अंतर धार्मिक विवाह करने के लिए किसकी अनुमति ज़रूरी है? क्या कोर्ट मैरिज रजिस्ट्रार विवाह पंजीकरण करने से इनकार कर सकता है? जानिए प्राविधान

शादीशुदा जोड़ों के बीच शारीरिक सम्बन्ध अनिवार्य व स्वभाविक प्रक्रिया है। पति और पत्नी का एक दूसरे पर अधिकार है की शारीरिक सम्बन्ध बना सकें हैं। लेकिन जब सेक्स रिलेशन बलपूर्वक व ज़बरदस्ती होने लगे तो यह अपराध का रूप ले लेता है। किन्तु सभी मामले में ज़रूरी नहीं की ऐसा ही हो।
कुछ समय पूर्व एक मामले की सुनवाई के दौरान दिल्ली हाईकोर्ट के सामने एक पेचीदा सवाल था कि पति अगर पत्नी की इच्छा के बिना उसके साथ सेक्स करे तो इस बलात्कार को अपराध माना जाना चाहिए या नहीं। हाईकोर्ट की बेंच ने इस बारे में किसी तरह की एकमत राय नहीं जताई। पैनल में मौजूद दो जजों की राय अलग-अलग थी। एक जज का विचार था कि इसे अपराध माना जाना चाहिए, वहीँ दूसरे ने इस राय से जुदा इत्तिफाक जताया। वास्तव में यह सवाल है ही टेढ़ा। भारत ही नहीं, विश्व के कई देशों में वैवाहिक बलात्कार को साबित करने और फिर उसके लिए सजा देने का मामला उलझा हुआ है। जिसका हल खोजने में कई देशों के विधि विशेषज्ञ लगे हैं।
दुनिया के 150 से ज्यादा देशों ने पत्नी के साथ पति के बलात्कार को अपराध माना है, लेकिन बावजूद इसके इन देशों में भी इस तरह के कानून का कोई बड़ा असर नहीं दिखता। विधि विशेषज्ञों का कहना है कि पीड़िता पत्नी के सामने सबसे बड़ा मामला आता है सबूत देने का। पत्नी के पास इस बात का कोई सबूत ना होना की पति ने उसके साथ ज़बरदस्ती की है अपराध के विरुद्ध मामले को कमज़ोर बना देता है। इसिलए आरोपियों को दोषी साबित करने के काफी कम मामले दिखाई देतें हैं। इतना ही नहीं आम लोगों का नजरिया भी पीड़िता महिला के प्रति कुछ खास सहानुभूति वाला नहीं रहता।
अधिकतर देशों में मैरिटल रेप इस तरह का क्राइम है, जिसमें आरोपी को दोषी ठहराना मुश्किल होता है क्योंकि अपराध घर की चारदीवारी के भीतर होता है। और उसका कोई गवाह नहीं होता। ऐसे मामलों में हालात से जुड़े सबूत काफी ज़रूरी हो जाते हैं। मसलन, पीड़िता ने अपने किसी करीबी को इसकी जानकारी दी हो और वह इसकी गवाही दे या फिर सोशल मीडिया पर पीड़िता ने इस बारे में कोई बात कही हो।
इसके अतिरिक्त विधि विशेषज्ञों का कहना है कि ऐसे मामलों में आरोप साबित करने के लिए टेक्स्ट मेसेज, विडियो, फोटो या ऑडियो टेप जैसे 'ठोस सबूत' काफी जरूरी हो जाते हैं।
'कुछ राज्यों में पीड़िता पर प्रूफ से जुड़ा बोझ काफी ज्यादा है। मसलन, मैरिटल रेप की रिपोर्ट दर्ज कराने में ज्यादा देर होने पर अपराध को दर्ज़ करवाने की इजाजत नहीं है। बलात्कार के दूसरे मामलों के मुकाबले इसमें पीड़िता को शिकायत करने में जल्दबाजी दिखानी होती है। कभी-कभी तो शिकायतकर्ता पक्ष को यह भी साबित करना होता है कि बहुत ज्यादा बल प्रयोग किया गया था। 'यूरोपियन यूनियन के लगभग सभी देशों और ब्रिटेन ने मैरिटल रेप को अपराध घोषित कर दिया है। इसके लिए वहाँ सजा का प्रावधान है। बेल्जियम, ब्रिटेन, डेनमार्क और जर्मनी जैसे देशों ने इस्तांबुल कन्वेंशन की तर्ज पर अपने क्रिमिनल कोड्स में बदलाव किए और असहमति के आधार पर रेप की परिभाषा तय की गई है।
