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क्या है राजद्रोह कानून? इसे क्यों ख़त्म करना चाहती है मोदी सरकार?

क्या है राजद्रोह कानून?
सरकार विरोधी बातें करना/लिखना, जिससे असंतोष भड़कता हो, राष्ट्रीय चिह्नों या संविधान का अपमान राजद्रोह में आता है। दोषी को 3 साल से लेकर उम्रकैद तक हो सकती है। इस कानून को 1870 में अंग्रेजी शासन में बनाया गया था। राजद्रोह कानून की कठोरता और प्रावधान अंग्रेजों के दौर का है। इसलिए राजद्रोह कानून चर्चा में है।

क्या है वर्तमान मामला?
सुप्रीम कोर्ट ने 152 साल पुराने राजद्रोह कानून यानी आईपीसी (IPC Act) की धारा 124ए से जुड़ी सभी कार्यवाहियों पर देशभर मे रोक लगा दी है। साथ ही केंद्र को इस कानून के प्रावधानों पर फिर से विचार की मंजूरी दी है। सुप्रीम कोर्ट ने चिंता जाहिर की है, एक तरफ लोगों की आजादी और उनके हित हैं तो दूसरी तरफ देश की सुरक्षा है।

क्या वजह बनी चुनौती की?
राजद्रोह कानून के खिलाफ दायर याचिकाओं में याचिकाकर्ताओं ने आरोप लगाया गया है कि औपनिवेशिक काल के इस कानून का बेजा इस्तेमाल सरकार के खिलाफ आवाज उठाने वालों के विरुद्ध हो रहा है। यह कानून लोगों की स्वतंत्रता का दमन करता है। उनकी अभिव्यक्ति की आज़ादी को छीनता है। सरकार से प्रश्न तक पूछने पर भी आम नागरिकों को क़ानूनी प्रक्रिया का सामना करना पड़ रहा है।

क्या अपराधी भय मुक्त हो जायेंगे?
कोर्ट ने बुधवार को अंतरिम आदेश में कहा कि फिलहाल राजद्रोह से जुड़े सभी लंबित मामलों में कार्यवाही स्थगित रखी जाए। हम उम्मीद करते हैं कि जब तक कानून पर फिर से विचार हो रहा है तब तक केंद्र और राज्य सरकारें राजद्रोह में नया केस दर्ज करने से बचेंगी। अगर केस दर्ज होता है तो पीड़ित पक्ष को छूट है कि वह कोर्ट से राहत मांग सकता है। संबंधित अदालत सुप्रीम कोर्ट के मौजूदा आदेश और सरकार के रुख को देखते हुए फैसला ले। पहले से जो लोग जेल में हैं, वे भी जमानत (राहत) के लिए कोर्ट जा सकेंगे। इसके अतिरिक्त केंद्र को छूट है कि वह चाहे तो राजद्रोह कानून का दुरुपयोग रोकने के लिए गाइडलाइंस जारी कर सकती है।

तो क्या राजद्रोह से सम्बंधित सभी आरोपित रिहा होंगे?
कोर्ट ने केवल राजद्रोह कानून पर रोक लगाई है। कोर्ट ने साफ कहा है कि ऐसे आरोपितों के खिलाफ कानून की अन्य धाराओं में कार्यवाही जारी रहेगी। आरोपित जमानत के लिए कोर्ट जा सकते हैं। जमानत देना कोर्ट पर निर्भर है। कोर्ट ने कहा कि अब जुलाई के तीसरे हफ्ते में सुनवाई होगी। केंद्र के पास तब तक कानून के प्रावधानों पर फिर से गौर करने का समय है। कोर्ट के ये निर्देश भी तभी तक लागू रहेंगे।

