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Facebook, Twitter, Whatsapp जैसे प्लैटफॉर्मों की मनमानी रोकने को बने क़ानून!!

आज दुनिया भर में सोशल मीडिया का बोलबाला है। दुनिया में सोशल मीडिया का जन्म 20वीं सदी के अंत में हुआ और देखते-देखते 21वीं सदी की शुरुआत में बिना किसी अभिभावक (पैरेंटल कण्ट्रोल) वाला एक बड़ा जनसंचार माध्यम बन गया। जिसपर सरकार, न्यायपालिका जैसी किसी संस्था का कोई नियंत्रण नहीं।

अखबार, पत्रिका आदि जैसे पारंपरिक प्रिंट मीडिया प्लैटफॉर्म की में एक ‘संपादक’ होता है जो तय करता है कि क्या चीज प्रकाशित की जाए और क्या नहीं लेकिन सोशल मीडिया में कोई ‘संपादक’ नहीं होता, इसलिए जिसका जो मन आता है पोस्ट कर देता है। वहीँ 'संपादक' परंपरागत रूप से न सिर्फ निगरानी रखते हैं, बल्कि अपने प्लैटफॉर्म पर किसी शख्स द्वारा लिखी बातों के लिए कानूनी तौर पर जिम्मेदार भी होते हैं। अब बिना संपादक के सोशल मीडिया प्लैटफॉर्म पर प्रकाशित बातों के लिए ऐसे प्लैटफॉर्मों की कोई कानूनी जिम्मेदारी नहीं होने की अवधारणा को मजबूत करने के लिए कुछ कानूनी बदलाव किए गए।

उदाहरण के लिए

  • यूएस कम्युनिकेशंस डिसेंसी एक्ट (US Communications Decency Act 1996) 1996 की धारा 230 यूजर्स द्वारा अपलोड किए गए कंटेंट की कानूनी जिम्मेदारी से सोशल मीडिया प्लैटफॉर्मों को बचाती है।
  • इससे मिलता-जुलता प्रावधान भारतीय सूचना प्रौद्योगिकी कानून, 2000 की धारा 79 में भी है, जो सोशल मीडिया प्लैटफॉर्म को जिम्मेदारी से छूट देता है। यही वजह है कि यहां किसी कानून के उल्लंघन के लिए कंटेंट पोस्ट करने वाले यूजर निजी तौर पर जिम्मेदार होते हैं।

पक्षपात के आरोप भी लगने लगे 

समस्या इन प्लैटफॉर्मों के खिलाफ पक्षपात के आरोपों के साथ शुरू हुई। आज के दौर में ये प्लैटफॉर्म अब सिर्फ मध्यस्थ या बिचौलिए भर नहीं रह गए हैं बल्कि खास तरह की चर्चाओं को बढ़ावा दे रहे हैं लोगों तक अपनी बात रखने का साधन बन गये हैं लेकिन साथ ही अपने अपारदर्शी एल्गोरिदम के आधार पर कुछ चर्चाओं पर रोक लगा रहे हैं।

उदाहरण के लिए

  • अगर ट्विटर की बात की जाए तो यह शैडो बैनिंग, डाउनरैंकिंग, आर्बिट्रेरी सस्पेंशन ऑफ एकाउंट जैसे तरीकों का सहारा लेता है। यह ‘संपादकीय’ काम है। जिसके माध्यम से किसी खास तरह के कंटेंट को प्रसारित होने से रोका जा सकता है 

आज इस मुद्दे को दुनिया भर में उठाया जा रहा है।

  • अक्टूबर 2020 में अमेरिकी सीनेट ने एक ऐसे ही मामले में ट्विटर के सीईओ जैक डोर्सी को तलब किया। जिसमें उनसे खासतौर से पूछा गया कि कुछ ट्वीट क्यों हटा दिए गए, जबकि बाकी को रहने दिया गया।
  • इसी तरह फेसबुक के चेयरमैन मार्क जुकरबर्ग से भी पक्षपात के आरोपों पर जवाब मांगा गया।
  • भारतीय संसद ने भी फरवरी 2019 में जैक डोर्सी को तलब किया था। हालांकि उन्होंने हाजिर होने से इनकार कर दिया और ट्विटर के पब्लिक पॉलिसी प्रमुख कॉलिन क्रोवेल को अपने नुमाइंदे के तौर पर भेजा।

ट्विटर ने ‘फैक्ट-चेक’ की शुरुआत

अब ट्विटर ने ‘फैक्ट-चेक’ की शुरुआत की है। यह भी संपादकीय काम है। इसी के तहत ट्विटर ने कथित कांग्रेसी टूल-किट पर बीजेपी नेताओं के कुछ ट्वीट्स पर मैनिपुलेटेड मीडिया (हेरफेर की गई सूचना) का ठप्पा लगा दिया, जिस पर काफी विवाद हुआ। इसके नतीजे में दिल्ली पुलिस के स्पेशल सेल ने ट्विटर के एमडी मनीष माहेश्वरी को तलब किया और स्पेशल सेल की टीम 24 मई को ट्विटर इंडिया के दो दफ्तरों पर भी पहुंची।

