अंतर धार्मिक विवाह करने के लिए किसकी अनुमति ज़रूरी है? क्या कोर्ट मैरिज रजिस्ट्रार विवाह पंजीकरण करने से इनकार कर सकता है? जानिए प्राविधान

मैरिज काउंसलर और तलाक के मामलों के जानकार वकीलों के मुताबिक पिछले दो सालों के दौरान तलाक की अर्जियां काफी बढ़ीं। भारत ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया में यह चलन बढ़ता नजर आया। इसको देखते हुए भारत के पड़ोसी देश चीन ने तलाक का नया कानून लागू कर दिया। चीन के नए क़ानून के तहत तुरंत तलाक नहीं मिलेगा बल्कि दंपती को अब तलाक के लिए 30 दिन का इंतजार करना होगा। ताकि वे आवेग में आकर फैसले न लें और उन्हें पुनर्विचार का मौका मिल सके। भारत में सामान्यतया यह समय 6 महीने का है। यह कूलिंग ऑफ पीरियड तलाक़ के फैसलों पर विचार के लिए दिया जा है। मगर उच्चतम न्यायालय के कुछ फैसलों के मुताबिक अदालत इस बारे में स्वंय विवेकाधिकार से फैसला ले सकती है।
तलाक की अर्ज़ी देने वाले कपल्स को तलाक के फैसले पर पुर्नविचार के लिए कोर्ट द्वारा कुछ समय दिया जाता है यह समय कूलिंग ऑफ पीरियड के नाम से जाना जाता है। इस पीरियड के दौरान जब कपल्स ठन्डे दिमाग से पुनः विचार करते हैं तो 36% प्रतिशत मामलों में कपल्स तलाक़ का विचार त्याग देते हैं जिससे टूटते परिवारों को बचाने का प्रयास किया जाता है।
कोर्ट में कई मामले ऐसे आते हैं, जिनमें तुरंत तलाक की मांग की जाती है। लेकिन कोर्ट द्वारा कई मामलों में कूलिंग ऑफ पीरियड दिया जाता है। लेकिन जब कपल्स तुरंत तलाक की मांग करते हैं तो कई मामलों में कूलिंग ऑफ पीरियड नहीं दिया जाता है। वास्तव में पुनर्विचार का समय देना उन मामलों में सही साबित होता था, जहां संबंधों के फिर से सुधरने की थोड़ी भी गुंजाइश रहती हो। लेकिन अब कोर्ट में कई ऐसे मामले आते हैं जिसमें तलाक़ की अंतिम विकल्प बचता है इसलिए ऐसे मामलों में कोर्ट द्वारा इंस्टेंट तलाक़ की मंजूरी दी जा सकती है पर यह पूरी तरह कोर्ट पर निर्भर है।
दिल्ली स्टेट लीगल अथॉरिटी के शादीशुदा मामलों में मध्यस्थ एडवोकेट बताते हैं, 'अदालत में तलाक के मामले दो तरह से आते हैं,
शादी को समाज की बुनियादी ईंटों में से एक माना जाता है। पति-पत्नी के बीच झगड़े तो पहले भी होते रहे हैं लेकिन तब तलाक कम होते थे। अधिवक्ता आशुतोष कुमार कहते हैं, 'भारतीय समाज में विवाह की संस्था दो प्रकार की होती है।
लेकिन जब माता-पिता जो शादी करवाते थे तो कपल्स उसमें थोड़े संस्कारों में बंधे हुए महसूस करते थे और फिर वक्त गुजरने के साथ-साथ एक दुसरे के साथ रहने की आदत भी हो जाती थी। विवाद की स्थिति में मध्यस्ता करने की ज़िम्मेदारी माता-पिता की होती थी। रिश्ता बचाने की जुगत और फिर मध्यस्थ के माध्यम से भी बीचबचाव करके रिश्ता टूटने से बचा लेते थे। लेकिन अब स्त्री और पुरुष दोनों स्वतंत्र और आत्मनिर्भर हैं। दोनों ही अपने फैसले स्वयं लेने की परिस्थिति में होते हैं। ऐसे में अब दोनों के लिए साथ रहना मजबूरी नहीं रह गई है। परिणाम स्वरुप थोड़ी सी खटपट तलाक़ तक पहुँच जाती है।
