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Showing posts from May, 2022
सत्यमेव जयते!

सेक्स काम कानूनी. पुलिस हस्तक्षेप नहीं कर सकती, आपराधिक कार्रवाई कर सकती है: SC

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सुप्रीम कोर्ट ने एक केस की सुनवाई पर फैसला सुनाया है कि वेश्यावृत्ति एक कानूनी पेशा है और यौनकर्मियों के साथ सम्मान के साथ व्यवहार किया जाना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने एक अहम आदेश में पुलिस से कहा कि सहमति जताने वाली यौनकर्मियों के खिलाफ न तो उन्हें दखल देना चाहिए और न ही आपराधिक कार्रवाई करनी चाहिए कोर्ट ने कहा कि वेश्यावृत्ति एक पेशा है और यौनकर्मी (सेक्स वर्कर्स) कानून के तहत सम्मान और समान सुरक्षा के हकदार हैं। न्यायमूर्ति एल नागेश्वर राव की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय पीठ ने यौनकर्मियों के अधिकारों की रक्षा के लिए छह निर्देश जारी किए। बेंच ने कहा, "यौनकर्मी कानून के समान संरक्षण के हकदार हैं। आपराधिक कानून सभी मामलों में उम्र और सहमति के आधार पर समान रूप से लागू होना चाहिए। जब यह स्पष्ट हो जाए कि यौनकर्मी वयस्क है और सहमति से भाग ले रही है, तो पुलिस को हस्तक्षेप करने या कोई आपराधिक कार्रवाई करने से बचना चाहिए। यह कहने की आवश्यकता नहीं है कि पेशे के बावजूद, इस देश के प्रत्येक व्यक्ति को संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत सम्मानजनक जीवन का अधिकार है।" पीठ ने यह भी आदेश दिया कि यौनक

अब बिजली जाने पर विभाग पर लगेगा जुर्माना? जुर्माने की रक़म सीधे उपभोक्ता के खाते में होगी ट्रान्सफर?

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स्टैंडर्ड ऑफ परफॉर्मेंस रेगुलेटर रेगुलेशन एक्ट 2019 क्या है? उपभोक्ता सेवाओं में लापरवाही करने पर जवाबदेही तय करने के लिए राज्य विद्युत नियामक आयोग ने दिसंबर 2019 में स्टैंडर्ड ऑफ परफॉर्मेंस रेगुलेशन एक्ट 2019 लागू किया था। इस कानून के तहत यदि तय समय में लेसा द्वारा सुविधाएं मुहैया ना हुई तो पॉवर कारपोरेशन पर जुर्माना लगाने का प्रावधान है। इसमें जुर्माना हर्जाने के रूप में सीधे उपभोक्ता को दिए जाने का प्रावधान है। इसके अतरिक्त यदि उपभोक्ता को परेशान किया गया तो ऐसी परिस्थिति में भी उपभोक्ता को हर्जाना मिलना चाहिए। स्टैंडर्ड ऑफ परफॉर्मेंस रेगुलेटर रेगुलेशन एक्ट 2019 का उदेश्य बिजली कर्मियों की मनमानी रोकने के उदेश्य से बनाया गया था। लेकिन वर्तमान में मध्यांचल सहित सभी बिजली वितरण कम्पनियो ने इस आदेश को दबा लिया। प्रत्येक कार्य के लिए समय तय है! विभाग के नियमुसार, बिजली कनेक्शन के लिए एस्टीमेट बनाने की अवधि 7 है  HT यानी हाईटेंशन लाइन लाइन का विस्तार विस्तारीकरण या मरम्मत के लिए 24 दिन का समय निर्धारित है। LT लाइन का विस्तारीकरण होने के लिए 30 दिन का समय निर्धारित है। लो-वोल्टेज की

दूसरी पत्नी को पति की सम्पत्ति पर कितना हिस्सा मिलेगा?

