सत्यमेव जयते!
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पुलिस क्या करती है? पुलिस को लोग क्यों बदनाम करते हैं?
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पुलिस का नाम सुनते ही हमारे मन में एक अजीब सा डर व घबराहट का माहौल बन जाता है। लोग कहते हैं कि अब वो पुलिस नहीं रही जिसका नाम सुनते ही सुरक्षा का आभास होता था।
कुछ लोग तो पुलिस को देखते ही अपने घरों में दुबक जाते हैं तो कहीं कुछ लोग पुलिस से भिड़ भी जाते हैं। लोगो का कहना है कि पुलिस का नाम समाज में इतना बदनाम नाम हो चुका है कि पुलिस का नाम लेते ही एक डर का अहसास होता है।
हमारी भारतीय फिल्मों में भी पुलिस का जो चेहरा देखने को मिला वह भी अधिकतर नकारात्मक ही रहा है। नेताओ की जी हुजूरी करने वाली लालच और गुस्से से भरी पुलिस ही फिल्मों में दिखी जो वारदात की जगह पर हमेशा देर से पहुँचती है।
इक्का-दुक्का फिल्में ही रही जिसमें पुलिस का सकारात्मक रूप देखने को मिला हो?पुलिस की ताकत और सुरक्षात्मक समझ को दर्शाती फिल्में गिनी चुनी ही हैं।
अब सवाल यह है कि पुलिस का जो चेहरा हम देखते हैं क्या वाकई पुलिस ऐसी ही है?
क्या पुलिस सिर्फ घूसखोरी, दबंगई, चाटुकारिता के लिए जानी जाती है?
क्या आप भी ऐसा सोचते हैं?
यदि हाँ, तो इसका सीधा सा अर्थ है कि शायद आप पुलिस को बहुत करीब से नहीं जानते हैं। पुलिस के बारे में बेहतर जानना है तो ज़रा उनके द्वारा उठाई जाने वाली जिम्मेदारी के बारे में बात करते हैं।
यह वही पुलिस है जो हमें होली से लेकर दिवाली, क्रिसमस से लेकर नए साल तक भारत के हर त्यौहार में हमारी सुरक्षा के लिए तैनात खड़ी होती है। 26 जनवरी हो या 15 अगस्त, रैली हो या कावड़ यात्रा शहर की शांति की व्यवस्था बनाये रखने की जिम्मेदारी इन्ही के कंधो पर होती है। शहर में कहीं दंगा भड़क जाये तो आप या हम घरों से निकालेंगे ही नहीं। मगर यही पुलिस के जवान पूरे शहर की नाकाबंदी से लेकर चेकिंग तक की जिम्मेदारी उठाती है। शहर में कोई फिल्म स्टार या मंत्री आता है तो शहर की यातायात से लेकर सुरक्षा व्यवस्था की देख-रेख यही पुलिस करती जिसे हम बड़ी आसानी से बेकार, घूसखोर और न जाने क्या-क्या कह देते हैं।
आप पुलिस डिपार्टमेंट छोड़ कर जिस भी सेक्टर में काम करते हैं त्यौहार आते ही आपको छुट्टी चाहिए और बड़ी आसानी से मिल भी जाती है लेकिन जरा सोचिए कि त्यौहारों के दौरान अगर पुलिस प्रशासन पूरा का पूरा छुट्टी पर चला जाये तो क्या होगा? दिवाली में हम तो अपने-अपने घरों में पटाखे छुड़ा रहे होते हैं मिठाइयां खा रहे होते हैं।
लेकिन इस वक्त भी पुलिसवाले चौराहों-सड़को पर खड़े होकर पूरे शहर में शांति व्यवस्था को संभालती है।
अपने परिवार, बच्चों, माता-पिता से दूर रहकर हमारी सुरक्षा के लिए तैनात खड़े रहते है।
उनका भी मन होता है घर पर बैठकर टीवी देखें उनका भी मन होता है कि इन्हें सारी सुविधाएं मिले जो एक आम आदमी को मिलती है लेकिन तीज त्यौहार का टाइम आते ही ये अपने परिवार से दूर होकर उन सुविधाओं से भी दूर हो जाते हैं।
जब हम मेले में जब अपनी पत्नी का हाथ थाम कर बच्चों के साथ मेले का आनंद ले रहे होते हैं। झूला झूल रहे होते हैं तो मेले के बाहर यातायात की व्यवस्था कौन देख रहा होता है? यही पुलिस ही ना? और हम सोंचते है पुलिस का एक सिपाही करता ही क्या है। बस खड़ा ही तो रहता है चौराहे-चौराहे।
जरा सोचिए
