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सत्यमेव जयते!

क्या कोई महिला घरेलू हिंसा करने की दोषी हो सकती है? क्या महिला के खिलाफ मुकदमा दायर किया जा सक्ता है? :हाईकोर्ट

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क्या कोई महिला घरेलू हिंसा करने की दोषी हो सकती है? क्या महिला के खिलाफ मुकदमा दायर किया जा सक्ता है? कानून कैसे काम करता है इस बात पर समय-समय पर विचार होते रहते हैं। ऐसा ही एक वाक्या दिल्ली में सामने आया जहाँ पति ने पत्नी के खिलाफ लगाया घरेलू हिंसा का आरोप लगाया और मुकदमा दायर किया। मामला जब कोर्ट में पहुंचा तब और भी दिलचस्प बात देखने मिली। मामले की सुनवाई के दौरान जस्टिस जसमीत सिंह हंसने लगे और बड़ी हैरानी से पूछा "ये क्या है?" क्या ट्रायल कोर्ट के न्यायाधीश ने अपना दिमाग नहीं लगाया? घरेलू हिंसा रोकथाम अधिनियम 2005 के तहत किसी महिला को आरोपी बनाया जा सकता है क्या? मामला कुछ इस तरह है कि जस्टिस जसमीत सिंह दिल्ली की एक महिला की अपील पर सुनवाई कर रहे थे। महिला ने निचली अदालत कड़कड़डूमा कोर्ट के एक फैसले को हाई कोर्ट में चुनौती दी थी। इस मामलें में निचली अदालत ने उसे घरेलू हिंसा के आरोप में समन जारी किया गया था। जहाँ इस प्रश्न पर चर्चा हुई कि- क्या है घरेलू हिंसा कानून? इसमें कोई महिला आरोपी क्यों नहीं बनाई जा सकती? क्या घरेलू हिंसा कानून पुरुष विरोधी है?  पति ने पत्नी के खिलाफ

शादी के कितने दिन बाद तलाक़ ले सकते हैं?

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मैरिज काउंसलर और तलाक के मामलों के जानकार वकीलों के मुताबिक पिछले दो सालों के दौरान तलाक की अर्जियां काफी बढ़ीं। भारत ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया में यह चलन बढ़ता नजर आया। इसको देखते हुए भारत के पड़ोसी देश चीन ने तलाक का नया कानून लागू कर दिया। चीन के नए क़ानून के तहत तुरंत तलाक नहीं मिलेगा बल्कि दंपती को अब तलाक के लिए 30 दिन का इंतजार करना होगा।  ताकि वे आवेग में आकर फैसले न लें और उन्हें पुनर्विचार का मौका मिल सके। भारत में सामान्यतया यह समय 6 महीने का है। यह कूलिंग ऑफ पीरियड तलाक़ के फैसलों पर विचार के लिए दिया जा है। मगर उच्चतम न्यायालय के कुछ फैसलों के मुताबिक अदालत इस बारे में स्वंय विवेकाधिकार से फैसला ले सकती है।  कूलिंग ऑफ पीरियड क्या है? तलाक की अर्ज़ी देने वाले कपल्स को तलाक के फैसले पर पुर्नविचार के लिए कोर्ट द्वारा कुछ समय दिया जाता है यह समय कूलिंग ऑफ पीरियड के नाम से जाना जाता है। इस पीरियड के दौरान जब कपल्स ठन्डे दिमाग से पुनः विचार करते हैं तो 36% प्रतिशत मामलों में कपल्स तलाक़ का विचार त्याग देते हैं जिससे टूटते परिवारों को बचाने का प्रयास किया जाता है। क्या कामयाब होता यह

पति पत्नी की इच्छा के बिना उसके साथ सेक्स करे तो यह बलात्कार है और इस आधार पर तलाक लिया सकता है?