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क्या दूसरी पत्नी को पति की सम्पत्ति पर पूरा अधिकार होगा दूसरी पत्नी को पति की सम्पत्ति पर कोई अधिकार नहीं होगा भले ही किसी व्यक्ति की कोई दूसरी पत्नी हो या उसके बच्चे भी हों। यदि पति ने संपत्ति स्वयं अर्जित की है तब उस व्यक्ति को संपत्ति पर केवल स्वयं का अधिकार होगा। वह संपत्ति को बेच सकता है दान भी दे सकता है या वसीयत भी कर सकता है। शादीशुदा महिला को अपने पति की अर्जित की गई संपत्ति पर कोई अधिकार तब तक नहीं होता जब तक उसका पति जीवित होता है या तलाक की अवस्था ना हो। पहली पत्नी से तलाक के बाद या पहली पत्नी की मृत्यु के बाद दूसरी शादी की है तो दूसरी शादी कानूनी मान्यता होने पर ही दूसरी पत्नी को अपने पति की पैतृक किया स्व अर्जित संपत्ति में पूरा अधिकार होगा। दूसरी पत्नी को पति की कितनी प्रॉपर्टी पर अधिकार मिलेगा दूसरी पत्नी का फिर से किसी और से शादी करने से पहले उसके पहले पति का निधन हो गया हो या उसके बच्चों का पिता बन गया हो तो उसके हिस्से में पहली पत्नी से हुए बच्चों की तरह समान अधिकार है। अगर दूसरी शादी कानूनी मान्यता नहीं है तो ना तो दूसरी पत्नी और ना ही उसके बच्चों को पैतृक संपत्ति म

बीते माह राशन कार्ड सरेंडर करने वालों से होगी राशन के बराबर धन की वसूली?

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वर्तमान में राशनकार्ड समर्पण/निरस्तीकरण के सम्बन्ध में मीडिया पर विभिन्न प्रकार की भ्रामक व तथ्यों से परे प्रसारित की जा रही खबरों की सचाई क्या है? क्यों किये जा रहे है राशन कार्ड निरस्त? वर्तमान में राशनकार्ड सत्यापन/निरस्तीकरण हेतु की जा रही कार्यवाही के सम्बन्ध में इलेक्ट्रॉनिक एवं प्रिन्ट मीडिया द्वारा तथ्यों से परे एवम् भ्रामक खबरे प्रकाशित/प्रसारित की जा रही हैं, जो कि आधारहीन एवम् सत्य से परे हैं। प्रकरण में सचाई तो यह है कि पात्र गृहस्थी राशनकार्डों की पात्रता/अपात्रता के सम्बन्ध में शासनादेश दिनांक 07 अक्टूबर, 2014 में विस्तृत मानक निर्धारित किए गए हैं। उक्त मानकों का पुनर्निर्धारण वर्तमान में नहीं किया गया है तथा पात्रता/अपात्रता की कोई नवीन शर्त नहीं निर्धारित की गयी है। क्या राशन कार्ड एक्ट में वसूली का प्रावधान है? राशन कार्ड एक्ट के अनुसार सरकारी योजनान्तर्गत आवंटित पक्का मकान, विद्युत कनेक्शन, एक मात्र शस्त्र लाइसेंस धारक, मोटर साइकिल स्वामी, मुर्गी पालन/गौ पालन होने के आधार पर किसी भी कार्डधारक को अपात्र घोषित नहीं किया जा सकता है। इसी प्रकार राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधि

तो अब किससे पास कितनी ज़मीन है पता चल सकेगा यूनीक लैंड कोड से, जानिए कैसे?

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कहाँ पर कितनी ज़मीन है किसके नाम है? और कौन उसका मालिक है यह सभी जानकारी जुटाने के लिए प्रदेश सरकार ने जियो टैगिंग अभियान की शुरुआत कर दी है । राजस्व से जुड़े विवादों की गुंजाइश कम करने और बड़ी अवस्थापना परियोजनाओं के लिए शीघ्रता और आसानी से भूमि चिह्नित करने के लिए प्रदेश सरकार प्रत्येक गाटे की जियो टैगिंग कराएगी। यह संभव होगा केंद्र सरकार की प्रधानमंत्री गतिशक्ति योजना के तहत। ज़मीनों का आधार नंबर बनाने की तैयारी! हर गाटे (खसरा) को यूनीक लैंड पार्सल आइडेंटिफिकेशन नंबर (अलपिन) दिया जाएगा। यह 14 अंकों का एल्फा न्यूमरिक कोड होगा। इसे यूनीक लैंड पार्सल आइडेंटिफिकेशन नंबर कहा जायेगा। यूनीक लैंड कोड से क्या फायदा होगा? वर्तमान में प्रदेश में लगभग 7.5 करोड़ गाटे हैं। यूनीक लैंड कोड से ज़मीन की पूरी जानकारी कंप्यूटर पर पता चल सकेगी। जिससे तय समय में ज़मीनों की भौगोलिक स्थिति का शीघ्रता से पता चल सकेगा। हर गाटे की भौगोलिक स्थिति का पता होने से बड़ी सरकारी व औद्योगिक परियोजनाओं के लिए ज़मीन आसानी से चिह्नित हो सकेगी। प्रदेश में हर गाटे की जियो टैगिंग राजस्व विवादों का अंत होगा  इस योजना में गांवों

जमानत क्या है और किसी व्यक्ति की जमानत कैसे ले सकते हैं?

