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मुस्लिम महिला किन-किन आधारों पर तलाक़ मांग सकती है?

मुस्लिम महिला विवाह-विच्छेद (तलाक़) अधिनियम 1939 के अन्तर्गत विवाह विच्छेद के लिए कौन वाद प्रस्तुत कर सकता है? इस अधिनियम के अन्तर्गत किन-किन आधारों पर विवाह-विच्छेद (तलाक़) हो सकता है?
Who can sue for dissolution of marriage under the provisions of Muslim Marriage Act, 1939? On what grounds can a marriage be dissolved under this Act?
मुस्लिम-विवाह विच्छेद अधिनियम, 1939 के अन्तर्गत तलाक (Divorce in accordance with Dissolution of Muslim Marriage Act, 1939)

भारत में मुस्लिम विवाह-विच्छेद अधिनियम, 1939 लागू होने से पहले निम्नलिखित आधारों पर ही कोई भी महिला अपने पति से तलाक ले सकती थी
(a) पति के नपुंसक होने पर (On impotency of husband)।
(b) लियन (Lian) (पर पुरुष गमन का झूठा आरोप)

इस अधिनियम के लागू होने के बाद मुस्लिम महिला को इस सम्बन्ध में और अधिक अधिकार मिले जिनके अन्तर्गत निम्नलिखित आधारों पर तलाक के लिए आवेदन कर सकती है-
(1) पति का लापता होना (Absence of husband)
(2) निर्वाह करने में असमर्थता (Failure to maintain)
(3) पति को कारावास (Imprisonment of husb and)
(4) वैवाहिक दायित्वों का पालन करने में असमर्थता (Failure to perform martial obligation)
(5) नपुंसकता (Impotency)
(6) पति का पागल इत्यादि होना (Insanity etc. of husband)
(7) यौवनागमन विकल्प (Option of pubery)
(8) पति की निर्दयता (Cruelty of husband)
(9) शरीयत के अनुसार कोई अन्य आधार (Any other ground according to Shariat)

(1) पति का लापता होना (Absence of husband)—
धारा 2 (1) के अनुसार यदि किसी मुस्लिम स्त्री का पति 4 वर्ष तक लापता रहे और उसके बारे में कोई जानकारी मिलना असम्भव हो तो ऐसी पत्नी को तलाक का आवेदन करने का अधिकार होता है, परन्तु तलाक की डिक्री प्राप्त होने के 6 महीने बाद ही वह प्रभावी होती है और इसी बीच लापता पति वापस लौट आये या कोई अधिकृत व्यक्ति न्यायालय को इस बात से सन्तुष्ट कर दें कि उसका पति वैवाहिक जीवनयापन करने का इच्छुक है तो न्यायालय उस डिक्री को निरस्त (set aside) कर सकता है।

(2) निर्वाह करने की असमर्थता (Failure to maintain)—
धारा 2 (2) के अधीन मुस्लिम धर्म में पत्नी को तलाक़ के लिए प्रार्थना करने का अधिकार है यदि पति दो साल तक पत्नी के भरण-पोषण का प्रबन्ध करने में लापरवाही करे या असफल रहे।
इस सम्बन्ध में यह बात उल्लेखनीय है कि ऐसे तलाक का दावा करने के लिए यह प्रमाणित होना आवश्यक है कि पत्नी के भरण-पोषण का कानूनी तौर पर पति का दायित्व था और उसने उस दायित्व को निभाने में उपेक्षा की या असमर्थ रहा।

ध्यान रहे- यदि पत्नी अपने किसी तर्कयुक्त कारण के बिना अपने पति के साथ रहने से मना करे या दाम्पत्य जीवन के आधारों को पूरा न करे तो वह तलाक के लिए आवेदन नहीं कर सकती है।