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शादीशुदा जोड़ों के बीच शारीरिक सम्बन्ध अनिवार्य व स्वभाविक प्रक्रिया है। पति और पत्नी का एक दूसरे पर  अधिकार है की शारीरिक सम्बन्ध बना सकें हैं। लेकिन जब सेक्स रिलेशन बलपूर्वक व ज़बरदस्ती होने लगे तो यह अपराध का रूप ले लेता है। किन्तु सभी मामले में ज़रूरी नहीं की ऐसा ही हो। पति अगर पत्नी की इच्छा के बिना उसके साथ सेक्स करे तो क्या यह बलात्कार है? कुछ समय पूर्व एक मामले की सुनवाई के दौरान दिल्ली हाईकोर्ट के सामने एक पेचीदा सवाल था कि पति अगर पत्नी की इच्छा के बिना उसके साथ सेक्स करे तो इस बलात्कार को अपराध माना जाना चाहिए या नहीं। हाईकोर्ट की बेंच ने इस बारे में किसी तरह की एकमत राय नहीं जताई। पैनल में मौजूद दो जजों की राय अलग-अलग थी। एक जज का विचार था कि इसे अपराध माना जाना चाहिए, वहीँ दूसरे ने इस राय से जुदा इत्तिफाक जताया। वास्तव में यह सवाल है ही टेढ़ा। भारत ही नहीं, विश्व के कई देशों में वैवाहिक बलात्कार को साबित करने और फिर उसके लिए सजा देने का मामला उलझा हुआ है। जिसका हल खोजने में कई देशों के विधि विशेषज्ञ लगे हैं। कितने देशों ने वैवाहिक बलात्कार को अपराध माना जाता है? दुनिया के 150

सेक्स काम कानूनी. पुलिस हस्तक्षेप नहीं कर सकती, आपराधिक कार्रवाई कर सकती है: SC

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सुप्रीम कोर्ट ने एक केस की सुनवाई पर फैसला सुनाया है कि वेश्यावृत्ति एक कानूनी पेशा है और यौनकर्मियों के साथ सम्मान के साथ व्यवहार किया जाना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने एक अहम आदेश में पुलिस से कहा कि सहमति जताने वाली यौनकर्मियों के खिलाफ न तो उन्हें दखल देना चाहिए और न ही आपराधिक कार्रवाई करनी चाहिए कोर्ट ने कहा कि वेश्यावृत्ति एक पेशा है और यौनकर्मी (सेक्स वर्कर्स) कानून के तहत सम्मान और समान सुरक्षा के हकदार हैं। न्यायमूर्ति एल नागेश्वर राव की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय पीठ ने यौनकर्मियों के अधिकारों की रक्षा के लिए छह निर्देश जारी किए। बेंच ने कहा, "यौनकर्मी कानून के समान संरक्षण के हकदार हैं। आपराधिक कानून सभी मामलों में उम्र और सहमति के आधार पर समान रूप से लागू होना चाहिए। जब यह स्पष्ट हो जाए कि यौनकर्मी वयस्क है और सहमति से भाग ले रही है, तो पुलिस को हस्तक्षेप करने या कोई आपराधिक कार्रवाई करने से बचना चाहिए। यह कहने की आवश्यकता नहीं है कि पेशे के बावजूद, इस देश के प्रत्येक व्यक्ति को संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत सम्मानजनक जीवन का अधिकार है।" पीठ ने यह भी आदेश दिया कि यौनक

मुस्लिम महिला किन-किन आधारों पर तलाक़ मांग सकती है?

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मुस्लिम महिला विवाह-विच्छेद (तलाक़) अधिनियम 1939 के अन्तर्गत विवाह विच्छेद के लिए कौन वाद प्रस्तुत कर सकता है? इस अधिनियम के अन्तर्गत किन-किन आधारों पर विवाह-विच्छेद (तलाक़) हो सकता है? Who can sue for dissolution of marriage under the provisions of Muslim Marriage Act, 1939? On what grounds can a marriage be dissolved under this Act? मुस्लिम-विवाह विच्छेद अधिनियम, 1939 के अन्तर्गत तलाक (Divorce in accordance with Dissolution of Muslim Marriage Act, 1939) भारत में मुस्लिम विवाह-विच्छेद अधिनियम, 1939 लागू होने से पहले निम्नलिखित आधारों पर ही कोई भी महिला अपने पति से तलाक ले सकती थी (a) पति के नपुंसक होने पर (On impotency of husband)। (b) लियन (Lian) (पर पुरुष गमन का झूठा आरोप) इस अधिनियम के लागू होने के बाद मुस्लिम महिला को इस सम्बन्ध में और अधिक अधिकार मिले जिनके अन्तर्गत निम्नलिखित आधारों पर तलाक के लिए आवेदन कर सकती है- (1) पति का लापता होना (Absence of husband) (2) निर्वाह करने में असमर्थता (Failure to maintain) (3) पति को कारावास (Imprisonment of husb and) (4) वैवाहिक दायित्वों का पा

क़ानून कहता है हिन्दुओं को अपने पूजास्थल वापस लेने का अधिकार नहीं है?

