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Showing posts from August, 2020
सत्यमेव जयते!

भारत सरकार के विरुद्ध युद्ध करने पर होगी मृत्युदण्ड की सज़ा | सुप्रीम कोर्ट

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भारतीय दण्ड संहिता में मृत्युदण्ड व्यक्ति को न्यायिक प्रक्रिया के फलस्वरूप किसी जघन्य अपराध को करने के लिए प्राण का दण्ड देना मृत्युदण्ड कहलाता है। जघन्य अपराधियों को फाँसी की सजा दिया जाना मृत्युदण्ड का एक स्वरूप है और निरोधात्मक दण्ड के रूप में मृत्युदण्ड सबसे कठोरतम दण्ड माना गया है क्योंकि इसके परिणामस्वरूप समाज से अपराधी का अस्तित्व ही समाप्त हो जाता है। प्रायः सभी देशों में मृत्युदण्ड सदियों से प्रचलित है। भारत में भी आदिकाल से मृत्युदण्ड विभिन्न रूपों में प्रचलित था। अवांछित समाज विरोधी तत्वों को समूल नष्ट करने का यह एक प्रभावकारी उपाय माना जाता रहा है। मृत्युदण्ड  का अर्थ- फेयर चाइल्ड के अनुसार - “ किसी अपराध के लिये अपराधी को मृत्यु की सजा दिया जाना मृत्यु दण्ड या प्राणदण्ड कहलाता है। ” सी-एम- अब्राहम के अनुसार- “ सामाजिक नीति के अनुरूप अत्यधिक गंभीर अपराध के मामलों में दोषी व्यक्ति को मौत के घाट उतार देना मृत्युदण्ड कहलाता है। ” भारतीय दण्ड संहिता , 1860 के अंतर्गत निम्नलिखित अपराधों के लिये मृत्युदण्ड का प्रावधान है- भारत सरकार के विरु

कैसे मिटेगा भ्रष्टाचार | क्या है इस सम्बन्ध में कानून (Corruption)

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भ्रष्टाचार ( Corruption)  व निवारण से संबंधित कानून वर्तमान में भ्रष्टाचार  ( Corruption)  सर्वत्र और सर्वशक्तिमान हो गया है , मानों भगवान की जगह ले रहा हो। जहाँ देखो उधर ही  भ्रष्टाचार   ( Corruption)  व्याप्त है। कालांतर में ऐसे कई बड़े घोटाले रहे हैं जो चर्चा में रहे। जिनमे से कुछ निम्न हैं  चारा घोटाला मामले में न्यायालय की टिप्पणी ‘ भ्रष्टाचार ’ ( Corruption)   शब्द दो शब्दों ‘ भ्रष्ट ’ और  ‘ आचरण ’ से बना हुआ है। अर्थात् भ्रष्ट आचरण ही भ्रष्टाचार है । भ्रष्टाचार  ( Corruption) आज एक ज्वलंत समस्या है। सम्पूर्ण विश्व इस समस्या से त्रस्त है। जनसाधारण में अब यह धारणा बन चुकी है कि सरकारी , गैर-सरकारी एवं स्वैच्छिक संगठनों में कुछ बिना लिए-दिए काम नहीं बनता। उपहारस्वरूप आज रिश्वत को सुविधा शुल्क का नाम दे दिया गया है। लोग अपना काम निकलवाने के लिए लोकसेवकों को भ्रष्ट आचरण करने के लिए उत्प्रेरित करते हैं और इसका शिकार आज वह आदमी बन रहा है , जिसके पास देने को कुछ भी नहीं है। वर्तमान समय में भ्रष्टाचार एक ज्वलंत मुद्दा बना हुआ है। बाबा रामदेव , अन्ना हजारे , स्वामी अग्निवेश त

शिक्षा से क्यों वंचित है गरीबों के बच्चे | क्या है शिक्षा का अधिकार (Right To Education)

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शिक्षा का अधिकार (Right To Education) हाल ही में  उच्चतम न्यायालय  द्वारा शिक्षा के अधिकार के विषय में एक महत्वपूर्ण बात कही गई कि;  "शिक्षा का अधिकार एक जीने के अधिकार का एक आवश्यक मार्ग (अवयव) है;  उच्चतम न्यायालय" शिक्षा (Education) के बिना एक सभ्य , सुसंस्कृत एवं सम्माजनक जीवन की कल्पना नहीं की जा सकती। शिक्षा  (Education)  हमारे जीवन का एक अनिवार्य अंग है। भारत में स्कूली शिक्षा को अनिवार्य किए जाने की माँग सर्वप्रथम 1917 में गोपाल कृष्ण गोखले ने की थी। 1937 में महात्मा गाँधी एवं डॉ- जाकिर हुसैन ने स्कूली शिक्षा  (Education)  को अनिवार्य किये जाने की आवश्यकता पर बल दिया। बाद में संविधान निर्माताओं ने शिक्षा को अनिवार्य किये जाने के प्रावधान को भाग 4 में स्थान दिया।  उन्नीकृष्णन बनाम आंध्रप्रदेश राज्य के वाद में 1993 में सर्वोच्च न्यायालय ने निर्णय दिया कि संविधान के खण्ड 4 के अनुच्छेद 45 के खण्ड 3 के अनुच्छेद 21 के साथ मिलकर पढ़ा जाना चाहिए। अनुच्छेद 45 में यह प्रावधान था कि राज्य 14 वर्ष तक के बालकों को अनिवार्य और निःशुल्क शिक्षा  (Educati

