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सत्यमेव जयते!

सिर्फ़ दाखिल-खारिज से ज़मीन पर मालिकाना हक़ नहीं मिल जाता है, बल्कि ये काम करना होगा तभी ज़मीन के असली मालिक बन सकतें है!

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क्या संपत्ति के दाखिल-खारिज से मालिकाना हक़ मिल जाता है? उच्चतम न्यायलय (Supreme Court of India) ने संपत्ति के मालिकाना हक को लेकर एक बड़ा निर्णय दिया है। उच्चतम न्यायलय (Supreme Court of India) ने एक बार पुनः स्पष्ट करते हुए कहा कि रेवेन्यू रिकॉर्ड में संपत्ति के दाखिल-खारिज (Mutation of Property) से न तो संपत्ति का मालिकाना हक मिल जाता है और न ही समाप्त होता है। न्यायमूर्ति एमआर शाह और न्यायमूर्ति अनिरुद्ध बोस की बेंच ने कहा कि राजस्व अभिलेखों (Revenue Record) में सिर्फ एंट्री भर से उस व्यक्ति को संपत्ति का हक नहीं मिल जाता जिसका नाम रेवेन्यू रिकॉर्ड में दर्ज है। बेंच ने कहा कि रेवेन्यू रिकॉर्ड या जमाबंदी में एंट्री का केवल ‘वित्तीय उद्देश्य’ होता है। जैसे, भू-राजस्व का भुगतान। ऐसी एंट्री के आधार पर कोई मालिकाना हक नहीं मिल जाता है। ज़मीन पर मालिकाना हक कौन दिला सकता है? सुप्रीम कोर्ट ने स्पस्ट किया की ज़मीन पर मालिकाना हक़ केवल सिविल कोर्ट तय कर सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने साथ ही कहा कि, सम्पत्ति के मालिकाना हक का निर्धारण एक सक्षम और अधिकार क्षेत्र वाला सिविल कोर्ट ही कर सकता है। कोर

तलाक़ के बाद बच्चे पर ज्यादा अधिकार किसका होगा माँ का या पिता का?

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तलाक़ के बाद बच्चे पर किसका अधिकार होगा? तलाक़ ले रहे दम्पति के बीच बच्चे की कस्टडी को लेकर अक्सर विवाद उत्पन्न हो जाता है। बच्चे की कस्टडी किसे मिलेगी किसे नहीं यह कई बातों पर निर्भर करता है। मसलन बच्चे की उम्र, लिंग, परिस्थिति आदि। इसके साथ ही यह निर्णय पूरी तरह कोर्ट पर निर्भर है कि बच्चे कि कस्टडी किसको दी जाये। बच्चे का पिता अमीर है इसलिए बच्चा उसी को मिलना चाहिए? माता-पिता की आय व बेहतर शिक्षा की उम्मींद ही कस्टडी देने का मापदंड नहीं हो सकता। चूँकि बच्चा कोई सामान नहीं है जो बिना उचित तर्क के किसी एक को सौंप दिया जाये। माता-पिता की आय तो क्या बच्चे की परवरिश अच्छी ही होगी। कस्टडी की समस्या को मानवीय तरीके से हल किया जाना चाहिएः हाईकोर्ट बिलासपुर में दाखिल एक याचिका की सुनवाई के दौरान छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट के जस्टिस गौतम भादुड़ी और जस्टिस एनके चंद्रवंशी की बेंच ने बच्चे की कस्टडी को लेकर पेश किए गए मामले में एक महत्वपूर्ण टिप्पणी करते हुए कहा है कि "बच्चा कोई सामान नहीं है" बच्चे का कल्याण ही फैसले का आधार होना चाहिए। माता- पिता की इनकम अच्छी है और बच्चे की बेहतर शिक्षा की व्

एमएलसी को मिलती हैं विधानसभा सदस्यों के जीतनी सुविधाएँ फिर भी शिक्षक खाली हाथ?

