यदि आपने कोई इलेक्ट्रॉनिक/नान-इलेक्ट्रॉनिक सामान खरीदा है या किसी कंपनी से थोक में माल लिया है या डीलर से कोई कॉरपोरेट डील की है या फिर किसी सर्विस प्रोवाइडर से कोई सेवा ली है और आप उससे संतुष्ट नहीं हैं लेकिन आपकी शिकायत पर कंपनी, डीलर, सर्विस प्रोवाइडर ध्यान नहीं दे रहे हैं और अब आप उसके खिलाफ कानूनी कार्यवाही करना चाहते हैं तो आपको कंज्यूमर कोर्ट के बारे में जरूर पता होना चाहिए तो आइए इसे विस्तार से समझते हैं।
कंजूमर कौन है?
जब आप कोई भी वस्तु खरीदते हैं या कोई सेवा जैसे रेल, इंटरनेट आदि लेते हैं तो प्रोडक्ट खरीदते ही आप कंज्यूमर बन जाते हैं। कंज्यूमर को उपभोक्ता, ग्राहक, उपयोगकर्ता, कस्टमर आदि नामों से भी जाना जाता है।
अब यदि किसी दुकान, शोरूम, कंपनी से कोई सामान ख़रीदें और वह खराब निकल जाए तो आपको ऐसे कम्पनी, दुकान, या शोरूम के खिलाफ मुकद्दमा करना है तो आप फोरम में कर सकते हैं।
यदि आपने किसी कंपनी से कोई वस्तु खरीदी है या डीलर से कोई डील की है और उसकी सर्विस से नाख़ुश हैं या फिर उसमें कोई ऐसी खामी है जो आप के अनुरूप नहीं है या उसकी शर्तों के अनुसार नहीं है जो दुकानदार, कंपनी, डीलर या सर्विस प्रोवाइडर ने आपको समझाकर दिया था तो ऐसे में यदि वह आपके मामले की सुनवाई नहीं करता है तो आप कंज्यूमर फोरम में अपने मामला ले जा सकते हैं।
कंज्यूमर फोरम एकसरकारी संस्था है जो उपभोक्ता के अधिकारों के संरक्षण के लिए बनाया गया है। यह भारत सरकार अथवा राज्य सरकार द्वारा संचालित होता है। कंजूमर फोरम जिलों व राज्य या फिर केंद्रीय स्तर पर हो सकती हैं। इसमें कोई पीड़ित जा सकता है जिसे किसी दुकानदार अथवा कम्पनी के सम्बन्ध में कोई भी शिकायत करनी हो। कोई भी व्यक्ति इसमें केस कर सकती है इसके अलावा कोई को-ऑपरेटिव सोसाइटी या कुछ लोगों का समूह या सामाजिक समूह राज्य व केंद्र सरकार के कंजूमर कोर्ट में केस कर सकती है।
कंजूमर की मौत हो जाने पर उसका केस कौन फ़ाइल कर सकता है?
कंजूमर की मौत हो जाने पर उसका जो भी लीगल वारिस होगा वह कंजूमर कोर्ट में शिकायत कर सकता है।
अब कोर्ट में केस करने के क्या तरीके होते हैं?
सबसे पहला तरीका होता है कि आप अपनी समस्या को लेकर पूरी बात राज्य के फ़ोरम में जो भी आपके क्षेत्राधिकार में आता है वहां लिखित रूप से सबमिट कर सकते हैं।
दूसरा तरीका यह है कि आप फोन के माध्यम से कंजूमर फोरम में शिकायत दर्ज करा सकते हैं।
तीसरा तरीका है कि आप एसएमएस के माध्यम से भी अपनी शिकायत कंजूमर फोरम में कर सकते हैं।
चौथा तरीका है कि आप कंजूमर फोरम की वेबसाइट पर जाकर पूरी प्रोसेस को ऑनलाइन फाइल कर सकते हैं आपके मुद्दे की जो-जो शिकायतें हैं आप ऑनलाइन डिटेल में फाइल कर सकते हैं और इस तरह डायरेक्ट कंजूमर कोर्ट में आपका केस फाइल हो जाएगा।
कोर्ट में कोई भी केस फाइल करने के लिए आपको किन बातों का ख्याल रखना है?
