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तलाक लेने में कितना खर्च आयेगा और यह खर्च कौन देगा? तलाक लेने से पहले यह कानून जान लें!
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तलाक में कितना खर्चा आता है?
तलाक लेने की प्रक्रिया और इस पर खर्च होने वाली धनराशि क्या होगी इस पर कोई विशेषज्ञ राय दे पाना लगभग असंभव है। इसके वास्तविक खर्च का अनुमान लगाने से पूर्व कुछ ऐसे तथ्य हैं जिसपर चर्चा करना आवश्यक है हालांकि फिर भी इस जटिल सवाल का जवाब देना असंभव है कि तलाक लेने का या देने का वास्तविक खर्च क्या होगा।इस निर्णय से पहले यहां कुछ कारक हैं जो तलाक की कुल लागत को प्रभावित करते हैं पहले इसे जान लें।
आपसी सहमति के तहत तलाक लेने में एक विवादास्पद तलाक से कम खर्च होगा।
विस्थापित (अलगाव) दंपत्ति का रिश्ता एक प्रमुख कारक होता है। ऐसे रिश्ते में दंपत्ति जितना अधिक मुख्य मुद्दों पर असहमत होता है, उतना अधिक महंगा तलाक होगा, लेकिन बिना बच्चों या वयस्क (बालिग) बच्चों वाले दम्पति का तलाक नाबालिग बच्चों के साथ तलाक से अधिक महंगा होगा।सामुदायिक संपत्ति के विभाजन की असहमति तलाक की लागत में वृद्धि करेगी।
- निर्वाह (जीवन यापन) धन शामिल तलाक अधिक महंगा है।
- तलाक की कानूनी लागत का आकलन करना।
वकील का शुल्क:
एक वकील घंटे के हिसाब से या किए गये कानूनी कार्य के लिए एक मुश्त शुल्क चार्ज कर सकता है। तलाक के लिए, सामान्य तौर पर प्रति घंटा चार्ज करना है क्योंकि मामले की प्रकृति की जटिल और अप्रत्याशित होती है।तलाक के प्रकार:
- पारस्परिक (आपसी) सहमति से लिया जाने वाला तलाक लागत के स्तर से एक विवादास्पद तलाक से कम है।
- बच्चों के पालन-पोषण के मुद्दे तलाक को और अधिक महंगा बनाते हैं।
- यदि तलाक एक साधारण आपसी सहमति की प्रक्रिया है जिसमें कोई बच्चों के पोषण की समस्या नहीं है, तो वकील का खर्च कम हो सकेगा।
भुगतान विकल्प:
- लगभग हर वकील अग्रिम रखरखाव शुल्क लेगा।
- यह राशि आमतौर पर वापसी योग्य नहीं होती है।
- फाइलिंग शुल्क और अन्य खर्च अलग हो सकते हैं।
- इसके अतिरिक्त ज़ीरॉक्स और फाइलिंग के लिए सेट तैयार करने के व्यय शामिल नहीं है।
- यदि आवश्यकता पड़ेगी तो मध्यस्थ और एकाउंटेंट की लागत भी जुड़ सकती है
- यात्रा की लागत व अन्य विविध खर्चों हो सकते हैं।
लागत में कटौती करने के तरीके:
- अगर आप तलाक की लागत को कम करना चाहते हैं तो अपने वकील को बताएं कि आपकी वित्तीय स्थिति तंग है, वह आपको अधिक सुगम व व्यवहारिक विकल्प सुझा सकता है।
- कॉल करने या ईमेल भेजने से पहले दो बार सोचें, खासकर उन मामलों में जहां वकील आपको प्रति घंटा चार्ज कर रहा है।
- पूछने के लिए अनिवार्य प्रश्नों की एक सूची रखें और एक बैठक में उनका उत्तर प्राप्त करें।
- यदि आपका पति आर्थिक रूप से बेहतर स्थिति में है, तो आप न्यायाधीश से कानूनी शुल्क का भुगतान करने के लिए पति को आदेश देने के लिए कह सकते हैं।
अपने पति या पत्नी को तलाक कैसे दें?