रात के 2:00 बजे भी अगर शहर के अंदर कोई खलबली मचती है तो शिक्षक, डॉ, दुकानदार, चार्टर्ड अकाउंटेंट, प्रिंसिपल, बाबू यहां तक कि जज और वकील सभी अपने घरों में बड़े आराम से सो रहे होते हैं लेकिन रात के 2:00 बजे यह पुलिस उस शहर को सँभालने निकल पड़ती है। ताकि हम चैन से सो सकें। शांति व्यवस्था को बनाए रखने के लिए तैनात हो जाती है।
जब बात सेना की आती है तो हमारा सीना बड़े गर्व से चौड़ा हो जाता है। सेना के रूप में हम सिर्फ सीआरपीएफ, सीआईएसएफ, आईटीबीपी या मिलिट्री, को ही जानते हैं।
हम भूल जाते हैं कि पुलिस भी सेना का ही हिस्सा है। सेना के जवान जिस बहादुरी के साथ देश के सीमा पर तैनात होकर देश की सुरक्षा करते हैं ठीक वैसे ही पुलिस देश के भीतर रह कर देश के भीतर छुपे गद्दारों से निपटती है।
पुलिस हमारे मोहल्ला, चारदीवारी, चौराहों के आसपास रहकर हमें घरों में सुरक्षित रहने का अहसास देती है।
एक पल के लिए विचार कीजिए कि आप मेले में हैं और मेले में भीड़ मौजूद है चारों तरफ से एक भी पुलिसवाला किसी व्यवस्था के लिए नहीं खड़ा हो तो उस समय आपको तुरंत अहसास हो जाएगा कि इनका होना कितना महत्वपूर्ण है।
आप अपने मोहल्ले में हो और एक पड़ोसी आप पर हमला कर दे अब आप किसी दूसरे पड़ोसी को बचाने के लिए बुलाइये क्या वो मदद के लिए आएगा ?
शायद उसका यही जवाब होगा कि आपके झगड़े में मैं अपना सर क्यों तुड़वाऊं।
लेकिन उसी दौरान आप पुलिस को फोन कर के बुलाते हैं तो वह सिर्फ आप को सुरक्षा देने के लिए आपके एक बुलावे पर आ जाती है।
पुलिस महिला या पुरुष नहीं होती पुलिस केवल पुलिस होती है। लेकिन यदि एक महिला पुलिस सेवा में होती है तो उसकी जिम्मेदारी कई गुना और बढ़ जाती है। वह अपनी सारी जिम्मेदारियों को घर पर तो निभाती ही है। परिवार की सेवा करने के बाद वह देश की सेवा के लिए निकलती है। ड्यूटी के दौरान मन में अपने बच्चों का ख्याल भी आता होगा लेकिन वह इन खयालों से दूर रहकर देश की सेवा करती है और पूरी ईमानदारी के साथ पूरा करने का प्रयास भी करती है।
हो सकता है की अब तक हमने जिन पुलिस वालों को देखा सुना है वे कभी-कभी रिश्वत लेते देखे गए हों। मनमानी या दबंगई करते देखा हो लेकिन यह आंकड़ा केवल 2 से 5 प्रतिशत हो सकता है और 2 से 5 प्रतिशत की वजह से पूरे पुलिस विभाग को दोष देना कहाँ से सही है? अब 5 प्रतिशत कामचोर, घूसखोर हर सेक्टर में मिल जायेंगे फिर चाहे वो बाबू, अधिकारी, डॉक्टर, चपरासी हो या आईपीएस-आईएएस ऑफिसर ही क्यों न हो।
आज कोरोना जैसी महामारी से पूरा देश परेशान है। लॉकडाउन को इसीलिए लागू किया गया है कि सभी भारतवासी अपने-अपने घरों में रहें और सुरक्षित रहें। कोरोना की भयवाहिता से हम सब परिचित है। आम आदमी क्या पूरी सावधानी बरतने वाले डॉक्टर भी इस बीमारी से नहीं बच पा रहे हैं लेकिन पुलिस, डॉक्टर, सफाईकर्मी इस खतरे के माहौल में अपने घरों से दूर लोगो की सेवा में लगे हैं।
ऐसे में पुलिस के पास तो अतिरिक्त जिम्मेवारी है। लोगो को जागरूक भी करना है, यातायात भी देखना है, कोरोना पीड़ित मरीज भी खोजना है और कोई भूखा-प्यासा हो तो उस तक भोजन भी पहुंचाना है साथ ही रोज के क्राइम सीन से भी निपटना है।
पुलिस वाले पूरी मुस्तैदी के साथ दिन-रात लॉकडाउन को सफल बनाने में जुटे हैं। भूखे, प्यासे, थके, बिना सवाल किये कई-कई घंटो की ड्यूटी कर रहे हैं।
बावजूद इसके कुछ लोग पूछते हैं कि पुलिस आखिर करती ही क्या है ?
