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सत्यमेव जयते!

तलाक़ के लिए कौन कौन से क़ानूनी रास्ते होते हैं?

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कई पति पत्नी यह जानना चाहते हैं कि- तलाक लेने में कितना खर्च आता है? तलाक कितने महीने में मिलता है? जल्दी से जल्दी तलाक कैसे ले? तलाक लेने का सबसे आसान सस्ता तरीका क्या है? शादी के कितने दिन बाद तलाक ले सकते हैं पति पत्नी? तलाक़ लेने के कितने आधार होते हैं  तलाक़ के लिए कौन कौन से क़ानूनी रास्ते होते हैं?      आज कल नई-नई शादी होते ही पति पत्नी में कुछ ऐसे विवाद जन्म ले लेते हैं की बात तलाक़ तक पहुच जाती है ऐसे में अब तलाक़ लेना है तो कैसे लें इसी प्रश्न पर चर्चा करेंगे  तलाक़ होता क्या है?      तलाक की प्रक्रिया विवाहित जोड़े के बीच शादी खत्म करने की एक न्यायिक प्रक्रिया है। यह नियमों, कानूनों और वैधानिक प्रक्रियाओं के अनुसार आयोजित की जाती है और विवाहित जोड़े को आपसी विचार-विमर्श के बाद दोनों को अलग रहने की अनुमति देती है। तलाक की प्रक्रिया भारतीय सामाजिक, नैतिक और कानूनी परंपराओं के अनुसार विभिन्न रूपों में प्रदर्शित हो सकती है। तलाक़ के कई प्रकार होते हैं। यहां विभिन्न तलाक की प्रक्रियाओं का उल्लेख किया गया है- संयुक्त तलाक:      संयुक्त तलाक, जिसे तीन तलाक के रूप में भी जाना जाता है, एक

पॉक्सो क्या है? पॉक्सो एक्ट में बच्चों और नाबालिगों के प्रति कौन सी हरकतों और बातों को यौन अपराध माना जाता है?

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पॉक्सो (POCSO) अधिनियम 2012 में संशोधन की तैयारी हो चुकी है       केंद्रीय मंत्रिमंडल ने बच्चों के खिलाफ यौन अपराध सम्बंधित दंड को और अधिक कठोर बनाने के लिए बाल यौन अपराध संरक्षण (Protection of Children from Sexual Offences-POCSO) अधिनियम, 2012 में आवश्यक संशोधन को मंज़ूरी दे दी। आइये जानते हैं की केद्र सरकार क्या क्या बदलाव करने जा रही है इस कानून में । पॉक्सो क्या है?      पॉक्सो एक केंद्रीय कानून है जो यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण करने के लिए बनाया गया है इसी अधिनियम का संक्षिप्त नाम (शार्ट फॉर्म) Protection of Children Against Sexual Offence Act – POCSO (प्रोटेक्शन ऑफ चिल्ड्रन अगेंस्ट सेक्सुअल ऑफेंस) है। इसे यौन अपराधों के खिलाफ बच्चों की सुरक्षा संबंधी कानून के तौर पर भी जाना जाता है। पॉक्सो अधिनियम, 2012 क्यों लागू किया गया था?      पॉक्सो अधिनियम, 2012 को बच्चों के हित और सुरक्षा का ध्यान रखते हुए बच्चों को यौन अपराध (सेक्सुअल क्राइम), यौन उत्‍पीड़न (सेक्सुअल हैरश्मेंट)  तथा पोर्नोग्राफी से सुरक्षा प्रदान करने के लिये लागू किया गया था। यह अधिनियम 18 वर्ष से कम आयु के बच्‍चे

तलाक का मुख्या कारण है? जानिए इससे बचने के उपाए!