- तलाक के लिए अर्ज़ी दाखिल करने से पहले इस बात पर विचार कर लेना अधिक महत्वपूर्ण है क्योंकि इसमें कई ज़िंदगी के भविष्य का सवाल है।
- यह तय करने के से पहले मंथन करना महत्वपूर्ण है और तब प्रक्रिया की शुरुआत करें।
- हिंदू विवाह अधिनियम 1955 के अधीन यह कहा जा सकता है कि:- यदि दम्पति के बीच चीजें बहुत अच्छी नहीं हैं, और दोनों ने कानूनी रूप से अलग होने का फैसला किया है, तो हिंदू विवाह अधिनियम 1955 के तहत तलाक के लिए दर्ज विकल्पों को सूचीबद्ध करते हैं।
यदि आप दोनों तलाक के लिए तैयार हैं:
हिंदू युगल के बीच म्यूचुअल सहमति (सूझ्भूझ कर लिया गया निर्णय) तलाक धारा 13 B के तहत हिंदू विवाह अधिनियम 1955, द्वारा शासित है जो कहता है- तलाक के डिक्री द्वारा विवाह के विघटन के लिए एक याचिका दोनों पक्षों द्वारा एक साथ जिला न्यायालय में प्रस्तुत की जा सकती है। इस आधार पर कि वे एक साल या उससे अधिक अवधि के लिए अलग-अलग रह रहे हैं और वे एक साथ रहने में सक्षम नहीं हैं तथा उन्होंने पारस्परिक रूप से सहमति व्यक्त की है कि विवाह को भंग किया जाना चाहिए।
दूसरा विकल्प:
दोनों पक्षों (पति-पत्नी) की सहमति होने पर उपधारा (1) में उल्लिखित याचिका (तलाक के लिए आवेदन) की प्रस्तुति की तारीख के छह महीने पहले और उसी तारीख के 18 महीने बाद अगर याचिका वापस नहीं ली जाती है तो अदालत सुनवाई के बाद संतुष्ट हो जाएगी और इस तरह की पूछताछ करने के बाद फिर बैठेगी, कि विवाहित को समझाया गया है और याचिका में सभी तथ्य सत्य हैं तथा तलाक का एक आदेश शादी अमान्य को घोषित करने के लिए पास करें।
यदि एक व्यक्ति तलाक के लिए तैयार है लेकिन दूसरा व्यक्ति तलाक नहीं चाहता है:
यदि आप हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 के तहत विवाहित हैं, तो आपके पास भारतीय कानून द्वारा प्रदान किए गए तलाक के लिए कई अधिकार हैं। इस अधिनियम की धारा 13 में उल्लिखित सभी अधिकार एवं तलाक लेने आधार जान लें जिससे कि आप निम्न मामलों को आधार बना सकते हैं।
इन मुद्दों पर आप तलाक के लिए फाइल कर सकते हैं:
- अगर पति या पत्नी सात साल या उससे अधिक समय से गायब है और जीवित रहने के बारे में कोई खबर नहीं सुनी है, जो स्वाभाविक रूप संभव ना हो
- अगर शादी के बाद किसी एक का किसी अन्य व्यक्ति के साथ (पति या पत्नी के अलावा) स्वैच्छिक (अपनी मर्ज़ी से) यौन सम्बन्ध (सेक्स) होता है।
- यदि वह आपके साथ क्रूरता करता है।
- यदि उसने याचिका की प्रस्तुति से पहले दो साल से कम समय की निरंतर अवधि के लिए आपको छोड़ दिया है।
- यदि वह किसी अन्य धर्म में रूपांतरण करके हिंदू बन गया है।
- यदि वह असुरक्षित मन से पीड़ित है या मानसिक विकार से निरंतर या अंतः क्रियात्मक रूप से पीड़ित है, तो आप उचित रूप से ऐसे व्यक्ति के साथ रहने की उम्मीद नहीं कर सकते हैं।
- यदि आपका पति/पत्नी कुष्ठ रोग से पीड़ित है।
- यदि वह एक संवादात्मक विषयी रोग से पीड़ित है।
- यदि आपके पति/पत्नी ने किसी धार्मिक आदेश में प्रवेश करके दुनिया को छोड़ दिया है।
- तलाक के लिए फाइल करने के लिए आपके लिए कुछ अतिरिक्त ग्राउंड उपलब्ध हैं।
फाइल कहां से करें?