गली-मोहल्लों में घूम-घूम कर लोगों से घरों में रहने की अपील कर रहे हैं। मगर जब कुछ लोग नहीं मानते हैं तो सख्ती भी करनी पड़ती है। कभी कभी इन्हे लोगो के गुस्से का सामना भी करना पड़ता है तो कभी इन्हे भी गुस्सा आ जाता है।
सोचियें कि घर में 50 मेहमानो की बारात हो तो पूरा परिवार मिल के नहीं संभाल पाता है।इन पुलिस वालों के कंधो पर तो सारा देश है। कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी और कांडला के लेकर कोहिमा तक इन्हे ही सब व्यवस्था को बनाये रखना है। पुलिस चाहे उत्तर प्रदेश की हो या मध्य प्रदेश की महाराष्ट्र की हो या राजस्थान की संपूर्ण भारत में हमारी सुरक्षा के लिए तैनात है।
आज ऐसे कई पुलिस जवान हैं जो अपने परिवार से दूर हमारे लिए ड्यूटी कर रहे होंगे।
सैकड़ों ऐसे पुलिस वाले ऐसे हैं जिनकी वर्तमान समय में ड्यूटी दूसरे राज्य या दूसरे जिलों में है। लखनऊ का बनारस में तैनात है तो बलिया का बरेली में।
पुलिस भी हमारी सेना का ही हिस्सा है। इन्हें भी वही सम्मान वही प्यार की जरूरत है जो हम सेना को देते हैं। मगर हम पुलिस की बहादुरी की मिसाल कभी नहीं देते हैं।
आज वक्त है की ऐसे पुलिस के जवानो को सैल्यूट करें, धन्यवाद दें जिनके कारण हम अपने घरों में सुरक्षित रह पा रहे हैं।
जय हिन्द जय भारत! जय जवान जय किसान!
कुछ लोग तो पुलिस को देखते ही अपने घरों में दुबक जाते हैं तो कहीं कुछ लोग पुलिस से भिड़ भी जाते हैं। लोगो का कहना है कि पुलिस का नाम समाज में इतना बदनाम नाम हो चुका है कि पुलिस का नाम लेते ही एक डर का अहसास होता है।
लोग कहावत कहने लगे हैं, "पुलिस की न दोस्ती अच्छी न दुश्मनी।"
इक्का-दुक्का फिल्में ही रही जिसमें पुलिस का सकारात्मक रूप देखने को मिला हो?पुलिस की ताकत और सुरक्षात्मक समझ को दर्शाती फिल्में गिनी चुनी ही हैं।
क्या पुलिस सिर्फ घूसखोरी, दबंगई, चाटुकारिता के लिए जानी जाती है?
क्या आप भी ऐसा सोचते हैं?
