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पति तलाक लेना चाहता और पत्नी नहीं तो क्या किया जाना चाहिए?
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क्या सहमति से तलाक़ लिया जा सकता है?
पति पत्नी के बीच यदि बन नहीं रही है तो सहमति से तलाक लेने की प्रक्रिया अपनाई जा सकती है। सहमति से तलाक लेने के लिए पहले दोनों ही पक्षों को कोर्ट में एक याचिका दायर करनी होती है। फिर दूसरे चरण में कोर्ट द्वारा दोनों पक्षों के अलग-अलग बयान लिए जाते हैं और दस्तखत की औपचारिकता होती है। तीसरे चरण में कोर्ट दोनों को 6 महीने का वक्त देता है ताकि वह अपने फैसले को लेकर दोबारा सोच सकें। और फिर यदि दोनों ही पक्ष तलाक के फैसले पर कायम रहते हैं तो 6 महीने के बाद कोर्ट द्वारा उनके फैसले के अनुरूप उन्हें तलाक़ की अनुमति दे दी जाती है।
क्या केवल लड़का तलाक ले सकता है?
आपसी समझौते के आधार पर तलाक लेने की कुछ शर्तें होती हैं। यदि पति और पत्नी शादी के बाद 1 साल या उससे ज्यादा समय से अलग रह रहे हो और दोनों में पारस्परिक रूप से तलाक़ लेने को सहमत हैं। एक दूसरे के साथ रहने पर कोई भी राजी नहीं है या दोनों पक्षों में सुलह की कोई स्थिति नजर नहीं आती है तो ऐसे में सहमति के आधार पर तलाक के लिए आवेदन करने का हक होता है। इसे मैचुअल कंसेंट डायवोर्स कहा जाता है यानी आपसी सहमति से तलाक लेने की प्रक्रिया होती है।
कोर्ट में Desertion के आधार पर तलाक लेने का सबसे आसान तरीका है। Desertion आधार पर पति तलाक के लिए कोर्ट में याचिका पेश करता है। जिससे पति को तलाक आसानी से मिलाने की संभावना होती है
शादी के कितने साल के बाद तलाक लिया जा सकता है?
शादी के बाद से अगर पति-पत्नी 1 साल या उससे ज्यादा समय से अलग-अलग रह रहे हैं। दोनों के बीच शारीरिक संपर्क न हुआ हो। दोनों के साथ रहने की कोई संभावना नहीं है या दोनों में झगड़ा इतना ज्यादा है कि उनमें सुलह होने की संभावनाएं कम हैं तो शादी के बाद तलाक की अर्जी अदालत में दी जा सकती है लेकिन यह पूरी तरह कोर्ट पर निर्भर है कि तलाक़ कब तक मंजूर किया जायेगा। इसकी पूरी प्रक्रिया कोर्ट द्वारा निर्धारित की जाती है।
क्या पत्नी एकतरफा तलाक ले सकती है?
यदि पत्नी अपने पति से एक तरफा तलाक़ लेना चाहती है तो उसके पास कोर्ट में अर्जी लगाने का अधिकार है। एकतरफा तलाक के दौरान छः महीने की अवधि नहीं दी जाती है। इस तलाक प्रक्रिया में कितना समय लगेगा इसकी कोई सीमा नहीं है। यह प्रक्रिया पूरी तरह से माननीय कोर्ट पर निर्भर करता है। न्यायालय एकतरफा तलाक के मामलें में कई महत्वपूर्ण बातों पर विचार करता है जिसके आधार पर ही तलाक का अनुमति प्रदान की सकती है
यदि पति तलाक लेना चाहता और पत्नी नहीं तो क्या किया जाना चाहिए?
पति द्वारा पत्नी को तलाक़ दिए जाने के मामलें में क़ानूनन पत्नी को कुछ ऐसे अधिकार प्राप्त है जिसके आधार पर पत्नी तलाक़ के विरुद्ध आवेदन कर सकती है। एक तरफ़ा तलाक़ के मामले में महिला पारिवारिक अदालत में याचिका दायर कर सकती हैं। महिला अपनी सुविधा अनुसार उस इलाके की पारिवारिक अदालत में आवेदन कर सकती है जो उसके निवास क्षेत्र आता हो अर्थात वह याचिका दायर करने के समय जहाँ निवास कर रही हो। आवेदन के लिए महिला अपनी सुविधा के अनुसार न्यायालय चुन सकती हैं। चाहे वह अपने मायके का क्षेत्र या ससुराल का क्षेत्र चुने दोनों में से किसी एक पारिवारिक न्यायालय में आवेदन देकर तलाक़ पर रोक लगवा सकती है।
तलाक के लिए ऑनलाइन आवेदन प्रक्रिया?
