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क्या सूचना अधिकार अधिनियम 2005 के दायरे में रहकर बीस वर्ष के बाद प्रतिबंधित सूचनाओं को प्राप्त किया जा सकता है?

जानिए किन परिस्थितियों में सूचना अधिकार अधिनियम 2005 बीस वर्ष के बाद प्रतिबंधित सूचनाओं को प्रदान करने की आज्ञा देता है?
know, Under what circumstances after the expiry of 20 years Right to Information Act, 2005 allows to give restricted information's?

धारा 8 की उपधारा 3 का कहना है कि धारा 8 की उपधारा (1) के खंड (क), (ग) और (झ) के उपबंध के अधीन रहते हुए किसी ऐसी घटना, वर्णन या विषय से संबंधित कोई सूचना जो उस तारीख से जिसका धारा 6 के अधीन कोई अनुरोध किया जाता है, 20 वर्ष पूर्व घटित हुई थी या हुआ था, उस धारा के अधीन अनुरोध करने वाले किसी व्यक्ति को उपलब्ध कराई जाएगी। परंतु यह कि जहां उस तारीख के बारे में, जिससे 20 वर्ष की उक्त अवधि को गिना जाता है, कोई प्रश्न पैदा होता है, वहां इस अधिनियम में उसके लिए उपबंधित सामान्य अपीलों के अधीन रहते हुए केंद्र सरकार का निर्णय अंतिम होगा।

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20 वर्ष से अधिक पुरानी सूचना (More Than 20 years Old Information)
धारा 8 की उपधारा (3) में वर्णित प्रावधान धारा 8 की उपधारा (2) में दी गई व्यवस्था को पुनः परिभाषित करते हैं। जहां उपधारा (2) इस अधिनियम में दी गई सभी प्रकार की छूट और गोपनीयता अधिनियम 1923 के प्रावधानों से ऊपर जनहित के बात कहती है वहां उपधारा (3) कुछ विशेष मामलों को उक्त प्रावधान से बाहर ले जाती है। धारा 8 (1) के भाग (क), (ग) और (झ) में प्रदत्त कुछ विशेष विषयों के बारे में वहीं सूचना दी जा सकती है जो आवेदन करने की तिथि से 20 वर्ष से अधिक पुरानी है। यदि उक्त अवधि की गणना में कोई मतभेद हो तो केंद्रीय सरकार को इस बारे में अंतिम निर्णय लेने का अधिकार होगा।

धारा 8 की उपधारा (3) का मुख्य उद्देश्य (Main Object of S.8(3)
इस प्रावधान का मुख्य उद्देश्य भाग (क), (ग) और (झ) में वर्णित महत्वपूर्ण विषयों की गोपनीयता एक सार्थक अवधि तक सुरक्षित रखना है। कालांतर में सूचना की गोपनीयता का महत्व कम हो जाता है और राष्ट्रीय हित पर विपरीत प्रभाव पड़ने की संभावना कम हो जाती है। अतः 20 वर्ष की अवधि के बाद में इन विषयों से संबंधित सूचना दी जा सकती है। परंतु यहां यह वर्णन करना उचित होगा कि उक्त प्रावधान उक्त विषयों के बारे में 20 वर्ष बाद स्वता सूचना प्राप्त करने का अधिकार नहीं देता। उक्त अधिकार आमतौर पर धारा 8 (1) की उपधारा (क), (ग) और (झ) के अंतर्गत उपलब्ध नहीं होगा एवं इन उप धाराओं में दिए गये सभी विषय छूट के दायरे में रहेंगे। परंतु धारा (2) में दिए गए प्रावधान के अनुसार यदि लोक सूचना विशालतम ऐसी सूचना विशालतम जनहित में जारी करना उचित समझता है तो बीस वर्ष की अवधि के बाद ऐसी सूचना दी जा सकती है।

वास्तव में धारा 8 (3) का प्रावधान सूचना के अधिकार को और अधिक उदार बनाता है। जहां धारा 8 (1) में उपलब्ध प्रावधान छूट प्रदान करते हैं वही धारा 8 (3) केवल धारा 8 (1) के उपभाग 8 (क), (ग) और (झ) को छोड़कर शेष की सूचना 20 वर्ष की अवधि बीत जाने के बाद देय बना देती है। केवल उपरोक्त उपभागो को ही समय अवधि के प्रभाव से मुक्त रखा गया है अन्य समय अवधि बीतने के साथ अपवाद की श्रेणी से बाहर आ जाते हैं।

