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पत्नी के चरित्र पर शक है फिर भी कॉल रेकार्डिंग करना गैर क़ानूनी

यदि आप सोंचते है आप पत्नी के मालिक हैं।  तो यह खबर पढ़ लें। पत्नी के किसी काम में टांग अड़ाना या किसी काम की अड़चन बनना भारी पड़ सकता है। क्या है पूरा मामला जानिए।
जानकारी के बिना पत्नी की किसी भी व्यक्ति से बातचीत की रिकॉर्डिंग निजता का उलंघन है। कोर्ट ने कहा की पत्नी के चरित्र पर शक को फिर भी कॉल रेकार्डिंग करना गैर क़ानूनी

पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने अपने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा कि एक दूसरे को जानकारी दिए बिना जीवन साथी की किसी अन्य से निजी बातचीत की रिकॉर्डिंग करना निजता का उल्लंघन है। इसका समर्थन नहीं किया जा सकता।

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दरअसल एक प्रकरण में जस्टिस अरुण मूंगा की पीठ के समक्ष याचिका दायर करने वाली महिला के पति ने उसका चरित्रहीन साबित करने के लिए ऑडियो क्लिप पेश की थी।
इस पर पीठ ने याची के पति को फटकार लगाई। जानकारी के बिना पत्नी की किसी भी व्यक्ति से बातचीत की रिकॉर्डिंग निजता का उलंघन है। कोर्ट ने कहा की पत्नी के चरित्र पर शक को फिर भी कॉल रेकार्डिंग करना गैर क़ानूनी।

यह एक बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका थी। जिसे पंचकूला में रहने वाली एक महिला ने दायर किया था। याची ने आरोप लगाया था कि उसका पति उसका 4 साल की बेटी को छीन कर ले गया है। तब से वह बेटी को वापस नहीं कर रहा है। इसके लिए उसने मेरे (याची)
ऊपर चरित्र हीन होने का आरोप लगाया और बच्ची को वापस करने से मना कर दिया है।

याचिका में बताया गया कि याची और उसका पति दोनों आईटी प्रोफेशनल है। 2012 में दोनों ने शादी की थी। लेकिन कुछ कारणों के चलते नवंबर 2019 में अलग हो गए। पति बच्ची का इलाज कराने के बहाने अपने साथ ले गया तब से बच्ची के वैधानिक संरक्षण का प्रकरण सिविल जज के समक्ष लंबित है।

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सनवाई के दौरान हाई कोर्ट ने कहा कि हर बच्चा राष्ट्रीय संपत्ति है। कोर्ट का यह कर्तव्य है कि वह मुसीबत में पड़े बच्चे के कल्याण और हित को सुरक्षित करने को यह सुनिश्चित करें, यह देखें कि कौन बच्चे की परवरिश के लिए उपयुक्त है।
कोर्ट ने पति-पत्नी दोनों से पूछा कि उनकी अनुपस्थिति में बच्ची की देखभाल कौन करता है। इस पर पिता ने जवाब दिया कि उसकी चाची और जो पास में रहती हैं। माँ ने जवाब दिया कि उसके घर से काम करने के लिए कंपनी से अनुमति ली है और अपने माता-पिता को भी साथ रहने के लिए कहा है।

दोनों से मिली जानकारी के बाद हाईकोर्ट ने कहा कि बच्ची 5 साल से कम उम्र की है।
उसकी माँ अधिनियम की धारा 6 के लाभ की हकदार होगी। जब तक बच्ची के संरक्षण के बारे में पारिवारिक अदालत कोई ऐसा नहीं करती तब तक वह मां के पास रहेगी कोर्ट ने पिता को बच्ची को उसकी मां को सौंपने के आदेश दिए।

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