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तलाक़ के बाद बच्चे पर ज्यादा अधिकार किसका होगा माँ का या पिता का?

तलाक़ के बाद बच्चे पर किसका अधिकार होगा?

तलाक़ ले रहे दम्पति के बीच बच्चे की कस्टडी को लेकर अक्सर विवाद उत्पन्न हो जाता है। बच्चे की कस्टडी किसे मिलेगी किसे नहीं यह कई बातों पर निर्भर करता है। मसलन बच्चे की उम्र, लिंग, परिस्थिति आदि। इसके साथ ही यह निर्णय पूरी तरह कोर्ट पर निर्भर है कि बच्चे कि कस्टडी किसको दी जाये।

बच्चे का पिता अमीर है इसलिए बच्चा उसी को मिलना चाहिए?

माता-पिता की आय व बेहतर शिक्षा की उम्मींद ही कस्टडी देने का मापदंड नहीं हो सकता। चूँकि बच्चा कोई सामान नहीं है जो बिना उचित तर्क के किसी एक को सौंप दिया जाये। माता-पिता की आय तो क्या बच्चे की परवरिश अच्छी ही होगी।

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कस्टडी की समस्या को मानवीय तरीके से हल किया जाना चाहिएः हाईकोर्ट

बिलासपुर में दाखिल एक याचिका की सुनवाई के दौरान छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट के जस्टिस गौतम भादुड़ी और जस्टिस एनके चंद्रवंशी की बेंच ने बच्चे की कस्टडी को लेकर पेश किए गए मामले में एक महत्वपूर्ण टिप्पणी करते हुए कहा है कि "बच्चा कोई सामान नहीं है" बच्चे का कल्याण ही फैसले का आधार होना चाहिए। माता- पिता की इनकम अच्छी है और बच्चे की बेहतर शिक्षा की व्यवस्था हो सकती है, यह कस्टडी सौंपने का एकमात्र मापदंड नहीं है। यह मानवीय समस्या है, ऐसे मामलों का निराकरण केवल कानूनी प्रावधानों की व्याख्या कर नहीं किया जा सकता। ऐसी समस्या को मानवीय दृष्टिकोण के साथ ही मानसिक और शारीरिक कल्याण शामिल है।

बच्चे की कस्टडी को लेकर पिता द्वारा पेश किया गया दावा

पिता को बच्चे से मुलाकात का अधिकार दिया गया था किन्तु पिता से मुलाकात दौरान बच्ची अपने पिता से डरी हुई थी। जब उसने पिता से बात की तो वह घबराई हुई थी, जिसपर कोर्ट ने यह टिपण्णी दी कि यह मानवीय समस्या है, ऐसे मामलों का समाधान केवल कानूनी प्रावधानों की व्याख्या के आधार पर नहीं किया जा सकता। ऐसी समस्या को मानवीय दृष्टिकोण से देखा जाना चाहिए और बच्चे के मानसिक और शारीरिक कल्याण को शामिल करके फैसला दिया जाना चाहिए।

क्या था बच्चे की कस्टडी का पूरा मामला

बिगड़ते रिश्ते के कारण शादी के कुछ समय बाद में पति और पत्नी अलग रहने लगे। बच्चे की कस्टडी के लिए गार्जियन एंड वार्ड्स एक्ट, 1890 की धारा 25 के तहत फैमिली कोर्ट में अर्जी दाखिल की गई। पति और पत्नी दोनों ने अपने साथ बच्चे का बेहतर भविष्य का दावा किया। फैमिली कोर्ट ने सुनवाई के बाद मां को बच्चे की कस्टडी सौंपी दी थी। लेकिन कुछ समय बाद इसके फैसले के खिलाफ पिता ने हाईकोर्ट में मामला प्रस्तुत किया। इसमें फैमिली कोर्ट के फैसले को चुनौती देते हुए अपनी 9 साल की बच्ची की कस्टडी की मांग दोहराई। कोर्ट ने मामले को सुना और निर्णय दिया।

