अंतर धार्मिक विवाह करने के लिए किसकी अनुमति ज़रूरी है? क्या कोर्ट मैरिज रजिस्ट्रार विवाह पंजीकरण करने से इनकार कर सकता है? जानिए प्राविधान

सरकार को सुचारू रूप से चलाने के लिए धन की आवश्यकता होती है और सरकार यह धन कर राजस्व के रूप में प्राप्त करती है। सरकार द्वारा कितने तरह के टैक्स जनता पर आरोपित किये जाते हैं? इसके बारे में विस्तार से समझते हैं। और जानते हैं इन सवालों के जवाब-
केंद्र सरकार का राजस्व खाते पर प्राप्तियों के अनुमानों को दो भागों में बांटा जाता है
केंद्र सरकार द्वारा गृहीत कर को तीन भागों में विभक्त किया जाता है:-
कर-भिन्न राजस्व को निम्नलिखित में विभक्त किया जाता है-
आयकर दो प्रकार के होते हैं अर्थात वैयक्तिक आय (Personal Income Tax) और निगम कर (Corporation Tax) अर्थात कंपनी लाभ पर कर।
केंद्र सरकार द्वारा वैयक्तिक आय कर (Personal Income Tax) व्यक्तियों पर लगाया जाता है और इससे प्राप्त राजस्व को केंद्र और राज्यों में सहभजित किया जाता है। आयकर सभी व्यक्तियों पर नहीं लगाया जाता परंतु केवल उन व्यक्तियों पर जो समृद्ध होते हैं। इसका आधार 'अदा करने की सामर्थ' (Ability to pay) का सिद्धांत है।
निगम कर (Corporation Tax) कंपनियों की आय पर कर है। केंद्र सरकार बड़ी तथा छोटी कंपनियों के लाभ पर लगाती रही है।
ब्याज कर अधिनियम (1947) ने वाणिज्य बैंकों द्वारा भारत में दिए गए ऋणों एवं अग्रिमों से प्राप्त ब्याज की सकल राशि पर ब्याज-कर और विशेषकर लगाया। सरकार ने 1985 में ब्याज कर समाप्त कर दिया परंतु बाद में एक अस्फीतिकारी उपाय के रूप में पुनः लगा दिया। यह कर उधार संस्थानों अर्थात बैंकों, सार्वजनिक वित्त संस्थानों, वित्तीय कंपनियों आदि की सकल ब्याज रूपी पर लगाया जाता है।
यह किसी व्यक्ति की संपदा पर लगाया जाता था। जब इसका हस्तांतरण उसके उत्तराधिकारियों को होता था। यह शुल्क केंद्र सरकार द्वारा लगाया एवं एकत्र किया जाता है। परंतु इससे प्राप्त राशि राज्यों को सौंप दी जाती थी। क्योंकि कर से प्राप्त बहुत ही कम थी। जबकि प्रशासन की लागत सापेक्षता अधिक थी। वी. पी. सिंह ने जब वे वित्त मंत्री थे, इस कर को 1985 में समाप्त कर दिया।
यह अप्रैल 1985 में लगाया गया। यह सम्पदा शुल्क, संपत्ति कर और व्यय कर का अनुपूरकथा। उपहार कर इसलिए जरूरी था, कि इन तीन अन्य करो के कर वंचन को रोका जा सके। उपहार कर प्रत्येक वित्तीय वर्ष में गत वर्ष के दौरान दिए गए उपहार पर वसूल किया जाता है। इस कर की बुनियादी कमजोरी यह थी कि यह दाता पर लगाया जाता था। 1990-91 के बजट में उपहार-कराधान के बारे में मुख्य परिवर्तन किए गए।
उदाहरणर्थ उपहार कर दाता पर न लगाकर उपहार ग्रहण करने वालों पर लगाया गया; छूट की सीमा बढ़ा दी गई और कर की दर घटा दी गई परंतु यह परिवर्तन कार्यान्वित न किया जा सके। वर्ष 1998-99 के बजट में यशवंत सिन्हा ने इस कर को इस आधार पर समाप्त कर दिया कि इससे बहुत ही कम राजस्व प्राप्त होता था।