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सामान्यतः जनता को लगता है कि परिषद सदस्यों के पास उनकी बात रखने का अधिकार नहीं है क्योंकि उन्होंने सोधे तौर पर न ही उन्हें चुना है और ना ही वोट दिया है। लेकिन आपको बता दें  कि क़ानूनन ऐसा नहीं है । इनके पास वे सारे अधिकार हैं, जो विधानसभा सदस्यों के पास होते हैं। आपके लिए सवाल लगा सकते हैं, आपके मुद्दे को सदन में उठा सकते हैं। आपकी सड़कें बनवा सकते है। इलाज में मदद कर सकते हैं। इन सभी कामों के लिए इन्हें पर्याप्त सुविधाएं भी दी जाती हैं। भले ही सीधे न चुना  हो आपने, फिर भी एमएलसी आपके लिए जवाबदेह होतें हैं। विधानपरिषद के प्रतिनिधि निर्वाचन के बाद शपथ ग्रहण कर आधिकारिक तौर पर विधान परिषद सदस्य बन जाते हैं। हालांकि, औपचारिकताएं पूरी होने के बाद ये उच्च सदन के सदस्य भी बन सकते। आइए जानते हैं कि आपके विधान परिषद सदस्यों को मिलने वाली सुविधाएं और उनके अधिकार  एमएलसी को कितने रुपये और क्या सुविधाएँ मिलती हैं? एक एमएलसी को वेतन के तौर पर ₹30,000 हर महीने मिलते हैं। इसके अतरिक्त दैनिक भत्ता ₹2000 । निर्वाचन क्षेत्र भत्ता ₹50,000 प्रतिमाह।  सचिवीय भत्ता, ₹20,000 प्रतिमाह कार्यालय व्यय के लि

अब बिजली जाने पर विभाग पर लगेगा जुर्माना? जुर्माने की रक़म सीधे उपभोक्ता के खाते में होगी ट्रान्सफर?

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स्टैंडर्ड ऑफ परफॉर्मेंस रेगुलेटर रेगुलेशन एक्ट 2019 क्या है? उपभोक्ता सेवाओं में लापरवाही करने पर जवाबदेही तय करने के लिए राज्य विद्युत नियामक आयोग ने दिसंबर 2019 में स्टैंडर्ड ऑफ परफॉर्मेंस रेगुलेशन एक्ट 2019 लागू किया था। इस कानून के तहत यदि तय समय में लेसा द्वारा सुविधाएं मुहैया ना हुई तो पॉवर कारपोरेशन पर जुर्माना लगाने का प्रावधान है। इसमें जुर्माना हर्जाने के रूप में सीधे उपभोक्ता को दिए जाने का प्रावधान है। इसके अतरिक्त यदि उपभोक्ता को परेशान किया गया तो ऐसी परिस्थिति में भी उपभोक्ता को हर्जाना मिलना चाहिए। स्टैंडर्ड ऑफ परफॉर्मेंस रेगुलेटर रेगुलेशन एक्ट 2019 का उदेश्य बिजली कर्मियों की मनमानी रोकने के उदेश्य से बनाया गया था। लेकिन वर्तमान में मध्यांचल सहित सभी बिजली वितरण कम्पनियो ने इस आदेश को दबा लिया। प्रत्येक कार्य के लिए समय तय है! विभाग के नियमुसार, बिजली कनेक्शन के लिए एस्टीमेट बनाने की अवधि 7 है  HT यानी हाईटेंशन लाइन लाइन का विस्तार विस्तारीकरण या मरम्मत के लिए 24 दिन का समय निर्धारित है। LT लाइन का विस्तारीकरण होने के लिए 30 दिन का समय निर्धारित है। लो-वोल्टेज की

बीते माह राशन कार्ड सरेंडर करने वालों से होगी राशन के बराबर धन की वसूली?

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वर्तमान में राशनकार्ड समर्पण/निरस्तीकरण के सम्बन्ध में मीडिया पर विभिन्न प्रकार की भ्रामक व तथ्यों से परे प्रसारित की जा रही खबरों की सचाई क्या है? क्यों किये जा रहे है राशन कार्ड निरस्त? वर्तमान में राशनकार्ड सत्यापन/निरस्तीकरण हेतु की जा रही कार्यवाही के सम्बन्ध में इलेक्ट्रॉनिक एवं प्रिन्ट मीडिया द्वारा तथ्यों से परे एवम् भ्रामक खबरे प्रकाशित/प्रसारित की जा रही हैं, जो कि आधारहीन एवम् सत्य से परे हैं। प्रकरण में सचाई तो यह है कि पात्र गृहस्थी राशनकार्डों की पात्रता/अपात्रता के सम्बन्ध में शासनादेश दिनांक 07 अक्टूबर, 2014 में विस्तृत मानक निर्धारित किए गए हैं। उक्त मानकों का पुनर्निर्धारण वर्तमान में नहीं किया गया है तथा पात्रता/अपात्रता की कोई नवीन शर्त नहीं निर्धारित की गयी है। क्या राशन कार्ड एक्ट में वसूली का प्रावधान है? राशन कार्ड एक्ट के अनुसार सरकारी योजनान्तर्गत आवंटित पक्का मकान, विद्युत कनेक्शन, एक मात्र शस्त्र लाइसेंस धारक, मोटर साइकिल स्वामी, मुर्गी पालन/गौ पालन होने के आधार पर किसी भी कार्डधारक को अपात्र घोषित नहीं किया जा सकता है। इसी प्रकार राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधि

पति-पत्नी के बीच शारीरिक संबंध न होना बन सकता है तलाक की वजह: हाईकोर्ट

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बिलासपुर हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है। हाईकोर्ट ने एक युवक की तलाक याचिका स्वीकार करते हुए कहा कि पति-पत्नी के बीच शारीरिक संबंध होना एक स्वस्थ्य वैवाहिक जीवन का अहम हिस्सा है। शारीरिक संबंध नहीं बनाने वाले पति-पत्नियों के व्यवहार को क्रूरता के बराबर कोर्ट ने कहा कि पति-पत्नी में शारीरिक संबंध होना एक स्वस्थ वैवाहिक जीवन का अहम हिस्सा है। इसे नज़रंदाज़ नहीं किया जा सकता। विवाह के बाद पति या पत्नी में किसी के भी द्वारा शारीरिक संबंध से इनकार करना क्रूरता की श्रेणी में आता है। 'पति सुंदर नहीं है, कहकर, मायके चली गई थी पत्नी' हाईकोर्ट ने कहा-पति-पत्नी के मध्य शारीरिक संबंध बनाने से इनकार करना क्रूरता के बराबर जस्टिस पी सैम कोशी और जस्टिस पीपी साहू की बेंच ने कहा कि मामले के अनुसार अगस्त 2010 से पति-पत्नी के रूप में दोनों के बीच कोई संबंध नहीं है, जो निष्कर्ष निकलाने के लिए पर्याप्त है की उनके बीच कोई शारीरिक संबंध नहीं हैं। यदि एक पति या पत्नी दोनों में से कोई भी शारीरिक संबंध बनाने से इनकार करता है तो यह क्रूरता के बराबर है। यह तलाक लेने के लिए पर्याप्त कारण हो सकता है

बिना एक रुपया भी खर्च करे कैसे कोर्ट केस लड़ें जानिए निशुल्क क़ानूनी सुविधा लेने का तरीका?

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भारत सरकार द्वारा गरीब नागरिक को निशुल्क क़ानूनी सुविधा प्रदान करने का प्रावधान है। गरीब नागरिक को निशुल्क क़ानूनी सुविधा कैसे मिल सकती है? इसके विषय में विस्तार से जानें। गरीब व मध्यम आय समूह को निःशुल्क क़ानूनी सहायता योजना यह योजना मध्यम आय वर्ग (EWS) के नागरिकों यानी ऐसे नागरिकों को कानूनी सेवाएं प्रदान करती है जिनकी कुल इनकम 60,000/- रुपये प्रति माह से अधिक नहीं है या रु. 7,50,000/- सालाना. इस वर्ग के अंतर्गत आने वाले नागरिकों को भारत सरकार द्वारा निःशुल्क क़ानूनी सहायता प्रदान की जाती है। क्या है यह योजना? इस योजना को "सर्वोच्च न्यायालय मध्य आय समूह (EWS) कानूनी सहायता योजना" के रूप में जाना जाता है। यह योजना स्वावलंबी है और योजना की प्रारंभिक पूंजी का योगदान प्रथम कार्यकारी समिति (सरकार) द्वारा किया जाता है। गरीब नागरिक को निशुल्क क़ानूनी सुविधा कैसे मिल सकती है? क्या बिना एक रुपया लगाये कोर्ट केस लड़ सकतें हैं?  कैसा होगा सहयोगी संस्था का स्वरुप (अनुसूची)? योजना के साथ संलग्न शुल्क और व्यय की अनुसूची लागू होगी और समय-समय पर सोसायटी द्वारा संशोधित की जा सकती है। योजना के पदा

