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जमानत क्या है और किसी व्यक्ति की जमानत कैसे ले सकते हैं?

हर व्यक्ति के जीवन में कई प्रकार की घटनाएं घटित होती रहती है। जाने अनजाने में कभी कभी व्यक्ति से अपराध भी हो जाता है और कभी-कभी आपसी रंजिश के कारण अन्य व्यक्ति के द्वारा भी किसी व्यक्ति को झूठे मामले में फसाया जाता है।

किसी केस में नाम आने से पुलिस द्वारा संबंधित व्यक्ति की गिरफ्तारी कर ली जाती है। ऐसे में बिना कोई अपराध किये ही केवल आपसी रंजिश के कारण संबंधित व्यक्ति को काफी परेशानी उठानी पड़ सकती है। लेकिन ऐसे व्यक्ति के लिए कानून में जमानत लेने का अधिकार प्रदान किया गया है और इस अधिकार का उपयोग करके कोई भी व्यक्ति जमानत प्राप्त कर सकता है लेकिन अपराध की गंभीरता को देखते हुए कई ऐसे अपराध है। जिनके लिए कानून में जमानत की व्यवस्था नहीं की गई है। 

इसलिए आज आपको इस आर्टिकल के माध्यम से बेल यानि ज़मानत के बारे में पूरी जानकारी देंगे जिससे आपको काफ़ी मदद भी मिल सकती है।

इस आर्टिकल के माध्यम से आप जानेंगे की-

  • जमानत क्या है?
  • किसी व्यक्ति की जमानत कैसे ले सकते हैं?
  • ज़मानत लेने पर क्या रिस्क है?
  • किसी अपराधी की जमानत का विरोध कैसे करें?
  • जमानत ना मिलाने की स्थिति में क्या करें?

जमानत क्या है?

जब कोई व्यक्ति किसी अपराध के कारण पुलिस द्वारा जेल में बंद किया जाता है तो ऐसे व्यक्ति को जेल से छुड़ाने के लिए न्यायालय में जो संपत्ति जमा की जाती है या फिर देने की शपथ ली जाती है उसे जमानत कहते हैं।

न्यायालय में जमानत जमा करने पर न्यायालय इस बात से निश्चिंत हो जाता है कि आरोपी व्यक्ति सुनवाई के लिए अवश्य आएगा और यदि आरोपी व्यक्ति सुनवाई के नहीं लिए नहीं आता है तो बेल के रूप में जमा की गई संपत्ति जप्त कर ली जाएगी। लेकिन ऐसा नहीं है कि आप किसी भी अपराध में जमानत तक प्राप्त कर सकते हैं।

भारतीय संविधान में अपराध की गंभीरता को देखते हुए कई अपराधों में बेल प्रदान नहीं की जाती है और साथ ही जमानत पर रिहा होने पर भी कई प्रकार के प्रतिबंध होते हैं। जैसे कि आप बेल पर रिहा होने पर विदेश नहीं जा सकते और बिना बताए कोई यात्रा नहीं कर सकते। साथ ही न्यायालय या पुलिस के समक्ष जब भी आवश्यकता हो उपस्थित होना पड़ता है।

अपराध के प्रकार-

अपराध की गंभीरता को देखते हुए भारतीय संविधान में अपराध के दो प्रकार बताए गए हैं जो कि इस प्रकार हैं -

  • जमानती अपराध
  • गैर जमानती अपराध

जमानती अपराध-

किसी व्यक्ति के द्वारा किए गए छोटे-मोटे अपराधों को जमानती अपराध की श्रेणी में रखा गया है। जमानती अपराध की श्रेणी में मारपीट, धमकी देना, लापरवाही से गाड़ी चलाना, लापरवाही से किसी की मौत आदि मामले आते हैं। भारतीय दंड प्रक्रिया संहिता में ऐसे अपराधों की एक सूची तैयार की गई है। इस सूची में ज्यादातर ऐसे मामले हैं। जिनमें 3 साल या उससे कम की सजा हो सकती है। इस तरह के मामले में सीआरपीसी की धारा 169 के अंतर्गत थाने से ही बेल दिए जाने का प्रावधान है।

गैर जमानती अपराध-

अपराध की गंभीरता को देखते हुए भारतीयय दंड प्रक्रिया संहिता में कुछ ऐसे अपराधों को गैर जमानती अपराध की श्रेणी में रखा गया है। जिनके लिए कोई व्यक्ति बेल नहीं प्राप्त कर सकता है।

