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सत्यमेव जयते!

शिक्षा से क्यों वंचित है गरीबों के बच्चे | क्या है शिक्षा का अधिकार (Right To Education)

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शिक्षा का अधिकार (Right To Education) हाल ही में  उच्चतम न्यायालय  द्वारा शिक्षा के अधिकार के विषय में एक महत्वपूर्ण बात कही गई कि;  "शिक्षा का अधिकार एक जीने के अधिकार का एक आवश्यक मार्ग (अवयव) है;  उच्चतम न्यायालय" शिक्षा (Education) के बिना एक सभ्य , सुसंस्कृत एवं सम्माजनक जीवन की कल्पना नहीं की जा सकती। शिक्षा  (Education)  हमारे जीवन का एक अनिवार्य अंग है। भारत में स्कूली शिक्षा को अनिवार्य किए जाने की माँग सर्वप्रथम 1917 में गोपाल कृष्ण गोखले ने की थी। 1937 में महात्मा गाँधी एवं डॉ- जाकिर हुसैन ने स्कूली शिक्षा  (Education)  को अनिवार्य किये जाने की आवश्यकता पर बल दिया। बाद में संविधान निर्माताओं ने शिक्षा को अनिवार्य किये जाने के प्रावधान को भाग 4 में स्थान दिया।  उन्नीकृष्णन बनाम आंध्रप्रदेश राज्य के वाद में 1993 में सर्वोच्च न्यायालय ने निर्णय दिया कि संविधान के खण्ड 4 के अनुच्छेद 45 के खण्ड 3 के अनुच्छेद 21 के साथ मिलकर पढ़ा जाना चाहिए। अनुच्छेद 45 में यह प्रावधान था कि राज्य 14 वर्ष तक के बालकों को अनिवार्य और निःशुल्क शिक्षा  (Educati

क्या है अनुसूचित जाति एवं जनजाति के शोषण विरुद्ध अधिकार | Rights of Scheduled Caste and Scheduled Tribe

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अनुसूचित जाति (S cheduled Caste)  एवं जनजाति (S cheduled Tribe)  अत्याचार और निवारण: "अत्याचार शब्द का मतलब उन अपराधों से है जो गैर अनुसूचित जाति एवं जनजाति के सदस्यों (सर्वण जाति) द्वारा   अनुसूचित जाति एवं जनजाति वर्ग के सदस्यों के विरूद्ध किये जाते हैं।"  अनुसूचित जाति  (S cheduled Caste)  एवं जनजाति  (S cheduled Tribe)  अत्याचार निवारण अधिनियम: वर्षों से भारत में एक वर्ग जिसे संविधान के माध्यम से अनुसूचित जाति  (Scheduled Caste)  एवं जनजाति  (S cheduled Tribe)  के रूप में अनुसूचित किया गया , शोषण , अत्याचार , अपमान , साधनहीनता , भूख , गरीबी व यातनाओं का शिकार होता रहा है। अनेक समाज सुधारकों ने समय-समय पर इस वर्ग के उत्थान के लिए प्रयास किए हैं , जिनमें डॉ- भीमराव अम्बेडकर तथा महात्मा ज्योतिबा फूले का योगदान उल्लेखनीय है। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 366, 341 व 342 में अनुसूचित जाति  (Scheduled Caste)  एवं जनजाति  (S cheduled Tribe)  शब्द को परिभाषित किया गया है और उसकी व्याख्या की गई है जिसके अनुसार “ राष्ट्रपति किसी राज्य या संघ राज्यक्षेत्र के संबंध में औ