शिकायतकर्ता का नाम व विपक्ष का नाम व पूरा पता होना चाहिए
शिकायत में लगाए गए आरोप के समर्थन में जो भी दस्तावेज हैं मसलन रसीद, कैश मेमो, कोई शब्द का अनुबंध पत्र या कोई डीलर के द्वारा प्राप्त आपको अनुबंध पत्र
सर्विस प्रोवाइडर के द्वारा दिया गया या दुकानदार के द्वारा दी गई पक्की रसीद आपके पास होनी चाहिए ।
क्या शिकायतकर्ता को वकील की आवश्यकता होती है?
नहीं, शिकायतकर्ता को वकील की आवश्यकता नहीं होती है अगर शिकायतकर्ता वकील नहीं करना चाहता है तो अपने मामले की पैरवी खुद कर सकता है कोर्ट में आपको यह फैसिलिटी उपलब्ध कराई जाती है।
मुख्य बातें-
आप अपने पत्र में यह जानकारी देनी होगी कि आप कोर्ट से क्या चाहते हैं मतलब आपको कोर्ट से मुआवजा चाहिए सामान के बदले समान चाहिए फिर कोर्ट की फीस चाहिए या फिर यह सभी चाहिए।
यह आपको अपने एप्लीकेशन मेंशन करना होगा अगर आप यह सब मेंशन नहीं करते हैं तो जो भी विपक्ष पार्टी है इस आधार पर वह कोर्ट के फैसले को भी चुनौती दे सकती है कि आपने कोई भी मांग नहीं की थी।
उसके बावजूद भी कोई फैसला लिया गया है तो आपको पूरी जानकारी अपने लेटर हेड में देनी होगी। इसके अलावा आपको यह पत्र प्रेषित इसके जानकारी देनी होगी।
कोर्ट फीस कितनी जमा करनी है?
कोर्ट फीस जमा करना बेहद ज़रूरी है, यह फीस आप प्रेसिडेंट को या फोरम को या फिर डिस्ट्रिक्ट अधिकारी के पास जमा करा सकते हैं जो फ़ोरम से सम्बंधित हो इस फीस को आप पोस्टल आर्डर के रूप में जमा करा सकते हैं
शिकायत कहां करना होगा?
अगर आप कोई भी ऐसा केस है जिसमें आप 20 लाख तक के मामले की सुनवाई करवाने के लिए कर रहे हैं तो अब जिला फोरम इसकी शिकायत दर्ज करा सकते हैं लेकिन अगर आपका कोई ऐसा केस है जिसमें आपका 20,00,000 से लेकर एक करोड़ के बीच का कोई केस है तो आपको इस नए राज्य फोरम है बल्कि स्टेट कमीशन में जाना होगा। इसके अलावा यदि आप का मामला एक करोड़ से अधिक है तो आप नेशनल कमीशन में इसकी शिकायत दर्ज कराएंगे।
इसी तरह से अलग अलग फ़ीस होती है जो आपको पता होना चाहिए जैसे-
एक लाख तक के मामलों पर आपको ₹100 की फीस देनी है
एक लाख से 5 लाख तक के मामलों पर आपको ₹200 फीस देनी है
दस लाख तक के मामलों पर आपको ₹500 फीस देनी है
20 लाख तक के मामलों पर आपको ₹500 फीस देनी है
50 लाख तक के मामलों में आपको दो हज़ार फीस देनी है
एक करोड़ के मामले पर आपको ₹4000 की फीस देनी होती है
फीस जमा करने के बाद संबंधित कोर्ट में अपनी शिकायत सकते हैं
कोर्ट का क्या आदेश दे सकता है?