यह शुल्क केंद्र द्वारा देश में उत्पन्न की गई वस्तुओं पर लगाए जाते हैं। परंतु वे वस्तुएं जिन पर राज्य सरकारें उत्पाद शुल्क लगाती हैं। जैसे- शराब और औषधियां, वे केंद्रीय उत्पाद शुल्क से मुक्त रखी जाती हैं। आरंभ में चीनी, रुई कारखानों का कपड़ा, तंबाकू, मोटर स्पिरिट, माचिस, सीमेंट आदि पर उत्पाद शुल्कों से अधिकतर राजस्व प्राप्ति की जाती थी। हाल ही के वर्षों में उत्पाद शुल्कों का विस्तार बहुत सी वस्तुओं पर किया गया है और पहले लगाए गए शुल्कों की दरें भी बढ़ा दी गई हैं।
प्रत्येक वर्ष सरकार नई सेवाओं को सेवा कर के अधीन लाती जाती है। वास्तव में, यह कर केंद्र सरकार के लिए सबसे अधिक रफ्तार से बढ़ता हुआ कर है। भारत सरकार के वित्त मंत्रालय का यह अनुमान है कि आने वाले वर्षों के दौरान, सेवा कर से बहुत अधिक राजस्व प्राप्त किया जा सकेगा।
ये शुल्क भारत में आयतित वस्तुओं या भारत से निर्यात वस्तुओं पर लगाए जाते हैं। चूंकि निर्यात शुल्क भारतीय निर्यात की अंतरराष्ट्रीय बाजारों में शक्ति को कम करते हैं, सरकार ने निर्यात शुल्क हटा दिए हैं। आयात शुल्क सापेक्ष दृष्टि से अधिक उत्पादक हैं। सीमा शुल्क, विशेषकर आयात शुल्कों से, राजस्व में भारी वृद्धि हुई है। इसका कारण लौह तथा इस्पात, रसायनों औषधियों एवं दवाइयों, उर्वरकों, पेट्रोलियम पर आयात शुल्क है।
आय,सम्पति एवं वस्तुओं पर करो के अतिरिक्त, केंद्र सरकार को कुछ अन्य स्रोतों से भी आय प्राप्त होती है। जिन्हें सामान्यत: कर भिन्न राजस्व कहा जाता है। इनमें राजकोषीय प्राप्तियां, ब्याज प्राप्तियां, सरकारी उद्यमों को लाभांश और लाभ सामान्य सेवाएं आदि हैं।
वर्ष 1987-88 के बजट में केंद्र सरकार ने एक नया वर्गीकरण अपनाया था। इसके अधीन, सभी व्यय को दो भागों में बांटा गया-
गैर योजना व्यय को राजस्व व्यय और पूंजीव्यय में विभक्त किया गया। राजस्व व्यय के अधीन हम शामिल करते हैं ब्याज भुगतान, प्रतिरक्षा, राजस्व व्यय, मुख्य अर्थसहा, ब्याज एवं अन्य सहाय्य, किसानों को ऋण राहत, डाकघाटा, पुलिस, पेंशन अन्य सामान्य सेवाएं, सामाजिक, आर्थिक सेवाएं, शिक्षा, स्वास्थ्य प्रसारण, कृषि, उद्योग, पावर परिवहन, संचार विज्ञान एवं टेक्नोलॉजी और राज्य एवं संघीय क्षेत्रों को अनुदान और विदेशी सरकारों को अनुदान।
गैर योजना पूंजी व्यय में हम शामिल करते हैं- प्रतिरक्षा पूंजी व्यय, सार्वजनिक उधमों को ऋण, राज्यों एवं संघीय क्षेत्रों के लिए ऋण और विदेशी सरकारों को ऋण।
केंद्रीय योजनाएं जैसे-कृषि, ग्राम विकास, सिंचाई एवं बाढ़ नियंत्रण, ऊर्जा, उद्योग एवं खनिज परिवहन, संचार, विज्ञान एवं तकनीकी और पर्यावरण, सामाजिक सेवाएं एवं अन्य और राज्यों एवं संघीय क्षेत्रों की योजनाओं के लिए केंद्रीय सहायता।
सामाजिक एवं सामूहिक विकास पर पूंजी व्यय
राज्य का अपना कर भिन्न राजस्व जिसमें ब्याज प्राप्तियां, लाभांश एवं लाभ, सामान्य सेवाएं, सामाजिक एवं आर्थिक सेवाएं शामिल की जाती हैं। अब राज्य सरकारें भारी मात्रा में राजस्व के लिए केंद्र सरकार पर निर्भर हो गई हैं। वे 1999-2000 तक वैयक्तिक आयकर और उत्पाद शुल्क में अपना भाग केंद्र सरकार द्वारा एकत्र किए करो से प्राप्त करते थी। इस प्रणाली को अब परित्याग कर दिया गया है।
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