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37 साल बाद नहीं मिली डिप्टी कलेक्टर की नौकरी हार गये कानूनी लड़ाई!

डिप्टी कलेक्टर के पद पर नियुक्ति के लिए कानूनी लड़ाई आखिरकार 37 साल के बाद सुप्रीम कोर्ट में खत्म हो गई। लेकिन जब यह लड़ाई खतम हुई तो सुप्रीम कोर्ट ने बताया कि मामले में कानूनी लड़ाई लड़ने वाला शख्स 2019 में ही रिटायर हो गया और अब ऐसे में उसे इस पद पर नियुक्ति नहीं दी जा सकती। इस तर्क को मानते हुए सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार की उस अपील को स्वीकार कर लिया जिसमें सरकार द्वारा इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती दी थी।

कब का है मामला?

इलाहाबाद हाई कोर्ट ने 2014 में एक फैसला दिया। मामला कुछ इस प्रकार है कि चुन्नीलाल नाम के एक व्यक्ति को डिप्टी कलेक्टर के पद पर नियुक्त करने को कहा था। लाल डिप्टी ट्रांसपोर्ट कमिश्नर के तौर पर रिटायर हो चुके थे।

सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस एमआर शाह की अगुवाई वाली बेंच ने इस बात पर गौर किया कि हाईकोर्ट का आदेश तक अमल में नहीं आ सकता क्योंकि चुन्नी लाल 2019 में रिटायर हो चुके हैं। ऐसे में उनकी नियुक्ति संभव नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने केस की मेरिट पर कहा कि 2 लोगों को एक पद पर नियुक्त करने के लिए नहीं कहा जा सकता ऐसे में हाईकोर्ट का आदेश खारिज किया जाता है।

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मौजूदा केस के मुताबिक 35 डिप्टी कलेक्टर पद के लिए चयन प्रक्रिया 1985 में शुरू हुई थी। इसके लिए पब्लिक सर्विस कमीशन ने एग्जाम लिया था। 1987 में यूपीएससी (UPSC) ने नियुक्ति की लेकिन 2 पद खाली रह गए थे क्योंकि दो कैंडिडेट नहीं आए। इसके बाद यूपीएससी ने दो अन्य कैंडिडेट दिग्विजय सिंह और चुन्नीलाल की नियुक्ति के नाम भेजे। इसी बीच अजय शंकर पांडे हाई कोर्ट गए और वह कानूनी लड़ाई जीत गए और उन्हें 1989 में डिप्टी कलेक्टर बनाया गया लेकिन बाद में यूपीएससी (UPSC) ने चुन्नी लाल के नाम की सिफारिश को वापस ले लिया इसके बाद चुन्नीलाल ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया था।

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