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आँखों देखी घटना झूठी बता देने पर क्या मेडिकल सबूत कोर्ट मान्य करेगी?

साक्ष्यों में विरोधाभास होने पर मेडिकल रिपोर्ट ही मान्य होगी हाईकोर्ट-

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा है कि किसी क्रिमिनल केस में प्रत्यक्षदर्शी गवाह के बयान मेडिकल रिपोर्ट के विपरीत हैं, और रिपोर्ट से आंखों देखी घटना सही नहीं लग रही है। ऐसी स्थिति में मेडिकल रिपोर्ट को ही महत्वपूर्ण साक्ष्य मानकर उसे वरीयता दी जानी चाहिए।

कोर्ट ने कहा कि प्रत्यक्षदर्शी साक्षी द्वारा दी गयी स्थितियां होती हैं। पहली पूर्ण विश्वसनीय दूसरी पूर्ण अविश्वसनीय और तीसरी न तो पूर्ण विश्वास है और न ही पूर्ण अविश्वसनीय। इस तीसरी स्थिति से अदालत को साक्ष्यों का साथियों का मूल्यांकन के बयान के साथ ही अन्य साथियों के साथ करना चाहिए। 

अधीनस्थ न्यायालय में इसी के साथ हत्या के मामले में चारों अभियुक्तों को उम्रकैद की सजा सुनाई थी। जिसे हाईकोर्ट ने रद्द कर दिया है हत्या के एक मामले में आपराधिक अपील का निस्तारण करते हुए न्यायमूर्ति सुनीता अग्रवाल और न्यायमूर्ति दीपक वर्मा की पीठ ने कहा कि स्थापित कानून है कि जब मौखिक साक्ष्य और मेडिकल रिपोर्ट असंगत हो तो एक साक्ष्य को वरीयता दी जाएगी मगर जहां चश्मदीद गवाह के बयान में विरोधाभास हो और मेडिकल साक्षी के साथ सही होने की संभावना को पूरी तरह से नकार दें तो मेडिकल साक्ष्य को बता दी जाएगी।

अपील पर वरिष्ठ अधिवक्ता अनूप त्रिवेदी ने बहस की मुजफ्फरनगर के थाने की 12 अगस्त 1992 की है। वादी जयवीर सिंह में रिपोर्ट लिखाई थी कि उसका भाई रमेश घटना वाले दिन सुबह खेत जा रहा था। गांव के जय सिंह के खेत के पास चकरोड पर शेर सिंह उसके भाई सहेंद्र गुलाब और साधु ने मिलकर उसकी गोली मारकर हत्या कर दी वादी मुकदमा खुद को घटना बताते हुए कहा कि उसका भाई घर से नाश्ता करके निकला था और खेत में पिता के लिए खाना लेकर जा रहा था।
Evidence against grievous crime

वरिष्ठ अधिवक्ता ने अपनी दलील में कहा कि पोस्टमार्टम रिपोर्ट के मुताबिक उसकी आंख पूरी तरह से खाली थी इसका अर्थ है कि घटना के वक्त या में हुई है घटनास्थल पर मौजूद नहीं था और ना ही उसने आरोपियों को हत्या करते हुए देखा है कोर्ट ने पाया कि वादी मुकदमा द्वारा दिए गए बयान तथा अन्य साक्ष्यों और मेडिकल रिपोर्ट में काफी विरोधाभास है वादी द्वारा बताई गई घटना अन्य साक्ष्यों से सही साबित नहीं हो रही है।

नियुक्ति की वैधता पर नहीं उठा सकते सवाल कोर्ट हाईकोर्ट ने कहा कि दैनिक कर्मचारी से लंबे समय तक ड्राइवर की सेवा लेने के बाद सरकार यह नहीं कह सकती कि नियुक्ति के समय कर्मी के पास वैध लाइसेंस नहीं था इसलिए उसकी नियुक्ति अवैध थी कोर्ट ने कहा कि विपक्षी कर्मचारी की नियुक्ति आदेश में ड्राइवर का जिक्र नहीं है वह दैनिक वेतन भोगी कर्मचारी के रूप में नियुक्त किया गया एकल पीठ के उसे नियमित करने के आदेश में आवेदन एकता नहीं है कोर्ट में वन विभाग के सचिव के मार्फत दाखिल राज्य सरकार के विशेष अपील पर हस्तक्षेप करने से इंकार कर दिया और अपील खारिज कर दी यह आदेश मुख्य न्यायाधीश गोविंद माथुर तथा न्यायमूर्ति रमेश सिन्हा की खंडपीठ ने उत्तर प्रदेश राज्य की विशेष अपील पर दिया है।

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