माता-पिता का ध्यान नहीं रखा तो होगी जेल

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'माता-पिता' और वरिष्ठ नागरिकों का भरण पोषण एवं कल्याण (संशोधन) विधेयक-2019' बुजुर्गों के देखभाल एवं कल्याण के लिए बनाया गया एक कानून है। माता-पिता और वरिष्ठ नागरिकों का भरण पोषण एवं कल्याण (संशोधन) विधेयक 2019 के अनुसार- माता-पिता या अपने संरक्षण वाले वरिष्ठ नागरिकों के साथ जानबूझकर दुर्व्यवहार करने या उन्हें उनके हाल पर अकेला छोड़ देने वालों के लिए छह महीने के कारावास या 10 हजार रुपये जुर्माना का प्रावधान है या दोनों का प्रावधान किया गया है। इसमें वृद्धाश्रमों और उसके जैसी सभी संस्थाओं के लिए रजिस्ट्रेशन अनिवार्य कर दिया गया है। साथ ही उन्हें न्यूनतम मानकों का पालन भी करना होगा।  हर राज्य में भरण पोषण अधिकारी भरण पोषण आदेश के क्रियान्वयन के लिए राज्य भरण पोषण राशि होगी ऐसा नहीं होने पर जुर्माना लगाने का प्रावधान है। बुजुर्गों की स्थिति -हेल्य एज इंडिया द्वारा 2018 में किए गए एक सर्वे के मुताबिक:-  69 फीसद बुजुर्गों के पास अपने नाम पर एक घर है  7 फीसद के पास पति या पत्नी के नाम घर है 85 फीसद बुजुर्ग परिवार के साथ रह रहे हैं 3 फीसद दूसरों के साथ रह रहे हैं  20 फीसद किराए पर

आधार और पैन से जुड़ी सभी समस्या का हल ये रहा, अभी लिंक नहीं किया तो पछताना पड़ेगा!

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पैन से ऐसे जोड़े अपना आधार पैन कार्ड में यही नाम है लेकिन आधार में उनका नाम कुछ और ऐसे में उनको आधार और पैन लिंक करने में परेशानी हो रही है। दोनों को लिंक करने की उनकी रिक्वेस्ट इसी वजह से रिजेक्ट हो रही है। दिक्कत सिर्फ किसी एक के साथ नहीं बड़ी संख्या में लोग इस से दो-चार हो रहे हैं। आधार पैन कार्ड लिंकिंग में व्यक्ति का नाम ही परेशानी पैदा कर रहा है क्योंकि आधार के डेटाबेस में स्पेशल करैक्टर की पहचान नहीं होती, जबकि पैन के डेटाबेस को इसकी पहचान है। कई लोगों को इसकी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। टैक्स रिटर्न फाइल करते वक्त उनका पैन और आधार कार्ड एक दूसरे से मैच नहीं हो पाया। उन्होंने सीए से संपर्क किया तब जाकर उनको परेशानी के कारण का पता चला।सीए के अनुसार आधार स्पेशल करैक्टर को नहीं पहचान पाता, जबकि पैन पहचान लेता है। स्पेशल करैक्टर वाले उपनामों जैसे D'Souza या डॉट्स वाले उपनामों की वजह से लिकिंग में परेशानी आ रही है। आधार में करेक्शन कैसे होगा? आधार में करेक्शन करने के लिए आपको अपने इलाके के आधार सेवा केंद्र जाना होगा। आपको वहां अपना आधार नंबर बताना होगा। आपको आधार की वेरिफिक

BS4 वाहनों को एक बार फिर रजिस्ट्रेशन का मौका मिला, सुप्रीम कोर्ट ने दी राहत, और अब व्हाट्सएप से कीजिये ओला-उबर की बुकिंग

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बीएस 4 वाहनों के रजिस्ट्रेशन को मंजूरी सुप्रीम कोर्ट ने बीएस 4 वाहनों के रजिस्ट्रेशन की इजाजत दे दी है। लेकिन ये अनुमति केवल उन BS4 वाहनों को दी गई है जो ई-वाहन पोर्टल पर अपलोड हो चुकी है और 31 मार्च 2020 के 8 तारीख से पहले स्थाई या अस्थाई रजिस्ट्रेशन हो चुका है, उन गाड़ियों को ही यह मंजूरी दी गई है। सुप्रीम कोर्ट में ट्रांसपोर्ट अथॉरिटी से कहा है कि वह रिकॉर्ड को सही तरह से स्क्रुटनी करें, जिससे यह सुनिश्चित हो सके की बिक्री 31 मार्च 2020 पहले से हुआ हो और कट ऑफ डेट से पहले वाहन की बिक्री का रजिस्ट्रेशन या टेंपरेरी रजिस्ट्रेशन हुआ हो। अब व्हाट्सएप से भी बुक हो ऊबर अब राजधानी के लोग व्हाट्सएप के जरिए भी ऊबर की गाड़ी बुक कर सकेंगे। उबर और व्हाट्सएप में गुरुवार को यह साझेदारी का ऐलान किया। उबर के आधिकारिक चैट बॉट के जरिए यह सुविधा मिलेगी। ऊबर एशिया पेसिफिक की सीनियर डायरेक्टर बिजनेस डेवलपमेंट नंदनी माहेश्वरी ने कहा कि कंपनी लोगों के लिए उबर यात्रा बेहद आसान बनाना चाहती है इसी के तहत व्हाट्सएप से साझेदारी की गई है। पायलट प्रोजेक्ट के तहत इसकी शुरुआत लखनऊ से की जा रही है। इस सुविधा के तहत

