अंतर धार्मिक विवाह करने के लिए किसकी अनुमति ज़रूरी है? क्या कोर्ट मैरिज रजिस्ट्रार विवाह पंजीकरण करने से इनकार कर सकता है? जानिए प्राविधान

बीते 40 माह में तकरीबन 1300 से अधिक सरकारी नुमाइंदे जेल पहुच चुके हैं। बाबू से लेकर कलक्टर तक जेल की हवा खा रहे हैं। कोई घूस लेते रंगे हाथो पकड़ा गया तो किसी के घर नोटों का अम्बार मिला। दुनिया भर को शिष्टाचार की नसीहत देने वाले आज खुद सलाखों के पीछे हैं। बावजूद इसके इन्हें घूस लेने से कोई परहेज़ नहीं है।
आमतौर पर सिविल सेवा की तैयारी करने वाले विद्यार्थी शुरू से ही मेधावी होते हैं। वे इंटर व स्नातक स्तर से ही फर्स्ट क्लास मार्क्स लाते दिख जायंगे। वहीँ कुछ छात्र-छात्राएं स्नातक के बाद अपनी मेहनत के बल पर अपनी किस्मत बदलते हैं। आम ज़िन्दगी से दूर रहकर पढाई करने वाले अभ्यर्थी सरकारी नौकरी पा कर अपने माता पिता अपने परिवार खानदान व गुरुजनों का नाम रोशन करते हैं। लोगों को उनकी सफलता में अपनी सफलता दिखने लगती है। लोग उनके साथ खुद को भी गौरवान्वित महसूस करने लगते हैं। लेकिन पद प्रतिष्ठा पाने के बाद समय बिताने के साथ इनमें से कई भ्रष्टाचार की राह पर अपना कदम बढ़ा लेते हैं। फिर शुरू होता बदनामी की गर्त में जाने का दौर।
नोट बंदी के बाद से उम्मीद की जा रही थी की भ्रष्टाचार कम होगा लेकिन ऐसा हुआ नहीं। इसका ताज़ा उदाहरण पश्चिम बंगाल में ED की छापेमारी में ख़ुलासा से मिलता है। अधिकारी, क्लर्क आदि बिना पैसा लिए काम ही नहीं करते हैं। यदि यह गति ऐसे ही रही तो प्रदेश की जेलों में अपराधियों की बजाय सरकारी अधिकारी व कर्मचारी अधिक नजर आने लगेंगे। सूत्रों के मुताबिक, आज भी प्रदेश की जेलों में पुलिस विभाग के इतने अधिकारी हैं कि वहां पूरा थाना ही खुल जायेगा।
जेलों में महत्वपूर्ण पदों पर रहे कार्मिक सबसे अधिक। इनकी लिस्ट कुछ ज्यादा ही लम्बी हैं। जिनमें से कुछ इस प्रकार हैं।
इन सभी आइएएस (IAS), आइपीएस(IPS) के अतिरिक्त अखिल भारतीय सेवाओं से जुड़े 7 आइएएस(IAS), दो आइपीएस (IPS), भ्रष्टाचार के मामलों में पिछले 10 आइआरएस (IRS) समेत 18 अधिकारी भी जेल जा चुके हैं।
पुलिस व सुरक्षा एजेंसी इंस्पेक्टर, डॉक्टर, एनएचएम, कार्मिक जेल में उपअधीक्षक, निरीक्षक, उप निरीक्षक, सहायक उप निरीक्षक, हेड कांस्टेबल, कांस्टेबल, हवलदार, की संख्या अधिक थी। लेकिन जमानत पर छूटने पर करीब 1000 अधिकारी/कर्मचारी जेल से बाहर आ गए। सूत्रों के मुताबिक वर्तमान में पुलिस महकमें के इतने कार्मिक बंद है कि जेलों के भीतर पूरा एक थाना ही खुल जाए। वहीं कई शिक्षक भी सलाखों के पीछे हैं। जेल प्रशासन ऐसे अधिकारियों व कर्मचारियों पर नजर रखे हुए हैं, ताकि जेल कर्मियों को घूस देकर मौजमस्ती न करने लग जाएं।
जेलों में बंद अधिकांश अधिकारी व कर्मचारी भ्रष्टाचार के मामले में रंगे हाथों रिश्वत लेते पकड़े गये थे। सुपरवाइजर, पशुधन सहायक, इनकम टैक्स ऑफिसर व इंस्पेक्टर, तकनीकी अधिकारी, पोस्टमैन, सीनियर अकाउंटेंट, पेशकर, लेखापाल, राजस्व निरीक्षक, सीईओ, सहायक विकास अधिकारी, रोडवेज बस परिचालक, ड्राइवर, कार्यालय अधीक्षक, बैंक मैनेजर सहित विभिन्न पदों पर रह चुके कई जाने माने नाम इस फेहरिस्त में शामिल हैं।
सरकारी विभाग की दीवारों पर धुम्रपान निषेध के बोर्ड तो लगे दिख जायंगे लेकिन आपको भ्रष्टाचार निषेध का बोर्ड कहीं नहीं दिखेगा। आम जनता को इस बात की जानकारी भी नही है की भ्रष्टाचार की शिकायत किससे पास की जाये और कैसे की जाये। इसलिए संबधित अधिकारी में भ्रष्टाचार से जुड़े किसी क़ानून का कोई डर नहीं है।