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तलाक, एक समाज में एक साथी से दूसरे साथी के साथ जुड़े रिश्ते को खत्म करने का प्रक्रियात्मक नाम है, और भारत में इसका आम होना चिंताजनक है। समाज में तलाक की दर बढ़ रही है और इससे उत्पन्न होने वाली समस्याएं सामाजिक और मानविकी दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं। इस लेख में, हम जानेंगे कि भारत में तलाक के कारण और परिणामों को समझने का प्रयास करेंगे और इस समस्या को हल करने के लिए कौन-कौन से कारगर समाधान हो सकते हैं। तलाक का कारण: सामाजिक परिवर्तन: भारतीय समाज में हो रहे विभिन्न सामाजिक परिवर्तनों के कारण तलाक की दर में वृद्धि हो रही है। व्यक्तिगत और पेशेवर जीवन में बदलाव, महिलाओं की शिक्षा, और समाज में महिलाओं के स्थान के परिवर्तन इसमें एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। वित्तीय और परिवारिक तनाव: वित्तीय और परिवारिक तनाव भी तलाक का कारण बन सकते हैं। आर्थिक मुद्दे, अच्छे संबंधों की कमी, या परिवार के संचार में कोई तनाव तलाक का कारण बन सकते हैं। अन्य समस्याएं: विभिन्न समस्याएं जैसे कि मानसिक समस्याएं, असमान सामाजिक स्थिति, बदलते समय के साथ बदलती रोजगार स्थिति, और सामाजिक प्रतिबद्धता के बीच अधिक समस्याएं तला

प्रेमिका से बेवफाई, अपराध कैसे हुआ भाई? : दिल्ली हाई कोर्ट

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आपसी सहमति से शारीरिक संबंध बनाने की उम्र 18 साल ही रहे:  कमीशन कमीशन ने माना- पॉक्सो कानून लड़की को मर्जी से शादी न करने देने में अभिभावकों का हथियार बच्चों को यौन हिंसा से संरक्षित करने वाले केंद्रीय कानून पॉक्सो एक्ट 2012 के विभिन्न पहलुओं की गहन पड़ताल के बाद लॉ कमीशन ने अपनी विस्तृत रिपोर्ट कानून मंत्रालय को सौंप दी है। इसमें आयोग ने कानून की बुनियादी सख्ती बरकरार रखने की हिमायत की है। और आपसी सहमति से शारीरिक संबंध बनाने की न्यूनतम उम्र 18 साल बनाए रखने की बात कही गई है। हालांकि इसके दुरुपयोग से जुड़े मामलों को देखते हुए कुछ सेफगार्ड लगाए गए हैं। इस कानून के इस्तेमाल को लेकर कराए गए अध्ययनों से पता चला कि लड़कियों को मर्जी से विवाह करने के फैसले लेने के खिलाफ अभिभावक इसका इस्तेमाल हथियार की तरह कर रहे हैं। सहमति से संबंध रखने वाले कई युवकों को इस कानून का शिकार होना पड़ा है। ऐसे में मांग उठी थी कि सहमति से सेक्स संबंध रखने की उम्र घटाई जानी चाहिए। सहमति को 3 पैमानों पर परखने की सिफारिश, तभी अपवाद मानें यौन संबंधों को अपराध नहीं मानने के अपवादों के बारे में इन बातों पर गौर करने की

RERA के तहत शिकायत कैसे दर्ज करें? और अगर कोई बिल्डर RERA के साथ पंजीकृत नहीं है तो क्या होगा?

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अगर आपने कोई मकान, दुकान, फ़्लैट या प्लाट ख़रीदा है और आपके बिल्डर या प्रमोटर ने उसे समय पर आपको नहीं दिया है तो ऐसे में आपके पास क्या उपाय हैं। RERA आपको आपके अधिकार दिलवाने में मद्दद कर सकता है। RERA ट्रिब्यूनल अधिवक्ता आशुतोष कुमार जी से जानिए कि अपने अधिकार को समय पर कैसे हासिल करें। RERA के कानून कब लागू नहीं होते हैं? ध्यान रखें कि निम्नलिखित स्थितियों में RERA एक्ट के प्रावधान लागू नहीं होते है- अगर निर्माणाधीन बिल्डिंग में अपार्टमेंटों की संख्या 8 से कम हो, अगर निर्माणाधीन भूमि का क्षेत्रफल 500 वर्ग मीटर से कम हो, यदि प्रमोटर को RERA एक्ट आने से पहले ही संपत्ति के लिए पूर्णता प्रमाण पत्र जारी किया गया हो, जब किसी संपत्ति का पुनर्विकास या नवीनीकरण किया जा रहा हो और उसके लिए मार्केटिंग या विज्ञापन की आवश्यकता न हो। RERA में प्रोजेक्ट रजिस्ट्रेशन के लिए आवश्यक दस्तावेज क्या होते हैं? रियल स्टेट बिज़नस में बिल्डरों को खुद को RERA के साथ पंजीकृत करना अनिवार्य है। रजिस्ट्रेशन के लिए आवश्यक दस्तावेजों की एक विस्तृत सूची नीचे दी गई है- फॉर्म REA-I पिछले 3 वर्षों की आयकर रिटर्न (ITR) बिल्

जानिए, अपना केस खुद कैसे लड़ें? मुकदमे में जीत के लिए क्या करें? एक सफल मुकदमा कब बनता है?