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हर व्यक्ति के जीवन में कई प्रकार की घटनाएं घटित होती रहती है। जाने अनजाने में कभी कभी व्यक्ति से अपराध भी हो जाता है और कभी-कभी आपसी रंजिश के कारण अन्य व्यक्ति के द्वारा भी किसी व्यक्ति को झूठे मामले में फसाया जाता है। किसी केस में नाम आने से पुलिस द्वारा संबंधित व्यक्ति की गिरफ्तारी कर ली जाती है। ऐसे में बिना कोई अपराध किये ही केवल आपसी रंजिश के कारण संबंधित व्यक्ति को काफी परेशानी उठानी पड़ सकती है। लेकिन ऐसे व्यक्ति के लिए कानून में जमानत लेने का अधिकार प्रदान किया गया है और इस अधिकार का उपयोग करके कोई भी व्यक्ति जमानत प्राप्त कर सकता है लेकिन अपराध की गंभीरता को देखते हुए कई ऐसे अपराध है। जिनके लिए कानून में जमानत की व्यवस्था नहीं की गई है।  इसलिए आज आपको इस आर्टिकल के माध्यम से बेल यानि ज़मानत के बारे में पूरी जानकारी देंगे जिससे आपको काफ़ी मदद भी मिल सकती है। इस आर्टिकल के माध्यम से आप जानेंगे की- जमानत क्या है? किसी व्यक्ति की जमानत कैसे ले सकते हैं? ज़मानत लेने पर क्या रिस्क है? किसी अपराधी की जमानत का विरोध कैसे करें? जमानत ना मिलाने की स्थिति में क्या करें? जमानत क्या है? जब क

मुस्लिम महिला किन-किन आधारों पर तलाक़ मांग सकती है?

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मुस्लिम महिला विवाह-विच्छेद (तलाक़) अधिनियम 1939 के अन्तर्गत विवाह विच्छेद के लिए कौन वाद प्रस्तुत कर सकता है? इस अधिनियम के अन्तर्गत किन-किन आधारों पर विवाह-विच्छेद (तलाक़) हो सकता है? Who can sue for dissolution of marriage under the provisions of Muslim Marriage Act, 1939? On what grounds can a marriage be dissolved under this Act? मुस्लिम-विवाह विच्छेद अधिनियम, 1939 के अन्तर्गत तलाक (Divorce in accordance with Dissolution of Muslim Marriage Act, 1939) भारत में मुस्लिम विवाह-विच्छेद अधिनियम, 1939 लागू होने से पहले निम्नलिखित आधारों पर ही कोई भी महिला अपने पति से तलाक ले सकती थी (a) पति के नपुंसक होने पर (On impotency of husband)। (b) लियन (Lian) (पर पुरुष गमन का झूठा आरोप) इस अधिनियम के लागू होने के बाद मुस्लिम महिला को इस सम्बन्ध में और अधिक अधिकार मिले जिनके अन्तर्गत निम्नलिखित आधारों पर तलाक के लिए आवेदन कर सकती है- (1) पति का लापता होना (Absence of husband) (2) निर्वाह करने में असमर्थता (Failure to maintain) (3) पति को कारावास (Imprisonment of husb and) (4) वैवाहिक दायित्वों का पा

क़ानून कहता है हिन्दुओं को अपने पूजास्थल वापस लेने का अधिकार नहीं है?