तलाक याचिका पारिवारिक अदालत में दायर की जा सकती है, जहाँ आपका वैवाहिक घर (जिला इत्यादि) हो वही इसका अधिकार क्षेत्र है, यानी वह घर जहां आप रहते हैं आखिरी बार पति और पत्नी के रूप में या आपकी शादी के बाद या शादी के दौरान आप परिवार के साथ जिस क्षेत्र में निवास कर रहे थे। महिलाएं या तो पारिवारिक अदालत में याचिका दायर कर सकती हैं जिनके पास वैवाहिक घर स्थित है या उस इलाके की पारिवारिक अदालत में जिस अधिकार क्षेत्र है वह याचिका दायर करने के समय रह रही हो।
तलाक कई रूप ले सकता है
कुछ मामलों में, यह जान लेना सुखद और अपेक्षाकृत आसान है, लेकिन यह भी समझाना बहुत जटिल हो सकता है कि आप किस तरह के परिणाम चाहते हैं?
निम्नलिखित पर विचार करें-
- क्या आपके पास अपने पति/पत्नी के साथ संपत्ति या अन्य संपत्तियां हैं जो आप विभाजित (बांटने) करने की योजना बना रहे हैं?
- क्या आपके पति/पत्नी के साथ बच्चे हैं, जो आपको पसंद नहीं हैं?
- अगर आप हिरासत की तलाश में हैं, तो क्या आप अपने पति/पत्नी से बाल समर्थन भी लेंगे।
- तलाक को लेने से पहले इन बातों पर विचार करें ताकि आप अपने लक्ष्यों और इच्छाओं को स्पष्ट रूप से समझ सकें।
तलाक याचिका दायर करने के लिए सही वकील ढूँढना:
आप किसी भी कारण से तलाक के साथ आगे बढ़ना चाहते हैं (म्यूचुअल या प्रतियोगिता), फिर भी यह महत्वपूर्ण है कि एक सक्षम वकील से तलाक की प्रक्रिया की बारीकियों जानकारी लेना आपका मार्गदर्शन करेगा।
एक अनुभवी वकील (तलाक के लिए एक्सपर्ट) के साथ सलाह मशवरा ज़रूर करें।
एक अनुभवी वकील (तलाक के लिए एक्सपर्ट) के साथ सलाह मशवरा ज़रूर करें।
यहां तक कि अगर आप अपना केस खुद लड़ना चाहते हैं तो भी वकील के साथ एक घंटे का परामर्श आपको बेहतर तैयारी करने में मदद करेगा।
- अपने लक्ष्यों और वांछित परिणाम के बारे में बात करने के लिए तैयार रहें।
- अपनी संपत्तियों, लोन, जमा-पूंजी के दस्तावेज साथ रखें।
- उन प्रश्नों की एक सूची जो वकील से पूछने के लिए तैयार की है आपकी परिस्थिति के लिए बेहतर हो सकती है।
यदि आप किसी मामले में निःशुल्क क़ानूनी सहायता चाहते हैं या किसी वरिष्ठ अनुभवी वकील से किसी प्रकार की क़ानूनी सलाह लेना चाहतें हैं तो हमसे Facebook, Whatsapp, Sharechat, Telegram, Instagram, YouTube, E-mail या Phone (Phone No: 83 18 43 71 52) आदि में से किसी भी प्रकार से संपर्क कर सकतें हैं। सभी सोशल मीडिया का लिंक इसी वेबसाइट पर ऊपर दिया गया है। साथ ही Judicial Guru® चैनल को YouTube पर अभी Subscribe करें। @judicialguru
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पति तलाक लेना चाहता और पत्नी नहीं तो क्या किया जाना चाहिए?