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क्या है पूजा स्थल कानून? पूजा स्थल अधिनियम 1991 (Worship Act 1991) कांग्रेस सरकार के कार्यकाल में तत्कालीन प्रधानमंत्री पी० वी० नरसिम्हा राव के नेतृतव में पारित एक क़ानून है। पूजा स्थल कानून कहता है कि पूजा स्थलों की जो स्थिति 15 अगस्त 1947 में थी वही रहेगी। लेकिन इस कानून की परिधि से अयोध्या की राम जन्मभूमि को अलग रखा गया है। अयोध्या राम जन्म भूमि मुकदमे को क्यों अलग रक्खा गया? इस कानून में लिखित कथन के अनुसार अयोध्या राम जन्म भूमि मुकदमे के अलावा जो भी मुकदमे हैं वे समाप्त समझे जाएंगे। चूँकि यह मामला एमएल ई में स्थित राम जन्म भूमि-बाबरी मस्जिद के रूप में जाना जाता है। जो कोर्ट में पेंडिंग था। सुप्रीम कोर्ट में लंबित है पूजा स्थल कानून की वैधानिकता पर सवाल क्यों? वर्तमान में पूजा स्थल (विशेष प्रविधान) कानून 1991 की वैधानिकता का मामला सुप्रीम कोर्ट में लंबित है। सुप्रीम कोर्ट ने कानून की वैधानिकता को चुनौती देने वाली भाजपा नेता और वकील अश्वनी कुमार उपाध्याय की याचिका पर गत वर्ष 12 मार्च को सरकार को नोटिस भी जारी किया था। नोटिस जारी होने के बाद यह मामला दोबारा सुनवाई पर नहीं लगा न ही

अब बिना वकील के अपना मुक़दमा ख़ुद लड़ें। जानिए कैसे?

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किसी भी सिविल अथवा क्रिमिनल केस में आपका केस काफी लंबा चल रहा है या आपका वकील अच्छे से आप के केस की पैरवी नहीं कर रहा है तो आप किस प्रावधान के तहत अपना मुकदमा स्वयं लड़ सकते हैं? आज हम इसी नियम के बारे में बात करेंगे कि कैसे आप बड़ी आसानी से अपने केस को खुद लड़ सकते हैं और तय समय में उसे जीत भी सकते हैं। कब लड़ सकतें है अपना केस? यदि आप किसी कारणवश कोई वकील नहीं करना चाहते हैं या आपके मामले की पैरवी आपका वकील अच्छे से नहीं कर रहा है तो आप अपना मुकद्दमा खुद ही लड़ सकते हैं लेकिन इससे जुड़े प्रावधान आपको पता होना चाहिए।  यदि आप पर कोई क्रिमिनल या सिविल केस चल रहा है तो आप उस मामले की सुनवाई बिना किसी अधिवक्ता को हायर किए स्वयं लड़ सकते हैं। लेकिन इससे पहले अधिवक्ता का अर्थ समझ लें। अधिवक्ता का अर्थ होता है, आधिकारिक वक्ता यानी जिस व्यक्ति को यह अधिकार दिया गया है कि वह आपकी तरफ से आपके वाद को कोर्ट के समक्ष रखें और पैरवी करे।  लेकिन अब सवाल यह है कि- कोई भी व्यक्ति अपना मुकद्दमा खुद क्यों नहीं लड़ता? अधिवक्ता ही वकालत क्यों करता है? हम स्वयं अपने पक्ष क्यों नहीं रख सकते? एक सामान्य व्यक्ति

