अंतर धार्मिक विवाह करने के लिए किसकी अनुमति ज़रूरी है? क्या कोर्ट मैरिज रजिस्ट्रार विवाह पंजीकरण करने से इनकार कर सकता है? जानिए प्राविधान

किसी भी सिविल अथवा क्रिमिनल केस में आपका केस काफी लंबा चल रहा है या आपका वकील अच्छे से आप के केस की पैरवी नहीं कर रहा है तो आप किस प्रावधान के तहत अपना मुकदमा स्वयं लड़ सकते हैं?
अधिवक्ता आशुतोष कुमार से इसी नियम के बारे में बात करेंगे कि कैसे आप बड़ी आसानी से अपने केस को खुद लड़ सकते हैं और तय समय में उसे जीत भी सकते हैं।
अगर आप किसी मुकदमें में वकील नहीं करना चाहते हैं और आपके केस की पैरवी खुद करना चाहते हैं तो क़ानूनी प्रावधान और कुछ अन्य जानकारियां आपको पता होना चाहिए। जैसे आप अपना केस कब और कैसे लड़ सकतें हैं? आपको क़ानून की जानकारी कैसे इक्कठा करनी है?
अगर आप पर कोई क्रिमिनल या सिविल केस चल रहा है तो आप उस मामले में शिकायतकर्ता हैं तो आप बिना किसी अधिवक्ता को हायर किए केस को स्वयं लड़ सकते हैं। लेकिन इससे पहले अधिवक्ता का अर्थ समझ लें। अधिवक्ता का अर्थ होता है, आधिकारिक वक्ता यानी जिस व्यक्ति को यह अधिकार दिया गया है कि वह आपकी तरफ से आपके केस की पैरवी कोर्ट के समक्ष करे। यदि आप खुद यह काम करने में सक्षम है तो आप खुद ही कोरम से समक्ष प्रस्ततु होकर अपना पक्ष रख सकते हैं।
लेकिन अब सवाल यह है कि-
एक आम आदमी कोर्ट के समक्ष अपना पक्ष इसलिए नहीं रख पाता है क्योंकि उसे कानून की अच्छी जानकारी नहीं होती है। इसके अलावा कम्युनिकल स्किल यानि बोलने का अच्छा प्रवाह नहीं होता है। आम आदमी को कोर्ट की भाषा का ज्ञान भी नहीं होता है। ऐसी की कई वजह से कोई आम आदमी कोर्ट के समक्ष अपनी बात को नहीं रख पाता है।
यदि आप कोर्ट में अपने मामले को रखते हैं या पैरवी करते हैं तो आपको अपने केस से जुड़ी हर बारीक़ से बारीक़ बात पता होनी चाहिए। उसी के आधार पर ही आप अपना मुकद्दमा लड़ कर जीत सकते हैं। अपने मुकदमें से जुड़े तथ्य अन्य जानकारी केस जीतने में आपकी सहायता कर सकती है।
तो इसका जवाब है हाँ! अब अगर कोई भी व्यक्ति गरीबी के कारण या किसी अन्य वजह से वकील का खर्च नहीं वहन करना चाहता है तो भारतीय संविधान का अनुच्छेद 29, 39ए, 304 के तहत राज्य सरकार की ओर से सरकारी ख़र्चे पर वकील दिलवाया जाता है। एडवोकेट एक्ट 1961 के तहत आप किसी दूसरे केस या व्यक्ति की वकालत तो नहीं कर सकते हैं लेकिन अपना केस ख़ुद लड़ सकते हैं। कोर्ट और क़ानून इसकी अनुमति देता है। लेकिन इसके लिए आपको कोर्ट से पहले से लिखित अनुमति लेनी होगी की आप अपना केस खुद लड़ना चाहते हैं।
उदहारण के तौर पर मान लीजिये कि यदि आप पर कोई मुकदमा हुआ है।
तो कोर्ट में जाने से पहले है आप जान लें की-
इस तरह आप मामले की पूरी जानकारी के साथ कोर्ट में पेश हो सकते हैं। दूसरा सामाजिक जानकारी होनी चाहिए क्योंकि कोर्ट के अंदर किन तर्कों के आधार पर बात होती है। जिसे कोर्ट की भाषा कहा जाता है और आपको पता होना चाहिए।
जब कोर्ट में वकील बहस करते हैं तो कहते हैं तो किस तरह करते, जैसे आपने अपनी गाड़ी से किसी का एक्सीडेंट किया है तो इस पर कोर्ट की भाषा कुछ इस प्रकार होगी। कि आपने प्रतिवादी पर 307 के तहत अपराध किया है जो अक्षम्य है। इसी तरह से आपको अपनी बात भी कानूनी धाराओं के अंतर्गत कोर्ट के समक्ष रखनी है।
धाराओं की जानकारी के लिए आप कानूनी पुस्तकों का अध्ययन कर सकते हैं। इसके लिए आप भारतीय दंड संहिता, दंड प्रक्रिया सहिंता आदि किताबों का अध्ययन कर सकते हैं। इससे आप अपने पूरे मामले की पैरवी आसानी से कर पाएंगे। अगर आपको इसकी बेहतर जानकारी है तो आप किसी भी मामले में कोर्ट के समक्ष अपना पक्ष रख सकते हैं।
इसी तरह यदि आप पर कोई क्रिमिनल केस है। जिसमें पैरवी करने के लिए न्यायालय की अनुमति ले ली है तो कोर्ट में जाने से पहले पूरे मामले की एक-एक बात की जानकारी होनी चाहिए। क्योंकि कोर्ट के अंदर जब तक आपको अपने केस की पूरी जानकारी नहीं होगी। क्योंकि अगर आप कुछ भी भूले तो विपक्ष का वकील को फंसा देगा और ऐसे में आप जीतता हुआ केस भी हार सकतें हैं। ऐसे में आपको क़ानून की बेहतर जानकारी होगी तभी आप अपना मुक़दमा बेहतर लड़ सकते हैं।
कोर्ट में आमतौर में हिंदी अथवा स्थानीय भाषा में बात होती है। मसलन आफ साउथ इंडिया में हैं तो आपको वहां पर साउथ इंडिया में जिस राज्य में है वहां के राज्य की भाषा आपको प्रयोग करनी होगी। यदि आप साउथ इंडिया के ही किसी हाईकोर्ट में तो वहां आपकी अंग्रेजी भाषा का प्रयोग करना होगा क्योंकि हाईकोर्ट की भाषा अंग्रेजी है। यदि आप सुप्रीम कोर्ट में हैं तो सुप्रीम कोर्ट की भाषा भी अंग्रेजी है इस बात का आपको ख्याल रखना है कि सुप्रीम कोर्ट में पैरवी करने के लिए आप अंग्रेजी में ही कर सकते हैं तो ऐसे में आपको अपने आपको तैयार करना होगा।
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