देसी पीओ या अंग्रेजीं अब दाम में इतने का होगा इज़ाफा!

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देशी ठेकों सहित दुकानों के लाइसेंस होंगे रिन्यू राज्य सरकार 2022-23 की नई आबकारी नीति में शराब और बीयर की फुटकर दुकानों को राहत देने जा रही है। आबकारी विभाग ने अगले साल के लिए नई नीति का जो प्लान (क़ानून) तैयार किया है, उसमें अंग्रेजी और देसी शराब के साथ बीयर की दुकानों के लाइसेंस फिर से रिनुअल करने का प्रस्ताव है। कारोबारियों को मिलेगी थोड़ी राहत विभाग नें कारोबारियों का कुछ लाभांश बढ़ाएं जाने पर विचार किया गया है। देसी और अंग्रेजी शराब का कोटा बढ़ाने के साथ ही सरकार ने लाइसेंस रिन्यूअल फीस में वृद्धि कर आबकारी राजस्व बढ़ाने का भी रास्ता निकाला है। जल्दी मसौदे को अंतिम रूप देकर उसे मंजूरी के लिए कैबिनेट में पेश किया जाएगा। बढ़ सकते हैं मार्जिन मनी   पिछले 2 सालों में प्रदेश का आबकारी राजस्व भले ही बढ़ा हो, लेकिन यह 2 साल शराब के कारोबारियों पर भारी पड़े हैं। घाटे से उबरने के लिए शराब कारोबारी लगातार मार्जिन मनी बढ़ाए जाने की मांग करते आ रहे हैं। यूपी लिकर सेलर वेलफेयर एसोसिएशन के कोषाध्यक्ष जायसवाल के मुताबिक अभी यूपी में फुटकर दुकानदारों के लिए देसी शराब पर 15 से 16 फ़ीसदी अंग्रेजी शराब

ट्रिपल तलाक़ अभी ख़तम नहीं हुआ, असली मुसीबत तो अब शुरू हुई!

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हर महीने तीन तलाक के 116 मामले दर्ज हो रहे हैं उत्तर प्रदेश में हर महीने तीन तलाक के करीब 116 मामले दर्ज हो रहे हैं। ज्ञात हो कि 19 सितंबर 2018 को मुस्लिम महिला विवाह अधिकार संरक्षण अध्यादेश आने के बाद यूपी में इसके तहत सबसे पहला मुकदमा बिजनौर के कोतवाली देहात में दर्ज हुआ था। डीजीपी मुख्यालय के आंकड़ों के अनुसार 38 महीनों में यूपी में 4433 मुकदमे दर्ज हो चुके हैं। सबसे अधिक मामले मेरठ और बरेली के 78% मामले मेरठ और बरेली जोन में है चौकाने वाली बात यह है कि इन मुकदमों के करीब 78% मामले अकेले वेस्ट यूपी के मेरठ और बरेली जोन में दर्ज करवाए गए हैं। 19 सितंबर 2018 को मुस्लिम महिला विवाह अधिकार संरक्षण अध्यादेश लागू होने के बाद दूसरा अध्यादेश 21 फरवरी 2019 को आया। 31 अगस्त 2019 को यह अधिनियम पारित हुआ। ट्रिपल तलाक को लेकर यूपी में सबसे ज्यादा 1566 मुकदमे मेरठ जोन में दर्ज हुए हैं। इसके बाद दूसरे नंबर पर बरेली जोन में 1356 मामले दर्ज हुए। जोन वार दर्ज मामलों की संख्या- लखनऊ जोन में 339, आगरा जोन में 407, कानपुर जोन में 84, प्रयागराज में 132, गोरखपुर में 210 और वाराणसी में 132 मामले दर्ज करवाए

अब 60% नंबर लाने पर ही मिलेगी स्कॉलरशिप आवेदन करने से पहले जान लें नया आदेश!