यह वही पुलिस है जो हमें होली से लेकर दिवाली, क्रिसमस से लेकर नए साल तक भारत के हर त्यौहार में हमारी सुरक्षा के लिए तैनात खड़ी होती है। 26 जनवरी हो या 15 अगस्त, रैली हो या कावड़ यात्रा शहर की शांति की व्यवस्था बनाये रखने की जिम्मेदारी इन्ही के कंधो पर होती है। शहर में कहीं दंगा भड़क जाये तो आप या हम घरों से निकालेंगे ही नहीं। मगर यही पुलिस के जवान पूरे शहर की नाकाबंदी से लेकर चेकिंग तक की जिम्मेदारी उठाती है। शहर में कोई फिल्म स्टार या मंत्री आता है तो शहर की यातायात से लेकर सुरक्षा व्यवस्था की देख-रेख यही पुलिस करती जिसे हम बड़ी आसानी से बेकार, घूसखोर और न जाने क्या-क्या कह देते हैं।
आप पुलिस डिपार्टमेंट छोड़ कर जिस भी सेक्टर में काम करते हैं त्यौहार आते ही आपको छुट्टी चाहिए और बड़ी आसानी से मिल भी जाती है लेकिन जरा सोचिए कि त्यौहारों के दौरान अगर पुलिस प्रशासन पूरा का पूरा छुट्टी पर चला जाये तो क्या होगा? दिवाली में हम तो अपने-अपने घरों में पटाखे छुड़ा रहे होते हैं मिठाइयां खा रहे होते हैं।
लेकिन इस वक्त भी पुलिसवाले चौराहों-सड़को पर खड़े होकर पूरे शहर में शांति व्यवस्था को संभालती है।
अपने परिवार, बच्चों, माता-पिता से दूर रहकर हमारी सुरक्षा के लिए तैनात खड़े रहते है।
उनका भी मन होता है घर पर बैठकर टीवी देखें उनका भी मन होता है कि इन्हें सारी सुविधाएं मिले जो एक आम आदमी को मिलती है लेकिन तीज त्यौहार का टाइम आते ही ये अपने परिवार से दूर होकर उन सुविधाओं से भी दूर हो जाते हैं।
जरा सोचिए
- क्या इनके बच्चे नहीं हैं?
- क्या इनका अपना परिवार नहीं है?
- या इन्हें मेला घूमना नहीं पसंद ?
रात के 2:00 बजे भी अगर शहर के अंदर कोई खलबली मचती है तो शिक्षक, डॉ, दुकानदार, चार्टर्ड अकाउंटेंट, प्रिंसिपल, बाबू यहां तक कि जज और वकील सभी अपने घरों में बड़े आराम से सो रहे होते हैं लेकिन रात के 2:00 बजे यह पुलिस उस शहर को सँभालने निकल पड़ती है। ताकि हम चैन से सो सकें। शांति व्यवस्था को बनाए रखने के लिए तैनात हो जाती है।
हम भूल जाते हैं कि पुलिस भी सेना का ही हिस्सा है। सेना के जवान जिस बहादुरी के साथ देश के सीमा पर तैनात होकर देश की सुरक्षा करते हैं ठीक वैसे ही पुलिस देश के भीतर रह कर देश के भीतर छुपे गद्दारों से निपटती है।
पुलिस हमारे मोहल्ला, चारदीवारी, चौराहों के आसपास रहकर हमें घरों में सुरक्षित रहने का अहसास देती है।
एक पल के लिए विचार कीजिए कि आप मेले में हैं और मेले में भीड़ मौजूद है चारों तरफ से एक भी पुलिसवाला किसी व्यवस्था के लिए नहीं खड़ा हो तो उस समय आपको तुरंत अहसास हो जाएगा कि इनका होना कितना महत्वपूर्ण है।
आप अपने मोहल्ले में हो और एक पड़ोसी आप पर हमला कर दे अब आप किसी दूसरे पड़ोसी को बचाने के लिए बुलाइये क्या वो मदद के लिए आएगा ?