क्या सहमति से तलाक़ लिया जा सकता है? पति पत्नी के बीच यदि बन नहीं रही है तो सहमति से तलाक लेने की प्रक्रिया अपनाई जा सकती है। सहमति से तलाक लेने के लिए पहले दोनों ही पक्षों को कोर्ट में एक याचिका दायर करनी होती है। फिर दूसरे चरण में कोर्ट द्वारा दोनों पक्षों के अलग-अलग बयान लिए जाते हैं और दस्तखत की औपचारिकता होती है। तीसरे चरण में कोर्ट दोनों को 6 महीने का वक्त देता है ताकि वह अपने फैसले को लेकर दोबारा सोच सकें। और फिर यदि दोनों ही पक्ष तलाक के फैसले पर कायम रहते हैं तो 6 महीने के बाद कोर्ट द्वारा उनके फैसले के अनुरूप उन्हें तलाक़ की अनुमति दे दी जाती है। क्या केवल लड़का तलाक ले सकता है? आपसी समझौते के आधार पर तलाक लेने की कुछ शर्तें होती हैं। यदि पति और पत्नी शादी के बाद 1 साल या उससे ज्यादा समय से अलग रह रहे हो और दोनों में पारस्परिक रूप से तलाक़ लेने को सहमत हैं। एक दूसरे के साथ रहने पर कोई भी राजी नहीं है या दोनों पक्षों में सुलह की कोई स्थिति नजर नहीं आती है तो ऐसे में सहमति के आधार पर तलाक के लिए आवेदन करने का हक होता है। इसे मैचुअल कंसेंट डायवोर्स कहा जाता है यानी आपसी सहमति से तल
अब चेक बाउंस के मामले में जेल जाना तय है! लेकिन बच भी सकते हैं अगर यह क़ानूनी तरीका अपनाया तो!
एक चेक बाउंस के मामले में क्या करें और क्या न करें? चेक क्या है? एक चेक एक निर्दिष्ट बैंकर पर आहरित एक्सचेंज का बिल है और केवल मांग पर देय है। कानूनी तौर पर, जिस व्यक्ति ने चेक जारी किया है, उसे ‘आहर्ता’ कहा जाता है और जिस व्यक्ति के पक्ष में चेक जारी किया जाता है उसे‘अदाकर्ता’ कहा जाता है। चेक लेते समय यह जांच करें- यह लिखित रूप में होना चाहिए। यह एक बिना शर्त आदेश होना चाहिए। बैंकर को निर्दिष्ट करना है। भुगतान एक निर्दिष्ट व्यक्ति को निर्देशित किया जाना चाहिए। यह मांग पर देय होना चाहिए। यह एक विशिष्ट राशि के लिए होना चाहिए। आहर्ता’ के हस्ताक्षर होना चाहिए। चेक बाउंस / चेक की अस्वीकृति क्या है? एक चेक को अस्वीकृत या बाउंस तब कहा जाता है, जब वह किसी बैंक को भुगतान के लिए प्रस्तुत किया जाता है, लेकिन किसी कारण या दूसरे अन्य कारणवश भुगतान नहीं किया जाता है। निम्नलिखित में से कुछ कारणों से एक चेक आम तौर पर बाउंस हो जाता है:- हस्ताक्षर मेल मिलान नहीं है चेक में उपरी लेखन किया गया हो तीन महीनों की समाप्ति के बाद चेक प्रस्तुत किया गया था, यानी चेक की समय सीमा समाप्ति के बाद खाता बंद किया ग
तलाक़ के बाद बच्चे पर ज्यादा अधिकार किसका होगा माँ का या पिता का?
