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कानून से जुड़ी ख़बर!
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अगर समलैंगिकता एक बीमारी है तो क़ानून किन प्रावधानों के तहत एक समलैंगिक कपल को विवाह करने की अनुमति देता है?
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अनैतिक संबंधों से जुड़े कई अपराध हैं जो व्यापक के आभाव में उलझा सकते हैं। समलैंगिकता एवं अप्राकृतिक यौन संबंध को IPC (भारतीय दंड सहिंता) की धारा-377 में अपराध घोषित किया गया है। बावजूद इसके समलैंगिक जोड़े विवाह करते मिल जायेंगे। आइये जानते है कि क्या वाकई में समलैंगिकता एक अपराध है या यह एक बीमारी है।
व्यभिचार (विवाहेतर सम्बन्ध):-
भारतीय दंड संहिता की धारा 497 में कहा गया है
"जो कोई भी व्यक्ति किसी ऐसी महिला के साथ यौन संबंध (सेक्स रिलेशन) रखता है जो, किसी अन्य व्यक्ति की पत्नी है, जिससे वह विश्वस रखने का कारण रखता है अर्थात परिचित हो, उसके पति की सहमति के बिना वह पुरुष उसके साथ संभोग करता है, ऐसा संभोग जो बलात्कार के अपराध की श्रेणी में नहीं आता है, व्यभिचार के अपराध का दोषी है" लेकिन ऐसे मामले में पत्नी दोषी नहीं होगी।
व्यभिचार का वास्तविक दोषी कौन होता है?
इस धारा में महिला को अपराध की शिकार और अपने पति की संपत्ति के रूप में माना गया है। इस धारा के अनुसार केवल पुरुष ही व्यभिचार का दोषी हो सकता है महिला नहीं। लेकिन इसी धारा के अधीन यह अपराध नहीं था कि यदि कोई पुरुष अपनी पत्नी की सहमति प्राप्त करने के बाद किसी अन्य महिला के साथ यौन संबंध रखता है।
कोर्ट के फैसले के बाद क्या होगा रूख़?
व्यभिचार (अवैध सबंध) तलाक का आधार हो सकता है लेकिन यह अब एक आपराधिक अपराध नहीं है। जिसमें 5 साल तक की जेल की सजा है व्यभिचार को अपराध बनाना अपराध है। इसका सीधा सा मतलब होगा दुखी लोगों को दंडित करना। कोई भी कानून जो एक सभ्य समाज में महिलाओं की व्यक्तिगत गरिमा और समानता को ठेस पहुंचाता है। संविधान के प्रकोप को आमंत्रित करता है वह दूषित है।
सीजेआई ने कहा की प्रत्यक्ष रूप से, यौन व्यवहार को पहचानने के लिए समाज में नैतिकता के दो मानक हैं। एक सेट अपनी महिला सदस्यों के लिए और दूसरा पुरुषों के लिए। एक सेट जो महिलाओं को पवित्र और पुण्य के अवतार के रूप में मानता है, वही समाज उन पर उग्र हमले के अधीन करने में कोई दिक्कत नहीं है जैसे बलात्कार, सम्मान हत्याएं, लिंग निर्धारण और शिशुहत्या आदि। हालांकि व्यभिचार अब अपराध नहीं है, अगर कोई पीड़ित पति साथी (पत्नी) के व्यभिचार के कारण आत्महत्या करता है, तो इसे आत्महत्या के लिए उकसाने के रूप में माना जा सकता है।
समलैंगिकता एवं समलैंगिक विवाह:-
समलैंगिकता से जुड़े मुद्दे पर कोर्ट ने क्या कहा?