शायद उसका यही जवाब होगा कि आपके झगड़े में मैं अपना सर क्यों तुड़वाऊं।
लेकिन उसी दौरान आप पुलिस को फोन कर के बुलाते हैं तो वह सिर्फ आप को सुरक्षा देने के लिए आपके एक बुलावे पर आ जाती है।
पुलिस महिला या पुरुष नहीं होती पुलिस केवल पुलिस होती है। लेकिन यदि एक महिला पुलिस सेवा में होती है तो उसकी जिम्मेदारी कई गुना और बढ़ जाती है। वह अपनी सारी जिम्मेदारियों को घर पर तो निभाती ही है। परिवार की सेवा करने के बाद वह देश की सेवा के लिए निकलती है। ड्यूटी के दौरान मन में अपने बच्चों का ख्याल भी आता होगा लेकिन वह इन खयालों से दूर रहकर देश की सेवा करती है और पूरी ईमानदारी के साथ पूरा करने का प्रयास भी करती है।
हो सकता है की अब तक हमने जिन पुलिस वालों को देखा सुना है वे कभी-कभी रिश्वत लेते देखे गए हों। मनमानी या दबंगई करते देखा हो लेकिन यह आंकड़ा केवल 2 से 5 प्रतिशत हो सकता है और 2 से 5 प्रतिशत की वजह से पूरे पुलिस विभाग को दोष देना कहाँ से सही है? अब 5 प्रतिशत कामचोर, घूसखोर हर सेक्टर में मिल जायेंगे फिर चाहे वो बाबू, अधिकारी, डॉक्टर, चपरासी हो या आईपीएस-आईएएस ऑफिसर ही क्यों न हो।
आज कोरोना जैसी महामारी से पूरा देश परेशान है। लॉकडाउन को इसीलिए लागू किया गया है कि सभी भारतवासी अपने-अपने घरों में रहें और सुरक्षित रहें। कोरोना की भयवाहिता से हम सब परिचित है। आम आदमी क्या पूरी सावधानी बरतने वाले डॉक्टर भी इस बीमारी से नहीं बच पा रहे हैं लेकिन पुलिस, डॉक्टर, सफाईकर्मी इस खतरे के माहौल में अपने घरों से दूर लोगो की सेवा में लगे हैं।
ऐसे में पुलिस के पास तो अतिरिक्त जिम्मेवारी है। लोगो को जागरूक भी करना है, यातायात भी देखना है, कोरोना पीड़ित मरीज भी खोजना है और कोई भूखा-प्यासा हो तो उस तक भोजन भी पहुंचाना है साथ ही रोज के क्राइम सीन से भी निपटना है।
पुलिस वाले पूरी मुस्तैदी के साथ दिन-रात लॉकडाउन को सफल बनाने में जुटे हैं। भूखे, प्यासे, थके, बिना सवाल किये कई-कई घंटो की ड्यूटी कर रहे हैं।
बावजूद इसके कुछ लोग पूछते हैं कि पुलिस आखिर करती ही क्या है ?
गली-मोहल्लों में घूम-घूम कर लोगों से घरों में रहने की अपील कर रहे हैं। मगर जब कुछ लोग नहीं मानते हैं तो सख्ती भी करनी पड़ती है। कभी कभी इन्हे लोगो के गुस्से का सामना भी करना पड़ता है तो कभी इन्हे भी गुस्सा आ जाता है।
सोचियें कि घर में 50 मेहमानो की बारात हो तो पूरा परिवार मिल के नहीं संभाल पाता है।इन पुलिस वालों के कंधो पर तो सारा देश है। कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी और कांडला के लेकर कोहिमा तक इन्हे ही सब व्यवस्था को बनाये रखना है। पुलिस चाहे उत्तर प्रदेश की हो या मध्य प्रदेश की महाराष्ट्र की हो या राजस्थान की संपूर्ण भारत में हमारी सुरक्षा के लिए तैनात है।
आज हम अपने घरों में बैठकर बातें कर रहे हैं टीवी देख रहें हैं।
हाँ घरों में बंद जरूर हैं पर अपने परिवार में तो हैं। हम आप अपने परिवार से एक दिन के लिए दूर हो जाते हैं तो बेचैन हो जाते हैं ।आज ऐसे कई पुलिस जवान हैं जो अपने परिवार से दूर हमारे लिए ड्यूटी कर रहे होंगे।
सैकड़ों ऐसे पुलिस वाले ऐसे हैं जिनकी वर्तमान समय में ड्यूटी दूसरे राज्य या दूसरे जिलों में है। लखनऊ का बनारस में तैनात है तो बलिया का बरेली में।
पुलिस भी हमारी सेना का ही हिस्सा है। इन्हें भी वही सम्मान वही प्यार की जरूरत है जो हम सेना को देते हैं। मगर हम पुलिस की बहादुरी की मिसाल कभी नहीं देते हैं।
जय हिन्द जय भारत! जय जवान जय किसान!