माता-पिता का ध्यान नहीं रखा तो होगी जेल

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'माता-पिता' और वरिष्ठ नागरिकों का भरण पोषण एवं कल्याण (संशोधन) विधेयक-2019' बुजुर्गों के देखभाल एवं कल्याण के लिए बनाया गया एक कानून है। माता-पिता और वरिष्ठ नागरिकों का भरण पोषण एवं कल्याण (संशोधन) विधेयक 2019 के अनुसार- माता-पिता या अपने संरक्षण वाले वरिष्ठ नागरिकों के साथ जानबूझकर दुर्व्यवहार करने या उन्हें उनके हाल पर अकेला छोड़ देने वालों के लिए छह महीने के कारावास या 10 हजार रुपये जुर्माना का प्रावधान है या दोनों का प्रावधान किया गया है। इसमें वृद्धाश्रमों और उसके जैसी सभी संस्थाओं के लिए रजिस्ट्रेशन अनिवार्य कर दिया गया है। साथ ही उन्हें न्यूनतम मानकों का पालन भी करना होगा।  हर राज्य में भरण पोषण अधिकारी भरण पोषण आदेश के क्रियान्वयन के लिए राज्य भरण पोषण राशि होगी ऐसा नहीं होने पर जुर्माना लगाने का प्रावधान है। बुजुर्गों की स्थिति -हेल्य एज इंडिया द्वारा 2018 में किए गए एक सर्वे के मुताबिक:-  69 फीसद बुजुर्गों के पास अपने नाम पर एक घर है  7 फीसद के पास पति या पत्नी के नाम घर है 85 फीसद बुजुर्ग परिवार के साथ रह रहे हैं 3 फीसद दूसरों के साथ रह रहे हैं  20 फीसद किराए पर

क्या 'तीन तलाक' मामले में पति के परिवार को आरोपी बनाया जा सकता है?: कोर्ट

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पति के परिजन को नहीं बनाया जा सकता है आरोपी  सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि तीन तलाक मामले में पति के रिश्तेदार या परिजन को आरोपी नहीं ठहराया जा सकता। शीर्ष अदालत ने यह कहते हुए याचिकाकर्ता को अग्रिम जमानत दे दी। जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस इंदु मल्होत्रा और जस्टिस इंदिरा बनर्जी की पीठ ने सुनवाई के दौरान कहा कि ऐसे मामलों में अपराध करने वालों को अग्रिम जमानत देने पर कोई रोक नहीं है। लेकिन अग्रिम जमानत देने से पहले सक्षम अदालत द्वारा विवाहित मुस्लिम महिला का पक्ष सुना जाना चाहिए । तीन तलाक के मामले में शिकायतकर्ता की सास को भारतीय दंड संहिता की धारा 498ए एवं 34 के अलावा मुस्लिम महिला (विवाह अधिकार संरक्षण अधिनियम) के तहत आरोपी बनाया गया था। पीड़िता ने पति के साथ सास पर भी आरोप लगाए। पति ने अपराध किया है, न कि उसकी मां ने सुप्रीम कोर्ट ने  याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा कि इस मामले में याचिकाकर्ता महिला शिकायतकर्ता की सास है और उसे इस अधिनियम के तहत आरोपी नहीं बनाया जा सकता। पत्नी को तलाक देकर पति ने अपराध किया है न कि उसकी मां ने। लिहाज़ा पति की माँ को आरोपी नहीं बनाया जा सकता वहीँ दूस

एससी एसटी एक्ट (SC-ST Act) मामले में पीड़ित को आरोपित की बेल के वक्त सुनना जरूरी : सुप्रीम कोर्ट

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सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि एससी-एसटी एक्ट (SC-ST Act) के तहत जब आरोपी की जमानत पर सुनवाई हो रही हो, डिस्चार्ज पर बहस हो रही हो, आरोपी को परोल पर रिहा करने के लिए सुनवाई हो रही हो या सजा सुनाए पर बहस हो रही हो तो पीड़ित या उसके आश्रित को सुना जाना अनिवार्य है। जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि SC-ST समुदाय के लोगों का उत्पीड़न बीते जमाने की बात नहीं है। बल्कि यह समाज में आज भी बदस्तूर जारी है। इसी वजह से संसद में एससी एसटी एक्ट (SC-ST Act) बनाया था कि ऐसे लोगों के मौलिक अधिकार की रक्षा की जा सके। लेकिन वर्तमान में देश में हो रही घटनाएँ इस बात का साफ संकेत देती है एससी एसटी (SC-ST) वर्ग के साथ बदसलूकी अभी भी जारी है। कोर्ट ने कहा कि आरोपी की जमानत दोष सिद्धि परोल आदि पर सुनवाई के दौरान पीड़ित की बात सुनने के लिए एक्ट की धारा 15ए में प्रावधान है। इस प्रावधान का कड़ाई से पालन करना जरूरी है। सुप्रीम कोर्ट ने राजस्थान हाईकोर्ट के उस फैसले को खारिज कर दिया जिसमें हाईकोर्ट ने आरोपी को जमानत दे दी और धारा 15ए का पालन नहीं किया। घटिया छानबीन से बचते हैं अपराधी कोर्ट ने कहा ऐसे मामले में छानब

