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सत्यमेव जयते!

श्रमिकों को दो किस्तों में ₹2000 भरण-पोषण भत्ता देगी सरकार!

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योगी आदित्यनाथ सरकार असंगठित क्षेत्र के पंजीकृत मजदूरों को 1000-1000 रुपए के दो किस्तों में भरण-पोषण भत्ता देगी। श्रम विभाग ने इस बारे में शासनादेश जारी कर दिया है। भत्ते की यह राशि असंगठित क्षेत्र के उन सभी मजदूरों को मिलेगी जो 31 दिसंबर तक उत्तर प्रदेश असंगठित कर्मकार सामाजिक सुरक्षा बोर्ड में पंजीकृत होंगे। दो माह के लिए मजदूरों को भत्ते की पहली किस्त के तौर पर ₹1000 जनवरी में देने की तैयारी की जा रही है। यह राशि उत्तर प्रदेश असंगठित कर्मकार व सामाजिक सुरक्षा बोर्ड के माध्यम से दी जाएगी। योगी सरकार ने विधानमंडल के शीतकालीन सत्र के दौरान पेश किए गए चालू वित्तीय वर्ष के दूसरे अनुपूरक बजट में असंगठित क्षेत्र के मजदूरों को ₹2000 भरण-पोषण भत्ता देने के लिए 4000 करोड़ रुपए की व्यवस्था की गई है। उत्तर प्रदेश असंगठित कर्मकार सामाजिक सुरक्षा बोर्ड में अब तक लगभग ढाई करोड़ मजदूर पंजीकृत हो चुके हैं। मजदूरों के बैंक खातों में यह रकम सीधे भेजी जाएगी। शासनादेश के जरिए बोर्ड के सचिव को लाभान्वित होने वाले मजदूरों को आधार से लिंक करने का निर्देश दिया गया है। जिन असंगठित कामगारों को बोर्ड की ओर किसा

यह व्यवस्था लागु हुई तो फर्जी वोट नहीं डाले जा सकेंगे!

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चुनाव सुधार संबंधी विधेयक को लोकसभा से मिली मंजूरी  विपक्षी सदस्यों के भारी विरोध के बीच लोकसभा में निर्वाचन विधि (संशोधन) विधेयक 2021 को मंजूरी प्रदान कर दी। इसमें मतदाता सूची में दोहराव और फर्जी मतदान रोकने के लिए मतदान पहचान प्रणाली कार्ड और सूची को आधार कार्ड से जोड़ने का प्रस्ताव किया गया है। इस विधेयक के माध्यम से जन प्रतिनिधित्व अधिनियम 1950 और जन प्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 में संशोधन किए जाने की बात कही गई है। निचले सदन में कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस, एआईएमआईएम, आरएसपी, बसपा जैसे दलों ने इस विधेयक को पेश किए जाने का विरोध किया। इस विधेयक के संसोधन की ज़रुरत क्यों पड़ी? आम चुनावों में एक व्यक्ति दो या दो से अधिक जगह वोट डाल देता था जिससे चुनाव के निष्पक्ष होने की सम्भावना लगभग ख़तम सी हो जाती है इसी समस्या से निजात के लिए निर्वाचन विधि (संशोधन) विधेयक 2021 सामान्य सुधार के साथ पेश किया गया है विपक्षी दलों का विरोध कांग्रेस ने विधेयक को विचार के लिए संसद की स्थाई समिति को भेजने की मांग की। विपक्षी दलों ने इसे उच्चतम न्यायालय के फैसले के खिलाफ तथा संविधान प्रदत्त मौलिक अधिकारों एवं निज

Facebook, Twitter, Whatsapp जैसे प्लैटफॉर्मों की मनमानी रोकने को बने क़ानून!!

