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महिला सम्मान की पैरवी करने वाले देश में मैरिटल रेप अपराध नहीं!

एक लड़की (उम्र लगभग 23 वर्ष) की 2017 में शादी हुई। शादी के बाद कुछ दिन तक सब ठीक चलता रहा, लेकिन इसके बाद पति-पत्नी के बीच अनबन शुरू हो गई। पत्नी का आरोप है कि पति दहेज की मांग करते हुए उसके साथ मारपीट और गाली-गलौज करने लगा जो देखते-देखते आम होता गया। यहां तक की पति ने कई बार पत्नी की मर्जी के विरुद्ध जबरन शारीरिक संबंध (सेक्स) भी बनाता था। यही नहीं पति ने उस लड़की के साथ अप्राकृतिक सम्बन्ध भी बनाये। इन सब प्रताड़ना से तंग आकर एक ऱोज पत्नी ससुराल छोड़ अपने मायके चली गई।

marital case

इसके बाद पत्नी ने अपने पति के खिलाफ रेप, अप्राकृतिक संबंध और दहेज प्रताड़ना का केस कर दिया। मामला कोर्ट पहुंचा तो निचली अदालत ने पति को तीनों मामलों में दोषी पाया, लेकिन जब मामला हाईकोर्ट पहुंचा तो हाईकोर्ट ने पति को रेप के आरोप से बरी कर दिया। यह कोई पहला वाक्या नहीं है और ना ही ऐसा पहली बार हुआ है कि जब पति को पत्नी के साथ रेप के आरोप से बरी किया गया हो।

बता दें कि भारतीय कानून में पति-पत्नी के बीच इस तरह के मैरिटल रेप (बिना मर्ज़ी सम्बन्ध या जबरन सेक्स) की धारा 375 से अलग रखा गया है

  • आखिर ये मैरिटल रेप होता क्या है?
  • मैरिटल रेप को लेकर सरकार का क्या रुख है?
  • मैरिटल रेप को लेकर भारत का कानून क्या कहता है?
  • भारत में मैरिटल रेप की शिकार महिला के पास क्या कानूनी रास्ते हैं?
  • इस वक्त दुनिया के कितने देशों में मैरिटल रेप अपराध है?

देश में बहुत कम महिलाओं को इस विषय में जानकारी है तो आइए जानते हैं विस्तार से इस ज्वलंत विषय के बारे में…

Court verdict

आखिर मैरिटल रेप का मुद्दा इस वक्त क्यों चर्चा में है?

मुद्दा कुछ यूँ है कि छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने पिछले हफ्ते एक पुरुष को उसकी पत्नी की तरफ से लगाए गए रेप के आरोप से बरी कर दिया था। कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि कानूनी रूप से विवाहित पत्नी के साथ पति द्वारा जबर्दस्ती संबंध बनाना रेप की श्रेणी में नहीं आता है। महिला ने अपने पति पर कई बार जबरन रेप और अप्राकृतिक संबंध बनाने के आरोप लगाए थे।

हालांकि, कोर्ट ने आरोपी पति खिलाफ धारा 377 के तहत अप्राकृतिक संबंध बनाने और दहेज प्रताड़ना के मामले चलाने की मंजूरी दे दी। छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट के इस फैसले के बाद मैरिटल रेप का मुद्दा फिर से चर्चा में आ गया है।

इससे पहले पिछले महीने केरल हाईकोर्ट ने भी इसी तरह का फैसला सुनाया था। हालांकि, केरल हाईकोर्ट ने मैरिटल रेप को तलाक का वैध आधार जरूर माना था।

मैरिटल रेप को लेकर सरकार का क्या रुख है?

कई मानवाधिकार कार्यकर्ता काफी लंबे समय से मैरिटल रेप को अपराध घोषित करने की मांग कर रहे हैं। इसके बाद भी भारत में इसे अपराध नहीं माना गया है। वर्ष 2017 में, दिल्ली हाईकोर्ट में एक याचिका दाखिल हुए जिसका जवाब देते हुए केंद्र सरकार ने कहा था कि मैरिटल रेप का अपराधीकरण भारतीय समाज में विवाह की व्यवस्था को "अस्थिर" कर सकता है। इस तरह का कानून पत्नियों को पुरुषों का उत्पीड़न करने के हथियार के रूप में काम करेगा और एक महिला के सम्मान की रक्षा भी करेगा। लेकिन इसके बाद वर्ष 2019 में सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा ने एक कॉन्फ्रेंस के दौरान कहा था कि मैरिटल रेप को अपराध घोषित करने की कोई जरूरत नहीं है। जिसके बाद से मामले में फिर से अस्थिरता आ गई

मैरिटल रेप क्या है?