देश में भ्रष्टाचार रोकने से लेकर शिष्टाचार सिखाने तक के बहुत से क़ानून है लेकिन सब धरे के धरे हैं। वास्तव में देश में क़ानून बनने से पूर्व उसकी जुगाड़ समाज में पनप जाती है। इसके अलावा कानून बनाने वालों से लेकर पालन करवाने वालों में क़ानून का डर ख़तम हो जाता है। इसलिए ऐसा देखने में आता है की इसी वर्ग के लोग सबसे अधिक क़ानून तोड़ते मिल जायेंगे।
हाल ही में आगरा पुलिस का एक विडियो वायरल हुआ जिसमें कुछ पुलिस वाले कुछ युवक युवतियों से पेटिएम से घूस लेने का आरोप पाया गया।
भारतीय दंड सहिंता (IPC) की धारा 171(E) के अनुसार यदि कोई लोक सेवक रिश्वत लेने का अपराध करेगा तो इसके लिए एक वर्ष की जेल या जुर्माना या फिर दोनों हो सकता है।
इसी तरह यदि कोई डॉक्टर किसी अस्पताल सरकारी या प्राइवेट अथवा स्थानीय निकाय या किसी अन्य व्यक्ति द्वारा चलाया जा रहा हो। उसका इंचार्ज है और किसी व्यक्ति का इलाज करने से मना करता है तो भारतीय दंड सहिंता की धारा 166 के तहत पीड़ित का उपचार ना करने के लिए दंड का प्रावधान किया गया है। दंड प्रक्रिया संहिता 1973 की धारा 357-ग का उल्लंघन करता है। इस अपराध के लिए उसे एक वर्ष तक की जेल या जुर्माना या दोनों से दंडित किया जा सकता है।
यदि कोई लोक सेवक अर्थात सरकारी कर्मचारी किसी व्यक्ति को शारीरिक अथवा मानसिक नुकसान पहुंचाता है या ऐसा कोई भी काम करता है जिससे किसी व्यक्ति को नुकसान पहुंच सकता है या फिर वह अपने कर्तव्य पालन में कोई कमी रखता है यह जानते हुए कि यदि वह ऐसा करेगा तो किसी व्यक्ति को हानि हो सकती है तो ऐसे व्यक्तियों को सजा देने के लिए भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 166 के तहत कारावास की सजा है जिसकी अवधि एक साल तक हो सकेगी या जुर्माने से दंडित किया जा सकता है या फिर दोनों किया जा सकता है।
कोई सरकारी कर्मचारी किसी भी कागज का अशुद्ध दस्तावेज का रचना करता है और ऐसे में मैं जानता है कि इससे इलेक्ट्रॉनिक अभिलेख की रचना करने से हर वाहन करते हुए दस्तावेज की रचना तैयार की गई है जो जिससे मैं जानता है कि अशुद्ध है और इससे इसको किसी व्यक्ति की नुकसान हो सकता और किसी एक व्यक्ति को फायदा हो सकता है तो इसे 3 वर्ष की सजा हो सकेगी या जुर्माने दोनों से दंडित किया जाएगा।
भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 168 सरकारी कर्मचारियों को व्यापार करने पर रोक है।
यदि कोई सरकारी कर्मचारी लोकसेवक रहते हुए पद के अनुरूप लोकसेवक के साथ-साथ व्यवसाय व्यवसाय करता है तो एक साल तक की जेल या जुर्माना या फिर दोनों से दंडित किया जाएगा।
भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 169 के अनुसार यदि कोई लोक सेवक विधिविरुद्ध कोई सम्पत्ति क्रय करता है या उसके लिए बोली लगाता है। चाहे वह अपने नाम से अथवा किसी दूसरे के नाम में या संयुक्त रूप से या अंश सम्पत्ति को क्रय करेगा या उसके लिए बोली लगाएगा तो इसके लिए वह सादा कारावास से, जिसकी अवधि दो वर्ष तक की हो सकेगी या जुर्माने से या दोनों से दण्डित किया जाएगा।
भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 171 के अधीन यदि कोई लोकसेवक किसी व्यक्ति को लाभ देने के बदले अथवा राहत देने के लिए किसी प्रकार से धन, दान, गिफ्ट या मुफ्त सेवा लेता है तो वह रिश्वत लेने का दोषी होगा। इस अपराध के लिए उसे एक वर्ष की जेल या जुर्माना या दोनों से दण्डित किया जायेगा।
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