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आज दुनिया भर में सोशल मीडिया का बोलबाला है। दुनिया में सोशल मीडिया का जन्म 20वीं सदी के अंत में हुआ और देखते-देखते 21वीं सदी की शुरुआत में बिना किसी अभिभावक (पैरेंटल कण्ट्रोल) वाला एक बड़ा जनसंचार माध्यम बन गया। जिसपर सरकार, न्यायपालिका जैसी किसी संस्था का कोई नियंत्रण नहीं। अखबार, पत्रिका आदि जैसे पारंपरिक प्रिंट मीडिया प्लैटफॉर्म की में एक ‘संपादक’ होता है जो तय करता है कि क्या चीज प्रकाशित की जाए और क्या नहीं लेकिन सोशल मीडिया में कोई ‘संपादक’ नहीं होता, इसलिए जिसका जो मन आता है पोस्ट कर देता है। वहीँ 'संपादक' परंपरागत रूप से न सिर्फ निगरानी रखते हैं, बल्कि अपने प्लैटफॉर्म पर किसी शख्स द्वारा लिखी बातों के लिए कानूनी तौर पर जिम्मेदार भी होते हैं। अब बिना संपादक के सोशल मीडिया प्लैटफॉर्म पर प्रकाशित बातों के लिए ऐसे प्लैटफॉर्मों की कोई कानूनी जिम्मेदारी नहीं होने की अवधारणा को मजबूत करने के लिए कुछ कानूनी बदलाव किए गए। उदाहरण के लिए यूएस कम्युनिकेशंस डिसेंसी एक्ट (US Communications Decency Act 1996) 1996 की धारा 230 यूजर्स द्वारा अपलोड किए गए कंटेंट की कानूनी जिम्मेदारी से स

टाइम से फीस नहीं जमा कर पाने वाले छात्र को जल्द दाखिला दिया जाये : सुप्रीम कोर्ट

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समय पर फीस जमा न कर पाने वाले दलित छात्र को 48 घंटे में दाखिला दे बॉम्बे IIT: सुप्रीम कोर्ट सुप्रीम कोर्ट ने बॉम्बे IIT को आदेश दिए कि वह अगले 48 घंटे में वांछित छात्र को दाखिला दे। सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि दलित छात्र की सीट के लिए किसी दूसरे छात्र की सीट ना ली जाए, बल्कि उसके लिए अलग से सीट बनाई जाए। क्या है पूरा मामला? दरसल क्रेडिट कार्ड में गड़बड़ी होने के कारण समय पर फीस न भर पाने वाले एक दलित समुदाय के छात्र को सुप्रीम कोर्ट ने बड़ी राहत दी। सुप्रीम कोर्ट ने बॉम्बे IIT को आदेश दिए कि वह अगले 48 घंटे में छात्र को दाखिला दे। सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि दलित छात्र की सीट के लिए किसी दूसरे छात्र की सीट ना ली जाए, बल्कि उसके लिए अलग से सीट बनाई जाए। गौरतलब है कि क्रेडिट कार्ड के काम नहीं करने के कारण यह छात्र फीस नहीं जमा कर सका जिसके चलते उसे IIT बॉम्बे में दाखिला नहीं मिला था। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अदालत को कभी-कभी कानून से ऊपर उठना चाहिए क्योंकि कौन जानता है कि आगे चलकर 10 साल बाद वह हमारे देश का नेता हो सकता है। जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस बीवी नागरत्ना की पीठ ने केंद

सूर्यास्त सूर्यास्त के बाद बिना अनुमति भी किए जा सकते हैं पोस्टमार्टम!

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केंद्र सरकार ने पर्याप्त सुविधाओं वाले अस्पतालों को सूर्यास्त के बाद भी पोस्टमार्टम करने की इजाजत दे दी है। वह सिर्फ उन मामलों में ही ऐसा नहीं हो सकेगा जहां पर हत्या, आत्महत्या, रेप, क्षत-विक्षत शव या संदिग्ध मौत का मामला हो। बल्कि सभी प्रकार के पोस्टमार्टम पर लागु होगा केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री ने बदला नियम इस बारे में केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री मनसुख मांडवीया ने हिंदी में ट्वीट करके लिखा अंग्रेजों के जमाने का एक नियम आज खत्म कर दिया गया। पोस्टमार्टम अब 24 घंटे किया जा सकेगा। जिन भी अस्पतालों में रात्रि के समय पोस्टमार्टम करने की सुविधा हो वह ऐसा कर सकेंगे। काम का बोझ कम होगा केंद्र सरकार कोई कई स्रोतों से ऐसा फीडबैक मिल रहा था कि अगर पोस्टमार्टम से जुड़ी यह बंदिश हटा दी जाए तो काम का बोझ कम होगा और पोस्टमार्टम जैसी जांच के काम में तेजी आएगी। इस नियम से जहां मृतक के दोस्तों व रिश्तेदारों का शव के लिए इंतजार कम होगा, वही इसका एक मकसद ऑर्गन डोनेशन और ट्रांसप्लांट के काम को आसान बनाना भी है। क्योंकि इससे दोनों ही काम में कम समय में अंग को मृतक के शरीर से निकालना जरूरी होता है। ऐसे में तेज

पोर्न देखकर किशोर ने किया 3 साल की बच्ची से रेप!