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किसी भी सिविल अथवा क्रिमिनल केस में आपका केस काफी लंबा चल रहा है या आपका वकील अच्छे से आप के केस की पैरवी नहीं कर रहा है तो आप किस प्रावधान के तहत अपना मुकदमा स्वयं लड़ सकते हैं? अधिवक्ता आशुतोष कुमार से इसी नियम के बारे में बात करेंगे कि कैसे आप बड़ी आसानी से अपने केस को खुद लड़ सकते हैं और तय समय में उसे जीत भी सकते हैं। अपना केस खुद कैसे लड़ें? अगर आप किसी मुकदमें में वकील नहीं करना चाहते हैं और आपके केस की पैरवी खुद करना चाहते हैं तो क़ानूनी प्रावधान और कुछ अन्य जानकारियां आपको पता होना चाहिए। जैसे आप अपना केस कब और कैसे लड़ सकतें हैं? आपको क़ानून की जानकारी कैसे इक्कठा करनी है? कब आप अपना केस लड़ सकते हैं? अगर आप पर कोई क्रिमिनल या सिविल केस चल रहा है तो आप उस मामले में शिकायतकर्ता हैं तो आप बिना किसी अधिवक्ता को हायर किए केस को स्वयं लड़ सकते हैं। लेकिन इससे पहले अधिवक्ता का अर्थ समझ लें। अधिवक्ता का अर्थ होता है, आधिकारिक वक्ता यानी जिस व्यक्ति को यह अधिकार दिया गया है कि वह आपकी तरफ से आपके केस की पैरवी कोर्ट के समक्ष करे। यदि आप खुद यह काम करने में सक्षम है तो आप खुद ही कोरम से स

जानिए- भारतीय दंड सहिंता की धारा 5 से 18 तक में किन अपराधों का वर्णन है?

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भारतीय दंड सहिंता की धारा 5 से 18 तक में किन अपराधों का वर्णन है? जानिए अधिवक्ता आशुतोष कुमार के इस लेख में- भारतीय दंड सहिंता की धारा 5 धारा 5-  कुछ विधियों पर इस अधिनियम द्वारा प्रभाव न डाला जाना- इस अधिनियम में की कोई बात भारत सरकार की सेवा के अफसरों, सैनिकों, नौसैनिकों या वायु सैनिकों द्वारा विद्रोह और अभित्योजन को दंडित करने वाले किसी अधिनियम के उपबंधों या किसी विशेष या स्थानीय विधि के उपबंधुों, पर प्रभाव नहीं डालेगी। भारतीय दंड सहिंता की धारा 6 धारा 6-  स्पष्टीकरण संहिता में की परिभाषाओं का अपरवादों के अध्यधीन समझा जाना- इस संहिता में सर्वत्र अपराध की हर परिभाषा, हर दंड उपबंध और, हर ऐसी परिभाषा या दंड उपबंध का हर दृष्टांत, “साधारण अपवाद” शीर्षक वाले अध्याय में अंतरविष्ट अपवादों के अध्यधीन समझा जाएगा, चाहे उन अपवादों को ऐसी परिभाषा, उपबंध या दृष्टांत में दोहराया न गया हो। दृष्टांत (क)  इस संहिता की वे धाराएं, जिनमें अपराधों की परिभाषाएं अंतरबिष्ट है, यह अभिव्यक्त नहीं करती कि 7 वर्ष से कम आयु का शिशु ऐसे अपराध नहीं कर सकता, किंतु परिभाषाएं उस साधारण अपवाद के अध्यधीन समझी जानी है ज

Indian Contract Question Papers in Hindi | Indian Contract Paper Set | PCSJ for APO | Solved Questions

