अंतर धार्मिक विवाह करने के लिए किसकी अनुमति ज़रूरी है? क्या कोर्ट मैरिज रजिस्ट्रार विवाह पंजीकरण करने से इनकार कर सकता है? जानिए प्राविधान

जब पति बिना किसी कारण के पत्नी को छोड़ दें तब एक महिला के पास क्या क़ानूनी अधिकार बचते हैं?
इस बारे में कानून क्या कहता है। कानून में इस सम्बन्ध में क्या प्रावधान है। इन सभी बातों पर आज हम चर्चा करेंगे।
भारत में विवाह एक पवित्र संस्था है। भारतीय कानून के तहत विवाह को पवित्र माना गया है और एक पुरुष और महिला जब विवाहित होते हैं तो उन्हें कानूनन ही अलग किया जा सकता है। इसके अतिरिक्त नहीं हिंदू विवाह अधिनियम 1955 के अंतर्गत विवाह को एक संस्कार है। जिसे समाप्त नहीं किया जा सकता है।
प्राचीन काल से विवाह को एक संस्कार माना जाता रहा है। वर्तमान परिस्थितियों में विवाह के स्वरूप में परिवर्तन ज़रूर आए हैं। समाज के परिवेश में रहन सहन में परिवर्तन आए हैं। यहाँ तक कि विवाह करने के तरीके में भी परिवर्तन आए हैं लेकिन इससे विवाह की पवित्रता कम नहीं होती।
कभी-कभी परिस्थिति ऐसी होती है कि जब पति बिना किसी कारण से पत्नी को घर से निकाल देता है या छोड़ देता है या विवाहेत्तर संबंध के कारण पत्नी में उसकी रुचि खत्म हो जाती है। ऐसे में पत्नी से ज्यादा मतलब नहीं रखता है।
तो ऐसी परिस्थिति में यदि महिला नौकरी नहीं करती है और उसके पास कोई दूसरा काम नहीं है जिससे वह अपना जीवन यापन कर सके तो उसके सामने सबसे बड़ा संकट होता है, 'आर्थिक संकट'। क़ानूनी संकट से तो उबरना आसान हो सकता है लेकिन आर्थिक संकट से जूझना अत्यंत संकटकारी हो जाता है। इस अवस्था में महिला सबसे पहले अपने कानूनी अधिकारों को तलाशती है।
भारतीय कानून ने महिलाओं को अधिक अधिकार दिए। इन अधिकारों में कुछ अधिकार ऐसे हैं जो केवल पत्नी को ही प्राप्त होते हैं। पत्नी को बिना किसी कारण छोड़े जाने पर अपने पति के विरुद्ध कई अधिकार प्राप्त हैं जिनमें से कुछ इस प्रकार-
भारतीय दंड संहिता की धारा 498 (A) के तहत पति और उसके नाते रिश्तेदारों द्वारा की जाने वाली क्रूरता के विरुद्ध में पत्नी को अधिकार देती है। यह एक संगीन अपराध है। इसके लिए महिला अपने क्षेत्र से संबंधित पुलिस थाने में F.I.R. दर्ज़ करवा सकती है। इस धारा के अंतर्गत दोषी व्यक्ति को 7 वर्ष के कारावास के दंड का प्रावधान संहिता में किया गया है।
यदि किसी महिला के साथ यह सब हुआ है उसके पति ने उसे मारपीट कर घर से निकाल दिया है और दोबारा लेने के लिए नहीं आया है। ऐसी स्थिति में वह महिला अपने क्षेत्र के पुलिस थाने में इसकी शिकायत दर्ज करा सकती है। दंड प्रक्रिया संहिता 1973 की धारा 154 के अंतर्गत FIR दर्ज करवाई जा सकती है।
इसके लिए यह जरूरी नहीं है कि महिला का पति जिस थाना क्षेत्र में रहता है उसी के आस पास रिपोर्ट दर्ज कराई जाए। बल्कि कोई भी पीड़ित महिला अपने पिता के घर जाकर अर्थात माएके में उस क्षेत्र के अंतर्गत जो भी थाना हो वहाँ रिपोर्ट दर्ज करवा सकती है। अपने जिले के महिला थाने पर भी जाकर वह 498ए के अंतर्गत कानूनन FIR दर्ज करवा सकती है।
हिंदू मैरिज एक्ट 1955 में धारा 9 के अंतर्गत पति द्वारा घर से निकाली गई महिला को यह अधिकार देता है कि वह अर्जी अदालत में लगाकर अपने पति के घर वापस जाने की निवेदन कर सकती है।
अगर किसी महिला को बगैर किसी वजह के उसके पति द्वारा घर से निकाल दिया गया है या उसे छोड़ दिया गया है। ऐसी स्थिति में महिला का अधिकार बनता है कि वह पति के घर यदि वापस जाना चाहे तो न्यायालय में इस मामले से अवगत कराकर हिंदू विवाह अधिनियम 1955 की धारा 9 के अंतर्गत आवेदन देकर अपने पति के घर वापस जा सकती है।
न्यायालय ऐसी महिला के पति को यह आदेश दे सकता है कि वह अपनी पत्नी को वापस अपने घर ले जाए या एक पत्नी के रूप में उसे अपने साथ रखे। अपने दांपत्य दायित्वों का पालन करे। पति पत्नी को पुनः स्वीकारे।