कोर्ट ने कहा कि जब माता-पिता एक दुसरे के विरोधी मांगें करते हैं तब ऐसी स्थिति में बच्चे का कल्याण ही मुख्य मुद्दा होना चाहिए। कोर्ट ने कहा कि कल्याण शब्द का व्यापक अर्थ लिया जाना चाहिए। जिसमें नैतिक इनकार कर दिया तो उसके साथ दुर्व्यवहार किया गया, यह पिता को मुलाकात के अधिकार से इनकार करने का कारण नहीं हो सकता।

माता-पिता की लड़ाई में बच्चा ही प्रताड़ित होता है

हाईकोर्ट ने यशिता साहू विरुद्ध राजस्थान सरकार के मामले पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला देते हुए कहा कि ऐसे मामलों में माता-पिता के बीच कस्टडी की लड़ाई में हमेशा बच्चा ही शिकार होता है। कोर्ट ने मामले में बच्चे के पिता और दादा-दादी दोनों को मुलाकात का अधिकार दिया है। वहीं, बच्ची की कस्टडी मां को सौंपी गई है।

पति-पत्नी के समझौता से क्या कोर्ट का आदेश खत्म हो जाता जाता है?

पति-पत्नी के समझौते के लिए यदि कोर्ट द्वारा कोई आदेश दिया गया है तो उसे पति-पत्नी के आपसी समझौते हो जाने से समाप्त समझा जा सकता है। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि कोर्ट के बाहर पति-पत्नी के बीच हुए समझौते से कोर्ट का आदेश खत्म नहीं होता। बशर्ते समझौते को कोर्ट की मंजूरी मिली हो। इस मामले में कोर्ट ने बच्चे की अभिरक्षा 10 साल की आयु तक मां को सौंपी थी। लेकिन पति-पत्नी के साथ रहने का समझौता हो गया। फिर यह ज्यादा दिन नहीं चला और झगड़ा होने लगा। इसके बाद पत्नी ने घर छोड़ दिया लेकिन पति ने जबरन बच्चा अपने पास रख लिया। इसके बाद पत्नी श्वेता गुप्ता ने बच्चे की अभिरक्षा ना तो अपने पति को डॉक्टर अभिजीत कुमार व अन्य के खिलाफ कोर्ट की अवमानना का केस दायर कर दिया। जिसमें याचिका की सुनवाई कर रहे न्यायमूर्ति रोहित रंजन अग्रवाल ने कहा कि बच्चे की अभिरक्षा का अधिकार 10 साल की आयु तक मां को कोर्ट ने सौंपा गया था। ऐसे में कोर्ट के बाहर हुए समझौते से आदेश खत्म नहीं होता है। कोर्ट ने बच्चे की इच्छा भी पूछी। इस पर बच्चे ने मां के साथ जाने की इच्छा जताई।

अगर तलाक का केस चल रहा हो तब तक बच्चा किसके पास रहेगा?

पत्नी के बीच यदि कोई का मामला चल रहा है। जिसपर कोर्ट का फैसला आना अभी बाकी है तो ऐसे में बच्चे की अभिरक्षा बच्चे की इच्छा पर निर्भर करती है कि बच्चा किसके साथ रहना चाहता है। यदि बच्चा नवजात है अथवा माँ के दूध पर निर्भर है तो ऐसी परिस्थिति में बच्चा माँ के पास ही रहेगा। लेकिन कोर्ट का फ़ैसला आने के बाद दायर वाद के अनुसार यह निर्णय कोर्ट का होगा। अधिकांश मामलों में 10 साल की आयु तक बच्चे की कस्टडी मां को सौंपी जाती है किन्तु ऐसा ज़रूरी नहीं है।

क्या एक पिता बच्चे को कस्टडी के लिए आवेदन कर सकता है?

हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 26 के तहत बच्चों की कस्टडी का प्रावधान है। इसके तहत एक पिता अपने बच्चे की कस्टडी के लिए कोर्ट में आवेदन कर सकता है। बच्चे की कस्टडी किसे मिलेगी किसे नहीं यह कई बातों पर निर्भर करता है। मसलन बच्चे की उम्र, लिंग, परिस्थिति आदि। इसके साथ ही यह निर्णय पूरी तरह कोर्ट पर निर्भर है कि बच्चे कि कस्टडी किसको दी जाये।

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