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प्रश्न1- निम्नलिखित में से कौन सा वाद कपट से संबंधित नहीं है? व्याख्या – दियाला राम बनाम सरगा ए.आई. आर.  1927  लाहौर  536  का वाद असम्यक असर  धारा 16  से संबंधित है। प्रश्न2- यदि कोई अवयस्क अपनी आयु का दुर्व्यपदेशन करते हुए कोई संपत्ति या वस्तु प्राप्त कर लेता है तो उसको वापस करने के लिए बाध्य किया जा सकता है- व्याख्या-  भारतीय संविदा अधिनियम  1872 की धारा 18  में दुर्व्यपदेशन को परिभाषित किया गया है।  धारा 19  में दुर्व्यपदेशन के प्रभाव के बारे में प्रावधान है। जब कोई अवयस्क जानबूझकर अपनी आयु का छिपाव या दुर्व्यपदेशन करके, कोई माल या संपत्ति खरीदना है, तो जब तक ऐसी वस्तुएं उसके कब्जे में है, उससे वापस ली जा सकती है इसे ही प्रतिस्थापन का सिद्धांत कहते हैं। संविदा शून्य होने के कारण स्वामित्व अंतरण नहीं होता इसलिए माल उससे वापस लिया जा सकता है। प्रश्न3- एक गुरु अध्यात्मिक सलाहकार ने अपने चेले भक्त से कहा कि वह अपनी सारी संपत्ति उसे दान कर दें ताकि दूसरे लोक में उसकी आत्मा को लाभ मिले यह दान क्या होगा- व्याख्या-  दान शून्य करणीय है।  धारा 19  के अनुसार जबकि किसी करार के लिए सम्मति, प्रपी

जानिए कंज्यूमर फोरम में शिकायत कैसे करें? उपभोक्ता की शिकायत कितने दिन में दर्ज करनी है।

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जब किसी व्यक्ति द्वारा किसी उत्पाद या सेवा का इस्तेमाल किया जाता है और वह व्यक्ति किसी स्तर पर जब सेवा अथवा उत्पाद से असंतुष्ट होता है तो उसके मन में अपने अधिकार के लिए आवाज उठाने की बात आती है। तब ऐसे में किसी व्यक्ति को इस सभी प्रश्नों का अर्थ मालूम होना अनिवार्य हो जाता है- कंज्यूमर का क्या अर्थ है? कस्टमर और कंज्यूमर में क्या अंतर होता है? कंज्यूमर फोरम में शिकायत कैसे करें? कंज्यूमर कोर्ट केस क्या है? उपभोक्ता की शिकायत कितने दिन में दर्ज करनी है जिला उपभोक्ता फोरम की सीमा क्या है? जिला फोरम क्या करता है? Consumer forum या कंज्यूमर कोर्ट का क्या अर्थ है? Consumer forum एक सरकारी न्यायालय जैसा है जो consumers के विवादों और शिकायतों के मामले को देखता है परखता है और फिर consumers को न्याय दिलाता है। Consumer forum सरकार द्वारा ही बनाया गया है, जिसका मुख्य उदेश्य है consumer के अधीकार यानि की Consumer Rights की रक्षा करना। कंज्यूमर का क्या अर्थ है? कंज्यूमर या उपभोक्ता उस व्यक्ति को कहते हैं, जो अलग-अलग वस्तुओं एवं सेवाओं का या तो उपभोग करता है अथवा उनको उपयोग में लाता है। वस्तुओं में

आदिपुरुष से पहले की वो फ़िल्में जिन्हें भारत में बैन किया गया! जानिए कौन-कौन फ़िल्मों को भारत में बैन किया गया?

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बॉलीवुड दुनिया का सबसे बड़ा फिल्म उद्योग है। बॉलीवुड में हर साल सैकड़ो फ़िल्में बनती है हालांकि सभी हिट, फ्लॉप और औसत के अलावा, भारतीय सिनेमा का एक और ब्रांड मौजूद है जिसे "बैन फ़िल्म" कहा जाता है, जिसे जानबूझकर दर्शकों की पहुंच से बाहर रखा जाता है। ऐसी फिल्में जो बोल्ड, अश्लील भाषा, फूहड़ता, लिंग भेद, वर्जनाएं, कश्मीर मुद्दे, धर्म आदि के विकृत रूप से भरी होती हैं और मूल रूप से वो फिल्में जो आज के समय से बहुत आगे हैं अक्सर सेंसर बोर्ड द्वारा बैन कर दी जाती है। फिल्मों ने जब-जब सामाजिक मान्यताओं को ठेस पहुंचाई तब-तब ऐसी फिल्मों का बहिष्कार हुआ। वर्तमान में पौराणिक मान्यताओं पर बनी एक फिल्म "आदिपुरुष" का बहिष्कार हो रहा है। आलोचकों की माने तो यह फ़िल्म प्रभु श्रीराम के हास्यपद रूप को प्रदर्शित करती हुई नज़र आती है। फिल्म में दिखाए गये चरित्र वास्तविकता के कोसों दूर है यही कारण है की फिल्म का बहिष्कार हो रहा है।  लेकिन क्या आप जानतें हैं इससे पहले भारत में कई फिल्मों पर बैन लग चुका है। बॉलीवुड की ऐसी दस फ़िल्में जिन पर सेंसर बोर्ड ने प्रतिबंध लगाया। 1. बैंडिट क्वीन (1994) बैं