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पोर्न देखकर किशोर ने 3 साल की बच्ची से रेप किया  कानपुर आउटर के बिधून में एक किशोर ने पोर्न वीडियो देखने के बाद साढ़े 3 साल की बच्ची से रेप कर दिया। बच्चे के प्राइवेट पार्ट में काफी चोटें आई हैं व रोते हुए बच्ची घर पहुंची। एसपी आउटर ने बताया कि किशोर को गिरफ्तार कर लिया गया है। पुलिस को किशोर के मोबाइल में कई पोर्न वीडियो मिले हैं। सर्च हिस्ट्री में ऐसे कीबोर्ड की भरमार थी। मोबाइल की जांच करने से पता चला सर्च हिस्ट्री में पोर्न से जुड़े कई की-वर्ड की भरमार थी, देखकर ऐसा लगता है की किशोर पोर्न का आदि था। पोर्न रोकने को कोई मजबूत यंत्र नहीं  बच्चे तक पोर्न की आसान पहुँच से पता चलता है की किशोर इसका आदि था। इसी के चलते किशोर ने यह कदम उठाया। बच्ची सोमवार को रात घर के बाहर खेल रहे थी, तभी किशोर टॉफियां दिलाने के बहाने से अपने घर ले आया और रेप किया। कोर्ट ने 29 दिन में दिया फैसला रेप के दोषी को मौत की सजा  गुजरात की एक विशेष पॉक्सो अदालत ने मंगलवार को ढाई साल की एक बच्ची से रेप और उसकी हत्या के दोषी व्यक्ति को मौत की सजा सुनाई है। जानकारी अधिकारियों ने दी। गुजरात के गृह मंत्री हर्ष संघवी ने क

कानून के विद्वान ही कानून के उलंघन में दोषी पाए जा रहे हैं?

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वकीलों पर कितने केस इसकी जांच होनी चाहिए: हाई कोर्ट हाई कोर्ट की लखनऊ पीठ ने जिला जज लखनऊ से पूछा है कि वकीलों के खिलाफ कितने आपराधिक मुकदमे विचाराधीन है और उन मुकदमों का क्या स्टेटस है इसकी सम्पूर्ण जानकारी होनी चाहिए। कोर्ट ने पुलिस कमिश्नर लखनऊ को भी वकीलों के खिलाफ दर्ज आपराधिक मुकदमों की जानकारी देने का आदेश दिया है। मामले की अगली सुनवाई दिसंबर में होगी। जस्टिस राकेश श्रीवास्तव व जस्टिस शमीम अहमद की बेंच ने यह आदेश अधिवक्ता पीयूष श्रीवास्तव की ओर से दाखिल एक याचिका पर सुनवाई के दौरान दिया है। आरोप है कि याची अधिवक्ता व उसके साथियों पर निचली अदालत में एक मुकदमे की पैरवी करने पर अधिवक्ताओं ने हमला कर दिया था। पुराने केस भी खुले मामले की सुनवाई के दौरान कोर्ट ने संज्ञान लिया है कि वर्ष 2017 में तत्कालीन सीजीएम लखनऊ संध्या श्रीवास्तव के साथ भी कुछ अधिवक्ताओं ने अभद्रता की थी। कोर्ट ने कहा कि यह बहुत ही खेद जनक स्थिति है कि इस मामले में वर्ष 2017 में ही आरोप पत्र दाखिल हो चुका, लेकिन अब तक आरोप तय नहीं हो सके। कोर्ट ने जनपद न्यायाधीश को यह भी बताने को कहा है कि क्या इस मामले में तत्काल