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क्या है पूजा स्थल कानून? पूजा स्थल अधिनियम 1991 (Worship Act 1991) कांग्रेस सरकार के कार्यकाल में तत्कालीन प्रधानमंत्री पी० वी० नरसिम्हा राव के नेतृतव में पारित एक क़ानून है। पूजा स्थल कानून कहता है कि पूजा स्थलों की जो स्थिति 15 अगस्त 1947 में थी वही रहेगी। लेकिन इस कानून की परिधि से अयोध्या की राम जन्मभूमि को अलग रखा गया है। अयोध्या राम जन्म भूमि मुकदमे को क्यों अलग रक्खा गया? इस कानून में लिखित कथन के अनुसार अयोध्या राम जन्म भूमि मुकदमे के अलावा जो भी मुकदमे हैं वे समाप्त समझे जाएंगे। चूँकि यह मामला एमएल ई में स्थित राम जन्म भूमि-बाबरी मस्जिद के रूप में जाना जाता है। जो कोर्ट में पेंडिंग था। सुप्रीम कोर्ट में लंबित है पूजा स्थल कानून की वैधानिकता पर सवाल क्यों? वर्तमान में पूजा स्थल (विशेष प्रविधान) कानून 1991 की वैधानिकता का मामला सुप्रीम कोर्ट में लंबित है। सुप्रीम कोर्ट ने कानून की वैधानिकता को चुनौती देने वाली भाजपा नेता और वकील अश्वनी कुमार उपाध्याय की याचिका पर गत वर्ष 12 मार्च को सरकार को नोटिस भी जारी किया था। नोटिस जारी होने के बाद यह मामला दोबारा सुनवाई पर नहीं लगा न ही

पति-पत्नी के बीच शारीरिक संबंध न होना बन सकता है तलाक की वजह: हाईकोर्ट

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बिलासपुर हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है। हाईकोर्ट ने एक युवक की तलाक याचिका स्वीकार करते हुए कहा कि पति-पत्नी के बीच शारीरिक संबंध होना एक स्वस्थ्य वैवाहिक जीवन का अहम हिस्सा है। शारीरिक संबंध नहीं बनाने वाले पति-पत्नियों के व्यवहार को क्रूरता के बराबर कोर्ट ने कहा कि पति-पत्नी में शारीरिक संबंध होना एक स्वस्थ वैवाहिक जीवन का अहम हिस्सा है। इसे नज़रंदाज़ नहीं किया जा सकता। विवाह के बाद पति या पत्नी में किसी के भी द्वारा शारीरिक संबंध से इनकार करना क्रूरता की श्रेणी में आता है। 'पति सुंदर नहीं है, कहकर, मायके चली गई थी पत्नी' हाईकोर्ट ने कहा-पति-पत्नी के मध्य शारीरिक संबंध बनाने से इनकार करना क्रूरता के बराबर जस्टिस पी सैम कोशी और जस्टिस पीपी साहू की बेंच ने कहा कि मामले के अनुसार अगस्त 2010 से पति-पत्नी के रूप में दोनों के बीच कोई संबंध नहीं है, जो निष्कर्ष निकलाने के लिए पर्याप्त है की उनके बीच कोई शारीरिक संबंध नहीं हैं। यदि एक पति या पत्नी दोनों में से कोई भी शारीरिक संबंध बनाने से इनकार करता है तो यह क्रूरता के बराबर है। यह तलाक लेने के लिए पर्याप्त कारण हो सकता है

क्या है राजद्रोह कानून? इसे क्यों ख़त्म करना चाहती है मोदी सरकार?

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क्या है राजद्रोह कानून? सरकार विरोधी बातें करना/लिखना, जिससे असंतोष भड़कता हो, राष्ट्रीय चिह्नों या संविधान का अपमान राजद्रोह में आता है। दोषी को 3 साल से लेकर उम्रकैद तक हो सकती है। इस कानून को 1870 में अंग्रेजी शासन में बनाया गया था। राजद्रोह कानून की कठोरता और प्रावधान अंग्रेजों के दौर का है। इसलिए राजद्रोह कानून चर्चा में है। क्या है वर्तमान मामला? सुप्रीम कोर्ट ने 152 साल पुराने राजद्रोह कानून यानी आईपीसी (IPC Act) की धारा 124ए से जुड़ी सभी कार्यवाहियों पर देशभर मे रोक लगा दी है। साथ ही केंद्र को इस कानून के प्रावधानों पर फिर से विचार की मंजूरी दी है। सुप्रीम कोर्ट ने चिंता जाहिर की है, एक तरफ लोगों की आजादी और उनके हित हैं तो दूसरी तरफ देश की सुरक्षा है। क्या वजह बनी चुनौती की? राजद्रोह कानून के खिलाफ दायर याचिकाओं में याचिकाकर्ताओं ने आरोप लगाया गया है कि औपनिवेशिक काल के इस कानून का बेजा इस्तेमाल सरकार के खिलाफ आवाज उठाने वालों के विरुद्ध हो रहा है। यह कानून लोगों की स्वतंत्रता का दमन करता है। उनकी अभिव्यक्ति की आज़ादी को छीनता है। सरकार से प्रश्न तक पूछने पर भी आम नागरिकों को

