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सिर्फ़ दाखिल-खारिज से ज़मीन पर मालिकाना हक़ नहीं मिल जाता है, बल्कि ये काम करना होगा तभी ज़मीन के असली मालिक बन सकतें है!

क्या संपत्ति के दाखिल-खारिज से मालिकाना हक़ मिल जाता है?

उच्चतम न्यायलय (Supreme Court of India) ने संपत्ति के मालिकाना हक को लेकर एक बड़ा निर्णय दिया है। उच्चतम न्यायलय (Supreme Court of India) ने एक बार पुनः स्पष्ट करते हुए कहा कि रेवेन्यू रिकॉर्ड में संपत्ति के दाखिल-खारिज (Mutation of Property) से न तो संपत्ति का मालिकाना हक मिल जाता है और न ही समाप्त होता है। न्यायमूर्ति एमआर शाह और न्यायमूर्ति अनिरुद्ध बोस की बेंच ने कहा कि राजस्व अभिलेखों (Revenue Record) में सिर्फ एंट्री भर से उस व्यक्ति को संपत्ति का हक नहीं मिल जाता जिसका नाम रेवेन्यू रिकॉर्ड में दर्ज है। बेंच ने कहा कि रेवेन्यू रिकॉर्ड या जमाबंदी में एंट्री का केवल ‘वित्तीय उद्देश्य’ होता है। जैसे, भू-राजस्व का भुगतान। ऐसी एंट्री के आधार पर कोई मालिकाना हक नहीं मिल जाता है।

ज़मीन पर मालिकाना हक कौन दिला सकता है?

सुप्रीम कोर्ट ने स्पस्ट किया की ज़मीन पर मालिकाना हक़ केवल सिविल कोर्ट तय कर सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने साथ ही कहा कि, सम्पत्ति के मालिकाना हक का निर्धारण एक सक्षम और अधिकार क्षेत्र वाला सिविल कोर्ट ही कर सकता है। कोर्ट ने कहा कि, जब संपत्ति के मालिकाना हक को लेकर किसी भी तरह का कोई विवाद पैदा हो तो दावा करने वाले सभी पक्षों को सिविल कोर्ट में जाना चाहिए। यदि कोई पार्टी वसियत के आधार पर दाखिल-खारिज (खतौनी) में नाम दर्ज कराने की मांग करता है तो उसे वसियत को लेकर इस अधिकार क्षेत्र से संबंधित सिविल कोर्ट में जाना चाहिए। चूँकि संपत्ति का मालिकाना हक केवल एक सक्षम सिविल कोर्ट की तरफ से ही तय किया जा सकता है।

क्या सिविल कोर्ट में दाखिल खारिज़ करवाई जा सकती है? 

सिविल कोर्ट में दाखिल खारिज़ नहीं करवाई जा सकती है। सिविल कोर्ट में संपत्ति को लेकर जो भी विवाद है उसका अधिकार तय कराना होगा। इसके बाद सिविल कोर्ट के फैसले के मुताबिक सम्बंधित तहसील से दाखिल-खारिज में जरुरी और सही एंट्री करवाई जा सकती है। अदालत ने स्पष्ट किया कि कानून के तय प्रस्ताव के अनुसार, यदि संपत्ति के मालिकाना हक के संबंध में कोई विवाद है या विशेष रूप से जब वसीयत के आधार पर दाखिल-खारिज की मांग की जाती है, तो पार्टी जो अधिकार के आधार पर टाइटल/अधिकार का दावा कर रही है वसीयत को लेकर उपयुक्त सिविल कोर्ट/अदालत का रुख करना होगा। सिविल कोर्ट में अपने मालिकाना अधिकारों को तय कराना होगा। उसके बाद ही सिविल कोर्ट के समक्ष निर्णय के आधार पर तहसील में आवश्यक दाखिल खारिज की एंट्री की जा सकती है।

दाखिल-खारिज किसे कहते हैं?

