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कोर्ट ने भी माना देश के लिए खतरा है टिक-टॉक, इस पर तुरंत नियंत्रण की जरूरत।

उड़ीसा हाईकोर्ट ने एक जमानत आवेदन पर विचार करते हुए कहा कि अब समय है कि टिक-टॉक मोबाइल एप्लीकेशन को पूरी तरह से नियंत्रित किया जाए। सुनवाई के दौरान न्यायमूर्ति एसके परीक राय ने कहा कि यह एप्लीकेशन अक्सर अपमानजनक और अश्लील कल्चर को प्रदर्शित करता है और स्पष्ट रूप से परेशान करने वाली सामग्री के अलावा पोर्नोग्राफी को भी बढ़ावा देता है। इस तरह के एप्लीकेशन को नियंत्रित करने की आवश्यकता है। जिससे किशोरों को इससे नकारात्मक प्रभाव से बचाया जा सके।


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इस मामले में आरोपी ने मृतक की पत्नी के साथ मिलकर निजी (इंटीमेट) वीडियो टिक-टॉक पर पोस्ट किए थे जिसके बाद मृतक ने आत्महत्या कर ली थी। दोनों आरोपियों पर आईपीसी की धारा 306 के तहत आरोप लगाए गए थे। हालांकि अदालत ने दोनों आरोपियों को जमानत दे दी। लेकिन टिक-टॉक का युवाओं व किशोरों पर प्रभाव का उल्लेख किया और कहा कि ऐसा प्रतीत होता है कि ऐसे मामले दुखद अंत का कारण बनते जा रहे हैं। कोर्ट ने कहा कि पोस्ट की गई सामग्री को अपडेट द्वारा छुआ नहीं जा सकता है। इस तरह किसी के निजी पल को प्रसारित करना पीड़ित को प्रताड़ित करने के साथ अपमानजनक भी हो रहा है।

बड़ी संख्या में लोग विशेषकर युवा (लड़के-लड़कियां) ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों में इस तरह के केसेस से ग्रसित हैं और यह अत्यंत परेशान करने वाले व संवेदनशील हैं। इस तरह के कृत्य को डिजिटल प्लेटफॉर्म के माध्यम से इस तरीके से अंजाम दिया जाता है की किसी भी सभ्य व्यक्ति को विचलित कर सकता है। सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे वीडियो को देखकर कोई भी घ्रणित महसूस कर सकता है और शर्मसार हो सकता है।
जो वर्तमान मामले में काफी स्पष्ट है। हालांकि इस केस से जुड़ा वीडियो की सामग्री की फॉरेंसिक जांच होना बाकी है।

इस मामले की तरह ही साइबर बुलिंग जैसी गतिविधियां होती है जो वर्तमान में हुआ है। जिससे कई निर्दोष इसके शिकार हुए। टिक-टॉक मोबाइल ऐप जो अक्सर पोर्नोग्राफी को बढ़ावा दे रहा है। इसकी स्पष्ट रूप से परेशान करने वाली सामग्री के कारण इसके नकारात्मक प्रभाव को सुधारने और नियंत्रण करने की आवश्यकता है ताकि किशोरों को इसके नकारात्मक प्रभाव से बचाया जा सके।


साइबर अपराध को दूर करने के लिए भारत के पास आज भी एक विशेष कानून का अभाव है। कोर्ट ने कहा कि सरकार को उन कंपनियों पर नियंत्रण करने की सामाजिक जिम्मेदारी मिली है जो समाज व संस्कार विरुद्ध रास्तों पर चल पड़ते हैं। हालांकि अपराध गठित करने वाली ऐसी सामग्री का वर्ग निर्धारित करने वाले दायित्व कानून का अभाव है। न्यायालय ने यह भी देखा कि ऐसे मामलों के जांच अधिकारी जांच के लिए ना तो अच्छी तरह से प्रशिक्षित है और ना ही वह साइबर अपराध के विषय को अच्छे से समझते हैं।

अतः यह जरूरी है कि जांच में लगे अधिकारियों को तरह-तरह की तकनीकी, कानूनी मुद्दों की जांच करने में आवश्यक कौशल को उन्नत करने के लिए समय-समय पर प्रशिक्षण देने की आवश्यकता है। इसके अलावा साइबर इंटेलिजेंस, खुफिया विभाग, साइबर फॉरेंसिक और अभियोजन प्रशिक्षण में सुधार की आवश्यकता है। मद्रास उच्च न्यायालय ने मोबाइल एप्लीकेशन के बारे में टिप्पणी थी और यहां इस ऐप के डाउनलोड विकल्प को बंद करने का निर्देश दिया था। बाद में इस आदेश को चेतावनी के साथ वापस ले लिया गया यदि यह नकारात्मक, अनुचित और अश्लील सामग्री का फिल्टर करने के अपने उपकरण का उल्लंघन करता है तो यह अदालत की अवमानना के दायरे में आ सकता है।



ज्यूडिशियल गुरू विचार :

टिक-टॉक के अलावा देश में ऐसे तमाम एप्लीकेशन है जिन पर सरकार का पूरी तरह से कोई नियंत्रण नहीं है जो खासकर किशोर हो रहे लड़के लड़कियों को मानसिक रूप से ग्रसित कर रहा है। अतः ऐसे एप्लीकेशन पर सरकार का नियंत्रण होना आवश्यक है। जिससे इनके होने वाले दुष्प्रभाव व दुरुपयोग को समय रहते रोका जा सके। आज असंख्य लड़के-लड़की ऐसे ऐप का इस्तेमाल करते हैं, जिससे न केवल उनके जीवन पर इसका नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है बल्कि कोमल मन पर अश्लीलता, हिंसा जैसे विकारों का भी असर हो रहा है। सरकार को ऐसे मामले में हस्तक्षेप कर एक मजबूत विकल्प तलाशने की आवश्यकता है। जिससे इसे पूरी तरह से नियंत्रण में लाया जा सके और ऐसी घटनाओं को तत्काल रोका जा सके।

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