यदि इस प्रावधान के मूल तथ्यों को देखें तो यह पुनः हमें इस बात की याद दिलाता है की धारा 3 में दिया गया सूचना का अधिकार पूर्ण अधिकार है तथा धारा 8 (1) में दिए गए अपवाद केवल जनहित को देखते हुए परिस्थिति जन्य है। अतः समय के साथ ज्यों ही जनहित उन परिस्थितियों से बाहर आ जाता है तो उक्त सूचना भी अपवाद की परिधि से बाहर आ जाती है। अत: 20 वर्ष की समय अवधि बीत जाने के पश्चात वह भाग 8 (क), (ग) और (झ) के अतिरिक्त धारा 8 (1) में दिए गए सभी अपवादों का प्रभाव समाप्त हो जाता है एवं इन अपवादों से सभी सूचनाएं मुक्त हो जाती हैं तथा धारा 3 में दिया गया सूचना का अधिकार प्रभावशाली हो जाता है। अतः समय का प्रभाव सूचना के अधिकार पर सकारात्मक होता है न की नकारात्मक।

धारा 8 (3) के बारे में एक भ्रम की स्थिति यह बन गई है कि जो सूचना 20 वर्ष से अधिक पुरानी है वह नहीं दी जा सकती। परंतु यह स्थिति अधिनियम के प्रावधानों से विपरीत अर्थ प्रकट करती है। यहां अधिनियम बीस वर्ष के बाद में काफी सीमा तक प्रतिबंधित सूचना को भी प्रदान करने की आज्ञा देता है वहीं उक्त प्रावधान का गलत अर्थ निकाल कर 20 वर्ष से पुरानी सूचना देने से इंकार कर दिया जाता है।

केंद्रीय सूचना आयोग ने सत्यनाथम दास गुप्ता बनाम एम. एच. ए. CIC/AT/C/2006/008 में यह स्पष्ट किया है कि धारा 8 (3) केवल धारा 8 (1) के उपभाग 8 (क), (ग) और (झ) को छोड़कर शेष सूचनाओं को 20 वर्ष की अवधि के बीत जाने के बाद देय सूचना की श्रेणी में लाता है। अत: उपरोक्त तीन उपभागों से संबंधित सूचनाओं को छोड़कर शेष सूचना 20 वर्ष के बाद प्रदान की जा सकती है।

केंद्रीय सूचना आयोग ने पुनः राम चंद्र साहू बनाम दिनेश कुमार, CIC/SG/A/2009/000525 में इस विषय पर विचार किया। इस मामले में सूचना अधिकारी ने यह कहकर सूचना देने से मना कर दिया था कि उक्त सूचना 20 वर्ष से अधिक पुरानी है। आयोग ने उक्त निर्णय को निरस्त करते हुए कहा कि धारा 8 (3) की ऐसी व्याख्या इसके मूल अर्थ के विपरीत है। आयोग ने स्पष्ट किया कि 20 वर्ष की अवधि बीत जाने के बाद धारा 8 (1) में दिए गए 10 अपवादों में से केवल 3 अपवाद की छूट के लिए उपलब्ध रहते हैं और तथा शेष 7 अपवाद समय अवधि के बीतने के बाद साथ स्वयं ही समाप्त हो जाते हैं। अतः सूचना की उत्पत्ति के 20 वर्ष की अवधि के पश्चात केवल धारा 8 (1) के उपभाग (क), (ग) और (झ) को छोड़कर शेष सूचनाएं छूट की सीमा से बाहर आ जाती हैं अर्थात इनमें संबंधित सूचनाएं प्रदान की जा सकती हैं।

वास्तव में धारा 8 एक महत्वपूर्ण धारा है। अधिनियम में यह धारा सूचना के अधिकार के अपवाद के रूप में स्थापित की गई है। अधिनियम की संपूर्ण व्यवस्था का मुख्य उद्देश्य नागरिकों को सरकारी कामकाज संबंधी सूचनाओं को उपलब्ध कराना है परंतु जनहित को व्यक्तिगत सूचना के अधिकार से सर्वोच्च मानकर कुछ मामलों को सूचना के अधिकार से बाहर रखा गया है। परंतु यदि धारा 8 को बारीकी से देखा जाए तो इस धारा में वर्णित छूट के बावजूद भी कभी-कभी यथासंभव सूचना देने का प्रयत्न किया जाता है। धारा 8 में वर्णित मामले अति संवेदनशील प्रकृति के हैं परंतु फिर भी संबंधित सूचना अधिकारी विशालतम जनहित में अपवादित सूचना प्रदान कर सकता है।

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