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तलाक लेने में कितना खर्च आयेगा और यह खर्च कौन देगा? तलाक लेने से पहले यह कानून जान लें!
तलाक में कितना खर्चा आता है? तलाक लेने की प्रक्रिया और इस पर खर्च होने वाली धनराशि क्या होगी इस पर कोई विशेषज्ञ राय दे पाना लगभग असंभव है। इसके वास्तविक खर्च का अनुमान लगाने से पूर्व कुछ ऐसे तथ्य हैं जिसपर चर्चा करना आवश्यक है हालांकि फिर भी इस जटिल सवाल का जवाब देना असंभव है कि तलाक लेने का या देने का वास्तविक खर्च क्या होगा। इस निर्णय से पहले यहां कुछ कारक हैं जो तलाक की कुल लागत को प्रभावित करते हैं पहले इसे जान लें। आपसी सहमति के तहत तलाक लेने में एक विवादास्पद तलाक से कम खर्च होगा। विस्थापित (अलगाव) दंपत्ति का रिश्ता एक प्रमुख कारक होता है। ऐसे रिश्ते में दंपत्ति जितना अधिक मुख्य मुद्दों पर असहमत होता है, उतना अधिक महंगा तलाक होगा, लेकिन बिना बच्चों या वयस्क (बालिग) बच्चों वाले दम्पति का तलाक नाबालिग बच्चों के साथ तलाक से अधिक महंगा होगा। सामुदायिक संपत्ति के विभाजन की असहमति तलाक की लागत में वृद्धि करेगी। निर्वाह (जीवन यापन) धन शामिल तलाक अधिक महंगा है। तलाक की कानूनी लागत का आकलन करना। वकील का शुल्क: एक वकील घंटे के हिसाब से या किए गये कानूनी कार्य के लिए एक मुश्
पति तलाक लेना चाहता और पत्नी नहीं तो क्या किया जाना चाहिए?
क्या सहमति से तलाक़ लिया जा सकता है? पति पत्नी के बीच यदि बन नहीं रही है तो सहमति से तलाक लेने की प्रक्रिया अपनाई जा सकती है। सहमति से तलाक लेने के लिए पहले दोनों ही पक्षों को कोर्ट में एक याचिका दायर करनी होती है। फिर दूसरे चरण में कोर्ट द्वारा दोनों पक्षों के अलग-अलग बयान लिए जाते हैं और दस्तखत की औपचारिकता होती है। तीसरे चरण में कोर्ट दोनों को 6 महीने का वक्त देता है ताकि वह अपने फैसले को लेकर दोबारा सोच सकें। और फिर यदि दोनों ही पक्ष तलाक के फैसले पर कायम रहते हैं तो 6 महीने के बाद कोर्ट द्वारा उनके फैसले के अनुरूप उन्हें तलाक़ की अनुमति दे दी जाती है। क्या केवल लड़का तलाक ले सकता है? आपसी समझौते के आधार पर तलाक लेने की कुछ शर्तें होती हैं। यदि पति और पत्नी शादी के बाद 1 साल या उससे ज्यादा समय से अलग रह रहे हो और दोनों में पारस्परिक रूप से तलाक़ लेने को सहमत हैं। एक दूसरे के साथ रहने पर कोई भी राजी नहीं है या दोनों पक्षों में सुलह की कोई स्थिति नजर नहीं आती है तो ऐसे में सहमति के आधार पर तलाक के लिए आवेदन करने का हक होता है। इसे मैचुअल कंसेंट डायवोर्स कहा जाता है यानी आपसी सहमति से तल
अब चेक बाउंस के मामले में जेल जाना तय है! लेकिन बच भी सकते हैं अगर यह क़ानूनी तरीका अपनाया तो!