क्या है मानवाधिकार के हक़ और पुलिस का व्यवहार | Human Rights and Police

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मानवाधिकार और पुलिस " मानवाधिकार (Human Rights)  सभी मनुष्यों को प्राप्त वे अधिकार हैं, जो सम्मानजनक जीवन जीने हेतु आवश्यक हैं।" मानवाधिकार  (Human Rights)  मानव मात्र को प्राप्त ऐसे अधिकार हैं जो मनुष्य की गरिमा और स्वतंत्रतामय जीवन के लिये आवश्यक हैं। इन अधिकारों को प्रायः मौलिक अधिकार, नैसर्गिक अधिकार, जन्म से अधिकार आदि नामों से जाना जाता है। अनेक प्राचीन दस्तावेजों में ऐसी अनेक अवधारणायें मिलती हैं जिन्हें मानवाधिकारों के रूप में चिंहित किया जा सकता है। आधुनिक मानवाधिकार कानून तथा मानवाधिकार की अधिकांश अवधारणायें समसामयिक इतिहास से सम्बन्धित हैं। ‘द टवैल्व आर्टिकल्स ऑफ दि ब्लैक फॉरेस्ट’ (1525) को यूरोप में मानवाधिकारों का सर्वप्रथम दस्तावेज माना जाता है। यह जर्मनी के किसान विद्रोह स्वाबियन संघ के समक्ष उठायी गई किसानों की मांग का एक हिस्सा है। 1776 में संयुक्त राज्य अमेरिका 1789 में फ्रांस में दो प्रमुख क्रान्तियां घटी जिसके फलस्वरूप क्रमशः संयुक्त राज्य की स्वतंत्रता की घोषणा एवं फ्रांसीसी लोगों की मानव तथा नागरिकों के अधिकारों का अभिग्रहण हुआ। मानवाधिकार

कॉलेजियम सिस्टम क्या है | Indian judiciary System

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कॉलेजियम सिस्टम क्या है? कॉलेजियम सिस्टम सर्वोच्च न्यायालय में स्थापित एक समिति है।  इस समिति में मुख्य न्यायाधीश सहित पांच वरिष्ठ जज होते हैं। इस समिति के द्वारा ही उच्च न्यायालय तथा सर्वोच्च न्यायालय के जजों की नियुक्ति होती है। यह व्यवस्था वर्ष 1993 में आई थी। इसके पहले भारतीय संविधान जजों की नियुक्ति का आधार  अनुच्छेद 124 (2) और 217 (1)  था और इसी के द्वारा जजों की नियुक्ति होती थी।  अनुच्छेद 124 में प्रावधान है कि राष्ट्रपति मंत्रिमंडल की सहमति से जजों की नियुक्ति करेगा। अनुच्छेद में यह भी प्रावधान है कि राष्ट्रपति सर्वोच्च न्यायालय या उच्च न्यायालय के जजों से परामर्श लेकर नियुक्त करेगा। परामर्श मानना या ना मानना राष्ट्रपति के विवेक पर निर्भर करता है लेकिन यहीं पर परामर्श शब्द पर पेंच फस गया। सर्वोच्च न्यायालय में 1993 में एक PIL (जन हित याचिका) दाखिल हुआ। वादकारी एडवोकेट ऑन रिकॉर्ड एसोसिएशन बनाम यूनियन ऑफ़ इंडिया 1993 था। इस केस में मुख्य न्यायाधीश जे.एस. वर्मा सहित नौ जजों की बेंच ने यह फैसला पारित कर दिया कि अनुच्छेद 124 (2) में लिखित शब्द परामर्श यानी Consultation

Court Order | महिलाओं के मस्जिद जाने पर पाबंदी नहीं!

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महिलाओं के मस्जिद जाने पर पाबंदी नहीं! ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल ला बोर्ड ने सुप्रीम कोर्ट में साफ किया है कि मस्जिदों में महिलाओं के प्रवेश को लेकर कोई पाबंदी नहीं है। वह नमाज के लिए मस्जिद में जाने के लिए स्वतंत्र हैं हालांकि बोर्ड ने यह भी जोड़ा है कि महिलाओं के लिए जमात के साथ नमाज यानी समूह प्रार्थना या सामूहिक प्रार्थना में शामिल होना अनिवार्य नहीं है। बोर्ड ने यह हलफनामा दो मुस्लिम महिलाओं की ओर से दायर याचिका के जवाब में दिया है जो मस्जिद में प्रवेश कर सबके साथ नमाज नमाज अदा करना चाहती हैं। सुप्रीम कोर्ट ने याचिका पर ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल ला बोर्ड को नोटिस जारी कर याचिका में उठाए गए मुद्दों पर जवाब देने को कहा था। मामले को सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के लिए 9 जजों को रेफर किया था।  25 अक्टूबर 2019 को सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार और अन्य प्रतिवादियों से जवाब दाखिल करने को कहा था। जिसमें कहा गया था कि मुस्लिम महिलाओं को देश भर की तमाम मस्जिदों में प्रवेश दिया जाए। बाद में सबरीमाला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश के मामले की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने मामले को लार्जर बें