इस सम्बन्ध में एक उच्च न्यायालय ने एक मामले में यह निर्णय दिया कि यदि पति 2 वर्ष तक पत्नी का निर्वाह करने में असफल रहा इसलिए पत्नी ने अपने पति के साथ रहने से मना कर दिया था, अतः पत्नी को तलाक लेने का अधिकार रहता है।
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वास्तविकता यह है कि इस प्रसंग के अतिरिक्त पति द्वारा निर्वाह से मना करना तभी सत्य माना जायेगा जब ऐसा जानबूझकर किया गया हो।
यदि पति अपनी निर्धनता या अपनी सामर्थ्य के बाहर किसी कारणवश जैसे बेकारी या अस्वस्थता, बेरोजगारी इत्यादि से पत्नी को खर्चा नहीं दे पाता तो भी स्थिति में परिवर्तन नहीं आता। 
(3) पति को कारावास (Imprisonment of husband)–
धारा 2 (3) के मुताबिक जब पति को 7 वर्ष या उससे अधिक का कारावास का दण्ड दिया गया हो तो पत्नी को यह अधिकार प्राप्त होता है कि वह विवाह-विच्छेद (तलाक़) के लिए आवेदन कर सकती है परन्तु ऐसे मामलों में न्यायालय डिक्री उस समय तक नहीं देगा जब तक कि पति के दण्ड के विषय में अन्तिम आदेश (Final Sentence) जारी न हो जाये।

(4) वैवाहिक दायित्वों का पालन करने में असफल होने पर (Failure to perform marital obligation)-
धारा 2 (4) के अनुसार यदि पति बिना किसी उचित कारण के दो वर्ष तक दाम्पत्य के दायित्वों का पालन करने में असफल रहता है तो पत्नी विवाह-विच्छेद (तलाक़) की प्रार्थना कर सकती है।

(5) नपुंसकता (Impotency)–
धारा 2 (5) के अनुसार किसी स्त्री का पति यदि नपुंसक हो तो न्यायालय का यह कर्त्तव्य है कि इस आधार पर विवाह-विच्छेद (तलाक़) की आज्ञप्ति प्रदान करें। ऐसी डिक्री पारित करने से पूर्व पति को यह अवसर दे कि ऐसे आदेश जारी होने के वर्ष के अन्दर न्यायालय को इस बात से सन्तुष्ट कर दे कि उसकी नपुंसकता समाप्त हो चुकी 
यदि पति इस प्रकार से न्यायालय को अपनी नपुसंकता समाप्त होने के बारे में सन्तुष्ट कर देता है तो विवाह-विच्छेद (तलाक़) की डिक्री निरस्त हो जायेगी।

इस अधिनियम के लागू होने से पहले स्थिति कुछ अन्य थी। पहले पति की नपुसंकता के सम्बन्ध में स्थिति यही थी कि-
  1. उसकी विवाह के समय नपुसंक होने की बात प्रमाणित हो जाये।
  2. पत्नी की निकाह के समय पति की नपुसंकता का पता न चले।
  3. वाद दायर होते समय नपुसंकता जारी रहे। यदि पत्नी को विवाह के समय पति की नपुसंकता का पता हो या विवाह के बाद एक बार भी पति से शारीरिक सम्बन्ध हो गया हो तो विवाह-विच्छेद नहीं हो सकता।
वर्तमान अधिनियम ने उक्त व्यवस्था में निम्न परिवर्तन किये-
  1. पति की नपुसंकता के बारे में पत्नी को को नहीं पता था ऐसा प्रमाणित करने की कोई आवश्यकता नहीं है अब।
  2. विवाह विच्छेद (तलाक़) के आदेश को एक वर्ष तक स्थगित रखने का आदेश सिर्फ पति द्वारा प्रार्थना किये जाने पर ही दिया जा सकता है।
  3. अपने नपुसंक न होने का प्रमाण देने का भार पति पर ही छोड़ा गया है।
(6) पति के पागल इत्यादि होने पर (Insanity etc. of husband)–
धारा 2 (6) के अनुसार यदि किसी मुस्लिम महिला का पति 2 वर्ष या इससे अधिक समय से-
  • पागलपन (Insane) 
  • घृणित रति या छुआछूत रोग से पीड़ित हो (Venereal disease)
  • घोर कुष्ठ रोग ( Virulent form of leprosy ) से पीड़ित हो तो भी वह विवाह-विच्छेद (तलाक़) के लिए न्यायानय में याचिका दायर कर सकती है।
(7) यौवनागमन विकल्प (Option of puberty)-
यदि किसी स्त्री का विवाह उसकी अवयस्कता अर्थात् 15 वर्ष से कम उम्र में उसके
  1. पिता (Father)
  2. बाबा (Grand father), या 
  3. संरक्षक (Guardian) द्वारा किया गया हो तो वह बालिग होने पर अर्थात् 18 वर्ष की आयु होने पर
(अ) इस विवाह को अमान्य घोषित कर सकती है कि उसे यह शादी मंज़ूर नहीं, या 
(ब) उस पर अपनी स्वीकृति दे देती है।