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अब 60% से कम अंक वालों को छात्रवृत्ति व शुल्क प्रतिपूर्ति नहीं  छात्रवृत्ति और शुल्क प्रतिपूर्ति योजना का लाभ पाने के लिए अब सामान्य वर्ग के विद्यार्थियों को कम से कम 60% अंक लाने होंगे। तमाम स्थितियों को देखते हुए समाज कल्याण विभाग छात्रवृत्ति और शुल्क प्रतिपूर्ति योजना की नियमावली में बदलाव करने जा रहा है। निदेशालय ने अहर्ता का प्रतिशत बढ़ाने समेत अन्य सिफारिशों संबंधी प्रस्ताव शासन को भेज दिया है। जहां से अंतिम फैसला लिया जाएगा। सामान्य वर्ग के विद्यार्थियों को छात्रवृत्ति और शुल्क प्रतिपूर्ति के लिए कम मिले बजट की वजह से पात्रता कम से कम हो इसलिए यह प्रतिशत बढ़ाया जा रहा है। बीते साल सामान्य वर्ग के विद्यार्थियों के लिए करीब 850 करोड़ रुपए इस पर भी विभाग सामान्य वर्ग के विद्यार्थियों को पात्रता के बावजूद स्कॉलरशिप नहीं दे पाया था। इस बार यह बजट घटकर केवल ₹500 ही रह गया है। ऐसे में जाहिर है कि बीते साल से भी कम संख्या में विद्यार्थियों को स्कॉलरशिप और शुल्क प्रतिपूर्ति दी जा सकेगी। ऐसे में बदलाव लाजमि माना जा रहा है। इससे होगा यह की स्कॉलरशिप और शुल्क प्रतिपूर्ति के लिए अहर्ता का प्

क्या संपत्ति का पावर ऑफ अटॉर्नी सम्पति को मालिक की बिना जानकारी के बेच सकता है?

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संपत्ति के लिए अटॉर्नी की शक्ति क्या है? संपत्ति का पावर ऑफ अटॉर्नी (पीओए) एक कानूनी दस्तावेज है जो वकील या एजेंट या किसी अन्य को कानूनी अधिकार देता है या यूँ कहें कि किसी और व्यक्ति को क़ानूनी अधिकार देने तरीका है जो मुख्य संपत्ति के लिए सौदा करने अवसर साझा करता है जब सम्पत्ति का मालिक स्वयं ऐसा नहीं कर सकता है। संपत्ति कानून अन्य कानूनों के सामान्य समूह में आता है और सामूहिक संपत्ति और व्यक्तिगत संपत्ति के लिए जिम्मेदारी के सभी भागों से संबंधित है। यह आवासीय और वाणिज्यिक संपत्ति से जुड़े लेनदेन से भी संबंधित हो सकता है। संपत्ति का मुख्तारनामा ( अटॉर्नी की शक्ति)  कैसे काम करता है? संपत्ति के अटॉर्नी की शक्ति, एक नियम के रूप में, प्रमुख के पास सभी संसाधन शामिल हैं, उदाहरण के लिए, अचल संपत्ति, वित्तीय खाते और स्टॉक सभी प्रकार की सम्पत्ति। शर्तें जिसमें क्या बनाया जा सकता है और क्या नहीं, का चुनने का अधिकार मालिक के पास होता है जो अनुबंध के समय पर किया जाता है। किसके लिए है लाभदयक? अचल संपत्ति में, संपत्ति के POA का उपयोग उन लोगों द्वारा किया जा सकता है जो घर,ज़मीन या अन्य किसी प्रकार की

वन नेशन वन अकाउंट की शुरुआत, अब देश भर में होगा एक बैंक अकाउंट!