मोटर वाहन अधिनियम 1988 | गाड़ी बेचने से पहले ये काम ज़रूर कर लें

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अगर अपने अपना निजी या कमर्शियल वाहन बेच दिया है। वाहन क्रेता को हैंड ओवर भी कर दिया है लेकिन रजिस्ट्रेशन के कागज में अभी भी आपका नाम दर्ज है तो आप ही गाड़ी के वास्तविक मालिक माने जाएंगे, तो यह समझ लीजिए कि आप लंबी कानूनी प्रक्रिया में फंस सकते हैं। सुप्रीम कोर्ट ने अभी हाल ही में दिए गए फैसले में कहा है कि यदि कोई व्यक्ति अपना वाहन बेचने के बाद वाहन रजिस्ट्रेशन पेपर में अपना नाम नहीं चेंज करवाता है तो गाड़ी का मालिक वही माना जायेगा। ऐसी स्थिति में किसी अनहोनी के समय उस पर ही कारवाही की जाएगी। जिसका नाम रजिस्ट्रेशन कागज में वही मालिक माना जाएगा भले ही क्रेता व विक्रेता दोनों पार्टियों ने कॉन्ट्रेक्ट पेपर बनावा लिया हो। यदि खरीददार ने वाहन को अपने कब्जे में ले लिया और वाहन का उपयोग शुरू कर दिया है तो दुर्घटना की स्थिति में विक्रेता ही जिम्मेदार होगा क्योंकि पंजीकृत मालिक के रूप में अभी विक्रेता ही है। अदालत ने एक केस सुनवाई के वक्त कहा, जिसमें सुरेंद्र कुमार बुलावे बनाम द न्यू इंडिया इंश्योरेंस कंपनी का मुद्दा था। इस केस में याचिकाकर्ता सुरेन्द्र ने अपना एक ट्रक किसी अंसारी नाम

269 और 270 जाने उल्लंघन पर सजा का प्रावधान।

269 और 270 जाने उल्लंघन पर सजा का प्रावधान।  आईपीसी की धारा 269 और 270 जाने का उल्लंघन करने पर क्या सजा मिल सकती है? किन धाराओं के अंतर्गत मुकदमा दर्ज हो सकता है। कोरोना वायरस के प्रकोप और इसके प्रभावी खतरे को देखते हुए देश भर में लॉकडाउन के बीच भारतीय दंड संहिता आईपीसी की दो धाराएं लागू की गई जो तब से ही चर्चा में है। इसमें आईपीसी की धारा 269 और धारा 270 शामिल है। जानिए आखिर लॉकडाउन के दौरान प्रभावी धाराएं क्या हैं? दरअसल कोरोना संकट के बीच कांगड़ा निवासी 63 वर्षीय एक बुजुर्ग महिला के खिलाफ धारा 270 के तहत मामला दर्ज हुआ दर्ज किया गया था। यह बुजुर्ग महिला दुबई से यात्रा कर भारत लौटी थीं और उन्होंने इस दौरान अपनी यात्रा का सही ब्योरा नहीं दिया था। बाद में जांच हुए तो पता चला वह कोरोना पॉजिटिव थीं। इस केस के बाद कांगड़ा के ही रहने वाला एक 32 वर्षीय व्यक्ति के खिलाफ धारा 270 के तहत मामला दर्ज हुआ है। यही नहीं जब सिंगापुर से भारत लौटीं बालीवुड की मशहूर सिंगर कनिका कपूर के खिलाफ आईपीसी की धारा के तहत केस दर्ज हुआ है तब से मामला तूल पकड़ा और उन पर धारा 269 और धारा 188 के तहत मामल

ऑनलाइन होगा जमीनों का आवंटन, जल्द तैयार होगा लैंड बैंक

ऑनलाइन होगा जमीनों का आवंटन, जल्द तैयार होगा लैंड बैंक उत्तर प्रदेश में निवेश करने वाले निवेशकों को आसानी से जमीन उपलब्ध हो सके। इसके लिए जमीन आवंटन से लेकर अन्य व्यवस्थाएं ऑनलाइन होंगी। इंडस्ट्री विभाग एक ऐसा सिस्टम तैयार कर रहा है। जिसके माध्यम से निवेशकों को कहां जमीन खाली है, जमीन की क्या कीमत है, उस इलाके में जमीन लेने पर राज्य सरकार की तरफ से क्या सुविधाएं दी जाएंगी। इन सभी बातों की जानकारी एक क्लिक पर ऑनलाइन मिल सकेगी। यह सिस्टम रियल टाइम डाटा के साथ होगा। जल्द ही इंडस्ट्री विभाग के द्वारा इस नई व्यवस्था का शासनादेश जारी कर दिया जाएगा। इसमें इंडस्ट्री विभाग के हर एक लैंडबैंक की जानकारी होगी। इंडस्ट्री विभाग, जो सिस्टम बनाने जा रहा है उसमें हर एक औद्योगिक विकास प्राधिकरण में खाली जमीनों की जानकारी होगी। साइट पर जमीनों से संबंधित जानकारी और जीआईएस मैपिंग और रियल टाइम डेटा पर आधारित होगी। इसका फायदा यह होगा कि अगर कोई निवेशक किसी औद्योगिक विकास प्राधिकरण की कोई जमीन खरीदता है, तो वह अपने आप उस साइट से हट जाएगी। ताकि किसी दूसरे निवेशकको वह जमीन न दिखाई दे। जमीन की उपलब्धत

