अंतर धार्मिक विवाह करने के लिए किसकी अनुमति ज़रूरी है? क्या कोर्ट मैरिज रजिस्ट्रार विवाह पंजीकरण करने से इनकार कर सकता है? जानिए प्राविधान

एक रिपोर्ट के अनुसार देश में सबसे अधिक मामले संपत्ति यानी प्रॉपर्टी की खरीद और बिक्री से जुड़े होते हैं या फिर चेक बाउंस से। कोर्ट में ऐसे मुकदमों की संख्या ज्यादा है जो संपत्ति से जुड़े हैं या फिर पैसे के लेनदेन से जुड़े हुए होते हैं। ठीक इसी तरह चेक बाउंस के केस में कई बार पार्टियां कुछ गलतियां करती हैं जिनके कारण उन्हें मुसीबतों का सामना करना पड़ता है।
आपके मन में भी कई सवाल होंगे मसलन-
आइये आज इस लेख में जानतें हैं कि कौन-कौन सी गलतियां होती हैं जिसके कारण चेक बाउंस मुसीबत बन जाता है और इससे कैसे बचा जाना चाहिए।
जब किसी पैसे का भुगतान चेक द्वारा किया जाये और चेक को बैंक में लगाने पर बैंक किसी कारण के चलते भुगतान करने से मना करता है तो इसे चेक बाउंस का मामला कहा जाता है। यह कारण निम्न हो सकते है-
चेक बाउंस के संबंध में केंद्र सरकार ने एक बड़ी राहत दी है। अब जहां चेक को भुनाने के लिए पेश किया गया है उसी क्षेत्र के कोर्ट में केस किया जा सकेगा। इस फैसले से उन लोगों को बड़ी रहत होगी जिनको केस करने और पैरवी करने के लिए किसी दुसरे शहर या राज्य आना जाना पड़ता था।
चेक बाउंस के मामले नेगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट एक्ट 1881 (Negotiable Instruments Act 1881) के अंतर्गत आते हैं लेकिन यदि चेक बाउंस हो जाए तो ऐसे में स्थति में क्या करना चाहिए यह पता होना ज़रूरी है। चेक बाउंस होने की कंडीशन में सबसे पहले आपको बैंक से इसकी पूरी इंफॉर्मेशन दी जाती है। बैंक में आप जब जाएंगे तो संबंधित अधिकारी को बताएगा कि आपका चेक बाउंस हो गया है लेकिन मैं आपको मौखिक रूप से नहीं बताएगा बल्कि लिखित रूप से एक मेमो बना कर देगा। इस मेमों पर चेक के बाउंस होने का कारण के साथ कि क्यों चेक बाउंस हुआ है। मसलन सिग्नेचर मैच नहीं होने के कारण या खाते में पैसा पर्याप्त नहीं था या फिर बचत खाता क्लोज हो चुका है जैसे कोई कारण हो सकते हैं जिसकी वजह से चेक बाउंस हुआ है।
इस मेमो में जो डेट लिखी होती है उसका आपको खास ख्याल रखना है। उस चेक मेमो के डेट के आधार पर आपको यह ध्यान रखना है कि उस तिथि के 15 दिन के अंदर ही आपको चेक देने वाले व्यक्ति को लीगल नोटिस भेजना होता है।
नेगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट एक्ट 1881 की धारा 138 के तहत भेजा जाएगा-
लिखते हुए चेक से जुडी जानकारी देनी होगी।
उदाहरण के तौर पर-
आपने मुझे यह चेक दिया था जो इतने 150000 रुपये का था और जब मैनें इसे बैंक में लगाया तो यह बाउंस हो गया। इसलिए आपको 15 दिन का समय दिया जाता है कि यदि आप इस पैसे को 15 दिन के भीतर लौटा दें तो मामला समाप्त समझा जाये अथवा अन्यथा की स्थिति में 15 दिन के पश्चात मैं आपके विरुद्ध केस दायर करने के लिए बाध्य हूं। जिसके लिए आप उतरदायी होंगे।
