शिक्षा का अधिकार (Right To Education)
हाल ही में उच्चतम न्यायालय द्वारा शिक्षा के अधिकार के विषय में एक महत्वपूर्ण बात कही गई कि;
"शिक्षा का अधिकार एक जीने के अधिकार का एक आवश्यक मार्ग
(अवयव) है; उच्चतम न्यायालय"
शिक्षा (Education) के बिना एक सभ्य, सुसंस्कृत एवं सम्माजनक जीवन की कल्पना नहीं की जा सकती।
शिक्षा (Education) हमारे जीवन का एक अनिवार्य अंग है। भारत में स्कूली शिक्षा को अनिवार्य किए
जाने की माँग सर्वप्रथम 1917 में गोपाल कृष्ण
गोखले ने की थी। 1937 में महात्मा
गाँधी एवं डॉ- जाकिर हुसैन ने स्कूली शिक्षा (Education) को अनिवार्य किये जाने की आवश्यकता पर
बल दिया। बाद में संविधान निर्माताओं ने शिक्षा को अनिवार्य किये जाने के प्रावधान
को भाग 4 में स्थान दिया।
उन्नीकृष्णन बनाम आंध्रप्रदेश राज्य के वाद में 1993 में सर्वोच्च
न्यायालय ने निर्णय दिया कि संविधान के खण्ड 4 के अनुच्छेद 45 के खण्ड 3 के अनुच्छेद 21 के साथ मिलकर पढ़ा जाना चाहिए। अनुच्छेद 45 में यह प्रावधान
था कि राज्य 14 वर्ष तक के
बालकों को अनिवार्य और निःशुल्क शिक्षा (Education) उपलब्ध कराने का प्रयास करेगा, जबकि अनुच्छेद 21 प्राण और दैहिक
स्वतंत्रता के संरक्षण का प्रावधान करता है। इसका अर्थ यह हुआ कि शिक्षा (Education) का अधिकार
जीने के अधिकार का एक अवयव है।
मोहिनी जैन बनाम कर्नाटक राज्य के मामले में सर्वोच्च
न्यायालय ने इसी आशय का निर्णय देते हुए धारित किया था कि शिक्षा (Education) का अधिकार
अनुच्छेद 21 के अंतर्गत
मौलिक अधिकार है।
माननीय न्यायालय के ऐसे ही कुछ अभूतपूर्व निर्णयों ने
शिक्षा (Education) के अधिकार को मूल अधिकारों में शामिल किए जाने की माँग को बल प्रदान किया।
अंततः 86वें संविधान
संशोधन अधिनियम, 2002 द्वारा संविधान
में महत्वपूर्ण परिवर्तन कर प्राथमिक शिक्षा को
और अनिवार्य बनाते हुए मौलिक अधिकार का दर्जा प्रदान किया गया।
86वें संविधान
संशोधन अधिनियम द्वारा इस सन्दर्भ में निम्नलिखित महत्वपूर्ण परिवर्तन किए गए
(1) अनुच्छेद 21 में खण्ड ‘क’ जोड़कर प्रावधान
किया गया कि राज्य 6 से 14 वर्ष के आयु के
समस्त बालकों के लिए निःशुल्क और अनिवार्य शिक्षा (Education) उपलब्ध करवाएगा।
(2)अनुच्छेद 45 में प्राथमिक
शिक्षा संबंधी उपबंध का लोप कर यह प्रावधान किया गया कि राज्य 6 वर्ष से कम आयु
के बालकों की देख-रेख एवं शिक्षा उपलब्ध कराने का प्रयास करेगा।
(3) अनुच्छेद 51(क) में उपबंध (2) जोड़कर माता-पिता
या संरक्षकों का यह दायित्व निर्धारित किया गया कि वे 6 से 14 वर्ष के बालकों
को शिक्षा का अवसर प्रदान करेंगे।
86वें संविधान
संशोधन अधिनियम के माध्यम से किए गए इन महत्वपूर्ण प्रावधानों के क्रियान्वयन के
लिए 11 नवम्बर, 2011 से वर्षभर के
लिए शिक्षा का हक अभियान की शुरुआत की गई, जिसके तहत 11 नवम्बर, 2011 के दिन प्रधानमंत्री महोदय का संदेश भारत भर के 13 लाख स्कूलों में
पढ़कर सुनाया गया। लक्ष्य रखा गया था कि 1 नवम्बर, 2012 तक पूरे देश में शिक्षा के अधिकार के सम्बन्ध में इस
अधिनियम के माध्यम से जागरूकता फैलाई जाए।
शिक्षा के अधिकार से संबंधित जो कदम उठाए गए हैं, उनकी निम्नलिखित
आधारों पर आलोचना की जाती है।
(1) शिक्षा का अधिकार
स्कूल पूर्व शिक्षा के बारे में मौन है।
(2) शिक्षा का अवसर
उपलब्ध कराने का दायित्व माता-पिता या पालक को सौंपा गया है। भारत जैसे गरीब देश
में यह असंभव प्रतीत होता है।
भारत ने दिसम्बर 1992 में बाल अधिकार चार्टर में हस्ताक्षर किए थे। संयुक्त
राष्ट्र के चार्टर की धारा 28 प्राथमिक शिक्षा को अनिवार्य और निःशुल्क बनाने का
प्रावधान करती है। विकसित देशों में इस चार्टर का कड़ाई के साथ पालन किया जा रहा
है।
भारत में बालकों को प्राथमिक शिक्षा उपलब्ध कराने तथा
शत-प्रतिशत साक्षरता के लक्ष्य को हासिल करने के लिए दृढ़-इच्छा शक्ति, कुशल नेतृत्व तथा
बेहतर नियोजन की आवश्यकता होगी। अगर सभी लोग अपने कर्त्तव्य का समुचित अनुपालन
करें, सरकारी नीतियों
का उचित क्रियान्यवन हो, माता-पिता या
पालक अपनी जिम्मेदारी को समझते हुए शिक्षा के समुचित अवसर उपलब्ध कराएँ तो एक
समृद्ध और गौरवशाली भारत का निर्माण शिक्षा के अधिकार के माध्यम से हो सकता है।
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