दया याचिका का तुरंत निपटारा जुडिशल रिव्यु का आधार नहीं हो सकता : सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने एक दुष्कर्म के गुनाहगार की अर्जी खारिज करते हुए कहा कि मामले में जो भी ग्राउंड दिए गए हैं वह जुडिशल रिव्यु के लिए काफी नहीं है। कोर्ट ने कहा कि दया याचिका के निपटारे में देरी जुडिशल रिव्यु का आधार हो सकती है लेकिन तुरंत निपटारा होना रिव्यू का आधार नहीं हो सकता।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इस मामले में यह सवाल उसके सामने था कि दया याचिका के निपटारे की प्रक्रिया में कोई खामी है इसलिए फैसले का जुडिशल रिव्यु किया जाना है।
कोर्ट के सामने यह सवाल भी था कि
1) क्या फैसला लेने के लिए संबंधित दस्तावेज पेश नहीं किए गए और क्या उस पर विचार नहीं हुआ?
2) क्या फैसला जल्दी में लिया गया और विवेक का इस्तेमाल नहीं किया गया और पूर्व सोच के आधार पर फैसला लिया गया?
3) तीसरा सवाल यह था कि क्या दोषी को काल कोठरी में रखा गया और क्या कोर्ट के फैसले की गाइडलाइंस का पालन नहीं हुआ ?
सुप्रीम कोर्ट ने फैसले में मारु राम से संबंधित एक वाद का हवाला दिया और कहा कि अगर सारे दस्तावेज सामने रखे गए हैं और उस पर विचार करने से बाद याचिका खारिज हुई है तो फिर किस आधार पर कहा जा सकता कि मामले का जल्दी निपटारा हुआ है?
कोर्ट ने स्पष्ट किया कि सॉलिसिटर जनरल ने सही कहा है कि दया याचिका के निपटारे में देरी जुडिशल रिव्यु का आधार हो सकती है लेकिन तुरंत निपटारा होना जुडिशल रिव्यु का आधार नहीं हो सकता। ऐसे में यह नहीं कहा जा सकता कि पहले से सोंचकर निपटारा हुआ और विवेक का इस्तेमाल नहीं हुआ।
इन तमाम आधार पर हम तय करते हैं कि मामले में जुडिशल रिव्यु का ग्राउंड नहीं है और याचिका खारिज की जाती है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि याची के जजमेंट का हवाला देकर कहा की दया याचिका पर फैसले के बाद तमाम दस्तावेज पेश किए जाने होते हैं।
इस मामले में जेल सुपरिटेंडेंट ने कहा था कि सिर्फ ट्रायल कोर्ट का फैसला मेडिकल रिपोर्ट और जेल में बिताए गए समय को बताया गया। डीएनए रिपोर्ट चार्जशीट आदि पेश नहीं किए गए।
अदालत ने कहा कि होम मिनिस्ट्री की रिपोर्ट में यह कहा गया है कि सारे दस्तावेज भेजे गए थे। जजमेंट में जो कहा गया है उस गाइडलाइंस का पालन किया गया है। हमने नोटिस देखी है उसमें सारे दस्तावेज भेजने की बात है। ऐसे में इस दलील में मेरिट नहीं है कि बिना दस्तावेज देखे ही दया याचिका खारिज की गई।
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