जानते हैं। पुलिस के बारे में बेहतर जानना है तो ज़रा उनके द्वारा उठाई जाने वाली जिम्मेदारी के बारे में बात करते हैं।

यह वही पुलिस है जो हमें होली से लेकर दिवाली, क्रिसमस से लेकर नए साल तक भारत के हर त्यौहार में हमारी सुरक्षा के लिए तैनात खड़ी होती है। 26 जनवरी हो या 15 अगस्त, रैली हो या कावड़ यात्रा शहर की शांति की व्यवस्था बनाये रखने की जिम्मेदारी इन्ही के कंधो पर होती है। शहर में कहीं दंगा भड़क जाये तो आप या हम घरों से निकालेंगे ही नहीं।  मगर यही पुलिस के जवान पूरे शहर की नाकाबंदी से लेकर चेकिंग तक की जिम्मेदारी उठाती है। शहर में कोई फिल्म स्टार या मंत्री आता है तो शहर की यातायात से लेकर सुरक्षा व्यवस्था की देख-रेख यही पुलिस करती जिसे हम बड़ी आसानी से बेकार, घूसखोर और न जाने क्या-क्या कह देते हैं।
आप पुलिस डिपार्टमेंट छोड़ कर जिस भी सेक्टर में काम करते हैं त्यौहार आते ही आपको छुट्टी चाहिए और बड़ी आसानी से मिल भी जाती है लेकिन जरा सोचिए कि त्यौहारों के दौरान अगर पुलिस प्रशासन पूरा का पूरा छुट्टी पर चला जाये तो क्या होगा? दिवाली में हम तो अपने-अपने घरों में पटाखे छुड़ा रहे होते हैं मिठाइयां खा रहे होते हैं।
लेकिन इस वक्त भी पुलिसवाले चौराहों-सड़को पर खड़े होकर पूरे शहर में शांति व्यवस्था को संभालती है।

अपने परिवार, बच्चों, माता-पिता से दूर रहकर हमारी सुरक्षा के लिए तैनात खड़े रहते है।
उनका भी मन होता है घर पर बैठकर टीवी देखें उनका भी मन होता है कि इन्हें सारी सुविधाएं मिले जो एक आम आदमी को मिलती है लेकिन तीज त्यौहार का टाइम आते  ही ये अपने परिवार से दूर होकर उन सुविधाओं से भी दूर हो जाते हैं।

जब हम मेले में जब अपनी पत्नी का हाथ थाम कर बच्चों के साथ मेले का आनंद ले रहे होते हैं। झूला झूल रहे होते हैं तो मेले के बाहर यातायात की व्यवस्था कौन देख रहा होता है? यही पुलिस ही ना? और हम सोंचते है पुलिस का एक सिपाही करता ही क्या है। बस खड़ा ही तो रहता है चौराहे-चौराहे।
जरा सोचिए
  • क्या इनके बच्चे नहीं हैं?
  • क्या इनका अपना परिवार नहीं है?
  • या इन्हें मेला घूमना नहीं पसंद ?
24*7 ड्यूटी करने वाली ये पुलिस भयंकर सर्दी , गर्मी, बरसात में बिना आम जनता से सवाल किए अपनी ड्यूटी दे रहे होते हैं। मगर हम सभी लोग इनका मानवीय चेहरा कभी नहीं देखते है। आदत सी गई है पुलिस को बुरा भला कहने की। आप किसी प्रोफेशन में हो और कोई अगर ये कहे इस विभाग में सब कामचोर है तो शायद आपको बुरा लगेगा क्यूंकि आप उस विभाग में हैं और किसी एक कर्मचारी के कामचोर वजह से आप खुद को कहलाना नहीं पसंद करेंगे।

रात के 2:00 बजे भी अगर शहर के अंदर कोई खलबली मचती है तो शिक्षक, डॉ, दुकानदार, चार्टर्ड अकाउंटेंट, प्रिंसिपल, बाबू  यहां तक कि जज और वकील सभी अपने घरों में बड़े आराम से सो रहे होते हैं लेकिन रात के 2:00 बजे यह पुलिस उस शहर को सँभालने निकल पड़ती है। ताकि हम चैन से सो सकें। शांति व्यवस्था को बनाए रखने के लिए तैनात हो जाती है।

जब बात सेना की आती है तो हमारा सीना बड़े गर्व से चौड़ा हो जाता है। सेना के रूप में हम सिर्फ सीआरपीएफ, सीआईएसएफ, आईटीबीपी या  मिलिट्री, को ही जानते हैं।
हम भूल जाते हैं कि पुलिस भी सेना का ही हिस्सा है। सेना के जवान जिस बहादुरी के साथ देश के सीमा पर तैनात होकर देश की सुरक्षा करते हैं ठीक वैसे ही पुलिस देश के भीतर रह कर देश के भीतर छुपे गद्दारों से निपटती है।
पुलिस हमारे मोहल्ला, चारदीवारी, चौराहों के आसपास रहकर हमें घरों में सुरक्षित रहने का अहसास देती है।

