अंतर धार्मिक विवाह करने के लिए किसकी अनुमति ज़रूरी है? क्या कोर्ट मैरिज रजिस्ट्रार विवाह पंजीकरण करने से इनकार कर सकता है? जानिए प्राविधान

कमीशन ने माना- पॉक्सो कानून लड़की को मर्जी से शादी न करने देने में अभिभावकों का हथियार
बच्चों को यौन हिंसा से संरक्षित करने वाले केंद्रीय कानून पॉक्सो एक्ट 2012 के विभिन्न पहलुओं की गहन पड़ताल के बाद लॉ कमीशन ने अपनी विस्तृत रिपोर्ट कानून मंत्रालय को सौंप दी है।
इसमें आयोग ने कानून की बुनियादी सख्ती बरकरार रखने की हिमायत की है। और आपसी सहमति से शारीरिक संबंध बनाने की न्यूनतम उम्र 18 साल बनाए रखने की बात कही गई है। हालांकि इसके दुरुपयोग से जुड़े मामलों को देखते हुए कुछ सेफगार्ड लगाए गए हैं।
इस कानून के इस्तेमाल को लेकर कराए गए अध्ययनों से पता चला कि लड़कियों को मर्जी से विवाह करने के फैसले लेने के खिलाफ अभिभावक इसका इस्तेमाल हथियार की तरह कर रहे हैं। सहमति से संबंध रखने वाले कई युवकों को इस कानून का शिकार होना पड़ा है। ऐसे में मांग उठी थी कि सहमति से सेक्स संबंध रखने की उम्र घटाई जानी चाहिए।
यौन संबंधों को अपराध नहीं मानने के अपवादों के बारे में इन बातों पर गौर करने की सिफारिश की गई है। अपवाद मानते समय देखा जाए कि-
ढील देने के बजाय बेजा इस्तेमाल रोका जाए। प्रावधान को 18 ही रखने की सिफारिश करते हुए रिपोर्ट में कई तरह की राहत और अपवाद रखने के सुझाव दिए हैं।
अपवाद सामने रखते समय रिपोर्ट में सिफारिश की गई है कि इस तरह के मामलों में सहमति से संबंध रखने वाले युवक-युवतियों का अतीत देखा जाए और उसके आधार पर तय किया जाए कि यह सहमति स्वैच्छिक थी या नहीं। उनके रिश्तों की मियाद क्या थी।
आयोग के सूत्रों के अनुसार, मूल मकसद यह रखा गया है कि कानून में ढील देने के बजाय इसके बेजा इस्तेमाल को रोका जाए। इसके लिए हर मामले के आधार पर अदालतों को उनके विवेकाधिकार से निर्णय लेने का दायरा बढ़ाने की सिफारिश की गई है।
सूत्रों के अनुसार, जस्टिस रितु राज अवस्थी की अध्यक्षता वाले लॉ कमीशन ने यौन संबंध बनाने वाले अवयस्कों के बीच सहमति के बावजूद इस बात पर गौर करने को कहा है कि दोनों की उम्र का अंतर अधिक न हो। रिपोर्ट में कहा गया है कि अगर उम्र का फासला 3 साल या उससे अधिक है तो उस मामले को अपवाद नहीं माना जाना चाहिए और उसे अपराध की श्रेणी में ही मानना चाहिए।
अदालत ने यह फैसला दुष्कर्म के मामले में एक व्यक्ति को बरी करने के फैसले को बरकरार रखते हुए दिया जिसके खिलाफ उस महिला ने दुष्कर्म का मामला दर्ज कराया था जिससे उसने शादी का वादा किया था
दिल्ली उच्च न्यायालय (Delhi High Court) ने कहा है कि शारीरिक संबंधों के बावजूद प्रेमिका से बेवफाई चाहे जितनी खराब बात लगे, लेकिन यह अपराध नहीं है। शारीरिक संबंध बनाने के बाद अगर कोई बेवफाई करने लगे तो यह अपराध कैसे हुआ?
अदालत ने आगे कहा कि यौन सहमति पर 'न का मतलब न' से आगे बढ़कर, अब 'हां का मतलब हां' तक व्यापक स्वीकार्यता हो गई है। अदालत ने यह फैसला दुष्कर्म के मामले में एक व्यक्ति को बरी करने के फैसले को बरकरार रखते हुए दिया। उस व्यक्ति के खिलाफ उसकी प्रेमिका ने दुष्कर्म का मामला दर्ज कराया था, जिससे उसने शादी का वादा किया था।
अदालत ने इस मामले में पुलिस की अपील को खारिज करते हुए कहा कि "इस मामले में व्यक्ति को बरी करने के निचली अदालत के फैसले में कोई कमी नहीं है" अदालत ने कहा, “प्रेमी से बेवफाई, कुछ लोगों को चाहे जितनी खराब बात लगे, भारतीय दंड संहिता के तहत दंडनीय अपराध नहीं है। दो वयस्क परस्पर सहमति से शारीरिक संबंध बनाते हैं, यह अपराध नहीं है।
"उच्च न्यायालय ने कहा कि लड़की ने शादी के वादे का प्रलोभन देकर शारीरिक संबंध बनाने के आरोपों का इस्तेमाल न सिर्फ पूर्व में आरोपी के साथ शारीरिक संबंध बनाने को सही ठहराने के लिए बल्कि FIR होने के बाद भी अपने आचरण (कैरेक्टर) को सही ठहराने के लिये किया। इसके बाद उसने आंतरिक चिकित्सकीय परिक्षण (इंटरनल बॉडी मेडिकल टेस्ट) से भी इनकार कर दिया।
न्यायमूर्ति विभु भाखरू ने कहा, " जहां तक यौन संबंध बनाने के लिये सहमति का सवाल है, 1990 के दशक में शुरू हुए अभियान 'न मतलब न' , में एक वैश्विक स्वीकार्य नियम निहित है: मौखिक 'न' इस बात का स्पष्ट संकेत है कि यौन संबंध के लिये सहमति नहीं दी गई है
"उन्होंने कहा, “यौन सहमति पर 'न का मतलब न' से आगे बढ़कर, अब 'हां का मतलब हां' तक व्यापक स्वीकार्यता है। इसलिये, यौन संबंध स्थापित करने के लिये जब तक एक सकारात्मक, सचेत और स्वैच्छिक सहमति नहीं है, यह अपराध होगा।" इसका अर्थ यह हुआ किया जबतक लड़की खुद यौन संबंध के लिए न कहे तब तक ही इसे अपराध माना जा सकता है।
उच्च न्यायालय ने कहा कि लड़की का दावा है कि उसकी सहमति स्वैच्छिक (यानि खुद से नहीं थी) नहीं थी बल्कि यह शादी के वादे के प्रलोभन के बाद हासिल की गई थी, इस मामले में स्थापित नहीं हुआ। अदालत ने कहा कि पहली बार दुष्कर्म के कथित आरोप के तीन महीने बाद, महिला 2016 में आरोपी के साथ स्वेच्छा से होटल में जाती दिखी और इस बात में कोई दम नजर नहीं आता कि उसे शादी के वादे का प्रलोभन दिया गया था।
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