इस साल फरवरी में भारत सरकार ने इन्फॉर्मेशन टेक्नॉलजी रूल्स, 2021 जारी किया था। बड़े सोशल मीडिया प्लैटफॉर्म को नए नियमों का पालन करने के लिए तीन महीने यानी 26 मई, 2021 तक का समय दिया गया था, जिसमें नाकाम रहने पर उन्हें इंटरमीडियरीज या मध्यस्थ की अपनी स्थिति गंवानी होगी। उन्हें भारत के मौजूदा कानूनों के तहत आपराधिक मुकदमे के लिए भी जिम्मेदार ठहराया जा सकता है। शुरुआती विरोध के बाद इन कंपनियों ने 28 मई को गाइडलाइंस की शिकायत निवारण व्यवस्था का मोटे तौर पर पालन किया है, लेकिन वट्सऐप ने ‘संदेश के प्रथम निर्माता की पहचान’ वाले हिस्से को हाईकोर्ट में चुनौती दी है। इतना ही पर्याप्त नहीं है, सरकार ने स्पष्ट किया है कि इन कंपनियों को भारत में अपने कामकाज में पारदर्शी और पक्षपातरहित होना होगा।

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हाल ही में दिल्ली के मुख्यमंत्री के एक ट्वीट पर आपत्ति करते हुए सिंगापुर सरकार ने स्थानीय कानून के तहत ट्विटर और फेसबुक के लिए आदेश जारी किया। सरकार के आदेश पर फौरन अमल करते हुए जहां भी ‘सिंगापुर स्ट्रेन’ का जिक्र था, उसको हटा दिया गया। वहीँ दूसरी ओर, भारत सरकार द्वारा कोरोना वायरस के ‘इंडियन वेरिएंट’ के संदर्भ वाले कंटेंट को हटाने के लिए कहने के बावजूद इस पर अभी तक अमल नहीं किया गया है। ऐसी घटनाएं भारत की छवि और राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा हैं। 28 जनवरी, 2019 को केंद्रीय गृहमंत्री को दिए मांगपत्र में सोशल मीडिया को भारतीय कानूनों के संबंध में ढिलाई के साथ काम करने की इजाजत दिए जाने पर राष्ट्रीय सुरक्षा जोखिमों को लेकर आगाह किया था।

भारत सरकार राष्ट्रीय सुरक्षा के हित में पाबंदी

भारत सरकार राष्ट्रीय सुरक्षा के हित में कुछ चीनी ऐप्स पर पाबंदी लगा चुकी है। लेकिन जानकारों का कहना है फेसबुक, ट्विटर और ऐसे दूसरे सोशल मीडिया पर पाबंदी लगाना ठीक नहीं होगा। इसके प्रतिकूल असर हो सकते हैं। विदेशी स्वामित्व वाले सोशल मीडिया प्लैटफॉर्म्स द्वारा पेश की गई चुनौतियों से निबटने के लिए दोहरे स्तर की रणनीति की जरूरत है।

बड़ा जुर्माना लगाने का सुझाव

सबसे पहले तो बेहतर भारतीय सोशल मीडिया ऐप विकसित करने की जरूरत है, जो नागरिकों की डेटा संप्रभुता और प्राइवेसी को भी सुनिश्चित करेगा। दूसरी बात, कानून के हर उल्लंघन के लिए सोशल मीडिया प्लैटफॉर्मों पर जुर्माना लगाकर भारतीय कानूनों का सख्ती से पालन कराने की जरूरत है। अन्य देशों के ऐसे कई उदाहरण मौजूद हैं। 

साल 2019 में अमेरिका के फेडरल ट्रेड कमिशन ने उपभोक्ताओं के प्राइवेसी अधिकारों का उल्लंघन करने के लिए फेसबुक पर 5 अरब डॉलर जुर्माना लगाया था। 2017 में यूरोपीय यूनियन (ईयू) ने बाजार में प्रभुत्व का दुरुपयोग करने के लिए गूगल पर 2.8 अरब डॉलर जुर्माना लगाया था। अगर वे फिर भी भारतीय कानूनों का पालन नहीं करते हैं, तो सूचना प्रौद्योगिकी कानून, 2000 की धारा 79 के तहत उन्हें दिया संरक्षण हटा लेना चाहिए और उन्हें भारत के दीवानी व फौजदारी कानूनों का सामना करने देना चाहिए जैसा कि अखबारों में प्रकाशित चीजों के लिए संपादक करते हैं। भारत के राष्ट्रीय हित और राष्ट्रीय कानून की संप्रभुता की यही मांग है।

भविष्य को सुरक्षित रखने के लिए कठोर कदम उठाना ज़रूरी

सरकार द्वारा बनाये कानूनों को समुचित पालन करवाना भी एक बड़ी ज़िम्मेदारी है। अगर वे फिर भी भारतीय कानूनों का पालन नहीं करते हैं, तो सूचना प्रौद्योगिकी कानून, 2000 की धारा 79 के तहत उन्हें दिया संरक्षण हटा लेना चाहिए।

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