बहू के गहने रखना क्रूरता नहीं, यह घरेलु हिंसा या उत्पीड़न का हिस्सा नहीं हो सकता

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एक सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि सुरक्षा के लिए बहू के गहनों को अपने पास रखना भारतीय दंड संहिता की धारा 498A (दहेज प्रताड़ना) के तहत क्रूरता नहीं माना जा सकता।  सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस इंदिरा बनर्जी की अगुवाई वाली बेंच ने यह भी कहा है कि अपने बालिग़ भाई को नियंत्रित न कर पाना, अलग रहना और टकराव से बचने के लिए भाभी से तालमेल बनाए रखने की सलाह देना भी दहेज प्रताड़ना की श्रेणी में नहीं आता है। यह टिप्पणियां सुप्रीम कोर्ट ने वैवाहिक विवाद के एक मामले में पति की ओर से दाखिल की गई याचिका पर सुनवाई के दौरान की। शीर्ष अदालत में यह याचिका पंजाब हरियाणा हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ दायर की गई है। वैवाहिक विवाद के इस मामले में महिला के पति ने पंजाब हरियाणा हाई कोर्ट में याचिका दाखिल की थी कि वह यूनाइटेड स्टेट में नौकरी करता है और वापस जाना चाहता है ताकि अपना जीवन यापन कर सके। हाई कोर्ट ने याचिकाकर्ता को बिना पूर्व अनुमति के देश छोड़कर जाने की इजाजत देने से इनकार कर दिया था। क्योंकि वह दहेज प्रताड़ना और आईपीसी (IPC) की अन्य धाराओं के तहत आरोपित है। पति पर लगाए गए आरोपों में महिला ने कहा

टाइम से फीस नहीं जमा कर पाने वाले छात्र को जल्द दाखिला दिया जाये : सुप्रीम कोर्ट

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समय पर फीस जमा न कर पाने वाले दलित छात्र को 48 घंटे में दाखिला दे बॉम्बे IIT: सुप्रीम कोर्ट सुप्रीम कोर्ट ने बॉम्बे IIT को आदेश दिए कि वह अगले 48 घंटे में वांछित छात्र को दाखिला दे। सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि दलित छात्र की सीट के लिए किसी दूसरे छात्र की सीट ना ली जाए, बल्कि उसके लिए अलग से सीट बनाई जाए। क्या है पूरा मामला? दरसल क्रेडिट कार्ड में गड़बड़ी होने के कारण समय पर फीस न भर पाने वाले एक दलित समुदाय के छात्र को सुप्रीम कोर्ट ने बड़ी राहत दी। सुप्रीम कोर्ट ने बॉम्बे IIT को आदेश दिए कि वह अगले 48 घंटे में छात्र को दाखिला दे। सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि दलित छात्र की सीट के लिए किसी दूसरे छात्र की सीट ना ली जाए, बल्कि उसके लिए अलग से सीट बनाई जाए। गौरतलब है कि क्रेडिट कार्ड के काम नहीं करने के कारण यह छात्र फीस नहीं जमा कर सका जिसके चलते उसे IIT बॉम्बे में दाखिला नहीं मिला था। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अदालत को कभी-कभी कानून से ऊपर उठना चाहिए क्योंकि कौन जानता है कि आगे चलकर 10 साल बाद वह हमारे देश का नेता हो सकता है। जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस बीवी नागरत्ना की पीठ ने केंद

क्या सूचना अधिकार अधिनियम 2005 के दायरे में रहकर बीस वर्ष के बाद प्रतिबंधित सूचनाओं को प्राप्त किया जा सकता है?