बिना एक रुपया भी खर्च करे कैसे कोर्ट केस लड़ें जानिए निशुल्क क़ानूनी सुविधा लेने का तरीका?

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भारत सरकार द्वारा गरीब नागरिक को निशुल्क क़ानूनी सुविधा प्रदान करने का प्रावधान है। गरीब नागरिक को निशुल्क क़ानूनी सुविधा कैसे मिल सकती है? इसके विषय में विस्तार से जानें। गरीब व मध्यम आय समूह को निःशुल्क क़ानूनी सहायता योजना यह योजना मध्यम आय वर्ग (EWS) के नागरिकों यानी ऐसे नागरिकों को कानूनी सेवाएं प्रदान करती है जिनकी कुल इनकम 60,000/- रुपये प्रति माह से अधिक नहीं है या रु. 7,50,000/- सालाना. इस वर्ग के अंतर्गत आने वाले नागरिकों को भारत सरकार द्वारा निःशुल्क क़ानूनी सहायता प्रदान की जाती है। क्या है यह योजना? इस योजना को "सर्वोच्च न्यायालय मध्य आय समूह (EWS) कानूनी सहायता योजना" के रूप में जाना जाता है। यह योजना स्वावलंबी है और योजना की प्रारंभिक पूंजी का योगदान प्रथम कार्यकारी समिति (सरकार) द्वारा किया जाता है। गरीब नागरिक को निशुल्क क़ानूनी सुविधा कैसे मिल सकती है? क्या बिना एक रुपया लगाये कोर्ट केस लड़ सकतें हैं?  कैसा होगा सहयोगी संस्था का स्वरुप (अनुसूची)? योजना के साथ संलग्न शुल्क और व्यय की अनुसूची लागू होगी और समय-समय पर सोसायटी द्वारा संशोधित की जा सकती है। योजना के पदा

अब बिना वकील के अपना मुक़दमा ख़ुद लड़ें। जानिए कैसे?

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किसी भी सिविल अथवा क्रिमिनल केस में आपका केस काफी लंबा चल रहा है या आपका वकील अच्छे से आप के केस की पैरवी नहीं कर रहा है तो आप किस प्रावधान के तहत अपना मुकदमा स्वयं लड़ सकते हैं? आज हम इसी नियम के बारे में बात करेंगे कि कैसे आप बड़ी आसानी से अपने केस को खुद लड़ सकते हैं और तय समय में उसे जीत भी सकते हैं। कब लड़ सकतें है अपना केस? यदि आप किसी कारणवश कोई वकील नहीं करना चाहते हैं या आपके मामले की पैरवी आपका वकील अच्छे से नहीं कर रहा है तो आप अपना मुकद्दमा खुद ही लड़ सकते हैं लेकिन इससे जुड़े प्रावधान आपको पता होना चाहिए।  यदि आप पर कोई क्रिमिनल या सिविल केस चल रहा है तो आप उस मामले की सुनवाई बिना किसी अधिवक्ता को हायर किए स्वयं लड़ सकते हैं। लेकिन इससे पहले अधिवक्ता का अर्थ समझ लें। अधिवक्ता का अर्थ होता है, आधिकारिक वक्ता यानी जिस व्यक्ति को यह अधिकार दिया गया है कि वह आपकी तरफ से आपके वाद को कोर्ट के समक्ष रखें और पैरवी करे।  लेकिन अब सवाल यह है कि- कोई भी व्यक्ति अपना मुकद्दमा खुद क्यों नहीं लड़ता? अधिवक्ता ही वकालत क्यों करता है? हम स्वयं अपने पक्ष क्यों नहीं रख सकते? एक सामान्य व्यक्ति

