भ्रष्टाचार (Corruption) व निवारण से संबंधित कानून
वर्तमान में भ्रष्टाचार (Corruption) सर्वत्र और सर्वशक्तिमान हो गया है, मानों भगवान की
जगह ले रहा हो। जहाँ देखो उधर ही भ्रष्टाचार (Corruption) व्याप्त है। कालांतर में ऐसे कई बड़े घोटाले रहे हैं जो चर्चा में रहे। जिनमे से कुछ निम्न हैं
चारा घोटाला
मामले में न्यायालय की टिप्पणी
‘भ्रष्टाचार’ (Corruption) शब्द दो शब्दों ‘भ्रष्ट’ और ‘आचरण’ से बना हुआ है।
अर्थात् भ्रष्ट आचरण ही भ्रष्टाचार है। भ्रष्टाचार (Corruption)आज एक ज्वलंत समस्या है।
सम्पूर्ण विश्व इस समस्या से त्रस्त है। जनसाधारण में अब यह धारणा बन चुकी है कि
सरकारी, गैर-सरकारी एवं
स्वैच्छिक संगठनों में कुछ बिना लिए-दिए काम नहीं बनता। उपहारस्वरूप आज रिश्वत को
सुविधा शुल्क का नाम दे दिया गया है। लोग अपना काम निकलवाने के लिए लोकसेवकों को
भ्रष्ट आचरण करने के लिए उत्प्रेरित करते हैं और इसका शिकार आज वह आदमी बन रहा है, जिसके पास देने
को कुछ भी नहीं है। वर्तमान समय में भ्रष्टाचार एक ज्वलंत मुद्दा बना हुआ है। बाबा
रामदेव, अन्ना हजारे, स्वामी अग्निवेश
तथा ऐसे ही और अन्य समाजसेवी भ्रष्टाचार को जड़ से मिटाने के लिए प्रयासरत हैं।
क्या है इस सम्बन्ध में कानून:
रिश्वत और भ्रष्टाचार के इस रोेग के निदान हेतु समय-समय पर
उपाय किये गये हैं। भारतीय दण्ड संहिता की धारा 161 से 165-क तक में प्रावधान किया गया था। सन् 1947 में भ्रष्टाचार
निवारण अधिनियम पारित किया गया। लेकिन जब इन प्रावधानों से भी भ्रष्टाचार पर लगाम
नहीं लगाई जा सकी, तब 1988 में एक नया
कानून भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 पारित किया गया।
भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 इसमें निम्नलिखित प्रावधान किये गये हैं
(1) अधिनियम की धारा 7 भ्रष्टाचार की
परिभाषा देती है। इस धारा के अनुसार कोई लोक सेवक जो अपने पदीय कार्य के संबंध में
वैध पारिश्रमिक से भिन्न पारितोषण ग्रहण करेेगा, भ्रष्टाचार (रिश्वत लेेने) का दोषी होगा।
(2) अधिनियम की धारा 7, 8, 9, 10, 11 और 12 भ्रष्टाचार से
संबंधित विभिन्न अपराधों के बारे मे दण्ड का प्रावधान करती है, जिसके तहत रिश्वत
लेने वाले और रिश्वत देने वाले दोनों के लिए ही दण्ड का प्रावधान है। इसमें कम से
कम छः माह के कारावास से दण्डित किया जा सकेगा, जिसकी अवधि सात वर्ष तक की भी हो सकती है और जुर्माने से भी
दण्डित किया जाएगा।
(3) अधिनियम की धारा 3 भ्रष्टाचार (Corruption) के
मामलों की सुनवाई के लिए विशेष न्यायालय के गठन का प्रावधान करती है, जिससे मामलों की
सुनवाई त्वरित हो सके और अपराधी को जल्द से जल्द न्याय मिल सके।
(4) धारा 12 रिश्वत देने को
अपराध बनाती है। जिसके लिए अधिकतम 7 वर्ष तक कि सज़ा का प्रावधान है।
अधिनियम की धारा 19 प्रावधान करती है कि किसी लोक सेवक को तब तक अभियोजित नहीं
किया जाएगा, जब तक कि सक्षम
प्राधिकारी से अनुमति न मिल जाय।
इस संबंध में वर्तमान में 2जी स्पेक्ट्रम घोटाले का मामला चर्चा में रहा, जिसमें ए- राजा
को अभियोजित किये जाने के लिए अनुमति माँगी गई थी, लेकिन अनुमति देने में 16 महीने का समय लग
गया। धारा 19 में समय-सीमा का
प्रावधान नहीं है कि कितने समय के भीतर ऐसी अनुमति दी जानी चाहिए, लेकिन उक्त मामले
में माननीय उच्चतम न्यायालय ने कड़ा रुख अपनाते हुए केन्द्र सरकार को हिदायत दी कि
भ्रष्टाचार के मामलों में अनुमति अधिकतम तीन महीने के भीतर दे दी जानी चाहिए। यदि
अटॉर्नी जनरल या एडव्होकेट जनरल से सलाह लेनी हो तो एक महीने का अतिरिक्त समय लिया
जा सकता है। यह मामला भ्रष्टाचार के निवारण में मील का पत्थर साबित हो रहा है।
माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने विभिन्न मामलों में समय-समय पर
न्यायिक निर्णय के माध्यम से भ्रष्टाचार के निवारण की दिशा में पहल की है। मधुकर
भास्कर राव जोशी बनाम महाराष्ट्र राज्य के मामले में न्यायालय ने व्यवस्था दी कि
मात्र विचारण के लम्बे समय तक चलने के आधार पर रिश्वत एवं भ्रष्टाचार के मामलों
में सजा कम नहीं की जानी चाहिए।
दूसरी तरफ निर्दोष एवं ईमानदार लोक सेवकों के हितों की
रक्षा करते हुए महेन्द्रलाल दास बनाम बिहार राज्य तथा सीता हेमचंद्र बनाम
महाराष्ट्र राज्य के मामलों में उच्चतम न्यायालय द्वारा यह स्पष्ट रूप से कहा गया
कि जहाँ किसी लोक सेवक के विरुद्ध रिश्वत अथवा भ्रष्टाचार के पर्याप्त साक्ष्य
नहीं हों अर्थात् वह निर्दोष व ईमानदार हो, वहाँ ऐसे लोक सेवक को अभियोजित किया जाना न्यायोचित नहीं
है।
उपरोक्त न्याय निर्णयों एवं विधिक प्रावधानों को देखते हुए
स्पष्ट है कि विधायिका और न्यायपालिका के द्वारा भ्रष्टाचार (Corruption) को रोकने के लिए
पर्याप्त उपाय समय-समय पर किये गये हैं। जरूरत है तो आम जनता के जागने की, जागरूक होने की
और उसे मिटाने के लिए दृढ़ संकल्पित होकर आगे बढ़ने की।
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