जब एक पुरुष और अपनी पत्नी की सहमति के बिना पत्नी के साथ सेक्शुअल इंटरकोर्स (सेक्स) करता है तो इसे मैरिटल रेप कहा जाता है। मैरिटल रेप में पति किसी तरह के बल का प्रयोग करता है, पत्नी या किसी ऐसे शख्स को जिसकी पत्नी परवाह करती हो उसे चोट पहुंचाने का डर दिखाता हो या किसी और तरह का नुकसान जिससे महिला के अंदर ये डर बैठता हो कि अगर वो विरोध करेगी तो वो उसके खिलाफ जाएगा। भारत की पुरुष प्रधान सोंच के कारण पुरुष सेक्स को लेकर अपना एकाधिकार मानते हैं जिस कारण महिला को इसका खिमियाज़ा भुगतना पड़ता है लेकिन समय बदलने के साथ अब इसके खिलाफ आवाज उठाने लगी है।

समय के साथ समाज में महिलाओं की भूमिकाओं और अधिकारों के बारे में जागरूकता बढ़ी है। इसके साथ ही समाज में मैरिटल रेप को अपराध माना जाने लगा है। 1932 में पोलैंड दुनिया का पहला देश बना जिसने मैरिटल रेप को अपराध माना। समय के साथ दुनिया के कई देशों ने इसे अपराध की श्रेणी में शामिल किया है। हालांकि, भारत अब तक इन देशों की लिस्ट में शामिल नहीं है।

मैरिटल रेप को लेकर भारत का कानून क्या कहता है?

भारत के कानून के मुताबिक, रेप में अगर आरोपी महिला का पति है तो उस पर रेप का केस दर्ज नहीं हो सकता है। IPC की धारा 375 में रेप को परिभाषित किया गया है, ये कानून मैरिटल रेप को अपवाद बताता है। इसमें कहा गया है कि अगर पत्नी की उम्र 18 साल से अधिक है तो पुरुष का अपनी पत्नी के साथ सेक्शुअल इंटरकोर्स रेप नहीं माना जाएगा। भले ये इंटरकोर्स पुरुष द्वारा जबर्दस्ती या पत्नी की मर्जी के खिलाफ किया गया हो। भारतीय कानून में इस तरह की हरकत को शारीरिक और मानसिक प्रताड़ना के दायरे में माना जाता है तो क्या भारत में महिला के पास पति के अत्याचार के खिलाफ शिकायत का भी अधिकार नहीं है?

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सीनियर एडवोकेट आशुतोष कुमार कहतें हैं कि इस तरह की प्रताड़ना का शिकार हुई महिला पति के खिलाफ सेक्शन 498A के तहत सेक्शुअल असॉल्ट का केस दर्ज करा सकती है। इसके साथ ही 2005 के घरेलू हिंसा के खिलाफ बने कानून में भी महिलाएं अपने पति के खिलाफ सेक्शुअल असॉल्ट का केस कर सकती हैं। इसके साथ ही अगर आपको चोट लगी है तो आप IPC की धाराओं में भी केस कर सकती हैं।

एडवोकेट कुमार कहते हैं कि मैरिटल रेप को साबित करना बहुत बड़ी चुनौती होगी। चारदिवारी के अंदर हुए गुनाह का सबूत दिखाना बहुत मुश्किल होगा। वो सवाल करती हैं कि जिन देशों में मैरिटल रेप का कानून है वहां ये कितना सफल रहा है। इससे कितना गुनाह रुका है ये कोई नहीं जानता।


इस वक्त दुनिया के कितने देशों में मैरिटल रेप अपराध है?

19वीं शताब्दी में फेमिनिस्ट प्रोटेस्ट के बाद भी शादीशुदा पुरुषों को पत्नी के साथ सेक्स का कानूनी अधिकार था। 1932 में पोलैंड दुनिया का पहला देश बना जिसने मैरिटल रेप को अपराध घोषित किया। 1970 तक स्वीडेन, नॉर्वे, डेनमार्क, सोवियत संघ, चेकोस्लोवाकिया जैसे देशों ने भी मैरिटल रेप को अपराध की श्रेणी में डाल दिया था। 1976 में ऑस्ट्रेलिया और 80 के दशक में साउथ अफ्रीका, आयरलैंड, कनाडा और अमेरिका, न्यूजीलैंड, मलेशिया, घाना और इजराइल भी इस लिस्ट में शामिल हो गए।

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संयुक्त राष्ट्र संघ की प्रोग्रेस ऑफ वर्ल्ड वुमन रिपोर्ट के मुताबिक 2018 तक दुनिया के 185 देशों में सिर्फ 77 देश ऐसे थे जहां मैरिटल रेप को अपराध घोषित करने को लेकर स्पष्ट कानून है। बाकी 108 देशों में से 74 ऐसे हैं जहां महिलाओं के लिए अपने पति के खिलाफ रेप के लिए आपराधिक शिकायत दर्ज करने के प्रावधान हैं। वहीं, 34 देश ऐसे हैं जहां न तो मैरिटल रेप अपराध है और ना ही महिला अपने पति के खिलाफ रेप के लिए आपराधिक शिकायत दर्ज कर सकती हैं। इन 34 देशों में भारत भी शामिल है।

इसके अलावा दुनिया के 12 देशों में इस तरह के प्रावधान हैं जिसमें बलात्कार का अपराधी अगर महिला से शादी कर लेता है तो उसे आरोपों से बरी कर दिया जाता है। यूएन इसे बेहद भेदभावपूर्ण और मानवाधिकारों के खिलाफ मानता है।

स्टोरी-स्त्रोत

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