एक चेक बाउंस के मामले में क्या करें और क्या न करें? चेक क्या है? एक चेक एक निर्दिष्ट बैंकर पर आहरित एक्सचेंज का बिल है और केवल मांग पर देय है। कानूनी तौर पर, जिस व्यक्ति ने चेक जारी किया है, उसे ‘आहर्ता’ कहा जाता है और जिस व्यक्ति के पक्ष में चेक जारी किया जाता है उसे‘अदाकर्ता’ कहा जाता है। चेक लेते समय यह जांच करें- यह लिखित रूप में होना चाहिए। यह एक बिना शर्त आदेश होना चाहिए। बैंकर को निर्दिष्ट करना है। भुगतान एक निर्दिष्ट व्यक्ति को निर्देशित किया जाना चाहिए। यह मांग पर देय होना चाहिए। यह एक विशिष्ट राशि के लिए होना चाहिए। आहर्ता’ के हस्ताक्षर होना चाहिए। चेक बाउंस / चेक की अस्वीकृति क्या है? एक चेक को अस्वीकृत या बाउंस तब कहा जाता है, जब वह किसी बैंक को भुगतान के लिए प्रस्तुत किया जाता है, लेकिन किसी कारण या दूसरे अन्य कारणवश भुगतान नहीं किया जाता है। निम्नलिखित में से कुछ कारणों से एक चेक आम तौर पर बाउंस हो जाता है:- हस्ताक्षर मेल मिलान नहीं है चेक में उपरी लेखन किया गया हो तीन महीनों की समाप्ति के बाद चेक प्रस्तुत किया गया था, यानी चेक की समय सीमा समाप्ति के बाद खाता बंद किया ग
तलाक़ के बाद बच्चे पर ज्यादा अधिकार किसका होगा माँ का या पिता का?
तलाक़ के बाद बच्चे पर किसका अधिकार होगा? तलाक़ ले रहे दम्पति के बीच बच्चे की कस्टडी को लेकर अक्सर विवाद उत्पन्न हो जाता है। बच्चे की कस्टडी किसे मिलेगी किसे नहीं यह कई बातों पर निर्भर करता है। मसलन बच्चे की उम्र, लिंग, परिस्थिति आदि। इसके साथ ही यह निर्णय पूरी तरह कोर्ट पर निर्भर है कि बच्चे कि कस्टडी किसको दी जाये। बच्चे का पिता अमीर है इसलिए बच्चा उसी को मिलना चाहिए? माता-पिता की आय व बेहतर शिक्षा की उम्मींद ही कस्टडी देने का मापदंड नहीं हो सकता। चूँकि बच्चा कोई सामान नहीं है जो बिना उचित तर्क के किसी एक को सौंप दिया जाये। माता-पिता की आय तो क्या बच्चे की परवरिश अच्छी ही होगी। कस्टडी की समस्या को मानवीय तरीके से हल किया जाना चाहिएः हाईकोर्ट बिलासपुर में दाखिल एक याचिका की सुनवाई के दौरान छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट के जस्टिस गौतम भादुड़ी और जस्टिस एनके चंद्रवंशी की बेंच ने बच्चे की कस्टडी को लेकर पेश किए गए मामले में एक महत्वपूर्ण टिप्पणी करते हुए कहा है कि "बच्चा कोई सामान नहीं है" बच्चे का कल्याण ही फैसले का आधार होना चाहिए। माता- पिता की इनकम अच्छी है और बच्चे की बेहतर शिक्षा की व्
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बालिग लड़की का नाबालिग लड़के से शादी करने पर अपराध क्यों नहीं है? और क्या नाबालिग लड़की अपनी मर्ज़ी से शादी कर सकती है?
