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सत्यमेव जयते!

बिल्‍डर या प्रमोटर मकान/फ्लैट/प्लाट आदि पर समय से कब्‍जा न दे तो क्या करें?

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हर कोई अपने घर में रहना चाहता है। किराए पर रहकर ज़िन्दगी नहीं कटती ये सब जानते हैं और पूरी ज़िन्दगी किराये में रहकर कोई खुश नहीं है। यही कारण लोग अपनी ज़िन्दगी में एक अदद घर की चाहत रखते हैं। इसीलिए शहरों में हर समय घरों की मांग बनी रहती है। पहले लोग ज़मीन लेकर खुद ही उस पर घर का निर्माण करते थे। लेकिन, अब बदलते वक़्त में ऐसा नहीं है बड़े शहरों में लोग अब बिल्‍डरों और रियल एस्‍टेट कंपनियों द्वारा बने घर या फ़्लैट लेते हैं। लेकिन, बहुत बार ऐसा होता है कि किसी बिल्‍डर समय पर अपना प्रोजेक्‍ट पूरा नहीं कर पाता और घर बुक कराने वालों को उनके फ्लैट का कब्‍जा नहीं मिल पाता। उनका पैसा कई सालों के लिए अटक जाता है और बिल्‍डर उन्‍हें घर या पैसे देने की बजाय केवल आश्‍वासन ही देता रहता है। अगर आपके साथ भी यह हुआ है तो अब आपको बिल्‍डर या प्रमोटर के आश्‍वासनों के सहारे नहीं रहना है या फिर हाथ पर हाथ रखकर बैठने की जरूरत नहीं है। अब आप अपना घर समय से लेने के लिए बिल्डर या प्रमोटर की शिकायत दर्ज़ करवा सकते हैं जिससे की आपको अपना घर समय से मिल सके। रेरा (RERA) का क्या काम है? वर्ष 2016 में रियल एस्टेट क्षेत्र के

वसीयत करने से पहले संपत्ति धारक की मृत्यु हो जाने पर संपत्ति पर किसका अधिकार होगा है?

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पैतृक संपत्ति क्या होती है पिता के पिता द्वारा प्राप्त सम्पति को पैतृक संपत्ति को कहा जाता है। जो किसी व्यक्ति को उत्तराधिकार में प्राप्त होती है। ऐसी संपत्ति उसके द्वारा अर्जित नहीं की जाती या फिर उसे वसीयत नहीं की जाती बल्कि क़ानूनन उसे उत्तराधिकार के माध्यम से उसे प्राप्त होती है उसे पैतृक संपत्ति कहा जाता है। क्या पैतृक संपत्ति को बेचा जा सकता है? अधिनियम के अनुसार कोई व्यक्ति चल-अचल संपत्ति के रूप में प्राप्त पैतृक संपत्ति को उस अवस्था में बेच सकता है जब उस पुत्र और पौत्र के हिस्से में कर्ज चुकाने का दायित्व हो लेकिन यह क़र्ज़ भी पैत्रक होना चाहिए। कर्ज किसी अनैतिक अथवा अवैध कार्य के जरिए पैदा ना हुआ हो। पैत्रक सम्पति को कर चुकाने के लिए बेचा जा सकता है। संपत्ति पर बंटवारे पर पोते-पोती के क्या अधिकार है? दादा अपनी संपत्ति किसी भी व्यक्ति को दे सकते हैं इसके लिए वह पूर्ण स्वतंत्र होते हैं। यदि किसी कारण वश वसीयत करने से पहले मर जाते हैं तब उनकी सम्पति पर केवल उनकी पत्नी, पुत्र व बेटी को ही संपत्ति पर अधिकार होगा। मृतक की पत्नी, पुत्र और पुत्री को विरासत में मिली संपत्तियों को उनकी निज

जानिए दाखिल खारिज़ क्यों ज़रूरी है और नहीं होने पर क्या नुकसान हो सकतें हैं?