राजस्व अभिलेखों (Revenue Records) में एक व्यक्ति के नाम से दूसरे व्यक्ति नाम को किसी संपत्ति पर दर्ज़ करने की प्रक्रिया नामान्तरण या हस्तांतरण कहलाती है। इसी प्रक्रिया को दाखिल खारिज या म्यूटेशन कहते है। किसी भी संपत्ति की खरीद या बिक्री के बाद उस संपत्ति का दाखिल-खारिज कराना बहुत जरूरी हो जाता है।

दाखिल-खारिज कैसे करवाया जाता है

दाखिल-खारिज के लिए राजस्व अधिनियम के अंतर्गत धारा 34 के अधीन आवेदन किया जा सकता है। दाखिल-खारिज (Mutation of Property) करने के लिए अपने अंचल (क्षेत्र) के तहसील में आवेदन करना होता है। आवेदन में ज़मीन या सम्पति के विक्रेता तथा क्रेता का नाम तथा पूरा पता साथ में जमीन की सभी जानकारी जैसे – जमीन का रकबा(एरिया), लोकेशन, और संबंधित कागजात की जानकारी देनी होती है। इसके बाद निर्धारित प्रपत्र में आवेदन को ज़मा करें। फार्म जमा करने के बाद आपको सभी मूल प्रपत्र प्रस्तुत करने का समय दिया जायेगा। जिसे निर्धारित तिथि पर  तहसील दार के समक्ष प्रस्तुत करना होता है। यदि प्रपत्र और लेखपाल के बयान से तहसीलदार संतुस्ट हो जाता है तो आपका नाम राजस्व अभिलेखों (Revenue Records) में स्थाई रूप से दर्ज़ कर दिया जाता है। इसके बाद ही कानूनी रूप से जमीन का क्रेता (खरीदार) उस जमीन का मालिक बनता है। दाखिल खारिज के बाद ही किसी संपत्ति के मालिक के रूप में किसी व्यक्ति का नाम रिकॉर्ड में दर्ज़ किया जाता है।

क्या दाखिल-खारिज ज़मीन पर मालिकाना हक तय करने का आधार है?

वर्ष 2019 में भी माननीय उच्चतम न्यायलय ने कहा की दाखिल-खारिज मालिकाना हक तय करने का आधार नहीं है। सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने एक फैसले में व्यवस्था दी, कि राजस्व अभिलेखों (Revenue Records) में किया गया दाखिल-खारिज (Mutation of Property) संपत्ति में न तो टाइटल का सृजन करता है, न ही इस एंट्री से यह समाप्त होता है। कोर्ट ने कहा कि यह मालिकाना हक तय करने का आधार नहीं हो सकता।

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दाखिल-खारिज से जुड़ा सुप्रीम कोर्ट का फैसला 

न्यायमूर्ति ए.एम. सप्रे की पीठ ने यह आदेश, बंबई हाई कोर्ट के आदेश को बरकारार रखते हुए दिया। मामला एक संपत्ति विवाद का है। जिसमें एक पक्ष ने यह दावा किया था कि राजस्व अभिलेखों (Revenue Records) में उनके नाम से दाखिल-खारिज है। इसलिए भूमि पर अधिकार उनका ही है। कोर्ट ने कहा कि रिकार्ड में दाखिल-खारिज का इतना ही महत्व है कि जिसके नाम वह एंट्री है उससे भूमि का राजस्व वसूला जाए। इस रिकार्ड का और कोई कानूनी महत्व नहीं है। यह कहते हुए कोर्ट ने बंबई हाई कोर्ट के फैसले को चुनौती देने वाली याचिका खारिज कर दी। पीठ ने कहा कि यह मामला ट्रायल कोर्ट में विचाराधीन है और कोर्ट इस भूमि के मालिकाना हक के मामले का निर्धारण सम्बंधित कोर्ट करेगा। साथ ही स्पष्ट करते हैं कि राजस्व अभिलेखों (Revenue Records) की एंट्री भूमि का टाइटल नहीं दे देती। यह राजस्व का भुगतान करने के लिए ही इस्तेमाल की जाती है।

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