समलैंगिकता एवं अप्राकृतिक यौन संबंध को अपराध बताने वाली IPC (भारतीय दंड सहिंता) की धारा-377 पर सुप्रीम कोर्ट फिर से विचार करेगा। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि सुप्रीम कोर्ट के वर्ष 2013 के फैसले पर फिर से विचार करने की जरूरत है क्योंकि हमें लगता है कि इसमें संवैधानिक मुद्दे जुड़े हुए हैं। दो सामान लिंग वयस्कों (लड़का-लड़का अथवा लड़की-लड़की) के बीच शारीरिक संबंध क्या अपराध हो सकता है। इस पर व्यापक बहस होना जरूरी है। भारतीय संविधान का अनुच्छेद 21 अपनी मर्ज़ी से जीवन साथी चुनने का अधिकार देता है। अपनी इच्छा से किसी को चुनने वालों को भय के माहौल में नहीं रहना चाहिए। कोई भी इच्छा कानून के अधीन नहीं हो सकती लेकिन सभी को अनुच्छेद 21 के तहत जीने के अधिकार के तहत कानून के दायरे में रहने का अधिकार है। हालांकि सुप्रीम कोर्ट जानवरों के साथ संबंध बनाने के मामले की सुनवाई नहीं करेगा जो कि इसी धारा के तहत अपराध माना गया है।
क्या धारा-377 के अधीन अप्राकृतिक यौन संबंध अपराध है?
वर्ष 1862 में अंग्रेजी शासन काल दौरान एक क़ानून लागू किया गया। इस कानून के तहत अप्राकृतिक यौन संबंध को गैरकानूनी ठहराया गया है। अर्थात अगर कोई स्त्री-पुरुष आपसी सहमति से भी अप्राकृतिक यौन संबंध बनाते हैं तो इस क़ानून की धारा 377 के तहत 10 साल की जेल व जुर्माने से दण्डित किये जा सकतें है। यदि कोई व्यक्ति किसी जानवर के साथ यौन संबंध बनता है तो इस कानून के तहत उम्र कैद या 10 साल की सजा एवं जुर्माने का प्रावधान है। वहीँ सहमति से अगर दो पुरुषों या दो महिलाओं के बीच में सेक्स होता है तो यह भी इस कानून के दायरे में आता है। इस धारा में वर्णित अपराध साबित करने के लिए इन्द्रियों का प्रवेशन मात्र ही पर्याप्त है। इस कानून में कई गंभीर धाराओं के अंतर्गत अपराध को संज्ञेय बनाया गया है। इसमें गिरफ्तारी के लिए किसी प्रकार के वारंट की जरूरत नहीं। अर्थात शक के आधार पर या गुप्त सूचना का हवाला देकर पुलिस इस मामले में किसी दोषी व्यक्ति को गिरफ्तार कर सकती है।
धारा-377 एक गैरजमानती अपराध है
यह एक संगीन अपराध है अर्थात पुलिस द्वारा गिरफ्तार करने के लिए किसी वारंट की आवश्यकता नहीं है। साथ ही इसमें ज़मानत भी नहीं हो सकती।
क्या समलैंगिक विवाह मान्य है?
कोर्ट के समक्ष समलैंगिक विवाह को मान्यता देने का अनुरोध दाखिल हुआ जिसे कोर्ट की कोर कमिटी ने ख़ारिज कार दिया। इलाहाबाद हाई कोर्ट ने समलैंगिक विवाह को मान्यता देने के लिए दो वयस्क लड़कियों ने अनुरोध किया था जिसे खारिज कर दिया गया है।
सरकारी वकील ने लड़कियों के इस मांग का विरोध किया।
सरकारी वकील ने कहा कि भारतीय सभ्यता और संस्कारों में समलैंगिक विवाह पूर्णतया गलत है। भारत में मौजूद किसी भी कानून में समलैंगिक विवाह को मान्यता नहीं दी गई है। समलैंगिक विवाह को मान्यता प्रदान नहीं की जा सकती, क्योंकि इस विवाह से संतान उत्पन्न नहीं किया जा सकता अतः यह प्राकृतिक नियमों के विरुद्ध है। हाईकोर्ट ने कोर्ट दोनों वयस्क लड़कियों के समलैंगिक विवाह को मान्यता देने के अनुरोध को खारिज कर दिया।
क्या समलैंगिकता एक बीमारी है?