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ऑनलाइन आवेदन दाखिल-खारिज करते समय आवश्यक कागजात क्या है? यदि आप दाखिल-खारिज के लिए ऑनलाइन आवेदन करना चाहते हैं तो इसके लिए आपको ज़मीन के सम्बन्ध जानकारियों को ऑनलाइन आवेदन करते समय भरना होगा। जैसे ज़मीन का बैनामा किस तिथि को कराया गया था। किस निबंधन कार्यालय में कराया गया था। किस क्रम संख्या व प्रपत्र पर आपका बैनामा दर्ज है। इसके बाद आप जरूरी जानकारी ऑनलाइन फॉर्म में भरने के बाद सबमिट कर देंगे। लेकिन याद रखें अगर उत्तर प्रदेश में दाखिल-खारिज का आवेदन करना चाहते हैं तो 2012 के बाद कराए गए बैनामों का ही दाखिल खारिज ऑनलाइन संभव है। इसके पहले के दाखिल खारिज कराने के लिए आपको संबंधित तहसील में जाकर आवेदन करना होगा। ज़मीन खरीदने के कितने दिन बाद दाखिल-खारिज करवाना होता है? अमूमन दाखिल खारिज कराने की प्रक्रिया बैनामा के तुरंत बाद कराई जा सकती है। लेकिन दाखिल खारिज होने में लगभग 45 दिन का समय लग जाता है। यह संबंधित कार्यालयों में अलग-अलग हो सकते हैं। क्योंकि दाखिल-खारिज की प्रक्रिया में लेखपाल व राजस्व निरीक्षक के रिपोर्ट दाखिल होने के बाद ही नामांतरण का आदेश किया जाता है। इसलिए इस प्रक्रिया

बहू के गहने रखना क्रूरता नहीं, यह घरेलु हिंसा या उत्पीड़न का हिस्सा नहीं हो सकता

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एक सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि सुरक्षा के लिए बहू के गहनों को अपने पास रखना भारतीय दंड संहिता की धारा 498A (दहेज प्रताड़ना) के तहत क्रूरता नहीं माना जा सकता।  सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस इंदिरा बनर्जी की अगुवाई वाली बेंच ने यह भी कहा है कि अपने बालिग़ भाई को नियंत्रित न कर पाना, अलग रहना और टकराव से बचने के लिए भाभी से तालमेल बनाए रखने की सलाह देना भी दहेज प्रताड़ना की श्रेणी में नहीं आता है। यह टिप्पणियां सुप्रीम कोर्ट ने वैवाहिक विवाद के एक मामले में पति की ओर से दाखिल की गई याचिका पर सुनवाई के दौरान की। शीर्ष अदालत में यह याचिका पंजाब हरियाणा हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ दायर की गई है। वैवाहिक विवाद के इस मामले में महिला के पति ने पंजाब हरियाणा हाई कोर्ट में याचिका दाखिल की थी कि वह यूनाइटेड स्टेट में नौकरी करता है और वापस जाना चाहता है ताकि अपना जीवन यापन कर सके। हाई कोर्ट ने याचिकाकर्ता को बिना पूर्व अनुमति के देश छोड़कर जाने की इजाजत देने से इनकार कर दिया था। क्योंकि वह दहेज प्रताड़ना और आईपीसी (IPC) की अन्य धाराओं के तहत आरोपित है। पति पर लगाए गए आरोपों में महिला ने कहा

प्रॉपर्टी लेने के लिए किसी से सलाह लेने की क्या ज़रुरत है?