क्या है अनुसूचित जाति एवं जनजाति के शोषण विरुद्ध अधिकार | Rights of Scheduled Caste and Scheduled Tribe

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अनुसूचित जाति (S cheduled Caste)  एवं जनजाति (S cheduled Tribe)  अत्याचार और निवारण: "अत्याचार शब्द का मतलब उन अपराधों से है जो गैर अनुसूचित जाति एवं जनजाति के सदस्यों (सर्वण जाति) द्वारा   अनुसूचित जाति एवं जनजाति वर्ग के सदस्यों के विरूद्ध किये जाते हैं।"  अनुसूचित जाति  (S cheduled Caste)  एवं जनजाति  (S cheduled Tribe)  अत्याचार निवारण अधिनियम: वर्षों से भारत में एक वर्ग जिसे संविधान के माध्यम से अनुसूचित जाति  (Scheduled Caste)  एवं जनजाति  (S cheduled Tribe)  के रूप में अनुसूचित किया गया , शोषण , अत्याचार , अपमान , साधनहीनता , भूख , गरीबी व यातनाओं का शिकार होता रहा है। अनेक समाज सुधारकों ने समय-समय पर इस वर्ग के उत्थान के लिए प्रयास किए हैं , जिनमें डॉ- भीमराव अम्बेडकर तथा महात्मा ज्योतिबा फूले का योगदान उल्लेखनीय है। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 366, 341 व 342 में अनुसूचित जाति  (Scheduled Caste)  एवं जनजाति  (S cheduled Tribe)  शब्द को परिभाषित किया गया है और उसकी व्याख्या की गई है जिसके अनुसार “ राष्ट्रपति किसी राज्य या संघ राज्यक्षेत्र के संबंध में औ

क्या है मानवाधिकार के हक़ और पुलिस का व्यवहार | Human Rights and Police

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मानवाधिकार और पुलिस " मानवाधिकार (Human Rights)  सभी मनुष्यों को प्राप्त वे अधिकार हैं, जो सम्मानजनक जीवन जीने हेतु आवश्यक हैं।" मानवाधिकार  (Human Rights)  मानव मात्र को प्राप्त ऐसे अधिकार हैं जो मनुष्य की गरिमा और स्वतंत्रतामय जीवन के लिये आवश्यक हैं। इन अधिकारों को प्रायः मौलिक अधिकार, नैसर्गिक अधिकार, जन्म से अधिकार आदि नामों से जाना जाता है। अनेक प्राचीन दस्तावेजों में ऐसी अनेक अवधारणायें मिलती हैं जिन्हें मानवाधिकारों के रूप में चिंहित किया जा सकता है। आधुनिक मानवाधिकार कानून तथा मानवाधिकार की अधिकांश अवधारणायें समसामयिक इतिहास से सम्बन्धित हैं। ‘द टवैल्व आर्टिकल्स ऑफ दि ब्लैक फॉरेस्ट’ (1525) को यूरोप में मानवाधिकारों का सर्वप्रथम दस्तावेज माना जाता है। यह जर्मनी के किसान विद्रोह स्वाबियन संघ के समक्ष उठायी गई किसानों की मांग का एक हिस्सा है। 1776 में संयुक्त राज्य अमेरिका 1789 में फ्रांस में दो प्रमुख क्रान्तियां घटी जिसके फलस्वरूप क्रमशः संयुक्त राज्य की स्वतंत्रता की घोषणा एवं फ्रांसीसी लोगों की मानव तथा नागरिकों के अधिकारों का अभिग्रहण हुआ। मानवाधिकार