ध्यान दें-
यौवनागमन का विकल्प तभी दिया जा सकता है जब विवाह तुष्टि (Consummation) न हुआ हो। यदि विवाह के बाद पति-पत्नी में शारीरिक संबध (intercourse) हुआ हो तो ऐसा विकल्प नहीं दिया जा सकेगा।
इस सम्बन्ध में कुछ न्यायालयों ने यह व्याख्या दी कि मुस्लिम विवाह-विच्छेद अधिनियम के उपबन्ध केवल मुस्लिम स्त्री पर ही लागू होते हैं अन्य स्त्रियों पर नहीं।
एक मामले में कलकत्ता उच्च न्यायालय ने यह व्यवस्था दी कि यह कहना कि मुस्लिम विवाह-विच्छेद अधिनियम 1939 में यौवनागमन के विकल्प से सम्बन्धित विवाह को कराने वाले दो पक्षों अर्थात् पिता या पितामह अथवा कोई अन्य पक्ष अभिभावक इत्यादि के कारण विवाह को भंग करने, मान्य करने या तोड़ने में अन्तर को समाप्त कर दिया है, गलत है।

(8) पति की निर्दयता (Curelty of husband)-
पति यदि पत्नी के साथ निर्दयता का व्यवहार करता है तो पत्नी न्यायालय से विवाह सम्बन्ध का विच्छेद करने की माँग कर सकती है। पति की निर्दयता (cruelty) के अन्तर्गत निम्नलिखित बातें आती हैं- 
  1. पति अपनी पत्नी के साथ मारपीट करे या शारीरिक पीड़ा पहुँचाये या क्रूर व्यवहार करे।
  2. पति बदनाम स्त्री (वेश्या) के साथ रहे।
  3. पत्नी को दुराचार (अप्राकृतिक सेक्स) के लिए बाध्य करे। 
  4. अपनी पत्नी की सम्पत्ति को बेच दे या पत्नी को उसके कानूनी अधिकार प्रयोग करने से रोके।
  5. पति पत्नी को उसके धर्म-पालन से रोके।
  6. यदि पति की एक से अधिक पत्नी हो तो उसके साथ समान व्यवहार न करे।
इतवारीलाल बनाम मुसम्मात असगरी के वाद में-
पति ने अपनी पहली पत्नी के विरुद्ध दाम्पत्य अधिकारों की पुनर्स्थापना का वाद दायर किया था। इस पत्नी ने पति द्वारा दूसरी पत्नी लाने और निर्दयता के आधार पर माता-पिता के साथ रहने का औचित्य दिखलाया। मुन्सिफ ने इस पत्नी द्वारा निर्दयता का सबूत न दे सकने के कारण पति का वाद डिक्री कर दिया था। पत्नी द्वारा जिला न्यायाधीश के समक्ष प्रस्तुत अपील पर किया गया जिसमें निर्णय पलट दिया गया। इस पर पति द्वारा उच्च न्यायालय में अपील की गयी। न्यायमूर्ति एस. एस. धवन ने अपील खारिज करते हुए कहा कि यह दूसरी पत्नी लाने वाले पति को साबित करना चाहिए कि उसके द्वारा दूसरी पत्नी लाना पहली पत्नी का अपमान या निर्दयता नहीं है।

(9) शरीयत के अनुसार अन्य कोई आधार (Any other ground according to Shariat)–
उपर्युक्त आधारों के आलावा मुस्लिम स्त्री को किसी अन्य उस कारण से तलाक देने का अधिकार है जिनका उल्लेख शरीयत में किया गया हो। इस अधिनियम के प्रावधानों के अतिरिक्त शरीयत एक्ट 1937 की धारा 2 के अनुसार तलाक के प्रकारों जैसे, इजा, जिहार, लियन, खुला और मुबारित के अतिरिक्त प्रत्यातित तलाक (delegated divorce) दिया जा सकता है जिसे तलाक-ए-तफवीज (Talaka-e-Tufweez) कहा जाता है।

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