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एक संपत्ति सलाहकार से सुझाव लेने का क्या फायदा है? संपत्ति खरीदने या बेचने के लिए आमतौर पर बहुत अधिक कागजी कार्रवाई की आवश्यकता होती है और संपत्ति से जुड़ी कानून की वैधता और संपत्ति की हिस्ट्री के बारे में पता लगाना होता है। जो संपत्ति में निवेश करने से पहले बहुत ही आवश्यक है। यह प्रबंधन करने के लिए एक ज़रूरी कदम है, विशेष रूप से जब आपको एक उचित दर पर घर खरीदने या एक बड़ी रक़म के निवेश से शुरू होकर काम करना हो। विशेष रूप से यदि आप किसी अन्य शहर या राज्य में निवेश करने जा रहे हैं, तो नए सौदे के लिए बातचीत परेशान करने वाली या भ्रमित करने वाली हो सकती है इसलिए आजकल व्यक्ति घर खरीदने या बेचने की कानूनी प्रक्रियाओं के माध्यम से उनकी मदद लेते हैं  वहीँ दूसरी ओर लोग नियमित रूप से एक विशेषज्ञ संपत्ति सॉलिसिटर कॉर्क (an expert Property Solicitor Cork) को नियुक्त करते हैं। यह जानने के लिए यहां पढ़ें कि कैसे एक सम्पत्ति एवं निवेश सलाहकार को काम पर रखने से आपकी संपत्ति को खरीदने या बेचने में मदद मिल सकती है। कानूनी विशेषज्ञता और अनुभव एक सम्पत्ति एवं निवेश सलाहकार ऐसे व्यक्ति होता है जो वैध संपत्ति मा

अगर यह काम हुआ तो पुश्तैनी ज़मीन जायदाद से हाथ धोना पड़ सकता है!

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हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम 1956 के अनुसार उन व्यक्तियों का वर्णन कीजिए जो पैतृक संपत्ति पाने के अयोग्य हैं? अयोग्यता (Disqualification of Hindu) हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम 1956 की धारा 24 से लेकर 29 तक में कुछ आधारों का उल्लेख किया गया है। जिन पर कि एक व्यक्ति पत्रक संपत्ति पाने के अयोग्य है। ये निर्योग्यतायें निम्नलिखित हैं- पुनर्विवाह से उत्पन्न निर्योग्यता (धारा 24) हत्या का अपराध (धारा 25) धर्म परिवर्तन से उत्पन्न निर्योग्यता (धारा 26) पुनर्विवाह पुनर्विवाह से उत्पन्न निर्योग्यता धारा 24 के अंतर्गत इस निर्योग्यता के विषय में उल्लेख किया गया है। यह धारा उपबंधित करती है- "जो कोई दायद पूर्व मृत पुत्र की विधवा पूर्व मृत पुत्र के पुत्र की विधवा या भाई की विधवा के रूप में निर्वसीय से नातेदारी रखती है? यदि उत्तराधिकार के सूत्रपात होने की तिथि में पुन: विवाह कर लेती है। तो वह निर्वसीयत की संपत्ति ऐसी विधवा के रूप में उत्तराधिकार प्राप्त करने की हकदार नहीं होगी।" इस धारा से स्पष्ट है कि किसी व्यक्ति की विधवा पुनर्विवाह (Remarriage) कर लेने के पश्चात उसकी विधवा नहीं रह जाती और उस

ज़मीन-जायदाद के बटवारे में ये क़ानून शायद आप नहीं जानते होंगे?

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मिताक्षरा विधि के अनुसार सम्पत्ति (property) का बटवारा कैसे होता हैं? विभाजन का अर्थ मिताक्षरा विधि के अनुसार विभाजन के दो विशिष्ट अर्थ होते हैं- 1-" पारिवारिक संपत्ति के विभिन्न सदस्यों के अनिश्चित हितों को निर्दिष्ट अंशो में समायोजन करना"। 2- " संयुक्त प्रास्थिति का पृथक्करण तथा उसके विधिक परिणाम।" जतरु प्रधान बनाम अंबिका जो. के वाद में विभाजन की परिभाषा इस प्रकार दी गई है-" संयुक्त परिवार की संपत्ति में सहदायिकी के चल हितों का निर्दिष्ट भागों में प्रस्फुटन।" मयूख के अनुसार " विभाजन केवल एक प्रकार की मन: स्थिति है जिसमें विभाजन होने का आशय ही विभाजन है। यह एक विधि है जिसके द्वारा संयुक्त अथवा पुनः संयुक्त परिवार का कोई सदस्य पृथक हो जाता है तथा सह भागीदार नहीं रह जाता है। विभाजन के लिए किसी अन्य सदस्य की अनुमति अथवा किसी न्यायालय की डिक्री अथवा कोई अन्य लेखा आवश्यक नहीं है।" दाय भाग से पिता संपत्ति का स्वामी होता है अतः जब तक वह जीवित है उसके पुत्र गण संपत्ति का विभाजन नहीं करा सकते। पिता की मृत्यु के बाद ही पुत्र गण विभाजन कर सकते हैं