जाति जनगणना का डाटा सार्वजनिक नहीं किया जा सकता: सुप्रीम कोर्ट

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सुप्रीम कोर्ट ने जाति जनगणना का डाटा जारी करने की अर्जी ठुकराई सुप्रीम कोर्ट ने महाराष्ट्र सरकार की जनगणना का डाटा मुहैया कराने वाली अर्जी को खारिज कर दिया है। महाराष्ट्र सरकार ने कहा था कि 2011 की जनगणना में जो सामाजिक, आर्थिक और जाति जनगणना एसईसीसी का डाटा है वह मुहैया कराया जाए ताकि नगर निगम चुनाव में ओबीसी को आरक्षण दिया जा सके। जस्टिस ए.एम. खानविलकर और जस्टिस सी.टी. रवि कुमार की पीठ ने कहा कि केंद्र सरकार के हलफनामे में कहा गया है कि एसईसीसी 2011 का डाटा सटीक नहीं है और अनुपयोगी है। केंद्र की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने पीठ से कहा कि डाटा बिल्कुल विश्वसनीय नहीं है, क्योंकि इसमें कई खामियां पाई गई हैं। केंद्र सरकार ने कहा था कि एसईसीसी का जो डाटा है और जो जनगणना की गई थी। वह पिछड़े वर्गों की गणना के लिए नहीं थी। ऐसे में कास्ट का डाटा सटीक नहीं है और उसमें खामियां हैं। महाराष्ट्र की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता शेखर नफड़े ने पीठ से कहा कि केंद्र सुप्रीम कोर्ट के सामने यह दावा नहीं कर सकता कि डाटा गलतियों से भरा है क्योंकि सरकार ने एक संसदीय समिति को बताया था कि यह 98.87 % त्रुटि रहि

क्या सूचना अधिकार अधिनियम 2005 के दायरे में रहकर बीस वर्ष के बाद प्रतिबंधित सूचनाओं को प्राप्त किया जा सकता है?

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जानिए किन परिस्थितियों में सूचना अधिकार अधिनियम 2005 बीस वर्ष के बाद प्रतिबंधित सूचनाओं को प्रदान करने की आज्ञा देता है? know, Under what circumstances after the expiry of 20 years Right to Information Act, 2005 allows to give restricted information's? धारा 8 की उपधारा 3 का कहना है कि धारा 8 की उपधारा (1) के खंड (क), (ग) और (झ) के उपबंध के अधीन रहते हुए किसी ऐसी घटना, वर्णन या विषय से संबंधित कोई सूचना जो उस तारीख से जिसका धारा 6 के अधीन कोई अनुरोध किया जाता है, 20 वर्ष पूर्व घटित हुई थी या हुआ था, उस धारा के अधीन अनुरोध करने वाले किसी व्यक्ति को उपलब्ध कराई जाएगी। परंतु यह कि जहां उस तारीख के बारे में, जिससे 20 वर्ष की उक्त अवधि को गिना जाता है, कोई प्रश्न पैदा होता है, वहां इस अधिनियम में उसके लिए उपबंधित सामान्य अपीलों के अधीन रहते हुए केंद्र सरकार का निर्णय अंतिम होगा। 20 वर्ष से अधिक पुरानी सूचना (More Than 20 years Old Information) धारा 8 की उपधारा (3) में वर्णित प्रावधान धारा 8 की उपधारा (2) में दी गई व्यवस्था को पुनः परिभाषित करते हैं। जहां उपधारा (2) इस अधिनियम में दी ग

अंतरधार्मिक या अंतरजातिय विवाह करने के लिए परिवार, समाज या सरकार में से किसी की अनुमति लेने की आवश्यकता नहीं है : इलाहाबाद हाईकोर्ट

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सामाजिक आर्थिक व सामाजिक बदलाव के दौर से गुजर रहा  इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा है कि किसी को धर्म परिवर्तन के लिए सरकारी अनुमति लेने को बाध्य नहीं किया जा सकता है। अंतर धार्मिक विवाह करने वाले 17 जोड़ों मायरा और वैष्णवी, विलास सिरसीकर, जीनत अमान और स्नेहा सोटी आदि की याचिकाओं को स्वीकार करते हुए न्यायमूर्ति सुनील कुमार ने यह टिप्पणी की। कोर्ट ने कहा कि हमारा समाज आर्थिक और सामाजिक बदलाव के दौर से गुजर रहा है। कानून की सख्त व्याख्या संविधान की भावना को निरर्थक करेगी।  अनुच्छेद 21  में जीवन व निजता की स्वतंत्रता की गारंटी दी गई है। नागरिकों को यह अधिकार है कि वह अपनी और परिवार की निजता की सुरक्षा करें। ऐसे में  अंतर धार्मिक विवाह करने के लिए परिवार समाज या सरकार किसी की अनुमति लेने की आवश्यकता नहीं है।  दो बालिग व्यक्तियों का जोड़ा यदि विवाह के लिए सहमत है तो ऐसी शादी को वैध माना जाएगा और पंजीकरण अधिकारी उनके विवाह का पंजीकरण करने से इनकार नहीं कर सकते हैं। न ही धर्म परिवर्तन के लिए किसी को सरकारी अनुमति लेने को बाध्य किया जा सकता है। प्रत्येक व्यक्ति को अपना जीवनसाथी चुनने का अधिकार है। यह

दो राज्यों के लिए एक उच्च न्यायालय स्थापित करने के पीछे का क्या तर्क है?

