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टू फिंगर टेस्ट संविधान के खिलाफ : हाई कोर्ट
गुजरात हाईकोर्ट ने कहा कि बलात्कार के मामले में पीड़िता के कौमार्य सहमति के निर्धारण के लिए किया जाने वाला टू फिंगर टेस्ट पुरातन और अप्रचलित तरीका है।
कोर्ट ने इसे असंवैधानिक बताया है। कोर्ट ने कहा कि टू फिंगर टेस्ट पीड़िता की निजता और गरिमा के अधिकार का उल्लंघन है। अदालत ने कहा हमारा प्रयास है कि ट्रायल कोर्ट के साथ-साथ चिकित्सा जगत को याद दिलाया जाए कि टू फिंगर टेस्ट असंवैधानिक है।
क्योंकि यह बलात्कार पीड़िता के निजता और गरिमा के अधिकार का उल्लंघन करता है। कोर्ट ने कहा टू फिंगर टेस्ट भारतीय साक्ष्य अधिनियम की
धारा 146 के प्रत्यक्ष विरोध में है, जिसका कहना है कि रेप या रेप की कोशिश के मामले में पीड़िता के चरित्र पर सवाल उठाने की अनुमति नहीं होगी।
बेंच ने कहा यौन उत्पीड़न के मामले में यह खुद परीक्षण के सबसे अधिक ज्ञानिक तरीकों में से एक है और इसका कोई फॉरेंसिक महत्व नहीं है।
पहले से शारीरिक संबंध में पीड़िता के शामिल होने का इस बात से कोई लेना-देना नहीं है कि उसने यौन उत्पीड़न के मामले में सहमति दी थी या नहीं।
कोर्ट ने यह टिप्पणी रेप के एक मामले में बरी किए जाने की एक अनोखी अपील में की जिसमें ट्रायल कोर्ट ने पाया था कि पीड़िता की उम्र 16 साल से ज्यादा है इसलिए टू सिंगर टेस्ट के माध्यम से उसकी सहमति का निर्धारण किया था।
राज्य सरकार की अपील पर हाईकोर्ट ने ट्रायल कोर्ट के 25 साल पहले की गई गलती को सुधार दिया और आरोपी को रेप का दोषी ठहराया।
हाई कोर्ट ने दोषी को अगली सुनवाई में व्यक्तिगत रूप से उपस्थित रहने के लिए कहा है।
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