पिता के द्वारा लिया गया कर्ज़ा बेटा चुकाएगा! जान लो यह क़ानून

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हिंदू विधि के अनुसार लोन (ऋण) का भुगतान करने के लिए जो दायित्व है वह पुत्र को क्यों वहन करना होगा - पढ़िए यह रिपोर्ट- सामान्यता लोन (ऋण ) से तात्पर्य उस निर्धारित अथवा निश्चित धनराशि से होता है जिसकी अदायगी के लिए कोई व्यक्ति उत्तरदाई होता है। इसके अंतर्गत किसी से उधार लिया गया धन, कोई धनराशि अदा करने की डिक्री अथवा विधि द्वारा मान्य अन्य किसी प्रकार की डिक्री आती है। दीवानी प्रक्रिया संहिता 1908 की धारा 52 और 53 के अंतर्गत पता अथवा पितामह के ऋणों के हेतु पत्र उत्तराधिकारी के रूप में मृत द्वारा छोड़ी गई परिसंपत्ति तक उत्तरदाई होता है। परंतु हिंदू विधि के अंतर्गत पुत्रों तथा पौत्रों पर पिता अथवा पितामह द्वारा लिए गए ऋणों को अदा करने का धार्मिक तथा नैतिक दायित्व भी होता है। चूँकि पिता या कर्ता ऋण परिवार की आवश्यकता तथा संपत्ति के प्रलाभ के लिए लेता है। अतः परिवार का प्रत्येक सदस्य इस ऋण को चुकाने के लिए बाध्य है क्योंकि वह दाय में संपत्ति प्राप्त करता है। संयुक्त परिवार में यदि पिता ने ऋण अपने स्वयं के लाभ के लिए लिया है तो पुत्रों का दायित्व है कि वह ऋण का भुगतान करें। परंतु ऐसा ऋण अवै

अब गर्ल्स PG में कौन हो सकेगा किरायेदार, तय करेगी सरकार

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अभी तक आप गुप चुप तरीके से अपने निजी मकान या फ्लैट में किसी भी किराये दार रख लेते थे और मोटी रकम वसूल कर मुनाफ़ा कमाते थे। मगर अब ऐसा नहीं हो सकेगा अब किरायेदार रखने से पहले सरकार से अनुमति लेनी होगी और बताना होगा की कब तक के लिए किरायेदार रख रहें हैं। अब उत्तर प्रदेश के किसी भी शहर में बिना लिखित एग्रीमेंट के किराएदार नहीं रखे जा सकेंगे। अब किराएदार रखने के लिए रेंट अथॉरिटी से अनुमति लेनी होगी। रेंट अथॉरिटी हर किराएदार को एक यूनिक आईडेंटिफिकेशन नंबर जारी करेगा। इस नए प्रावधान से रेंट एग्रीमेंट में फर्जीवाड़ा नहीं हो सकेगा। इस आदेश को लागू करने के लिए एक ट्रिब्यूनल की व्यवस्था की जाएगी। यह ट्रिब्यूनल लागू करने के लिए रेंट अथॉरिटी डीएम जिले का नियुक्त करेंगे। इस ट्रिब्यूनल में डिप्टी कलेक्टर के स्तर का ऑफिसर होगा। रेंट अथॉरिटी के फैसले से असहमत होने पर कोर्ट में अपील की जा सकेगी। सरकार की अनुमति से डीएम स्तर के अधिकारी को इसकी रिपोर्ट करेंगे। सरकार हाईकोर्ट की सहमति से हर जिले में कम से कम एडीजे(ADJ) स्तर के कोर्ट अधिसूचित कर सकेगी। अध्यादेश लागू होने के 3 माह के भीतर को किराएदार की सूचन