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जानिए किन परिस्थितियों में सूचना अधिकार अधिनियम 2005 बीस वर्ष के बाद प्रतिबंधित सूचनाओं को प्रदान करने की आज्ञा देता है? know, Under what circumstances after the expiry of 20 years Right to Information Act, 2005 allows to give restricted information's? धारा 8 की उपधारा 3 का कहना है कि धारा 8 की उपधारा (1) के खंड (क), (ग) और (झ) के उपबंध के अधीन रहते हुए किसी ऐसी घटना, वर्णन या विषय से संबंधित कोई सूचना जो उस तारीख से जिसका धारा 6 के अधीन कोई अनुरोध किया जाता है, 20 वर्ष पूर्व घटित हुई थी या हुआ था, उस धारा के अधीन अनुरोध करने वाले किसी व्यक्ति को उपलब्ध कराई जाएगी। परंतु यह कि जहां उस तारीख के बारे में, जिससे 20 वर्ष की उक्त अवधि को गिना जाता है, कोई प्रश्न पैदा होता है, वहां इस अधिनियम में उसके लिए उपबंधित सामान्य अपीलों के अधीन रहते हुए केंद्र सरकार का निर्णय अंतिम होगा। 20 वर्ष से अधिक पुरानी सूचना (More Than 20 years Old Information) धारा 8 की उपधारा (3) में वर्णित प्रावधान धारा 8 की उपधारा (2) में दी गई व्यवस्था को पुनः परिभाषित करते हैं। जहां उपधारा (2) इस अधिनियम में दी ग

दो राज्यों के लिए एक उच्च न्यायालय स्थापित करने के पीछे का क्या तर्क है?

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भारतीय संविधान के अनुच्छेद-214 में है कि प्रत्येक राज्य का एक उच्च न्यायालय होगा, दो या दो से अधिक राज्यों के लिए एक ही न्यायालय हो सकता है। वर्तमान में भारत में कुल 25 उच्च न्यायालय है, आंध्र प्रदेश के अमरावती में देश का 25वां उच्च न्यायालय स्थापित किया गया है। 1 जनवरी 2019 को, इन उच्च न्यायालयों का अधिकार क्षेत्र कोई राज्य विशेष या राज्यों और केन्द्र शासित प्रदेशों के एक समूह होता हैं। उदाहरण के लिए, पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय, पंजाब और हरियाणा राज्यों के साथ केंद्र शासित प्रदेश चंडीगढ़ को भी अपने अधिकार क्षेत्र में रखता हैं। उच्च न्यायालय भारतीय संविधान के अनुच्छेद 214, अध्याय 5 भाग 6 के अंतर्गत स्थापित किए गए हैं। न्यायिक प्रणाली के भाग के रूप में, उच्च न्यायालय राज्य विधायिकाओं और अधिकारी के संस्था से स्वतंत्र हैं भारतीय न्यायिक प्रणाली उच्च न्यायालय, जिला न्यायालय के साथ, जो उनके अधीनस्थ होते है, राज्य के प्रमुख दीवानी न्यायालय होते हैं। हालांकि उच्च न्यायालय केवल उन्ही मामलो में दीवानी और फौजदारी अधिकारिता का प्रयोग करते है, जिनमें उच्च न्यायालय के अधीनस्थ न्यायालय सक्षम

तुम सेक्सी लग रही हो कहना अपराध है क्या? फ्लर्ट और छेड़खानी में क्या अंतर है?

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छेड़खानी और यौन उत्पीड़न के बीच अंतर क्या है? छेड़खानी और यौन उत्पीड़न के बीच का अंतर सरल है। यदि यह अवांछित (असहनीय या बिना स्वीकृति) है, तो यह यौन उत्पीड़न है। यौन उत्पीड़न यौन प्रकृति का कोई वांछित या अवांछित व्यवहार है, और छेड़खानी एक यौन प्रकृति का व्यवहार है! क्या फ्लर्ट करना उत्पीड़न है? अगर कोई फ़्लर्ट करता है और यह अवांछित है, तो उस व्यक्ति को रुकने के लिए कहें। यदि वे नहीं रुकते हैं, तो इसे उत्पीड़न माना जाता है। किसी को परेशान करना गैर कानूनी है। छेड़खानी और यौन उत्पीड़न के बीच मुख्य अंतर यह है कि यौन उत्पीड़न अवांछित है। मुझे कैसे पता चलेगा कि यह उत्पीड़न है? छेड़खानी और उत्पीड़न के बीच अंतर के लिए छवि परिणाम 5 तरीके आप बता सकते हैं कि क्या कोई आपका यौन उत्पीड़न कर रहा है आप सेक्सिस्ट व्यवहार का पता ऐसे लगायें। वे लगातार आपके साथ फ्लर्ट करते हैं। वे आपको वरिष्ठता या पद का उपयोग करके धमकाते हैं और गलत काम करने के लिए उक्सातें हैं। वे ऑनलाइन आपके साथ अनुपयुक्त व्यवहार करते हैं। वे व्यक्तिगत जानकारी साझा करते हैं जो आप नहीं चाहते हैं की वो सबको पता चले। इश्कबाजी और छेड़खानी मे