कॉलेजियम सिस्टम क्या है | Indian judiciary System

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कॉलेजियम सिस्टम क्या है? कॉलेजियम सिस्टम सर्वोच्च न्यायालय में स्थापित एक समिति है।  इस समिति में मुख्य न्यायाधीश सहित पांच वरिष्ठ जज होते हैं। इस समिति के द्वारा ही उच्च न्यायालय तथा सर्वोच्च न्यायालय के जजों की नियुक्ति होती है। यह व्यवस्था वर्ष 1993 में आई थी। इसके पहले भारतीय संविधान जजों की नियुक्ति का आधार  अनुच्छेद 124 (2) और 217 (1)  था और इसी के द्वारा जजों की नियुक्ति होती थी।  अनुच्छेद 124 में प्रावधान है कि राष्ट्रपति मंत्रिमंडल की सहमति से जजों की नियुक्ति करेगा। अनुच्छेद में यह भी प्रावधान है कि राष्ट्रपति सर्वोच्च न्यायालय या उच्च न्यायालय के जजों से परामर्श लेकर नियुक्त करेगा। परामर्श मानना या ना मानना राष्ट्रपति के विवेक पर निर्भर करता है लेकिन यहीं पर परामर्श शब्द पर पेंच फस गया। सर्वोच्च न्यायालय में 1993 में एक PIL (जन हित याचिका) दाखिल हुआ। वादकारी एडवोकेट ऑन रिकॉर्ड एसोसिएशन बनाम यूनियन ऑफ़ इंडिया 1993 था। इस केस में मुख्य न्यायाधीश जे.एस. वर्मा सहित नौ जजों की बेंच ने यह फैसला पारित कर दिया कि अनुच्छेद 124 (2) में लिखित शब्द परामर्श यानी Consultation

Court Order | महिलाओं के मस्जिद जाने पर पाबंदी नहीं!

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महिलाओं के मस्जिद जाने पर पाबंदी नहीं! ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल ला बोर्ड ने सुप्रीम कोर्ट में साफ किया है कि मस्जिदों में महिलाओं के प्रवेश को लेकर कोई पाबंदी नहीं है। वह नमाज के लिए मस्जिद में जाने के लिए स्वतंत्र हैं हालांकि बोर्ड ने यह भी जोड़ा है कि महिलाओं के लिए जमात के साथ नमाज यानी समूह प्रार्थना या सामूहिक प्रार्थना में शामिल होना अनिवार्य नहीं है। बोर्ड ने यह हलफनामा दो मुस्लिम महिलाओं की ओर से दायर याचिका के जवाब में दिया है जो मस्जिद में प्रवेश कर सबके साथ नमाज नमाज अदा करना चाहती हैं। सुप्रीम कोर्ट ने याचिका पर ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल ला बोर्ड को नोटिस जारी कर याचिका में उठाए गए मुद्दों पर जवाब देने को कहा था। मामले को सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के लिए 9 जजों को रेफर किया था।  25 अक्टूबर 2019 को सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार और अन्य प्रतिवादियों से जवाब दाखिल करने को कहा था। जिसमें कहा गया था कि मुस्लिम महिलाओं को देश भर की तमाम मस्जिदों में प्रवेश दिया जाए। बाद में सबरीमाला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश के मामले की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने मामले को लार्जर बें

मोटर वाहन अधिनियम 1988 | गाड़ी बेचने से पहले ये काम ज़रूर कर लें

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अगर अपने अपना निजी या कमर्शियल वाहन बेच दिया है। वाहन क्रेता को हैंड ओवर भी कर दिया है लेकिन रजिस्ट्रेशन के कागज में अभी भी आपका नाम दर्ज है तो आप ही गाड़ी के वास्तविक मालिक माने जाएंगे, तो यह समझ लीजिए कि आप लंबी कानूनी प्रक्रिया में फंस सकते हैं। सुप्रीम कोर्ट ने अभी हाल ही में दिए गए फैसले में कहा है कि यदि कोई व्यक्ति अपना वाहन बेचने के बाद वाहन रजिस्ट्रेशन पेपर में अपना नाम नहीं चेंज करवाता है तो गाड़ी का मालिक वही माना जायेगा। ऐसी स्थिति में किसी अनहोनी के समय उस पर ही कारवाही की जाएगी। जिसका नाम रजिस्ट्रेशन कागज में वही मालिक माना जाएगा भले ही क्रेता व विक्रेता दोनों पार्टियों ने कॉन्ट्रेक्ट पेपर बनावा लिया हो। यदि खरीददार ने वाहन को अपने कब्जे में ले लिया और वाहन का उपयोग शुरू कर दिया है तो दुर्घटना की स्थिति में विक्रेता ही जिम्मेदार होगा क्योंकि पंजीकृत मालिक के रूप में अभी विक्रेता ही है। अदालत ने एक केस सुनवाई के वक्त कहा, जिसमें सुरेंद्र कुमार बुलावे बनाम द न्यू इंडिया इंश्योरेंस कंपनी का मुद्दा था। इस केस में याचिकाकर्ता सुरेन्द्र ने अपना एक ट्रक किसी अंसारी नाम

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