जानिए इन सवालों के जवाब- चेक बाउंस होने के बाद मुझे क्या करना चाहिए? चेक बाउंस केस कितने दिन चलता है? धारा 138 में जमानत कैसे मिलती है?

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एक रिपोर्ट के अनुसार देश में सबसे अधिक मामले संपत्ति यानी प्रॉपर्टी की खरीद और बिक्री से जुड़े होते हैं या फिर चेक बाउंस से। कोर्ट में ऐसे मुकदमों की संख्या ज्यादा है जो संपत्ति से जुड़े हैं या फिर पैसे के लेनदेन से जुड़े हुए होते हैं। ठीक इसी तरह चेक बाउंस के केस में कई बार पार्टियां कुछ गलतियां करती हैं जिनके कारण उन्हें मुसीबतों का सामना करना पड़ता है। आपके मन में भी कई सवाल होंगे मसलन- चेक बाउंस होने के बाद मुझे क्या करना चाहिए? चेक बाउंस होने पर कौन सी धारा लगती है? चेक बाउंस केस कितने दिन चलता है? अधिकतम कितनी राशि का चेक होता है? धारा 138 में जमानत कैसे मिलती है? आइये आज इस लेख में जानतें हैं कि कौन-कौन सी गलतियां होती हैं जिसके कारण चेक बाउंस मुसीबत बन जाता है और इससे कैसे बचा जाना चाहिए। चेक बाउंस कब होता है? जब किसी पैसे का भुगतान चेक द्वारा किया जाये और चेक को बैंक में लगाने पर बैंक किसी कारण के चलते भुगतान करने से मना करता है तो इसे चेक बाउंस का मामला कहा जाता है। यह कारण निम्न हो सकते है- हस्ताक्षार का सामान न होना  बैंक खाते का बंद हो जाना खाते में पर्याप्त पैसा न होना चे

प्रेम विवाह करने वाले बालिग जोड़ों की शादीशुदा जिंदगी की स्वतंत्रता व निजता में किसी व्यक्ति को दखल देने का कोई अधिकार नहीं: हाई कोर्ट

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विवाह और धर्म परिवर्तन दो ऐसे मुद्दे हैं जो व्यक्ति का व्यक्तिगत मामला हो सकता है इसलिए इन दोनों मुद्दों पर अर्थात धर्म परिवर्तन और विवाह के लिए सरकारी अनुमति लेने को मजबूर नहीं कर सकते: हाई कोर्ट  कोर्ट मैरिज के लिए किससे अनुमति लें? इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा है कि आज देश आर्थिक व सामाजिक बदलाव के दौर से गुजर रहा। ऐसे में सभी को स्वतंत्रता पूर्वक जीने का अधिकार भी है इसलिए किसी को धर्म परिवर्तन के लिए सरकारी अनुमति लेने को बाध्य नहीं किया जा सकता है। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने यह टिप्पणी अंतर-धार्मिक विवाह करने वाले 17 जोड़ों मायरा और वैष्णवी, विलास-सिरसीकर, जीनत अमान और स्नेहा आदि की याचिकाओं दी। कोर्ट ने कहा कि हमारा समाज आर्थिक और सामाजिक बदलाव के दौर से गुजर रहा है। कानून की सख्त व्याख्या संविधान की भावना को निरर्थक बना सकती है। भारतीय सविंधान के अनुच्छेद 21 में जीवन व निजता की स्वतंत्रता की गारंटी दी गई है। अनुच्छेद 21 नागरिकों को यह अधिकार देता है कि वह अपनी और परिवार की निजता की सुरक्षा करें। ऐसे में दो बालिग व्यक्तियों को अंतर धार्मिक विवाह करने के लिए परिवार समाज या सरकार किसी की

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