एक पल के लिए विचार कीजिए कि आप मेले में हैं और मेले में भीड़ मौजूद है चारों तरफ से एक भी पुलिसवाला किसी व्यवस्था के लिए नहीं खड़ा हो तो उस समय आपको तुरंत अहसास हो जाएगा कि इनका होना कितना महत्वपूर्ण है।
आप अपने मोहल्ले में हो और एक पड़ोसी आप पर हमला कर दे अब आप किसी दूसरे पड़ोसी को बचाने के लिए बुलाइये क्या वो मदद के लिए आएगा ?
शायद उसका यही जवाब होगा कि आपके झगड़े में मैं अपना सर क्यों तुड़वाऊं।
लेकिन उसी दौरान आप पुलिस को फोन कर के बुलाते हैं तो वह सिर्फ आप को सुरक्षा देने के लिए आपके एक बुलावे पर आ जाती है।

पुलिस महिला या पुरुष नहीं होती पुलिस केवल पुलिस होती है। लेकिन यदि एक महिला पुलिस सेवा में होती है तो उसकी जिम्मेदारी कई गुना और बढ़ जाती है। वह अपनी सारी जिम्मेदारियों को घर पर तो निभाती ही है। परिवार की सेवा करने के बाद वह देश की सेवा के लिए निकलती है। ड्यूटी के दौरान मन में अपने बच्चों का ख्याल भी आता होगा लेकिन वह इन खयालों से दूर रहकर देश की सेवा करती है और पूरी ईमानदारी के साथ पूरा करने का प्रयास भी करती है।

हो सकता है की अब तक हमने जिन पुलिस वालों को देखा सुना है वे कभी-कभी रिश्वत लेते देखे गए हों। मनमानी या दबंगई करते देखा हो लेकिन यह आंकड़ा केवल  2 से 5 प्रतिशत हो सकता है और 2 से  5 प्रतिशत की वजह से पूरे पुलिस विभाग को दोष देना कहाँ से सही है? अब 5  प्रतिशत कामचोर, घूसखोर हर सेक्टर में मिल जायेंगे फिर चाहे वो बाबू, अधिकारी, डॉक्टर, चपरासी हो या आईपीएस-आईएएस ऑफिसर ही क्यों न हो।

आज कोरोना जैसी महामारी से पूरा देश परेशान है। लॉकडाउन को इसीलिए लागू किया गया है कि सभी भारतवासी अपने-अपने घरों में रहें और सुरक्षित रहें। कोरोना की भयवाहिता से हम सब परिचित है।  आम आदमी क्या पूरी सावधानी बरतने वाले डॉक्टर भी इस बीमारी से नहीं बच पा रहे हैं लेकिन पुलिस, डॉक्टर, सफाईकर्मी इस खतरे के माहौल में अपने घरों से दूर लोगो की सेवा में लगे हैं।

ऐसे में पुलिस के पास तो अतिरिक्त जिम्मेवारी है। लोगो को जागरूक भी करना है, यातायात भी देखना है, कोरोना पीड़ित मरीज भी खोजना है और कोई भूखा-प्यासा हो तो उस तक भोजन भी पहुंचाना है साथ ही रोज के क्राइम सीन से भी निपटना है।
पुलिस वाले पूरी मुस्तैदी के साथ दिन-रात लॉकडाउन को सफल बनाने में जुटे हैं। भूखे, प्यासे, थके, बिना सवाल किये कई-कई घंटो की ड्यूटी कर रहे हैं।

बावजूद इसके कुछ लोग पूछते हैं कि पुलिस आखिर करती ही क्या है ?
गली-मोहल्लों में घूम-घूम कर लोगों से घरों में रहने की अपील कर रहे हैं। मगर जब कुछ लोग नहीं मानते हैं तो सख्ती भी करनी पड़ती है। कभी कभी इन्हे लोगो के गुस्से का सामना भी करना पड़ता है तो कभी इन्हे भी गुस्सा आ जाता है।

सोचियें कि घर में 50 मेहमानो की बारात हो तो पूरा परिवार मिल के नहीं संभाल पाता है।इन पुलिस वालों के कंधो पर तो सारा देश है। कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी और कांडला के लेकर कोहिमा तक इन्हे ही सब व्यवस्था को बनाये रखना है। पुलिस चाहे उत्तर प्रदेश की हो या मध्य प्रदेश की महाराष्ट्र की हो या राजस्थान की संपूर्ण भारत में हमारी सुरक्षा के लिए तैनात है।

आज हम अपने घरों में बैठकर बातें  कर रहे हैं टीवी देख रहें हैं।

हाँ घरों में बंद जरूर हैं पर अपने परिवार में तो हैं। हम आप अपने परिवार से एक दिन के लिए दूर हो जाते हैं तो बेचैन हो जाते हैं ।
आज  ऐसे कई पुलिस जवान हैं जो अपने परिवार से दूर हमारे लिए ड्यूटी कर रहे होंगे।
सैकड़ों ऐसे पुलिस वाले ऐसे हैं जिनकी वर्तमान समय में ड्यूटी दूसरे राज्य या दूसरे जिलों में है। लखनऊ का बनारस में तैनात है तो बलिया का बरेली में।

पुलिस भी हमारी सेना का ही हिस्सा है। इन्हें भी वही सम्मान वही प्यार की जरूरत है जो हम सेना को देते हैं। मगर हम पुलिस की बहादुरी की मिसाल कभी नहीं देते हैं।

आज वक्त है की ऐसे पुलिस के जवानो को सैल्यूट करें, धन्यवाद दें जिनके कारण हम अपने घरों में सुरक्षित रह पा रहे हैं।

जय हिन्द जय भारत! जय जवान जय किसान!

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