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वन नेशन वन राशन के बाद अब वन अकाउंट की डिमांड देश भर में एक जैसी सेवा प्रदान करने के लिए राजधानी समेत आसपास के जिलों में वन नेशन वन राशन की व्यवस्था के बाद अब वन अकाउंट की बात होना शुरू हो गई है। अनाज बेचने के बाद किसान अपने मनमाफिक अकाउंट में रकम ट्रांसफर करवाना चाहते हैं। इसके लिए किसानों ने धान खरीद से जुड़े अधिकारियों को अपनी समस्याएं बताई और एक अकाउंट रजिस्टर करने की मांग भी उठाई है। राशन क्रय केंद्रों पर धान बिकने के बाद उसकी रकम सीधे किसान के खाते में ट्रांसफर हो रही है। रकम उन्हीं खातों में ट्रांसफर हो रहा है जो हाल ही में आधार कार्ड से लिंक हुआ है। अगर पुराने अकाउंट है पहले से आधार नंबर से लिंक है तो उन्हें ट्रांसफर नहीं हो रही है। लिहाजा किसान जिस अकाउंट में ट्रांसफर करवाना चाह रहें, उनमें ट्रांसफर नहीं हो पा रही है। बाराबंकी के राजकिशोर ने उच्च अधिकारियों को बताया कि हिमाचल में नौकरी करते थे। सेवानिवृत्त होने के बाद वापस आकर खेती कर रहे हैं। इस बार  उन्होंने क्रय केंद्र पर धान बेचा तो उसकी रकम उनके हिमाचल स्थित बैंक अकाउंट में ट्रांसफर हो गई। इसकी वजह से उन्हें पैसे निकालने

प्राइवेट नौकरी में पूरा वेतन देना 'कानून' से नहीं 'मालिक मर्ज़ी' से तय होता है?

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सरकार की बंधक नहीं है कोर्ट सुप्रीम कोर्ट ने प्रवासी मजदूरों के मसले पर सुनवाई करते हुए कहा है कि अदालत (कोर्ट संस्था) सरकार का बंधक नहीं है। कोर्ट ने केंद्र सरकार से पूछा है कि क्या प्रवासी मजदूरों को घर भेजने का कोई प्रस्ताव लाइन में है। कोर्ट ने सरकार को 1 हफ्ते का समय दिया है इस वक्त में सरकार को कोर्ट में जवाब दाखिल करना होगा। एक याचिकाकर्ता द्वारा कोर्ट में गुहार लगाई गई है कि अगर प्रवासी मजदूरों का कोरोना टेस्ट नेगेटिव आता है तो उनके घर भेजने का इंतजाम किया जाए। यह व्यवस्था सरकार की ओर से होना चाहिए ताकि प्रवासी मजदूरों को किसी प्रकार की असुविधा ना हो याचिकाकर्ता के वकील प्रशांत भूषण ने कहा कि सरकार का जो विचार है उस पर आंख मूंद कर भरोसा नहीं किया जाना चाहिए। इससे मजदूरों का मौलिक अधिकार प्रभावित हो रहा है। इस पर जस्टिस कौल ने कहा, अगर आपको हमारे ऊपर भी भरोसा नहीं है तो फिर हम आपकी बात पर क्यों सुनवाई करें। आप कहते हैं कि आप 30 साल से ज्यादा समय से सुप्रीम कोर्ट से जुड़े हैं तो क्या आपको यह लगता है कि कोर्ट सरकार के यहां बंधक है। इस पर प्रशांत भूषण ने कहा कि हमें कोर्ट पर पूरा भ

अब ऑनलाइन कर सकेंगे रेलवे वैगेन की बुकिंग और छूट का भी फायदा मिलेगा!

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रेल क़ानून अब ऑनलाइन बुक होगा माल और साथ ही कई चार्ज माफ किए गए रेल मंत्रालय ने माल ढुलाई को प्रोत्साहन देने के लिए कई रियायतें देने की घोषणा की है। इससे निर्यात में मदद के साथ अर्थव्यवस्था को बढ़ावा मिलने की उम्मीद है। वहीं रेलवे ने व्यापारियों को मालगोदाम या पार्सल घर जाने की जगह ऑनलाइन बुकिंग की सुविधा दे दी है व माल भाड़ा ऑनलाइन जमा करने के बाद डिलीवरी लेने के लिए रेलवे रसीद की अनिवार्यता अभी फिलहाल खत्म हो गई है। अभी क्या नियम है? रेलवे में माल गाड़ियों से भेजे जाने वाले माल को उतारने में देरी होने पर और वैगनो के खड़े रहने पर व्यापारियों से कई तरह का जुर्माना लेने का नियम है। हालांकि लॉकडाउन की वजह से मई तक व्यापारियों को इनमें से कोई चार्ज नहीं देना पड़ेगा। माल भाड़ा, लौह अयस्क, इस्पात, नमक के वैगन बुक करवाने के लिए इलेक्ट्रॉनिक आरआर को मान्यता दे दी गई है। जिसमें अभी तक उसकी मैनुअल कॉपी जरूरी थी। इससे माल भेजने की व्यवस्था सरल, तेज और पारदर्शी हो गई है। कंटेनर यातायात की मियाद बढ़ी रेलवे ने कंटेनर यातायात प्रोत्साहित करने के लिए नीतिगत उपाय लागू करने का निर्णय लिया है। गैर पारंपरि

श्रमिकों को दो किस्तों में ₹2000 भरण-पोषण भत्ता देगी सरकार!