कैसे मिटेगा भ्रष्टाचार | क्या है इस सम्बन्ध में कानून (Corruption)

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भ्रष्टाचार ( Corruption)  व निवारण से संबंधित कानून वर्तमान में भ्रष्टाचार  ( Corruption)  सर्वत्र और सर्वशक्तिमान हो गया है , मानों भगवान की जगह ले रहा हो। जहाँ देखो उधर ही  भ्रष्टाचार   ( Corruption)  व्याप्त है। कालांतर में ऐसे कई बड़े घोटाले रहे हैं जो चर्चा में रहे। जिनमे से कुछ निम्न हैं  चारा घोटाला मामले में न्यायालय की टिप्पणी ‘ भ्रष्टाचार ’ ( Corruption)   शब्द दो शब्दों ‘ भ्रष्ट ’ और  ‘ आचरण ’ से बना हुआ है। अर्थात् भ्रष्ट आचरण ही भ्रष्टाचार है । भ्रष्टाचार  ( Corruption) आज एक ज्वलंत समस्या है। सम्पूर्ण विश्व इस समस्या से त्रस्त है। जनसाधारण में अब यह धारणा बन चुकी है कि सरकारी , गैर-सरकारी एवं स्वैच्छिक संगठनों में कुछ बिना लिए-दिए काम नहीं बनता। उपहारस्वरूप आज रिश्वत को सुविधा शुल्क का नाम दे दिया गया है। लोग अपना काम निकलवाने के लिए लोकसेवकों को भ्रष्ट आचरण करने के लिए उत्प्रेरित करते हैं और इसका शिकार आज वह आदमी बन रहा है , जिसके पास देने को कुछ भी नहीं है। वर्तमान समय में भ्रष्टाचार एक ज्वलंत मुद्दा बना हुआ है। बाबा रामदेव , अन्ना हजारे , स्वामी अग्निवेश त

ऑनलाइन होगा जमीनों का आवंटन, जल्द तैयार होगा लैंड बैंक

ऑनलाइन होगा जमीनों का आवंटन, जल्द तैयार होगा लैंड बैंक उत्तर प्रदेश में निवेश करने वाले निवेशकों को आसानी से जमीन उपलब्ध हो सके। इसके लिए जमीन आवंटन से लेकर अन्य व्यवस्थाएं ऑनलाइन होंगी। इंडस्ट्री विभाग एक ऐसा सिस्टम तैयार कर रहा है। जिसके माध्यम से निवेशकों को कहां जमीन खाली है, जमीन की क्या कीमत है, उस इलाके में जमीन लेने पर राज्य सरकार की तरफ से क्या सुविधाएं दी जाएंगी। इन सभी बातों की जानकारी एक क्लिक पर ऑनलाइन मिल सकेगी। यह सिस्टम रियल टाइम डाटा के साथ होगा। जल्द ही इंडस्ट्री विभाग के द्वारा इस नई व्यवस्था का शासनादेश जारी कर दिया जाएगा। इसमें इंडस्ट्री विभाग के हर एक लैंडबैंक की जानकारी होगी। इंडस्ट्री विभाग, जो सिस्टम बनाने जा रहा है उसमें हर एक औद्योगिक विकास प्राधिकरण में खाली जमीनों की जानकारी होगी। साइट पर जमीनों से संबंधित जानकारी और जीआईएस मैपिंग और रियल टाइम डेटा पर आधारित होगी। इसका फायदा यह होगा कि अगर कोई निवेशक किसी औद्योगिक विकास प्राधिकरण की कोई जमीन खरीदता है, तो वह अपने आप उस साइट से हट जाएगी। ताकि किसी दूसरे निवेशकको वह जमीन न दिखाई दे। जमीन की उपलब्धत

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