वर्तमान में अधिकांश कोर्ट डिजिटल हो गये हैं ऐसे में आप ई-कोर्ट प्रक्रिया के माध्यम से तलाक के लिए ऑनलाइन अप्लाई कर सकते हैं लेकिन इसमें आपको कुछ विशेष बातों का ध्यान रखना है। सबसे पहले आपको एक अनुभवी व जानकार वकील से मिलने की आवश्यकता है जो फैमिली कोर्ट का विशेषज्ञ हो। वकील से मिलने के बाद आप अपनी समस्या बताएं और तलाक के आवेदन की बात करें। वकील से यह बात अवगत कराएं कि आप तलाक़ किस आधार पर लेना चाहते हैं। वकील से मिलने के लिए जब आप जाएं तो कुछ दस्तावेज साथ लेकर जरूर जाएं। इसके अतिरिक्त आप अपने फैसले पर विचार कर के ही कोर्ट का रुख करें।
क्या शादीशुदा महिला दूसरी शादी कर सकती है?
भारतीय दंड संहिता की धारा 494 के अनुसार बिना तलाक लिए कोई भी पुरुष या महिला दूसरी शादी नहीं कर सकते हैं। हालांकि यह नियम तभी तक लागू होते हैं जब तक पति और पत्नी बिना तलाक लिए कई सालों से एक दुसरे से अलग-अलग रह रहे हो। भारत में पति-पत्नी के रिश्ते को पवित्र माना जाता है। यदि दोनों के बीच में किसी प्रकार झगड़ा हो तो कोर्ट में तलाक के लिए आवेदन कर सकते हैं। पहली पत्नी या पति से तलाक़ के बाद ही दूसरी शादी कर सकते हैं। इसके अतरिक्त यदि किसी एक की मृत्यु हो गई हो तो दूसरा बिना किसी क़ानूनी समस्या के दूसरा विवाह कर सकता है।
एकतरफा तलाक़ लेने के लिए कौन सी धारा लगती है?
एकतरफा तलाक कुछ निश्चित आधारों पर ही दिया जाता है जो कि हिंदू विवाह अधिनियम 1955 के सेक्शन 13 के तहत निम्नलिखित होते हैं। इस तरह की कुछ परिस्थितियां जिनमें तलाक के लिए न्यायालय में याचिका दायर की जा सकती है। हिंदू विवाह अधिनियम 1955 के सेक्शन 13(1) के तहत आते हैं। इसी धारा के अंतर्गत यह तय होता है कि तलाक़ की डिक्री प्रदान की जाये अथवा नहीं।
बिना तलाक़ लिए छुप कर दूसरी शादी करने पर क्या सजा होती है?
छुप कर दूसरी शादी करने पर क्या सजा होगी इसके लिए भारतीय दंड संहिता की धारा 494 के तहत प्रावधान दिए गये हैं। बिना तलाक लिए दूसरी शादी करना अपराध है ऐसे अपराध के लिए 7 साल की सजा व जुर्माना अथवा दोनों हो सकता है।
पहली पत्नी से तलाक लेने के बाद दूसरा विवाह कब तक कर सकते हैं?
तलाक की डिक्री मिलने के बाद दूसरा विवाह कब तक किया जा सकता है इसकी जानकारी हिंदू विवाह अधिनियम 1955 की धारा 15 में स्पष्ट रूप में है। जहां साफ तौर पर दिया गया है कि अगर किसी भी डिक्री की अपील नहीं की जा सकती तो दोनों पक्ष अपनी मर्जी से कहीं भी शादी करने के लिए स्वतंत्र हैं।
क्या एक मुस्लिम व्यक्ति एक साथ 5 पत्नियां रख सकता है?
एक मुसलमान को 4 से अधिक पत्नियां रखने का अधिकार नहीं है। पांचवी पत्नी से विवाह वह तभी कर सकता है जब उसने चार पत्नियों में से किसी एक को कानूनी रूप से तलाक़ दे दिया हो या उनमे से किसी एक की मृत्यु हो गई हो। तभी वह किसी महिला को अपनी पांचवी पत्नी बना सकता है या पांचवा विवाह कर सकता है।
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