कानूनी मंजूरी के बाद भी अभी भावी डॉक्टर समलैंगिकता एक बीमारी है के रूप में पढ़ रहे। एमबीबीएस की कई पुस्तकों में भी इंटर-सेक्स एक यौन विकार के रूप में दर्ज़ है। पाठ्यक्रम में बदलाव की मांग की गई है। दरअसल कानूनी तौर पर अधिकार मिलने के बाद भी ट्रांसजेंडर समुदाय को लेकर चिकित्सीय शिक्षा में ऐसे शब्दों का प्रयोग किया जा रहा है। मेडिकल कॉलेजों में एमबीबीएस पाठ्यक्रम में चिकित्सीय छात्रों को समलैंगिकता एक बीमारी के रूप में पढ़ाया जाता है।
किताबों में समलैंगिकता एक बीमारी के रूप में दर्ज़ है
सभी मेडिकल कॉलेज और पाठ्य पुस्तकों से जुड़े प्रकाशकों को निर्देश दे दिए गये थे कि पुस्तकों में कौमार्य को लेकर अवैज्ञानिक जानकारी है। निर्देश के अनुसार स्नातक और स्नातकोत्तर चिकित्सीय छात्रों को पढ़ाते समय यह मुद्दा ट्रांसजेंडर समुदाय के लिए किसी तरह से अपमानजनक नहीं होना चाहिए। डॉक्टरों का कहना है कि यह निर्देश नाकाफी है क्योंकि इसके बाद भी मेडिकल कालेजों में कोई बदलाव नहीं हुआ। एम्स के एमबीबीएस चतुर्थ वर्ष के एक छात्र बताते हैं कि समाज का एक बड़ा तबका समलैंगिक लोगों को न तो सामान्य मानता है और न ही उन्हें सम्मान की दृष्टि से देखता है। डाक्टर खुद किताबों में समलैंगिकता को यौन विकृति के रूप में पढ़ रहे हैं।
ट्रांसजेंडर और समलैंगिक लोगों के साथ भेदभाव क्यों होता है?
विशेषज्ञों का मानना है कि ट्रांसजेंडर समुदाय को लेकर चिकित्सीय शिक्षा में बहुत बदलाव की आवश्यकता है। समलैंगिकता को कानूनी मान्यता दे दी थी बावजूद इसके एलजीबीटी (LGBT- लेसबियन, गे, बाएसेक्सशुअल, ट्रांसजेंडर), समुदाय भेदभाव का सामना कर रहा है। ऐसा इसलिए क्यूंकि समाज भी समलैंगिक और ट्रांसजेंडर लोगों को न तो सामान्य मानता है और न ही उन्हें सम्मान की दृष्टि से देखता है। डाक्टर खुद किताबों में समलैंगिकता को यौन विकृति के रूप में पढ़ रहे हैं। ऐसे में स्पष्ट करना होता है कि समलैंगिकता कोई बीमारी नहीं है। ऐसा इसलिए क्योंकि पाठ्यक्रम की नामचीन पुस्तकों में भी इसे एक विकार बताया जाता है।
केरल हाईकोर्ट ने समलैंगिक विवाह को मान्यता दे दी है?
जानकारी के अनुसार केरल हाईकोर्ट ने दो युवतियों के समलैंगिक जोड़े को एक साथ रहने की अनुमति दी है। इससे पहले भी केरल में समलैंगिकता को संवैधानिक दर्जा दिया गया है। साल 2018 में सुप्रीम कोर्ट ने भारतीय दंड संहिता की धारा 377 को असंवैधानिक करार देते हुए समलैंगिक विवाह को वैधानिक करार दिया।
ट्रांसजेंडरों के विषय में क्या है पुस्तकों में?
दिल्ली में यूनिवर्सिटी कॉलेज ऑफ मेडिकल साइंसेज के फिजियोलॉजी प्रोफेसर बताते हैं कि ट्रांसजेंडर समुदाय के लिए चिकित्सीय पाठ्यक्रम में कई आपत्तिजनक शब्द हैं जिनमें बदलाव होना चाहिए। पुस्तकों में इंटरसेक्स को यौन विकास का विकार बताया जाता है। जबकि इंटरसेक्स का मतलब एक ऐसा व्यक्ति जिसमें पुरुष व महिला दोनों की विशेषताएं होती हैं।
धारा 377-376 की हथकड़ी से आजाद होगा हसबैंड
धारा 377-376 की मार झेल रहे पतियों को राहत मिली है। डीआइजी ने हाल में सर्कुलर ज़ारी कर साफ किया है कि दहेज़ उत्पीड़न के आरोपी पति पर अब दुष्कर्म और कुकर्म की धारा में कारवाई नहीं होगी। हालांकि यदि पत्नी की उम्र 15 वर्ष से कम हो , तब पति पर दुष्कर्म व कुकर्म का मुकदमा दर्ज हो सकता है।
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