क़ानूनन कई देशों में ऐसा प्रचलन है जहाँ तलाक़ तुरंत मिल जाता है लेकिन सामाजिक विज्ञान की दृष्टि से देखा जाये तो तत्कालिक फैसला लेने वाली दृष्टि ठीक नहीं है। क्योंकि क्रोध और आवेग में विचार अक्सर सही नहीं होता है।
वास्तव में ना तो कोई स्त्री परफेक्ट है और ना ही कोई पुरुष। मगर पुनर्विचार की अवधि में एक-दूसरे के गुण-दोषों पर शांत मन से विचार का समय दिया जाता है। इस समयावधि में अधिकांश मामलों में रिश्तों को बचाया जा सकता है अतः सामाजिक दृष्टिकोण से इंस्टेंट तलाक दिया उचित साबित नहीं होता दिख रहा है।
अधिवक्ता आशुतोष कुमार कहते हैं कि 'तलाक की चाहत रखने वाले कपल्स को कूलिंग ऑफ पीरियड मिलना ही चाहिए। क्यूंकि क्या होता है कि कई बार कपल्स बिना किसी गंभीर बातचीत के ही तलाक लेने पहुंच जाते हैं। झगड़े की कोई जड़ नहीं होती ना ही कोई ठोस मुद्दा ऐसे में गुस्से के आवेग में तलाक लेने तक की बात कपल्स सोंच लेते हैं
उन्हें इस बात जा ज़रा भी अहसास नहीं होता है कि साथ रहने से उनमें कितना प्यार है। जब वह बिना एक-दूसरे के कुछ दिन बिताते हैं, तब उन्हें अहसास होता है कि एक-दूसरे के बिना जीना उनके लिए कितना ज्यादा मुश्किल है।'
अधिवक्ता आशुतोष ने कहा कि, कोर्ट द्वारा दिया जाने वाला 6 महीने का कूलिंग ऑफ पीरियड ज्यादा सफल नहीं रहा। इसकी वजह से पति-पत्नी दोनों की जिंदगी की जरूरी चीजें छूट रही थीं। क्राइम अगेंस्ट विमन सेल में अगर कोई केस फाइल करता है, तो ऐसे मामले हमारे पास ही आते हैं। इस तरह लगभग 99 % तक मामले कोर्ट जाने से पहले मीडिएशन काउंसलिंग से गुजर चुके होते हैं और हम उनमें सुलह की कोशिश कर चुके होते हैं। इस तरह उनमें सुलह की गुंजाइश बहुत कम हो चुकी होती है तभी मामलें कोर्ट तक पहुचते हैं। लेकिन तलाक़ का फैसला लेने से पूर्व ज़रूरी है की भविष्य की राह पर भी विचार किया जाना चाहिए।
रिलेशनशिप एक्सपर्ट का कहना है कि कई मामलों में तलाक को टालने की कोई गुंजाइश नहीं होती है, क्योंकि इसमें दोनों लोग साथ नहीं रहना चाहते हैं। तलाक के ज्यादातर तीन तरह के मामले होते हैं।
विवाह को परिवार के सम्मान से भी जोड़कर देखा जाता था। सामाजिक विज्ञान की दृष्टि से तलाक़ के मामलें में तुरंत फैसला लेना ठीक नहीं है। क्यूंकि इससे कपल्स से आने वाली जिंदगी पर तो असर होता ही है और यदि बच्चे हैं तो उनका भविष्य संकट युक्त होने की सम्भावना हो जाती है। लेकिन घरेलू मारपीट, अपमान, दहेज़ के लिए सताना आदि जैसे मामलों में यदि सुधार की गुंजाईश ना हो तो सही समय से तलाक़ लेना उचित हो सकता है।
जानिए क़ानूनी मुद्दों पर अधिवक्ता आशुतोष कुमार की राय, हमें ईमेल (thejudicialguru@gmail.com) कीजिए।
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