अंतर धार्मिक विवाह करने के लिए किसकी अनुमति ज़रूरी है? क्या कोर्ट मैरिज रजिस्ट्रार विवाह पंजीकरण करने से इनकार कर सकता है? जानिए प्राविधान

सुप्रीम कोर्ट ने महाराष्ट्र सरकार की जनगणना का डाटा मुहैया कराने वाली अर्जी को खारिज कर दिया है। महाराष्ट्र सरकार ने कहा था कि 2011 की जनगणना में जो सामाजिक, आर्थिक और जाति जनगणना एसईसीसी का डाटा है वह मुहैया कराया जाए ताकि नगर निगम चुनाव में ओबीसी को आरक्षण दिया जा सके। जस्टिस ए.एम. खानविलकर और जस्टिस सी.टी. रवि कुमार की पीठ ने कहा कि केंद्र सरकार के हलफनामे में कहा गया है कि एसईसीसी 2011 का डाटा सटीक नहीं है और अनुपयोगी है।
केंद्र की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने पीठ से कहा कि डाटा बिल्कुल विश्वसनीय नहीं है, क्योंकि इसमें कई खामियां पाई गई हैं। केंद्र सरकार ने कहा था कि एसईसीसी का जो डाटा है और जो जनगणना की गई थी। वह पिछड़े वर्गों की गणना के लिए नहीं थी। ऐसे में कास्ट का डाटा सटीक नहीं है और उसमें खामियां हैं।
महाराष्ट्र की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता शेखर नफड़े ने पीठ से कहा कि केंद्र सुप्रीम कोर्ट के सामने यह दावा नहीं कर सकता कि डाटा गलतियों से भरा है क्योंकि सरकार ने एक संसदीय समिति को बताया था कि यह 98.87 % त्रुटि रहित है। पीठ ने याचिका खारिज करते हुए कहा कि राज्य कानून के तहत उपलब्ध अन्य उपायों को अपनाने के लिए स्वतंत्र है। केंद्र ने मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट को बताया था कि सामाजिक आर्थिक और जाति जनगणना एसईसीसी 2011 ओबीसी पर डाटा नहीं है और इसे सार्वजनिक नहीं किया गया क्योंकि इसे त्रुटिपूर्ण पाया गया था। सरकार ने कहा था कि वह ओबीसी के आरक्षण का पूरी तरह से समर्थन करती है, लेकिन यह कवायत संविधान पीठ के फैसले से अनुरूप होगी।
सुप्रीम कोर्ट ने राज्य चुनाव आयोग से कहा है कि वह महाराष्ट्र में स्थानीय निकाय के चुनाव में 27 फ़ीसदी सीटें जो ओबीसी के लिए रिजर्व की गई थी उन्हें जनरल कैटेगरी के लिए नोटिफाई करें ताकि चुनावी प्रक्रिया आगे बढ़ सके। 6 दिसंबर को महाराष्ट्र के लोकल बॉडी चुनाव में ओबीसी आरक्षण के फैसले पर सुप्रीम कोर्ट ने स्टे लगा दिया था। सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि ओबीसी कोटे के लिए एक कमीशन के गठन के बिना और अपर्याप्त प्रतिनिधित्व का डाटा जुटाए बिना ओबीसी आरक्षण लागू नहीं किया जा सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने इसके लिए हफ्ते भर का वक्त दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि हम कहना चाहते हैं कि चुनाव आयोग तुरंत नोटिफिकेशन जारी करें। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अपने आदेश में बदलाव का कोई कारण नहीं है। कोर्ट में अर्जी दाखिल कर महाराष्ट्र सरकार के उस अध्यादेश को चुनौती दी गई है।
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