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भारतीय संविधान के अनुच्छेद-214 में है कि प्रत्येक राज्य का एक उच्च न्यायालय होगा, दो या दो से अधिक राज्यों के लिए एक ही न्यायालय हो सकता है। वर्तमान में भारत में कुल 25 उच्च न्यायालय है, आंध्र प्रदेश के अमरावती में देश का 25वां उच्च न्यायालय स्थापित किया गया है। 1 जनवरी 2019 को, इन उच्च न्यायालयों का अधिकार क्षेत्र कोई राज्य विशेष या राज्यों और केन्द्र शासित प्रदेशों के एक समूह होता हैं। उदाहरण के लिए, पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय, पंजाब और हरियाणा राज्यों के साथ केंद्र शासित प्रदेश चंडीगढ़ को भी अपने अधिकार क्षेत्र में रखता हैं। उच्च न्यायालय भारतीय संविधान के अनुच्छेद 214, अध्याय 5 भाग 6 के अंतर्गत स्थापित किए गए हैं। न्यायिक प्रणाली के भाग के रूप में, उच्च न्यायालय राज्य विधायिकाओं और अधिकारी के संस्था से स्वतंत्र हैं भारतीय न्यायिक प्रणाली उच्च न्यायालय, जिला न्यायालय के साथ, जो उनके अधीनस्थ होते है, राज्य के प्रमुख दीवानी न्यायालय होते हैं। हालांकि उच्च न्यायालय केवल उन्ही मामलो में दीवानी और फौजदारी अधिकारिता का प्रयोग करते है, जिनमें उच्च न्यायालय के अधीनस्थ न्यायालय सक्षम

संविधान संशोधन बिल का कौन दल करेगा समर्थन?

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संविधान संशोधन बिल को मायावती का समर्थन लोकसभा में अन्य पिछड़ा वर्ग से संबंधित संविधान 127 वां संशोधन विधेयक 2021 का बसपा प्रमुख मायावती ने समर्थन किया है। उन्होंने कहा कि संसद में पेश संविधान संशोधन बिल का बसपा समर्थन करती है, लेकिन केंद्र केवल खानापूर्ति न करें बल्कि सरकारी नौकरियों में ओबीसी के खाली पदों को भरने का ठोस काम भी करें। मायावती ने ट्वीट किया ओबीसी वर्ग बहुजन समाज का का अभिन्न अंग है, जिसके हित व कल्याण के लिए बाबा साहेब ने संविधान में धारा 340 की व्यवस्था की व उस पर सही से अमल नहीं होने पर देश के प्रथम कानून मंत्री पद से इस्तीफा भी दे दिया था। इसी सोच के तहत राज्य सरकारों द्वारा ओबीसी की पहचान करने व इनकी सूची बनाने संबंधी पर संविधान संशोधन बिल का बसपा समर्थन करती है। राज्यों को मिलेगा ओबीसी सूची तैयार करने का अधिकार ओबीसी से संबंधित संविधान 127 वां संशोधन विधेयक 2021 के लोकसभा से पास होने पर केंद्रीय मंत्री अनुप्रिया पटेल ने स्वागत किया है। उन्होंने कहा कि सामाजिक न्याय से जुड़े मामले में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक और ऐतिहासिक फैसला किया है। संविधान के 127 वां संशो

हिंदू मैरिज एक्ट 1955 के अधीन विवाह कब शून्य (Void marriage) होता है, ऐसा होने पर पति पत्नी का एक दूसरे पर कोई अधिकार नहीं रहता!

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हिन्दू विधि भाग  6 :  जानिए हिंदू मैरिज एक्ट के अधीन विवाह कब शून्य ( Void marriage)  होता है हिंदू विवाह अधिनियम  1955  के अंतर्गत विवाह को संस्कार तथा संविदा दोनों का मिश्रित रूप दिया गया है। प्राचीन शास्त्रीय विधि के अधीन हिंदू विवाह संस्कार है और उसमे तलाक जैसी कोई व्यवस्था नहीं थी। इस हेतु कुछ प्रावधान आधुनिक हिंदू विवाह अधिनियम  1955  में भी सम्मिलित किए गए हैं, यदि हिंदू विवाह को एक संविदा के स्वरूप में देखा जाए तो एक संविदा के भांति ही इस विवाह में शून्य विवाह (Void marriage) और शून्यकरणीय विवाह (Void marriage) का समावेश किया गया है। हिंदू विवाह अधिनियम   1955 की धारा 11 शून्य विवाह से संबंधित है। धारा 11  उन विवाहों का उल्लेख कर रही है जो विवाह इस अधिनियम के अंतर्गत शून्य होते हैं, अर्थात वह विवाह प्रारंभ से ही कोई वजूद नहीं रखते हैं तथा उस विवाह के अधीन विवाह के पक्षकार पति पत्नी नहीं होते। शून्य विवाह वह विवाह है जिसे मौजूद ही नहीं माना जाता है। शून्य विवाह का अर्थ है कि वह विवाह जिसका कोई अस्तित्व ही न हो अर्थात अस्तित्वहीन विवाह है। किसी भी वैध विवाह के संपन्न होने के बाद