माता-पिता का ध्यान नहीं रखा तो होगी जेल

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'माता-पिता' और वरिष्ठ नागरिकों का भरण पोषण एवं कल्याण (संशोधन) विधेयक-2019' बुजुर्गों के देखभाल एवं कल्याण के लिए बनाया गया एक कानून है। माता-पिता और वरिष्ठ नागरिकों का भरण पोषण एवं कल्याण (संशोधन) विधेयक 2019 के अनुसार- माता-पिता या अपने संरक्षण वाले वरिष्ठ नागरिकों के साथ जानबूझकर दुर्व्यवहार करने या उन्हें उनके हाल पर अकेला छोड़ देने वालों के लिए छह महीने के कारावास या 10 हजार रुपये जुर्माना का प्रावधान है या दोनों का प्रावधान किया गया है। इसमें वृद्धाश्रमों और उसके जैसी सभी संस्थाओं के लिए रजिस्ट्रेशन अनिवार्य कर दिया गया है। साथ ही उन्हें न्यूनतम मानकों का पालन भी करना होगा।  हर राज्य में भरण पोषण अधिकारी भरण पोषण आदेश के क्रियान्वयन के लिए राज्य भरण पोषण राशि होगी ऐसा नहीं होने पर जुर्माना लगाने का प्रावधान है। बुजुर्गों की स्थिति -हेल्य एज इंडिया द्वारा 2018 में किए गए एक सर्वे के मुताबिक:-  69 फीसद बुजुर्गों के पास अपने नाम पर एक घर है  7 फीसद के पास पति या पत्नी के नाम घर है 85 फीसद बुजुर्ग परिवार के साथ रह रहे हैं 3 फीसद दूसरों के साथ रह रहे हैं  20 फीसद किराए पर

मुकदमों की नई लिस्टिंग व्यवस्था से हाईकोर्ट के वकीलों में परेशान!

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मुकदमों की नई लिस्टिंग व्यवस्था से हाईकोर्ट के वकीलों में आक्रोश केस की जानकारी न मिलने से हो रही परेशानी प्रयागराज इलाहाबाद हाईकोर्ट में मुकदमों की लिस्टिंग एवं सूचना तकनीकी व्यवस्था की खामियों को लेकर वकीलों में आक्रोश है। अधिवक्ताओं ने बार एसोसिएशन के पदाधिकारियों से कहा है कि मुख्य न्यायाधीश से मिलकर समस्या का निस्तारण कराया जाये। क्या परेशानी हो रही है इससे? इस आदेश की वजह से केंद्र सरकार के साथ ही तमाम विपक्षी वकीलों को केस की जानकारी नहीं मिल पा रही है और इससे सम्बंधित सुनवाई टल रही है या एक पक्षीय आदेश पारित हो रहे हैं। कोर्ट में नए दाखिल मुकदमे 20 से 25 दिन बाद सूचीबद्ध हो रहे हैं और सुनवाई न हो पाने पर पांच दिन बाद दोबारा सूची पर लिस्ट किया जा रहा है। इस आदेश से सुनवाई लेट होने के साथ ही  वकीलों को वादकारियों से फजीहत भी झेलनी पड़ रही है। हाईकोर्ट में मुकदमे लिस्टिंग पर नहीं हैं और स्टेटस में रिकॉर्ड नहीं है। अधिवक्ता आशुतोष कुमार ने महानिबंधक से तकनीकी व्यवस्था में तत्काल सुधार की मांग की।  थानों में मोबाइल पाबंदी का वकीलों ने दिया करारा जवाब नई दिल्ली के कड़कड़डूमा कोर्ट परिस

क्या 'तीन तलाक' मामले में पति के परिवार को आरोपी बनाया जा सकता है?: कोर्ट

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पति के परिजन को नहीं बनाया जा सकता है आरोपी  सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि तीन तलाक मामले में पति के रिश्तेदार या परिजन को आरोपी नहीं ठहराया जा सकता। शीर्ष अदालत ने यह कहते हुए याचिकाकर्ता को अग्रिम जमानत दे दी। जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस इंदु मल्होत्रा और जस्टिस इंदिरा बनर्जी की पीठ ने सुनवाई के दौरान कहा कि ऐसे मामलों में अपराध करने वालों को अग्रिम जमानत देने पर कोई रोक नहीं है। लेकिन अग्रिम जमानत देने से पहले सक्षम अदालत द्वारा विवाहित मुस्लिम महिला का पक्ष सुना जाना चाहिए । तीन तलाक के मामले में शिकायतकर्ता की सास को भारतीय दंड संहिता की धारा 498ए एवं 34 के अलावा मुस्लिम महिला (विवाह अधिकार संरक्षण अधिनियम) के तहत आरोपी बनाया गया था। पीड़िता ने पति के साथ सास पर भी आरोप लगाए। पति ने अपराध किया है, न कि उसकी मां ने सुप्रीम कोर्ट ने  याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा कि इस मामले में याचिकाकर्ता महिला शिकायतकर्ता की सास है और उसे इस अधिनियम के तहत आरोपी नहीं बनाया जा सकता। पत्नी को तलाक देकर पति ने अपराध किया है न कि उसकी मां ने। लिहाज़ा पति की माँ को आरोपी नहीं बनाया जा सकता वहीँ दूस