कोर्ट जो भी आदेश देता है अगर विपक्ष पार्टी उस बात को नहीं मानती है तो उस पर ₹10000 का जुर्माना लग सकता है और उसे जेल हो सकती है लेकिन अगर जेल की सजा काटने के बाद भी वह कोर्ट की बात करता है या कोर्ट के द्वारा बताए गए आदेश का पालन नहीं करता है तो कोर्ट उसकी संपत्ति कुर्क कराने से लेकर उसके कंपनी बंद करके उसकी संपत्ति बेचकर क्षतिपूर्ति देने के लिए आदेश दे सकती हैं
तलाक में कितना खर्चा आता है? तलाक लेने की प्रक्रिया और इस पर खर्च होने वाली धनराशि क्या होगी इस पर कोई विशेषज्ञ राय दे पाना लगभग असंभव है। इसके वास्तविक खर्च का अनुमान लगाने से पूर्व कुछ ऐसे तथ्य हैं जिसपर चर्चा करना आवश्यक है हालांकि फिर भी इस जटिल सवाल का जवाब देना असंभव है कि तलाक लेने का या देने का वास्तविक खर्च क्या होगा। इस निर्णय से पहले यहां कुछ कारक हैं जो तलाक की कुल लागत को प्रभावित करते हैं पहले इसे जान लें। आपसी सहमति के तहत तलाक लेने में एक विवादास्पद तलाक से कम खर्च होगा। विस्थापित (अलगाव) दंपत्ति का रिश्ता एक प्रमुख कारक होता है। ऐसे रिश्ते में दंपत्ति जितना अधिक मुख्य मुद्दों पर असहमत होता है, उतना अधिक महंगा तलाक होगा, लेकिन बिना बच्चों या वयस्क (बालिग) बच्चों वाले दम्पति का तलाक नाबालिग बच्चों के साथ तलाक से अधिक महंगा होगा। सामुदायिक संपत्ति के विभाजन की असहमति तलाक की लागत में वृद्धि करेगी। निर्वाह (जीवन यापन) धन शामिल तलाक अधिक महंगा है। तलाक की कानूनी लागत का आकलन करना। वकील का शुल्क: एक वकील घ...
क्या सहमति से तलाक़ लिया जा सकता है? पति पत्नी के बीच यदि बन नहीं रही है तो सहमति से तलाक लेने की प्रक्रिया अपनाई जा सकती है। सहमति से तलाक लेने के लिए पहले दोनों ही पक्षों को कोर्ट में एक याचिका दायर करनी होती है। फिर दूसरे चरण में कोर्ट द्वारा दोनों पक्षों के अलग-अलग बयान लिए जाते हैं और दस्तखत की औपचारिकता होती है। तीसरे चरण में कोर्ट दोनों को 6 महीने का वक्त देता है ताकि वह अपने फैसले को लेकर दोबारा सोच सकें। और फिर यदि दोनों ही पक्ष तलाक के फैसले पर कायम रहते हैं तो 6 महीने के बाद कोर्ट द्वारा उनके फैसले के अनुरूप उन्हें तलाक़ की अनुमति दे दी जाती है। क्या केवल लड़का तलाक ले सकता है? आपसी समझौते के आधार पर तलाक लेने की कुछ शर्तें होती हैं। यदि पति और पत्नी शादी के बाद 1 साल या उससे ज्यादा समय से अलग रह रहे हो और दोनों में पारस्परिक रूप से तलाक़ लेने को सहमत हैं। एक दूसरे के साथ रहने पर कोई भी राजी नहीं है या दोनों पक्षों में सुलह की कोई स्थिति नजर नहीं आती है तो ऐसे में सहमति के आधार पर तलाक के लिए आवेदन करने का हक होता है। इसे मैचुअल कंसेंट डायवोर्स कहा जाता है यानी आपसी सहमति से तल...