गैर जमानती अपराध की श्रेणी में रेप, अपहरण, लूट, डकैती, हत्या, हत्या की कोशिश, गैर इरादतन हत्या, फिरौती के लिए अपहरण आदि शामिल है। यह सभी गंभीर अपराध है और इन अपराधों में फांसी अथवा उम्र कैद की संभावना होती है। जिसके कारण न्यायालय से बेल नहीं ली जा सकती है। लेकिन सीआरपीसी की धारा 437 के अपवाद का सहारा लेकर ऐसे अपराधों में भी जमानत की अर्जी लगाई जा सकती है और न्यायालय द्वारा कोर्ट केस की मेरिट के हिसाब से बेल अर्जी स्वीकार की जा सकती है लेकिन यह कोर्ट पर निर्भर है। अपवाद का सहारा लेकर लगाई गई अर्जी से कई बार बेल मिल जाती है। लेकिन बेल की अर्जी लगाने वाला कोई महिला या शारीरिक तथा मानसिक रूप से बीमार व्यक्ति ही हो।

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जमानत के प्रकार- भारतीय दंड प्रक्रिया संहिता में जमानत के दो प्रकार प्रकारों का उल्लेख किया गया है जो कि इस प्रकार है-

  1. अग्रिम जमानत 
  2. रेगुलर बेल

अग्रिम जमानत-

जैसा कि नाम से ही पता चलता है कि अग्रिम जमानत गिरफ्तार होने से पहले ही ली गई जमानत होती है। जब किसी व्यक्ति को पहले से ही आभास होता है कि उसकी किसी मामले में उसकी गिरफ्तारी हो सकती है तो वह व्यक्ति गिरफ्तारी से बचने के लिए अग्रिम अग्रिम जमानत की अर्जी कोर्ट में लगा सकता है और अग्रिम जमानत प्राप्त कर सकता है। सीआरपीसी (CrPC) की धारा 438 में अग्रिम बेल की व्यवस्था की गई है। अग्रिम जमानत मिलने पर आरोपी व्यक्ति को संबंधित मामले में गिरफ्तार नहीं किया जा सकता।

रेगुलर बेल या अंतरिम जमानत-

सीआरपीसी (CrPC) की धारा 439 में रेगुलर बेल की भी व्यवस्था की गई है। जब किसी आरोपी व्यक्ति के खिलाफ ट्रायल कोर्ट में मामला पेंडिंग होता है तो वह व्यक्ति इस दौरान रेगुलर बेल के लिए अर्जी लगा सकता है और फिर ट्रायल कोर्ट या हाई कोर्ट केस की स्थिति और गंभीरता को देखते हुए अपना फैसला देती है और इस धारा के अंतर्गत आरोपी पर रेगुलर बेल अथवा अंतरिम जमानत प्राप्त कर सकता है। रेगुलर बेल के लिए आरोपी से कोर्ट द्वारा मुचलका भरवाया जाता है और आरोपी व्यक्ति को बेल के दौरान कोर्ट द्वारा दिए गए सभी निर्देशों का पालन करना होता है।

कोर्ट से जमानत कैसे लें सकतें हैं?

किसी मामले में कोर्ट से बेल लेना थोड़ा मुश्किल काम है। लेकिन यदि किसी अच्छे वकील द्वारा बारीकी से सभी तथ्यों को देख कर जमानत की अर्जी लिखी जाती है तो कोर्ट में आसानी से बेल ली जा सकती हैं।

जमानत लेने के लिए अर्जी लिखते समय निम्न बिंदुओं का ध्यान रखना चाहिए-

  1. जमानत में आपको यह आवश्यक रूप से लिखना है कि शिकायतकर्ता ने आप के खिलाफ झूठी एफआईआर (FIR) दर्ज करवाई है।
  2. ऐसा शिकायतकर्ता ने क्यों किया इसका कारण भी जरूर बताएं ताकि कोर्ट को यह समझने में आसानी हो सके कि वास्तव में एफआईआर (FIR) झूठी दर्ज कराई गई है, या सच्ची है।
  3. इसके साथ ही जो एफआईआर (FIR) स्टेटमेंट आप के खिलाफ दर्ज कराया गया है उसमें कमियां निकाल कर अपने आवेदन पत्र में बताएं।
  4. यदि आप के खिलाफ पहले से कोई अपराधिक रिकॉर्ड नहीं है तो आप इसे भी बेल लेने का आधार बना सकते हैं।
  5. कोर्ट और अन्य पक्ष की बातों को धैर्य शालीनता से सुने और समझे ताकि अगले व्यक्ति को लग सके कि आप बिल्कुल सही है।

जमानत का आवेदन कैसे करें?