राजद्रोह पर सुप्रीम आदेश के बाद आगे क्या?
इस दौरान चिंता जाहिर की गई कि राजद्रोह से जुड़े मौजूदा पेंडिंग केसों और जेल में बंद आरोपितों का क्या होगा? राजद्रोह कानून पर सुप्रीम कोर्ट के रुख के बाद केंद्र सरकार के पास इस कानून के प्रावधानों पर फिर से विचार के लिए जुलाई के तीसरे हफ्ते तक का समय है। सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को राजद्रोह कानून की समीक्षा के लिए तो वक्त दे दिया, लेकिन साथ हो ये कहा कि तब तक इसका इस्तेमाल करना ठीक नहीं रहेगा।

क्या दर्ज होंगे नए केस?
जाना चाहिए । ऐसा तब तक हो जब तक केंद्र कानून का परीक्षण कर रहा है । इसका मतलब है कि फिलहाल केंद्र और राज्य पुलिस इस मामले में केस दर्ज करने से बचेंगी। लेकिन आईपीसी की अन्य धाराएं जो बनेगी , उस मामले में केस दर्ज हो सकेगा। जैसे हिंसा फैलाने, नफरती भाषण या फिर देश के खिलाफ युद्ध छेड़ने की नीयत जैसे मामलों में प्रवाधानों के तहत केस होगा। सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में कहा है कि राजद्रोह से संबंधित मामले में अपील, ट्रायल, कार्यवाही को स्थगित रखा जाए। इसका मतलब साफ है कि आने वाले दिनों में इस तरह के मामलों की सुनवाई पर रोक लग गई है।
संसद में कानून खत्म करने की उठती मांग के बीच राजद्रोह के मामले दर्ज होते रहे। एनसीआरबी (NCRB) के डेटा के मुताबिक 2015 से लेकर 2020 के बीच देश में 356 केस दर्ज किए गए और 548 लोगों को गिरफ्तार किया गया। इसमें 12 लोगों को दोषी करार दिया गया। इसमें तीन साल से लेकर उम्रकैद तक की सजा का प्रावधान है। 

राजद्रोह हटाने के लिए कब-कब बहस हुई?
राजद्रोह कानून को लेकर आजादी के बाद पहली संविधान सभा में बहस हुई थी। सभा के सदस्य केएम मुंशी ने संशोधन प्रस्ताव पेश किया और कहा कि आजाद भारत में राजद्रोह की जगह नहीं है, क्योंकि लोकतंत्र में असहमति आत्मा होती है।

आईपीसी की धारा 124ए (राजद्रोह) बनी रही पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने भी 1951 में कहा था कि मैं मानता हूं कि 124 ए बेहद आपत्तिजनक है। आगे चलकर इससे छुटकारा मिलेगा तो अच्छा होगा।

2011 में सीपीआई सांसद डी राजा ने राज्यसभा में प्राइवेट बिल लाकर 124 ए खत्म करने की मांग की थी। 2015 में कांग्रेस सांसद शशि थरूर भी बिल लेकर आए थे।

What is Sedition Law

राजद्रोह के मौजूदा पेंडिंग मामलों का क्या होगा? अभी किन लोगों के खिलाफ चल रहा है देशद्रोह का मामला?
देश भर में राजद्रोह के तहत उमर खालिद, नवनीत राणा आदि के खिलाफ मामले दर्ज हैं। अब इनकी सुनवाई पर रोक लग गई है। जो जेल में बंद हैं, उनके लिए सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि जिन पर ऐसे मामले दर्ज हैं, उसमें याचिकाकर्ता को आजादी है कि वे कोर्ट जा सकते हैं। अदालत सुप्रीम कोर्ट के मौजूदा आदेश को ध्यान में रखते हुए जमानत पर फैसला करें।

दुनिया में कहां-कहां है राजद्रोह का कानून
कई बड़े देश जैसे ईरान, तुर्की, सूडान, मलयेशिया, ऑस्ट्रेलिया में राजद्रोह का कानून है। अमेरिका में भी कानून है, लेकिन वहां अभिव्यक्ति की आजादी अन्य देशों की अपेक्षा व्यापक है और ऐसे में इस कानून के तहत दर्ज मामले बेहद कम हैं। ऑस्ट्रेलिया में सिर्फ जुर्माने का प्रावधान है। वहां इस कानून के तहत जेल नहीं होती है।

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