तलाक़ के बाद बच्चे पर किसका अधिकार होगा? तलाक़ ले रहे दम्पति के बीच बच्चे की कस्टडी को लेकर अक्सर विवाद उत्पन्न हो जाता है। बच्चे की कस्टडी किसे मिलेगी किसे नहीं यह कई बातों पर निर्भर करता है। मसलन बच्चे की उम्र, लिंग, परिस्थिति आदि। इसके साथ ही यह निर्णय पूरी तरह कोर्ट पर निर्भर है कि बच्चे कि कस्टडी किसको दी जाये। बच्चे का पिता अमीर है इसलिए बच्चा उसी को मिलना चाहिए? माता-पिता की आय व बेहतर शिक्षा की उम्मींद ही कस्टडी देने का मापदंड नहीं हो सकता। चूँकि बच्चा कोई सामान नहीं है जो बिना उचित तर्क के किसी एक को सौंप दिया जाये। माता-पिता की आय तो क्या बच्चे की परवरिश अच्छी ही होगी। कस्टडी की समस्या को मानवीय तरीके से हल किया जाना चाहिएः हाईकोर्ट बिलासपुर में दाखिल एक याचिका की सुनवाई के दौरान छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट के जस्टिस गौतम भादुड़ी और जस्टिस एनके चंद्रवंशी की बेंच ने बच्चे की कस्टडी को लेकर पेश किए गए मामले में एक महत्वपूर्ण टिप्पणी करते हुए कहा है कि "बच्चा कोई सामान नहीं है" बच्चे का कल्याण ही फैसले का आधार होना चाहिए। माता- पिता की इनकम अच्छी है और बच्चे की बेहतर शिक्षा की व्
जानिए, पॉक्सो एक्ट (POCSO) कब लगता है? लड़कियों को परेशान करने पर कौन सी धारा लगती है?
पॉक्सो एक्ट (POCSO) एक केंद्रीय कानून है? इस अधिनियम (कानून) को महिला और बाल विकास मंत्रालय ने साल 2012 पोक्सो एक्ट-2012 के नाम से बनाया था। इस कानून के जरिए नाबालिग बच्चों के प्रति यौन उत्पीड़न, यौन शोषण और पोर्नोग्राफी जैसे यौन अपराध और छेड़छाड़ के मामलों में कार्रवाई की जाती है। इस कानून के अंतर्गत अलग-अलग अपराध के लिए अलग-अलग सजा निर्धारित की गई है। पॉक्सो एक्ट (POCSO) कब लगता है? किसी विवाद की विषयवस्तु तथा मुख्य मुद्दे को जानने के लिए पॉक्सो अधिनियम, 2012 का संक्षिप्त अवलोकन करना आवश्यक है। पॉक्सो एक्ट 2012 यौन उत्पीड़न और अश्लीलता (पोर्नोग्राफी) के अपराधों से बच्चों को बचाने के लिए लागू किया गया था। यह एक जेंडर न्यूट्रल लॉ है जो 18 वर्ष से कम उम्र के बालक और बालिकाओं दोनों पर सामना रूप से लागू होता है। पॉक्सो एक्ट (POCSO) की परिभाषा के अनुसार कितने वर्ष से कम आयु का व्यक्ति नाबालिग है? भारतीय कानून में बालिग तथा नाबालिग की परिभाषा प्रस्तुत की गई है इसके अतिरिक्त पॉक्सो अधिनियम की परिभाषा के अनुसार, 18 वर्ष से कम आयु के बच्चों को नाबालिग माना जाता है। यह 18 वर्ष से कम आयु के व्य
बालिग लड़की का नाबालिग लड़के से शादी करने पर अपराध क्यों नहीं है? और क्या नाबालिग लड़की अपनी मर्ज़ी से शादी कर सकती है?