वहीं फ्रांस, स्पेन और इटली जैसे देशों में किसी किस्म की हिंसा होने पर ही पति को दोषी साबित किया जा सकता है। 'जहां सबूतों से जुड़ी बाध्यता अधिक नहीं है, वहां दूसरी दिक्कतें है। विशेषज्ञों का कहना है कि ऐसे मामलों के बारे में आम लोगों का नजरिया ऐसा रहता है कि सबूत देने में प्रैक्टिकल दिक्कतें पेश आती हैं।
ब्रिटेन में हालिया आंकड़ों से पता चलता है कि वहां कम से कम 25 प्रतिशत लोग ऐसे हैं, जो यह मानते हैं कि पति अगर पत्नी की मर्जी न होने पर भी उसके साथ सेक्स करे तो उसे रेप नहीं माना जा सकता।' ऐसे नजरिए के चलते अथॉरिटीज को फैसले करने में दिक्कत होती है।
कनाडा में एक ऐसा ही मामला सामने आया, जिसमें एक व्यक्ति ने अपनी पत्नी से उसकी मर्जी के बिना सेक्स किया। पत्नी ने इसकी शिकायत दर्ज़ करवाई। लेकिन कोर्ट में बहस के दौरान पत्नी ने कहा कि उसकी मर्जी तो नहीं थी, लेकिन वह एक डर के चलते सेक्स के लिए तैयार हो गई थी और डर यह था कि पति कहीं उसे और उसके बच्चों को घर से बाहर न निकाल दे। कोर्ट ने इस मामले की तह तक गये लेकिन जो कुछ भी हुआ, उसे रेप नहीं माना। इस तरह के हालात के चलते कम ही मामले अदालतों तक पहुंच पाते हैं।
आमतौर पर मैरिटल रेप के तीन फीसदी मामलों की शिकायत ही पुलिस को मिलती है और दोष साबित होने के मामले तो और भी कम हो जाते हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि इसके चलते सजा की अवधि भी काफी कम रहती है। विधि विशेषज्ञों के अनुसार, 'अगर बलात्कार करने वाला पीड़िता का पति हो तो अमेरिका के कुछ राज्यों में कम समय की सजा का प्रावधान है। इसके अलावा कुछ राज्यों में तो हाल यह है कि अगर आरोपी पति काउंसलिंग के लिए राजी हो जाये और पीड़िता भी इसके लिए तैयार हो तो आरोप खारिज कर दिए जाते हैं।'
'सेक्सुअल असॉल्ट के अधिकतर मामलों में करीबियों पर ही आरोप होते हैं। ऐसे मामलों में सबसे बड़ी चुनौती सबूत से जुड़ी होती हैं। ठीक इसी तरह की हालत वैवाहिक रिश्ते में बलात्कार के मामले में होती है। इन मामलों में वैवाहिक बलात्कार को साबित करना एक कठिन प्रक्रिया है। सगे सम्बन्धियों और करीबियों की ओर से यौन हमले के मामले तो अदालतें पहले से देख ही रही हैं। ऐसे में मैरिटल रेप के मामलों को अलग नहीं कहा जा सकता।
विधि विशेषज्ञों की माने तो यह बात पूरी तरह स्पष्ट है की वैवाहिक बलात्कार के आरोप लगने के बाद पति व पत्नी के बीच रिश्ते सामान्य होने की सम्भावना कम हो जाती है। ऐसे में पति द्वारा इस बात को मुद्दा बनाकर तलाक की मांग की जा सकती है जिसकी सम्भावना अधिक है चूँकि पत्नी पति को पहले ही वैवाहिक बलात्कार का अपराधी मान चुकी है।
भारत जैसे देश जहाँ विवाह को एक पवित्र रिश्ता माना जाता है पति द्वारा अपनी ही पत्नी का रेप जैसी बात अटपटी सी लग सकती है। चूँकि भारतीय समाज में पति पत्नी के बीच अभी भी सेक्स पर पति का एकाधिकार समझा जाता है। ऐसे में मैरिटल रेप से जुड़ी इस बहस में एक सवाल उठता है 'विवाह संस्था की पवित्रता' का। इस बारे में कहा जा सकता है कि अगर हालात ऐसे मोड़ पर पहुंच गए हैं कि पत्नी पति पर रेप का आरोप लगा रही हो तो फिर किस पवित्रता को बचाने की कोशिश की जा रही है?
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