कोर्ट ने भी माना देश के लिए खतरा है टिक-टॉक, इस पर तुरंत नियंत्रण की जरूरत।

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उड़ीसा हाईकोर्ट ने एक जमानत आवेदन पर विचार करते हुए कहा कि अब समय है कि टिक-टॉक मोबाइल एप्लीकेशन को पूरी तरह से नियंत्रित किया जाए। सुनवाई के दौरान न्यायमूर्ति एसके परीक राय ने कहा कि यह एप्लीकेशन अक्सर अपमानजनक और अश्लील कल्चर को प्रदर्शित करता है और स्पष्ट रूप से परेशान करने वाली सामग्री के अलावा पोर्नोग्राफी को भी बढ़ावा देता है। इस तरह के एप्लीकेशन को नियंत्रित करने की आवश्यकता है। जिससे किशोरों को इससे नकारात्मक प्रभाव से बचाया जा सके। इस मामले में आरोपी ने मृतक की पत्नी के साथ मिलकर निजी (इंटीमेट) वीडियो टिक-टॉक पर पोस्ट किए थे जिसके बाद मृतक ने आत्महत्या कर ली थी। दोनों आरोपियों पर आईपीसी की धारा 306 के तहत आरोप लगाए गए थे। हालांकि अदालत ने दोनों आरोपियों को जमानत दे दी। लेकिन टिक-टॉक का युवाओं व किशोरों पर प्रभाव का उल्लेख किया और कहा कि ऐसा प्रतीत होता है कि ऐसे मामले दुखद अंत का कारण बनते जा रहे हैं। कोर्ट ने कहा कि पोस्ट की गई सामग्री को अपडेट द्वारा छुआ नहीं जा सकता है। इस तरह किसी के निजी पल को प्रसारित करना पीड़ित को प्रताड़ित करने के साथ अपमानजनक भी हो रहा है।

NIL लायबिलिटी है तो GST SMS से फ़ाइल करें!

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NIL GST लायबिलिटी वाले 30 लाख से ज्यादा कारोबारियों को राहत देते हुए केंद्र सरकार ने उन्हें एसएमएस के जरिए भी रिटर्न भरने की सुविधा दे दी है। इसके लिए जीएसटी पोर्टल पर NIL फॉर्म GSTR-3B की सुविधा शुरू की गई है। कारोबारी फोन के जरिए ही रिटर्न का फाइलिंग स्टेटस भी ट्रैक कर सकेंगे। सेंट्रल बोर्ड आफ इनडायरेक्ट टैक्सेस एंड कस्टम्स ने इसके लिए नंबर जारी किया है।इसके लिए कारोबारियों को NIL-SPACE-3B-SPACE-GST NUMBER-SPACE-TAX का मैसेज टाइप करना होगा और इसे 14409 पर भेजना होगा। इसके बाद एक कोड आएगा जो 6 नंबर का होगा। अब आपको फाइलिंग के लिए कंफर्म करना है जिसमें यह कोड लगेगा और CNF-3B का मैसेज टाइप करना होगा। इसके बाद रिटर्न भरने का कंफर्मेशन आएगा। अगर कोई मदद चाहिए तो भी आप एसएमएस के जरिए ले सकते हैं। उसके लिए HELP 3B टाइप करके भेजना होगा, आपके मोबाइल फोन पर हेल्प प्रोसेस की पूरी प्रक्रिया आ जाएगी। एक टैक्स एक्सपर्ट ने कहा कि कई ऐसे कारोबारी हैं, जिनकी बिक्री नहीं होती। कई ऐसे होते हैं जिनकी जितनी बिक्री होती उससे अधिक ऑर्डर कैंसिल हो जाते हैं ऐसे में उनका जीएसटी शून्य हो जाता है,