एक चेक बाउंस के मामले में क्या करें और क्या न करें? चेक क्या है? एक चेक एक निर्दिष्ट बैंकर पर आहरित एक्सचेंज का बिल है और केवल मांग पर देय है। कानूनी तौर पर, जिस व्यक्ति ने चेक जारी किया है, उसे ‘आहर्ता’ कहा जाता है और जिस व्यक्ति के पक्ष में चेक जारी किया जाता है उसे‘अदाकर्ता’ कहा जाता है। चेक लेते समय यह जांच करें- यह लिखित रूप में होना चाहिए। यह एक बिना शर्त आदेश होना चाहिए। बैंकर को निर्दिष्ट करना है। भुगतान एक निर्दिष्ट व्यक्ति को निर्देशित किया जाना चाहिए। यह मांग पर देय होना चाहिए। यह एक विशिष्ट राशि के लिए होना चाहिए। आहर्ता’ के हस्ताक्षर होना चाहिए। चेक बाउंस / चेक की अस्वीकृति क्या है? एक चेक को अस्वीकृत या बाउंस तब कहा जाता है, जब वह किसी बैंक को भुगतान के लिए प्रस्तुत किया जाता है, लेकिन किसी कारण या दूसरे अन्य कारणवश भुगतान नहीं किया जाता है। निम्नलिखित में से कुछ कारणों से एक चेक आम तौर पर बाउंस हो जाता है:- हस्ताक्षर मेल मिलान नहीं है चेक में उपरी लेखन किया गया हो तीन महीनों की समाप्ति के बाद चेक प्रस्तुत किया गया था, यानी चेक की समय सीमा समाप्ति के बाद खाता ब...
तलाक़ के बाद बच्चे पर किसका अधिकार होगा? तलाक़ ले रहे दम्पति के बीच बच्चे की कस्टडी को लेकर अक्सर विवाद उत्पन्न हो जाता है। बच्चे की कस्टडी किसे मिलेगी किसे नहीं यह कई बातों पर निर्भर करता है। मसलन बच्चे की उम्र, लिंग, परिस्थिति आदि। इसके साथ ही यह निर्णय पूरी तरह कोर्ट पर निर्भर है कि बच्चे कि कस्टडी किसको दी जाये। बच्चे का पिता अमीर है इसलिए बच्चा उसी को मिलना चाहिए? माता-पिता की आय व बेहतर शिक्षा की उम्मींद ही कस्टडी देने का मापदंड नहीं हो सकता। चूँकि बच्चा कोई सामान नहीं है जो बिना उचित तर्क के किसी एक को सौंप दिया जाये। माता-पिता की आय तो क्या बच्चे की परवरिश अच्छी ही होगी। कस्टडी की समस्या को मानवीय तरीके से हल किया जाना चाहिएः हाईकोर्ट बिलासपुर में दाखिल एक याचिका की सुनवाई के दौरान छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट के जस्टिस गौतम भादुड़ी और जस्टिस एनके चंद्रवंशी की बेंच ने बच्चे की कस्टडी को लेकर पेश किए गए मामले में एक महत्वपूर्ण टिप्पणी करते हुए कहा है कि "बच्चा कोई सामान नहीं है" बच्चे का कल्याण ही फैसले का आधार होना चाहिए। माता- पिता की इनकम अच्छी है और बच्चे की बेहतर शिक्षा की व्...
पॉक्सो एक्ट (POCSO) एक केंद्रीय कानून है? इस अधिनियम (कानून) को महिला और बाल विकास मंत्रालय ने साल 2012 पोक्सो एक्ट-2012 के नाम से बनाया था। इस कानून के जरिए नाबालिग बच्चों के प्रति यौन उत्पीड़न, यौन शोषण और पोर्नोग्राफी जैसे यौन अपराध और छेड़छाड़ के मामलों में कार्रवाई की जाती है। इस कानून के अंतर्गत अलग-अलग अपराध के लिए अलग-अलग सजा निर्धारित की गई है। पॉक्सो एक्ट (POCSO) कब लगता है? किसी विवाद की विषयवस्तु तथा मुख्य मुद्दे को जानने के लिए पॉक्सो अधिनियम, 2012 का संक्षिप्त अवलोकन करना आवश्यक है। पॉक्सो एक्ट 2012 यौन उत्पीड़न और अश्लीलता (पोर्नोग्राफी) के अपराधों से बच्चों को बचाने के लिए लागू किया गया था। यह एक जेंडर न्यूट्रल लॉ है जो 18 वर्ष से कम उम्र के बालक और बालिकाओं दोनों पर सामना रूप से लागू होता है। पॉक्सो एक्ट (POCSO) की परिभाषा के अनुसार कितने वर्ष से कम आयु का व्यक्ति नाबालिग है? भारतीय कानून में बालिग तथा नाबालिग की परिभाषा प्रस्तुत की गई है इसके अतिरिक्त पॉक्सो अधिनियम की परिभाषा के अनुसार, 18 वर्ष से कम आयु के बच्चों को नाबालिग माना जाता है। यह 18 वर्ष से कम आयु के...