क्या भारतीय संविधान में मानवाधिकार के संरक्षण की पर्याप्त व्यवस्था प्रदान की गई है!

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आइये जानते हैं की संविधान नें भारतीय आम नागरिकों को कौन कौन से सशक्त अधिकार प्रदान किये है  संविधान का भाग II नागरिकता के विषय से सम्बंधित है- भाग II : नागरिकता अनुच्‍छेद 5 : संविधान के प्रारंभ पर नागरिकता अनुच्‍छेद 6 : पाकिस्‍तान से भारत को प्रव्रजन करने वाले कुछ व्‍यक्तियों के नागरिकता के अधिकार अनुच्‍छेद 7 : पाकिस्‍तान को प्रव्रजन करने वाले कुछ व्‍यक्तियों के नागरिकता के अधिकार अनुच्‍छेद 8 : भारत के बाहर रहने वाले भारतीय उद्भव के कुछ व्‍यक्तियों के नागरिकता के अधिकार अनुच्‍छेद 9 : विदेशी राज्‍य की नागरिकता, स्‍वेच्‍छा से अर्जित करने वाले व्‍यक्तियों का नागरिक न होना अनुच्‍छेद 10 : नागरिकता के अधिकारों को बना रहना अनुच्‍छेद 11 : संसद द्वारा नागरिकता के अधिकार का विधि द्वारा विनियमन किया जाना ऊपर भाग III: मूल अधिकार (साधारण) अनुच्‍छेद 12 : परिभाषा अनुच्‍छेद 13 : मूल अधिकारों से असंगत या उनका अल्‍पीकरण करने वाली विधियांसमता का अधिकार अनुच्‍छेद 14 : विधि के समक्ष समानता अनुच्‍छेद 15 : धर्म, मूलवंश, जाति, लिंग या जन्‍म स्‍थान के आधार पर विभेद का प्रतिषेध अनुच्‍छेद 16 : लोक नियोजन के विषय

शादी के बाद शादी का प्रमाण पत्र कैसे बनेगा? यहाँ पूरी जानकारी दी गई है!

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विवाह के बाद विवाह रजिस्ट्रेशन करवाना आपकी भविष्य सुरक्षा के लिहाज़ से भी जरूरी हो चुका है। लेकिन विवाह के बाद रजिस्ट्रेशन के लिए कैसे आवेदन करें और क्या-क्या जरूरी प्रपत्र जरूरी होंगे इसकी जानकारी होना आवश्यक है। आज हम यहाँ आपको फॉर्म भरने से लेकर रजिस्ट्रेशन करवाने तक का पूरा प्रोसेस्स बता रहें है जिससे आप का काम आसान हो जायेगा। विवाह रजिस्ट्रेशन के लिए आधार की भूमिका सबसे अहम् है। आपको आधार कार्ड नंबर के साथ यह सहमति देनी होगी की "आधार अधिनियम 2016 के अनुसार हम (पति एवं पत्नी) अपनी आधार संख्या एवं आधार विवरण यू०आई०डी०ए०आई० प्रमाणीकरण द्वारा विवाह पंजीकरण मे उपयोग करने हेतु अपनी सहमति देते हैं।" "I give my consent to use my Aadhaar number and Aadhaar information by UIDAI Authentication for the purpose of marriage registration as per Aadhaar Act 2016." क्या विवाह के दोनों पक्षकार(पति एवं पत्नी) के आधार के साथ उनके मोबाइल संबद्ध/जुड़े हैं। यदि हाँ तो आप इसका आवेदन ऑनलाइन भी कर सकते हैं यदि नहीं तो आपको संबधित कार्यालय में संपर्क करना होगा। नोट:- विवाह पंजीकरण हेतु “ह

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