भारत में इंसानों पर नहीं होगा कोरोना वैक्सीन का क्लीनिकल ट्रायल | भारत में क्लीनिकल ट्रायल के कानून विकसित देशों से जुदा

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आज पूरा विश्व कोरोना  वैक्सीन की खोज में  लगा हुआ है लेकिन अब तक किसी भी देश में इसका पूर्णतयः सफल परीक्षण नहीं हो सका है। वहीं कई संपन्न देश की नज़रें भारत पर टिकी हैं। इंसानो दवा परीक्षण के नियमों के चलते कई संपन्न देशों की तुलना में भारत में परीक्षण आसान और सस्ता है। लेकिन परिजनों की अनुमति के बिना किसी भी व्यक्ति पर क्लीनिकल ट्रायल नहीं हो सकता। पूर्व में हुए ऐसी घटनाओं के चलते सुप्रीम कोर्ट भी इस पर प्रतिबंध लगा चुका है- क्लीनिकल ट्रायल:- स्वास्थ्य संबंधी किसी विशिष्ट समस्या का इलाज तलाशने के लिए मानव पर किए जाने वाले शोध अध्ययन को चिकित्सकीय परीक्षण (क्लिनिकल ट्रायल) कहते हैं। इस प्रक्रिया में लोग खुद से अपने ऊपर शोध करवाने कराने के लिए तैयार होते हैं। सावधानी पूर्वक किए गए चिकित्सकीय परीक्षण लोगों का इलाज करने और उनके स्वास्थ्य में सुधार करने का सबसे सुरक्षित और तेज तरीका है। हालांकि, गैर कानूनी रूप से इंसानों पर किए जाने वाले परीक्षणों में जान का खतरा भी रहता है। प्रकार:- क्लीनिकल ट्रायल  मुख्य रूप से चार प्रकार के होते हैं।  बचाव के विकल्प के रूप में।  मौजूद

अब से यातायात पुलिस नो पार्किंग में खड़े वाहन का चालान नहीं करेगी, बदल गया कानून, यहाँ पढ़े पूरी रिपोर्ट।

अब से यातायात पुलिस नो पार्किंग में खड़े वाहन का चालान नहीं करेगी, बदल गया कानून, यहाँ पढ़े पूरी रिपोर्ट। कोरोना महामारी की वजह से सभी विभागों की आर्थिक स्थिति काफी बदहाल हो चुकी है। नगर निगम भी इससे अछूता नहीं है। इसी बदहाली के चलते नगर निगम लखनऊ ने अपनी आर्थिक स्थिति में सुधार करने के लिए प्लानिंग करना शुरू कर दिया है। नगर निगम ने अपनी इनकम बढ़ाने के लिए यातायात पुलिस को दी गई ज़िम्मेदारी को वापस लेने का मन बना लिया है। दरअसल नगर निगम अब नो पार्किंग में खड़ी गाड़ियों को उठाने का चार्ज जो यातायात पुलिस विभाग को दे चुका था उसे पुनः वापस लेने की तैयारी कर रहा है। नगर निगम यातायात पुलिस से अपने अधिकार वापस लेगा दरअसल बीते लगभग डेढ़ साल पहले नो पार्किंग से गाड़ी उठाने का अधिकार यातायात पुलिस ने नगर निगम से अपने पास ले लिया था। उससे पहले यह अवैध पार्किंग से वाहनों को उठाना उसे जुर्माना वसूलने का अधिकार नगर निगम के पास ही हुआ करता था। लेकिन कुछ समय पश्चात यातायात पुलिस ने साल 2009 में मंडलायुक्त की अध्यक्षता में हुई एक बैठक में फैसले का हवाला दिया और कहा कि इस काम को अपने अधिकार क्षेत्

सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से कहा कि किसी का मेहनताना न रोकें।

सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से कहा कि किसी का मेहनताना न रोकें। कोरोना संकट के बीच डॉक्टरों को सैलरी ना मिलने की खबरों पर सुप्रीम कोर्ट ने चिंता जाहिर की। कोर्ट ने सरकार से कहा कि युद्ध के दौरान आप सैनिकों को नाराज मत कीजिए बल्कि थोड़ा आगे बढ़कर उनकी शिकायतों और समस्यायों के समाधान के लिए प्रयास करें तथा कुछ अतिरक्त धन का इंतजाम करें। कोरोना महामारी के खिलाफ चल रहे इस युद्ध में देश सैनिकों की नाराजगी सहन नहीं कर सकता है। सरकार को फटकार लगाते हुए कहा कि हेल्थ केयर से जुड़े लोगों को सैलरी ना मिलने जैसे मामलों में अदालतों को शामिल नहीं करना चाहिए सरकार को ही इससे हल करना चाहिए। इलाज में लापरवाही पर जताई नाराजगी  कोरोना मरीजों के इलाज में लापरवाही और शवों को ठीक से ना रखने की खबरों पर शीर्ष अदालत ने दिल्ली, महाराष्ट्र, तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल और गुजरात को नोटिस जारी किया। कोर्ट ने अस्पतालों की नाजुक स्थिति पर केंद्र को भी नोटिस दिया और कहा कि खबरों से पता चला है कि परिवार वालों को अपनी अपनों की मौत की जानकारी भी कई दिनों तक नहीं मिल पा रही है।

पराठा कोई रोटी नहीं है | अब से रोटी पर 5% और पराठे पर 18% की दर से लगेगा GST

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अब आप खाने को लेकर अगर बहुत ज्यादा शौकीन नहीं है तो आपके लिए रोटी और पराठे में कितना अंतर हो सकता है? शायद ज्यादा नहीं होगा। लेकिन मामला अगर जीएसटी (GST) लगाने का हो तो सरकार की नज़र में रोटी पराठे से बहुत ज्यादा अलग है। इतना अलग की रोटी पर टैक्स 5% लगेगा लेकिन पराठे पर 18% आमतौर पर हम पराठे को रोटी का ही एक प्रकार मानते हैं लेकिन अथॉरिटी आफ एडवांस रूलिंग पार्टी कर्नाटक बेंच ने इसके अलग ही व्याख्या की है। अथॉरिटी ने पराठे को 18% के जीएसटी स्लैब में रखा है। मतलब यह है कि भोजनालय में रोटी पर लगने वाला जीएसटी (GST) पांच फ़ीसदी होगा लेकिन पराठे पर 18 फ़ीसदी टैक्स देना होगा। GST स्लैब के इस दृष्टिकोण पर लोगो ने आपत्ति जताई है। दरअसल एक प्राइवेट फूड मैन्युफैक्चरिंग कंपनी ने अपील की थी कि पराठा को खाखरा प्लेन चपाती या रोटी की कैटेगरी में रखा जाना चाहिए लेकिन AARP ने इसे काफी जुदा राय रखी। AARP ने कहा रोटी 1905 शीर्षक के अंतर्गत आने वाले प्रोडक्ट पहले से तैयार और पूरी तरह से पकाए गए फूड होते हैं। पराठा को खाने से पहले गर्म करना होता है पराठा को 1905 के अंतर्गत वर्गीकृत नहीं कर सकते।

आधार में बायोमेट्रिक अपडेट करवाना भी पड़ेगा महंगा : UIDAI

आधार में बायोमेट्रिक अपडेट करवाना भी पड़ेगा महंगा : UIDAI आधार में बायोमेट्रिक यानी फोटो अंगुलियों के निशान और आयरिश (आँखों की पुतली) अपडेट करवाने के लिए लोगों को अब ज्यादा जेब ढीली करनी होगी। UIDAI के नए आदेश के मुताबिक बायोमेट्रिक अपडेट का शुल्क दोगुना कर दिया गया है। अब इसके लिए ₹50 के रुपए के बजाय ₹100 देने होंगे।  सूत्रों के मुताबिक नाम पता, जन्म, तिथि और मोबाइल नंबर यानि डेमोग्राफिक अपडेट के शुल्क में कोई बढ़ोतरी नहीं की गई है वह पहले की दरों पर ही होगा। इसके लिए लोगों को पहले की तरह ₹50 ही देने होंगे।  UIDAI के एक वरिष्ठ अधिकारी के मुताबिक अगर कोई फोटो अंगुलियों के निशान और आयरिश के साथ नाम पता जन्म तिथि और मोबाइल नंबर भी बदलना चाहता है तो उसे ₹100 शुल्क देना होगा यानी बायोमेट्रिक के साथ डेमोग्राफिक अपडेट मुफ्त में करवा सकेंगे। दो बार होता है बायोमेट्रिक अपडेट UIDAI के अधिकारियों के मुताबिक जीवन में दो बार बायोमेट्रिक अपडेट जरूरी है।पहला 5 साल और दूसरा 15 साल की उम्र में किया जाता है। यह अपडेट आधार पंजीकरण और सुधार केंद्रों पर पूरी तरह निशुल्क है। 

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