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जमानत क्या है और किसी व्यक्ति की जमानत कैसे ले सकते हैं?
हर व्यक्ति के जीवन में कई प्रकार की घटनाएं घटित होती रहती है। जाने अनजाने में कभी कभी व्यक्ति से अपराध भी हो जाता है और कभी-कभी आपसी रंजिश के कारण अन्य व्यक्ति के द्वारा भी किसी व्यक्ति को झूठे मामले में फसाया जाता है। किसी केस में नाम आने से पुलिस द्वारा संबंधित व्यक्ति की गिरफ्तारी कर ली जाती है। ऐसे में बिना कोई अपराध किये ही केवल आपसी रंजिश के कारण संबंधित व्यक्ति को काफी परेशानी उठानी पड़ सकती है। लेकिन ऐसे व्यक्ति के लिए कानून में जमानत लेने का अधिकार प्रदान किया गया है और इस अधिकार का उपयोग करके कोई भी व्यक्ति जमानत प्राप्त कर सकता है लेकिन अपराध की गंभीरता को देखते हुए कई ऐसे अपराध है। जिनके लिए कानून में जमानत की व्यवस्था नहीं की गई है। इसलिए आज आपको इस आर्टिकल के माध्यम से बेल यानि ज़मानत के बारे में पूरी जानकारी देंगे जिससे आपको काफ़ी मदद भी मिल सकती है। इस आर्टिकल के माध्यम से आप जानेंगे की- जमानत क्या है? किसी व्यक्ति की जमानत कैसे ले सकते हैं? ज़मानत लेने पर क्या रिस्क है? किसी अपराधी की जमानत का विरोध कैसे करें? जमानत ना मिलाने की स्थिति में क्या करें? जमानत क्या है? जब क
जानिए दाखिल खारिज़ क्यों ज़रूरी है और नहीं होने पर क्या नुकसान हो सकतें हैं?
ऑनलाइन आवेदन दाखिल-खारिज करते समय आवश्यक कागजात क्या है? यदि आप दाखिल-खारिज के लिए ऑनलाइन आवेदन करना चाहते हैं तो इसके लिए आपको ज़मीन के सम्बन्ध जानकारियों को ऑनलाइन आवेदन करते समय भरना होगा। जैसे ज़मीन का बैनामा किस तिथि को कराया गया था। किस निबंधन कार्यालय में कराया गया था। किस क्रम संख्या व प्रपत्र पर आपका बैनामा दर्ज है। इसके बाद आप जरूरी जानकारी ऑनलाइन फॉर्म में भरने के बाद सबमिट कर देंगे। लेकिन याद रखें अगर उत्तर प्रदेश में दाखिल-खारिज का आवेदन करना चाहते हैं तो 2012 के बाद कराए गए बैनामों का ही दाखिल खारिज ऑनलाइन संभव है। इसके पहले के दाखिल खारिज कराने के लिए आपको संबंधित तहसील में जाकर आवेदन करना होगा। ज़मीन खरीदने के कितने दिन बाद दाखिल-खारिज करवाना होता है? अमूमन दाखिल खारिज कराने की प्रक्रिया बैनामा के तुरंत बाद कराई जा सकती है। लेकिन दाखिल खारिज होने में लगभग 45 दिन का समय लग जाता है। यह संबंधित कार्यालयों में अलग-अलग हो सकते हैं। क्योंकि दाखिल-खारिज की प्रक्रिया में लेखपाल व राजस्व निरीक्षक के रिपोर्ट दाखिल होने के बाद ही नामांतरण का आदेश किया जाता है। इसलिए इस प्रक्रिया
नया आवेदन करें-
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- ई श्रम कार्ड के लिए आवेदन करें
- किसान क्रेडिट कार्ड के लिए आवेदन करें
- दाखिल ख़ारिज के लिए आवेदन करें
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