अंतर धार्मिक विवाह करने के लिए किसकी अनुमति ज़रूरी है? क्या कोर्ट मैरिज रजिस्ट्रार विवाह पंजीकरण करने से इनकार कर सकता है? जानिए प्राविधान

सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि एससी-एसटी एक्ट (SC-ST Act) के तहत जब आरोपी की जमानत पर सुनवाई हो रही हो, डिस्चार्ज पर बहस हो रही हो, आरोपी को परोल पर रिहा करने के लिए सुनवाई हो रही हो या सजा सुनाए पर बहस हो रही हो तो पीड़ित या उसके आश्रित को सुना जाना अनिवार्य है।
जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि SC-ST समुदाय के लोगों का उत्पीड़न बीते जमाने की बात नहीं है। बल्कि यह समाज में आज भी बदस्तूर जारी है। इसी वजह से संसद में एससी एसटी एक्ट (SC-ST Act) बनाया था कि ऐसे लोगों के मौलिक अधिकार की रक्षा की जा सके। लेकिन वर्तमान में देश में हो रही घटनाएँ इस बात का साफ संकेत देती है एससी एसटी (SC-ST) वर्ग के साथ बदसलूकी अभी भी जारी है।
कोर्ट ने कहा कि आरोपी की जमानत दोष सिद्धि परोल आदि पर सुनवाई के दौरान पीड़ित की बात सुनने के लिए एक्ट की धारा 15ए में प्रावधान है। इस प्रावधान का कड़ाई से पालन करना जरूरी है। सुप्रीम कोर्ट ने राजस्थान हाईकोर्ट के उस फैसले को खारिज कर दिया जिसमें हाईकोर्ट ने आरोपी को जमानत दे दी और धारा 15ए का पालन नहीं किया।
घटिया छानबीन से बचते हैं अपराधी
कोर्ट ने कहा ऐसे मामले में छानबीन के दौरान पीड़ित को परेशानी होती है। कई बार SC-ST समुदाय के पीड़ित केस दर्ज कराने आगे नहीं आते, यदि कोई पुलिस स्टेशन आता भी है तो कई बार पुलिस का रूखा रवैया होता है। सही तरह से केस तक दर्ज नहीं होता। केस दर्ज हो जाए तो घटिया छानबीन के कारण अपराधी बच निकलते हैं। इसी वजह से ऐसे केसों में सजा की दर कम है। इससे धारणा बनती है कि ऐसे केस फर्जी होते जबकि असलियत यह नहीं है।
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