राष्ट्रीयता क्या है? राष्ट्रीयता कैसे तय होती है? राष्ट्रीयता को प्राप्त करने तथा समाप्ति के कौन-कौन से तरीकों हैं? जानिए भारत सरकार के नियम

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राष्ट्रीयता क्या है?  राष्ट्रीयता  कैसे तय होती है? क्या राष्ट्रीयता का अंतर्राष्ट्रीय कानून से प्रभावित होती है? राष्ट्रीयता को प्राप्त करने तथा समाप्ति के कौन-कौन से तरीकों हैं? इन सभी सवालों के जवाब दे रहें हैं - विधि विशेषज्ञ अधिवक्ता आशुतोष कुमार What is Nationality? How is it ascertained? what is the importance of nationality under Inter national law? Discuss the modes of acquiring and losing Nationality? राष्ट्रीयता क्या है? (What is Nationality) राष्ट्रीयता वह गुण है जो किसी विशिष्ट जाति या राष्ट्र की सदस्यता से उत्पन्न होता है और जो किसी व्यक्ति की राजनीतिक स्थिति या उसका राज्य और नागरिक के बीच स्थापित निरंतर चलने वाला वैध संबंध है। राष्ट्रीयता के अर्थ के बारे में विभिन्न विद्वानों के मत निम्न प्रकार हैं- फेन्विक के अनुसार , "राष्ट्रीयता एक ऐसा बंधन है जो व्यक्ति को राज्य के साथ सम्बद्द करके उसे राज्य विशेष का सदस्य बनाता है और उसे राज्य के संरक्षण का अधिकार दिलाता है तथा उसका उत्तरदायित्व होता है कि वह राज्य द्वारा बनाए गए कानूनों का पालन करें"। केलसन के अनुसार, &

जमानत के आदेश के बाद कैदी को रिहा करने में देरी कानून व्यवस्था का मज़ाक है: सुप्रीम कोर्ट

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यदि किसी कैदी की जमानत अर्ज़ी स्वीकार हो गई है और वह अभी भी जेल में बंद है तो सरकार, प्रशासन की क्या भूमिका बनती है? ऐसे मामलों में जिसमें विचाराधीन कैदियों को जमानत का आदेश अदालत से पारित होने जाने के बावजूद उनकी रिहाई में देरी हो रही है जिसपर सुप्रीम कोर्ट ने गंभीर चिंता जताई है। सुप्रीम कोर्ट के जज जस्टिस डी.वाई. चंद्रचूड़ (SC Judge DY Chandrachud) ने स्पष्ट किया है, "जमानत का आदेश जेलों तक पहुचने में हो रही देरी उचित नहीं है। इस पर आवशयक कार्यवाही होना सुनिश्चित किया जाये। जमानत का आदेश जेलों तक पहुचने में हो रही देरी पर जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा की यह 'बहुत गंभीर कमी' है और कहा है कि इसे 'युद्धस्तर' पर दूर करने की आवशयकता है, उन्होंने ने कहा की हर विचाराधीन कैदी की 'मानव स्वतंत्रता' होती है और इसे नकारा नहीं जा सकता एक कैदी के अधिकारों को नज़रंदाज़ नहीं किया जा सकता। हाल में हुए एक वाक्ये जिसमें अभिनेता शाहरुख खान (Shahrukh Khan) के बेटे आर्यन खान (Aryan Khan) को ड्रग्स केस (Drugs Case) में बेल मिलने के बावजूद एक अतिरिक्त दिन जेल में बिताना पड़ा इसी मुद्दे

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