इस तरह से आपको नोटिस देना होगा और इस 15 दिन के टाइम पीरियड में उसके जवाब का इंतजार करना होगा।
अब यदि 15 दिन की समयावधि पूर्ण हो जाने के बाद आप चेक बाउंस से संबंधित केस दायर करने के लिए स्वतन्त्र हैं। उसने उसका पैसा नहीं लौटाया और उसने कोई भी जवाब नहीं दिया तब आप स्वतंत्र हैं इस विवाद को दायर करने के लिए। NIA 1881 यानी कि नेगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट एक्ट 1881 के तहत आप कोर्ट में केस फाइल कर सकते हैं लेकिन यह ध्यान रखना है की 30 दिन के भीतर ही करना होगा। यदि 30 दिन की मोहलत से ज्यादा हो जाती है तो आप कोर्ट में केस केस फाइल करने के लिए आपको दूसरी तरह से अप्रोच करना होगा।
इस बात का खास ध्यान रखना है कि 15 दिन की समय अवधि पूर्ण होने से पहले आप केस दायर नहीं कर सकते हैं। हाल ही में सुप्रीम कोर्ट द्वारा गजानंद वरूंगा बनाम लक्ष्मी गोयल के वाद में सुप्रीम कोर्ट ने फैसला दिया जिसमें साफ तौर पर कहा गया यदि आपने नोटिस पीरीयड 15 दिन के पहले केस दायर किया है तो केस अपने आप समाप्त माना जाएगा। ऐसे में कोर्ट को ऐसा प्रतीत होगा कि यह केस के सामने वाले व्यक्ति को फंसाने के लिए किया गया था।
इसके लिए आपको कोर्ट में एक एप्लीकेशन लगानी होगी कि आप 30 दिन के भीतर केस क्यों दायर नहीं कर पाए। आप अधिक समय क्यों लगा इस सम्बन्ध में आपको कोर्ट में साक्ष्य प्रस्तुत करने होंगे कि वास्तव में क्या आधार था जिसकी वजह से आपको इतना समय लगा और इसके बाद कोर्ट आपको यह कह सकता है कि आप एक फ्रेश एप्लीकेशन डालकर दोबारा से केस के लिए अप्लाई करें।
चेक बाउंस का केस कोर्ट में दायर होने के साथ ही पीड़ित को तुरंत ₹20000 का भुगतान विपक्षी पार्टी से दिलाया जाएगा। कई बार ऐसा देखा गया है कि कोर्ट में केस कई सालों तक चलते रहते हैं। जिसमें प्रतिवादी पक्ष अपील पर अपील दायर करती रहती है और मामला जिला कोर्ट से हाईकोर्ट और हाईकोर्ट से सुप्रीम कोर्ट तक चलता रहता है और प्रतिवादी को इससे समय मिलाता रहता है इसलिए इसमें थोड़ा बदलाव किया गया है। जिसमें कहा गया है कि कोर्ट में केस पहुंचने पर सबसे पहले पीड़ित के पक्ष में ₹20000 भुगतान करने होंगे।
सुप्रीम कोर्ट के एक निर्देश के अनुसार यदि आप किसी कंपनी के तरफ से केस दायर करने जा रहे हैं तो आपके पास कंपनी के द्वारा जारी किया गया एक आधिकारिक पत्र होना चाहिए जिसमें यह साफ तौर पर कहा गया हो कि आप इस केस के लिए अधिकृत हैं। दूसरा यह शपथ पत्र होना चाहिए कि आपको इस केस की पूरी तरह से जानकारी है कि इसमें कितना लेनदेन हुआ था। कब-कब चेक जारी किया गया है? किस तरह से इसका बाउंस हुआ है? यह सभी चीजें आपको पता होनी चाहिए तभी आप पैरवी कर सकते हैं अन्यथा की स्थिति में आप इसके लिए योग्य नहीं माने जाएंगे।
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