  1. आप बेल के लिए किसी अच्छे अनुभवी वकील का सहारा लें।
  2. अपने इनकम टैक्स रिटर्न और अपने पर आश्रित परिवार के लोगों का सहारा लेकर भी बेल का आवेदन कर सकतें हैं।
  3. बेल लेने में देरी आपको और भी बड़ी मुसीबत में डाल सकती है। 
  4. जमानत लेने के लिए आप किसी अच्छे वकील के माध्यम से आवेदन करें। 
  5. यदि आप की जमानत के लिए कोई विरोध नहीं करता है तो आप को बेल आसानी से मिल जाएगी।

लेकिन यदि आपने कोई गैर जमानती अपराध किया है तो आप को जमानत मिलेगी या नहीं मिलेगी इसका निर्णय कोर्ट पर ही डिपेंड करता है।

बेल ना मिलने की वजह-कई बार अदालत में जमानत की अर्जी लगाने पर भी जमानत नहीं मिलती है-

बेल ना मिलने के कई कारण हो सकते हैं। जब अदालत को लगता है। की बेल मिलने पर गवाहों को प्रभावित किया जा सकता है। आरोपी भाग सकता है या फिर सबूत को मिटाया जा सकता है तो अदालत द्वारा बेल की अर्जी खारिज कर दी जाती है। इसके साथ ही मामले की गंभीरता भी जमानत को प्रभावित करती है साथ ही यदि कोई व्यक्ति आदतन अपराधी है तो ऐसे व्यक्ति को भी जमानत प्रदान नहीं की जाती है।

जमानत का विरोध कैसे करें?

अक्सर जोड़-तोड़ करके अपराधी कोर्ट से जमानत प्राप्त करने की कोशिश करते हैं या फिर बेल ले लेते हैं तो ऐसी स्थिति में अपराधी को सबक सिखाने के लिए बेल का विरोध भी किया जा सकता है और आप ऐसे व्यक्ति की जमानत रद्द भी करवा सकते हैं।

बेल का विरोध आप निम्न बिंदुओं को ध्यान में रखकर कर सकते हैं -

  1. साथ ही कोर्ट को बताएं कि अपराधी बाहर आकर स्वयं और अन्य बाकी गवाहों या सबूतों को प्रभावित कर सकता है और अपनी जमानत का दुरुपयोग कर सकता है।
  2. कोर्ट में आप अपने मेडिकल के पेपर साथ में जरूर लेकर जाएं। आप इन पेपर्स को दिखाकर बेल का विरोध कर सकते हैं।
  3. यदि कोर्ट ने अपराधी को बेल दे दी है तो भी आप बेल खारिज करने के लिए एप्लीकेशन लगा सकते हैं।
  4. इसके साथ ही सबसे ज्यादा ध्यान आपको सरकारी वकील और पुलिस पर देना है। यदि यह लोग अपराधी के अपराध को जानते हुए भी अपराधी व्यक्ति की ज्यादा तरफदारी करते हैं और ऐसे लोगों को बेल दिलाने में मदद करते हैं तो इसकी शिकायत करके इन्हें बदलवाने की कोशिश करें।

जमानत मिलने की शर्तें-

जब भी कोई अपराधी कोर्ट में बेल तक प्राप्त करने के लिए अर्जी दाखिल करता है तो कोर्ट द्वारा ऐसे व्यक्ति को कुछ शर्तों के आधार पर ही बेल प्रदान की जाती है।

जमानत की शर्तें कुछ इस प्रकार है।

  • रिहा होने के बाद आप शिकायत करने वाले पक्ष को परेशान नहीं करेंगे।
  • जमानत पर रिहा होने के बाद आप किसी भी सबूत या गवाह को मिटाने की कोशिश नहीं करेंगे।
  • बेल पर रिहा होने वाले अपराधी विदेश यात्रा नहीं कर सकता है।
  • इसके साथ ही अपराधी को अपने शहर और एरिया के आस पास ही रहना रहने के लिए भी तय किया जा सकता है।
  • इसके साथ ही कई बार कोर्ट द्वारा अपराधी को हर रोज पुलिस स्टेशन जाकर हाजरी लगाने को भी कहा जाता है और ऐसा ना करने पर जमानत को रद्द भी किया जा सकता है।

बेल ना मिलने की वजह-

कई बार अदालत में जमानत की अर्जी लगाने पर भी जमानत नहीं मिलती है। बेल ना मिलने के कई कारण हो सकते हैं। जब अदालत को लगता है की बेल मिलने पर कोइ नया अपराध नहीं करेगा तभी बेल की इज़ाज़त डी जा सकती है। इसके लिए आरोपी से कोर्ट द्वारा मुचलका भरवाया जाता है और आरोपी व्यक्ति को बेल के दौरान कोर्ट द्वारा दिए गए सभी निर्देशों का पालन करना होता है।

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