इस अधिनियम में धारा 9 के अंतर्गत टूटते हुए संबंधों को बचाया जा सकता है। विवाह के बिगड़ने से पहले बचाने के लिए इसे हिंदू विवाह अधिनियम में ऐसी व्यवस्था की गई है कोई भी पीड़ित महिला या पत्नी यह आवेदन किसी भी कोर्ट में लगा सकती है। वह महिला भारत में जहां कहीं भी निवास करती है। अगर वह अपने माता-पिता के घर रह रही है तो वहां से भी पति के घर जाने के लिए कोर्ट या फिर थाने में आवेदन दे सकती है।
जैसे कि अगर कोई महिला अपने माता-पिता के घर जो किसी नगर विशेष में रहते हैं और पत्नी का घर चेन्नई में ऐसी स्थिति में महिला लखनऊ जाकर अपने माता पिता के साथ निवास कर रही है तो वहां कुटुंब न्यायालय, जिला न्यायालय में जाकर आवेदन कर सकती है।
विवाहित स्त्रियों के अधिकारों की रक्षा के लिए यह अधिनियम भारत में बहुत ही महत्वपूर्ण है। इस अधिनियम में कई क़ानूनी अधिकार विवाहित स्त्रियों को दिए गए हैं। विवाहित महिलाओं के अधिकारों को सुरक्षित करने के लिए इस अधिनियम में कई महत्वपूर्ण भाग है।
घरेलू हिंसा अधिनियम की धारा 12 के अंतर्गत कोई भी महिला जिसके पति द्वारा उसे घर से निकाल दिया गया है। घर में पुनः प्रवेश पाने की अर्जी लगा सकती है। यदि उस महिला के विवाह के समय मिले स्त्रीधन पर सास या ससुराल के किसी अन्य सदस्य ने कब्जा कर लिया है तो वह महिला कोर्ट में आवेदन कर उसे वापस पा सकती है।
इस धारा के तहत भरण पोषण (Maintenance) के लिए हासिल करने का अधिकार महिला को प्राप्त है। किसी भी महिला के पास यह अधिकार है कि यदि वह अपने पति से अलग रह रही है या उसका पति उसको साथ नहीं रखता है या बिना किसी कारण के उसके पति द्वारा उसे छोड़ दिया गया ऐसी स्थिति में पति पत्नी को पति से भरण-पोषण पाने का अधिकार है।
दंड प्रक्रिया संहिता 1973 की धारा 125 के तहत बगैर किसी कारण के बिना किसी कारण के घर से निकाली गई महिला के पास में चौथा सबसे महत्वपूर्ण अधिकार है जिसमें ऐसी महिला अगर पति से अलग रह रही है तथा पति ने उसे अलग कर दिया है तब वह न्यायालय में आवेदन देकर दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) की धारा 125 के तहत पति से भरण-पोषण की मांग कर सकती है। भरण-पोषण के लिए दंड संहिता धारा 125 के तहत आवेदन किसी भी न्यायालय में कर सकती जहां वह निवास करती है। सामान्यता: महिलाएं घर से निकाले जाने पर अपने माता-पिता के साथ निवास करती है इसलिए कहा जा सकता है कि महिलाएं अपने माता-पिता के घर जहां पर भी उनका निवास क्षेत्र है वहां से कोर्ट में भरण पोषण के लिए आवेदन कर सकती हैं।
जिस तारीख से ऐसा आवेदन लगाया जाता है। न्यायालय उस महिला के पति को उस दिनांक से भरण-पोषण के लिए दिए जाने का आदेश दे सकती है। जैसे किसी महिला ने अगर दिनांक 1 जनवरी 2022 को कोई आवेदन लगाया है और मेंटेनेंस के दिए जाने का आदेश 1 दिसंबर 2022 को दिया है। पति को पूरे 1 वर्ष का भरण पोषण देना होगा।
न्यायालय साधारणतया ₹3000 से ₹5000 प्रति माह का आदेश देती है। पर साथ ही महिलाओं का स्टेटस भी देखा जाता है। उनकी जीवनशैली को देखा जाता है। इसके अलावा उसके पति की इनकम को भी देखा जाता है।
इन सभी चीजों के अवलोकन के बाद अदालत भरण पोषण का आदेश देती है। इस अधिनियम का मकसद महिलाओं को आर्थिक मोर्चे पर मजबूत करना है। इससे पति द्वारा छोड़ी गई महिलाओं के आर्थिक पक्ष को मजबूत किया जा सकता है। उन्हें इतना पैसा दिलाया जाता है जिससे वह अपना जीवन यापन कर सके। अगर पति द्वारा भरण पोषण देने से मना किया जाता है। तब महिला पति से वसूली के लिए भी कोर्ट से कह सकती है यहाँ तक की न्यायालय गिरफ्तारी के वारंट के जरिए उपस्थित करवा सकता है।
यह सभी अधिकार केवल भारतीय स्त्री को प्राप्त है। इसमें केवल हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 9 केवल हिंदू महिलाओं के मामले में ही लागू होती है शेष सभी कानून भारत के सभी नागरिकों व सभी धर्म की महिलाओं पर समान रूप से लागू होते हैं। हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 9 के समान ही कई अन्य क़ानून की व्यवस्था ईसाई, सिख, जैन, बौद्ध और मुस्लिम समुदाय में भी उपलब्ध हैं। महिलाएं भी उनका लाभ ले सकती हैं।
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