बाल विवाह कुप्रथा क्यों है? बाल विवाह से होने वाली हानियां कौन-कौन सी हैं? भारत जैसे देश में लड़कियों के विवाह के लिए लड़कियों की मर्ज़ी और सहमति की परवाह नहीं की जाती है। लगभग 93% लड़कियों का विवाह उनकी मर्ज़ी के बिना ही किये जाते हैं। कई राज्यों में लड़कियों का विवाह बचपन में ही कर दिया जाता है। जल्दी शादी होने से लड़कियों पर बच्चे पैदा करने का दबाव भी दिया जाने लगता है। कम उम्र में माँ बनने पर लड़कियों को कई तरह से शारीरिक कष्ट झेलने पडतें है। इन्हीं कारणों से भारत में बाल विवाह निषेध किया गया है। बाल विवाह में असली दोषी कौन होता है? बाल विवाह करवाने वाले परिजन, पुरुष-महिला, रिश्तेदार, बालिग पति इत्यादि। बाल विवाह निषेध अधिनियम में बालिग अथवा नाबालिग लड़की को दोषी नहीं माना गया है। बालिग लड़का नाबालिग लड़की से शादी करता है तो क्या होगा? यदि बालिग लड़का जिसकी उम्र 18 वर्ष या इससे अधिक हो और नाबालिग लड़की जिसकी उम्र 18 वर्ष से कम हो से शादी करता है तो बाल विवाह अधिनयम के अंतर्गत दंडनीय अपराध है। वास्तव में बाल विवाह निषेध अधिनियम 2006 की धारा 9 में बाल विवाह करने वाले बालिग पुरुष के लिए सजा क
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हर व्यक्ति के जीवन में कई प्रकार की घटनाएं घटित होती रहती है। जाने अनजाने में कभी कभी व्यक्ति से अपराध भी हो जाता है और कभी-कभी आपसी रंजिश के कारण अन्य व्यक्ति के द्वारा भी किसी व्यक्ति को झूठे मामले में फसाया जाता है। किसी केस में नाम आने से पुलिस द्वारा संबंधित व्यक्ति की गिरफ्तारी कर ली जाती है। ऐसे में बिना कोई अपराध किये ही केवल आपसी रंजिश के कारण संबंधित व्यक्ति को काफी परेशानी उठानी पड़ सकती है। लेकिन ऐसे व्यक्ति के लिए कानून में जमानत लेने का अधिकार प्रदान किया गया है और इस अधिकार का उपयोग करके कोई भी व्यक्ति जमानत प्राप्त कर सकता है लेकिन अपराध की गंभीरता को देखते हुए कई ऐसे अपराध है। जिनके लिए कानून में जमानत की व्यवस्था नहीं की गई है। इसलिए आज आपको इस आर्टिकल के माध्यम से बेल यानि ज़मानत के बारे में पूरी जानकारी देंगे जिससे आपको काफ़ी मदद भी मिल सकती है। इस आर्टिकल के माध्यम से आप जानेंगे की- जमानत क्या है? किसी व्यक्ति की जमानत कैसे ले सकते हैं? ज़मानत लेने पर क्या रिस्क है? किसी अपराधी की जमानत का विरोध कैसे करें? जमानत ना मिलाने की स्थिति में क्या करें? जमानत क्या है? जब क
जानिए दाखिल खारिज़ क्यों ज़रूरी है और नहीं होने पर क्या नुकसान हो सकतें हैं?
ऑनलाइन आवेदन दाखिल-खारिज करते समय आवश्यक कागजात क्या है? यदि आप दाखिल-खारिज के लिए ऑनलाइन आवेदन करना चाहते हैं तो इसके लिए आपको ज़मीन के सम्बन्ध जानकारियों को ऑनलाइन आवेदन करते समय भरना होगा। जैसे ज़मीन का बैनामा किस तिथि को कराया गया था। किस निबंधन कार्यालय में कराया गया था। किस क्रम संख्या व प्रपत्र पर आपका बैनामा दर्ज है। इसके बाद आप जरूरी जानकारी ऑनलाइन फॉर्म में भरने के बाद सबमिट कर देंगे। लेकिन याद रखें अगर उत्तर प्रदेश में दाखिल-खारिज का आवेदन करना चाहते हैं तो 2012 के बाद कराए गए बैनामों का ही दाखिल खारिज ऑनलाइन संभव है। इसके पहले के दाखिल खारिज कराने के लिए आपको संबंधित तहसील में जाकर आवेदन करना होगा। ज़मीन खरीदने के कितने दिन बाद दाखिल-खारिज करवाना होता है? अमूमन दाखिल खारिज कराने की प्रक्रिया बैनामा के तुरंत बाद कराई जा सकती है। लेकिन दाखिल खारिज होने में लगभग 45 दिन का समय लग जाता है। यह संबंधित कार्यालयों में अलग-अलग हो सकते हैं। क्योंकि दाखिल-खारिज की प्रक्रिया में लेखपाल व राजस्व निरीक्षक के रिपोर्ट दाखिल होने के बाद ही नामांतरण का आदेश किया जाता है। इसलिए इस प्रक्रिया
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