आधार और पैन से जुड़ी सभी समस्या का हल ये रहा, अभी लिंक नहीं किया तो पछताना पड़ेगा!

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पैन से ऐसे जोड़े अपना आधार पैन कार्ड में यही नाम है लेकिन आधार में उनका नाम कुछ और ऐसे में उनको आधार और पैन लिंक करने में परेशानी हो रही है। दोनों को लिंक करने की उनकी रिक्वेस्ट इसी वजह से रिजेक्ट हो रही है। दिक्कत सिर्फ किसी एक के साथ नहीं बड़ी संख्या में लोग इस से दो-चार हो रहे हैं। आधार पैन कार्ड लिंकिंग में व्यक्ति का नाम ही परेशानी पैदा कर रहा है क्योंकि आधार के डेटाबेस में स्पेशल करैक्टर की पहचान नहीं होती, जबकि पैन के डेटाबेस को इसकी पहचान है। कई लोगों को इसकी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। टैक्स रिटर्न फाइल करते वक्त उनका पैन और आधार कार्ड एक दूसरे से मैच नहीं हो पाया। उन्होंने सीए से संपर्क किया तब जाकर उनको परेशानी के कारण का पता चला।सीए के अनुसार आधार स्पेशल करैक्टर को नहीं पहचान पाता, जबकि पैन पहचान लेता है। स्पेशल करैक्टर वाले उपनामों जैसे D'Souza या डॉट्स वाले उपनामों की वजह से लिकिंग में परेशानी आ रही है। आधार में करेक्शन कैसे होगा? आधार में करेक्शन करने के लिए आपको अपने इलाके के आधार सेवा केंद्र जाना होगा। आपको वहां अपना आधार नंबर बताना होगा। आपको आधार की वेरिफिक

एससी एसटी एक्ट (SC-ST Act) मामले में पीड़ित को आरोपित की बेल के वक्त सुनना जरूरी : सुप्रीम कोर्ट

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सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि एससी-एसटी एक्ट (SC-ST Act) के तहत जब आरोपी की जमानत पर सुनवाई हो रही हो, डिस्चार्ज पर बहस हो रही हो, आरोपी को परोल पर रिहा करने के लिए सुनवाई हो रही हो या सजा सुनाए पर बहस हो रही हो तो पीड़ित या उसके आश्रित को सुना जाना अनिवार्य है। जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि SC-ST समुदाय के लोगों का उत्पीड़न बीते जमाने की बात नहीं है। बल्कि यह समाज में आज भी बदस्तूर जारी है। इसी वजह से संसद में एससी एसटी एक्ट (SC-ST Act) बनाया था कि ऐसे लोगों के मौलिक अधिकार की रक्षा की जा सके। लेकिन वर्तमान में देश में हो रही घटनाएँ इस बात का साफ संकेत देती है एससी एसटी (SC-ST) वर्ग के साथ बदसलूकी अभी भी जारी है। कोर्ट ने कहा कि आरोपी की जमानत दोष सिद्धि परोल आदि पर सुनवाई के दौरान पीड़ित की बात सुनने के लिए एक्ट की धारा 15ए में प्रावधान है। इस प्रावधान का कड़ाई से पालन करना जरूरी है। सुप्रीम कोर्ट ने राजस्थान हाईकोर्ट के उस फैसले को खारिज कर दिया जिसमें हाईकोर्ट ने आरोपी को जमानत दे दी और धारा 15ए का पालन नहीं किया। घटिया छानबीन से बचते हैं अपराधी कोर्ट ने कहा ऐसे मामले में छानब

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