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लॉक डाउन के कारण हुए नुकसान की भरपाई के लिए प्रवासी मजदूरों को मिलेगा मुआवजा ?

लॉकडाउन के कारण हुए नुकसान की भरपाई के लिए  प्रवासी मजदूरों को मिलेगा मुआवजा ?

देशभर में लॉकडाउन लागू होने के कारण बहुत से प्रवासी मजदूर व गरीब जो अपने राज्य से बाहर जाकर नौकरी कर रहे थे। वह लोग अपने घर वापस लौट रहे हैं। ऐसे में वापस लौटने के दौरान अधिकांश की रस्ते में ही मृत्यु हो गई, सैकड़ों घायल हुए, बहुत से परिवार समाप्त हो गए। दुःख की इस घड़ी में अब तक की सरकारी मदद ना काफी है।

इस संबंध में सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दाखिल की गई। जिसमें राष्ट्रीय लॉकडाउन के कारण अपने घरों को वापस लौट रहे प्रवासी मजदूरों की मौत होने पर या उनके घायल होने पर उनके परिवार को मुआवजा मिल सके।
इस संबंध में एक याचिका सुप्रीम कोर्ट में दाखिल की गई। याचिका में याचिकाकर्ता ने कोर्ट से अपील की और कहा की इस संबंध में सम्बन्धित राज्यों के अधिकारियों को उचित आदेश देने के निर्देश का अनुरोध किया गया।
यह याचिका सुप्रीम कोर्ट के वकील दीपक कंसल ने दायर की है, और शीर्ष अदालत से  कहा की वे राज्यों के उत्तरदाताओं व संबंधित अधिकारी, विभाग के सरकारों को निर्देश दिया जाए कि वे समन्वय स्थापित करें और अपने राज्य क्षेत्र स्थान पर घायल प्रवासियों को स्वास्थ्य सुविधाएं देना सुनिश्चित करें।

सुप्रीम कोर्ट को इस राष्ट्रव्यापी को लॉकडाउन संकट के दौरान प्रवासी मजदूरों को पुलिस सुरक्षा एजेंसियों के अत्याचार से बचाने के लिए राज्यों की पुलिस को निर्देश देने के लिए उचित आदेश पारित करना चाहिए।
कंसल ने अपनी याचिका में बताया कि सड़कों पर चलने के कारण पुरूष, महिलाओं और बच्चों के सड़क में दुर्घटना में आकस्मिक मृत्यु व अन्य कारणों से मृत्यु या घायल होने की खबरें अखबारों, टेलीविजन, इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के माध्यम से प्रकाशित हो रही है।प्रवासियों की दुर्घटनाएं वर्तमान समय की पुष्टि करता है।

याचिकाकर्ता ने कहा की देश भर में लॉकडाउन लागू होने की वजह से पीड़ित व प्रवासी मजदूरों को मुआवजा देने के प्रतिवादी को निर्देश देने की मांग की। प्रवासी श्रमिकों के मानवाधिकार और मौलिक अधिकारों की सुरक्षा के लिए सुप्रीम कोर्ट से आदेश मांगे हैं।
याचिकाकर्ता ने घायल प्रवासियों और अन्य प्रवासी कामगारों के लिए उचित चिकित्सा सुविधा सुनिश्चित करने के लिए भारत सरकार को उचित दिशा निर्देश देने की मांग की है। जो बड़ी कठिनाई के साथ एक लंबी दूरी तय करके अपने गंतव्य तक पहुंच गए हैं। याचिका में कहा गया है कि देश व्यापी लॉकडाउन के चलते लाखों गरीबों की दुर्दशा की ओर ध्यान आकर्षित हुआ है जो आजीविका की तलाश में गांव से शहरों की ओर पलायन करते हैं लेकिन अब राष्ट्रीय लॉकडाउन के दौरान नौकरी पेशा के सामने भोजन के साथ रहने के संकट भी आन पड़े। भूखे रहने और अपने मूल स्थानों से दूर रहने को मजबूर हो गए।

याचिकाकर्ता ने कहा कि प्रवासी कामगारों की समस्या पूरी तरह से स्थाई नहीं है लेकिन बिना किसी पूर्व व्यवस्था सुविधाओं के अचानक लॉकडाउन  होने के वजह से उन्हें समस्या का सामना करना पड़ा और अपने मानवाधिकार के संरक्षण के साथ मौलिक अधिकारों से भी पीड़ित होना पड़ा। याचिका में कहा गया कि इन प्रवासी मजदूरों के लिए राष्ट्रीय तालाबंदी की घोषणा से पहले कोई उचित व्यवस्था सुविधाएं नहीं थी। यह प्रवासी मजदूर वहां रहने के लिए मजबूर हो गए जहां वह रह रहे थे।

केंद्र सरकार द्वारा देशव्यापी लॉकडाउन की घोषणा के कुछ घंटों के भीतर लाखों प्रवासियों ने शहर की ओर पलायन शुरु कर दिया था।
मुख्य मार्गों पर पुरुष, महिलाएं और बच्चे सामान के साथ जाते दिखाई देने लगे। याचिका में कहा गया प्रवासी श्रमिकों के साथ भेदभाव हुआ है। वहीं विदेशों में बसे भारतीयों को लाने के लिए केंद्र सरकार द्वारा वंदे भारत के नाम से एक बड़े मिशन की शुरुआत की गई।

प्रवासी श्रमिकों के साथ भेदभाव किया जा रहा है। भारत सरकार से प्रवासी श्रमिकों की मृत्यु पर परिवार मुआवजा दिलाने की मांग की। जब इसे प्रेस आदि द्वारा इसे उजागर किया गया तब स्थति स्पष्ट हुई की प्रवासियों में महिला मजदूरों को कोई सामाजिक सुरक्षा प्रदान नहीं है, ऐसे संकट काल में वह घरों की ओर लौटने को मजबूर हैं। इनमे से कई महिलाएं गर्भवती थी तो कोई बीमार।
याचिका में कहा गया कि नागरिकों, प्रवासियों को भोजन के लिए नुकसान उठाना पड़ रहा है जो महामारी से कहीं ज्यादा वाहक है। 

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