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हर व्यक्ति के जीवन में कई प्रकार की घटनाएं घटित होती रहती है। जाने अनजाने में कभी कभी व्यक्ति से अपराध भी हो जाता है और कभी-कभी आपसी रंजिश के कारण अन्य व्यक्ति के द्वारा भी किसी व्यक्ति को झूठे मामले में फसाया जाता है। किसी केस में नाम आने से पुलिस द्वारा संबंधित व्यक्ति की गिरफ्तारी कर ली जाती है। ऐसे में बिना कोई अपराध किये ही केवल आपसी रंजिश के कारण संबंधित व्यक्ति को काफी परेशानी उठानी पड़ सकती है। लेकिन ऐसे व्यक्ति के लिए कानून में जमानत लेने का अधिकार प्रदान किया गया है और इस अधिकार का उपयोग करके कोई भी व्यक्ति जमानत प्राप्त कर सकता है लेकिन अपराध की गंभीरता को देखते हुए कई ऐसे अपराध है। जिनके लिए कानून में जमानत की व्यवस्था नहीं की गई है। इसलिए आज आपको इस आर्टिकल के माध्यम से बेल यानि ज़मानत के बारे में पूरी जानकारी देंगे जिससे आपको काफ़ी मदद भी मिल सकती है। इस आर्टिकल के माध्यम से आप जानेंगे की- जमानत क्या है? किसी व्यक्ति की जमानत कैसे ले सकते हैं? ज़मानत लेने पर क्या रिस्क है? किसी अपराधी की जमानत का विरोध कैसे करें? जमानत ना मिलाने की स्थिति में क्या करें? जमानत क्या है? ...
ऑनलाइन आवेदन दाखिल-खारिज करते समय आवश्यक कागजात क्या है? यदि आप दाखिल-खारिज के लिए ऑनलाइन आवेदन करना चाहते हैं तो इसके लिए आपको ज़मीन के सम्बन्ध जानकारियों को ऑनलाइन आवेदन करते समय भरना होगा। जैसे ज़मीन का बैनामा किस तिथि को कराया गया था। किस निबंधन कार्यालय में कराया गया था। किस क्रम संख्या व प्रपत्र पर आपका बैनामा दर्ज है। इसके बाद आप जरूरी जानकारी ऑनलाइन फॉर्म में भरने के बाद सबमिट कर देंगे। लेकिन याद रखें अगर उत्तर प्रदेश में दाखिल-खारिज का आवेदन करना चाहते हैं तो 2012 के बाद कराए गए बैनामों का ही दाखिल खारिज ऑनलाइन संभव है। इसके पहले के दाखिल खारिज कराने के लिए आपको संबंधित तहसील में जाकर आवेदन करना होगा। ज़मीन खरीदने के कितने दिन बाद दाखिल-खारिज करवाना होता है? अमूमन दाखिल खारिज कराने की प्रक्रिया बैनामा के तुरंत बाद कराई जा सकती है। लेकिन दाखिल खारिज होने में लगभग 45 दिन का समय लग जाता है। यह संबंधित कार्यालयों में अलग-अलग हो सकते हैं। क्योंकि दाखिल-खारिज की प्रक्रिया में लेखपाल व राजस्व निरीक्षक के रिपोर्ट दाखिल होने के बाद ही नामांतरण का आदेश किया जाता है। इसलिए इस प्रक्रिया ...
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