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योगी आदित्यनाथ सरकार असंगठित क्षेत्र के पंजीकृत मजदूरों को 1000-1000 रुपए के दो किस्तों में भरण-पोषण भत्ता देगी। श्रम विभाग ने इस बारे में शासनादेश जारी कर दिया है। भत्ते की यह राशि असंगठित क्षेत्र के उन सभी मजदूरों को मिलेगी जो 31 दिसंबर तक उत्तर प्रदेश असंगठित कर्मकार सामाजिक सुरक्षा बोर्ड में पंजीकृत होंगे। दो माह के लिए मजदूरों को भत्ते की पहली किस्त के तौर पर ₹1000 जनवरी में देने की तैयारी की जा रही है। यह राशि उत्तर प्रदेश असंगठित कर्मकार व सामाजिक सुरक्षा बोर्ड के माध्यम से दी जाएगी। योगी सरकार ने विधानमंडल के शीतकालीन सत्र के दौरान पेश किए गए चालू वित्तीय वर्ष के दूसरे अनुपूरक बजट में असंगठित क्षेत्र के मजदूरों को ₹2000 भरण-पोषण भत्ता देने के लिए 4000 करोड़ रुपए की व्यवस्था की गई है। उत्तर प्रदेश असंगठित कर्मकार सामाजिक सुरक्षा बोर्ड में अब तक लगभग ढाई करोड़ मजदूर पंजीकृत हो चुके हैं। मजदूरों के बैंक खातों में यह रकम सीधे भेजी जाएगी। शासनादेश के जरिए बोर्ड के सचिव को लाभान्वित होने वाले मजदूरों को आधार से लिंक करने का निर्देश दिया गया है। जिन असंगठित कामगारों को बोर्ड की ओर किसा

यह व्यवस्था लागु हुई तो फर्जी वोट नहीं डाले जा सकेंगे!

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चुनाव सुधार संबंधी विधेयक को लोकसभा से मिली मंजूरी  विपक्षी सदस्यों के भारी विरोध के बीच लोकसभा में निर्वाचन विधि (संशोधन) विधेयक 2021 को मंजूरी प्रदान कर दी। इसमें मतदाता सूची में दोहराव और फर्जी मतदान रोकने के लिए मतदान पहचान प्रणाली कार्ड और सूची को आधार कार्ड से जोड़ने का प्रस्ताव किया गया है। इस विधेयक के माध्यम से जन प्रतिनिधित्व अधिनियम 1950 और जन प्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 में संशोधन किए जाने की बात कही गई है। निचले सदन में कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस, एआईएमआईएम, आरएसपी, बसपा जैसे दलों ने इस विधेयक को पेश किए जाने का विरोध किया। इस विधेयक के संसोधन की ज़रुरत क्यों पड़ी? आम चुनावों में एक व्यक्ति दो या दो से अधिक जगह वोट डाल देता था जिससे चुनाव के निष्पक्ष होने की सम्भावना लगभग ख़तम सी हो जाती है इसी समस्या से निजात के लिए निर्वाचन विधि (संशोधन) विधेयक 2021 सामान्य सुधार के साथ पेश किया गया है विपक्षी दलों का विरोध कांग्रेस ने विधेयक को विचार के लिए संसद की स्थाई समिति को भेजने की मांग की। विपक्षी दलों ने इसे उच्चतम न्यायालय के फैसले के खिलाफ तथा संविधान प्रदत्त मौलिक अधिकारों एवं निज

Facebook, Twitter, Whatsapp जैसे प्लैटफॉर्मों की मनमानी रोकने को बने क़ानून!!

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आज दुनिया भर में सोशल मीडिया का बोलबाला है। दुनिया में सोशल मीडिया का जन्म 20वीं सदी के अंत में हुआ और देखते-देखते 21वीं सदी की शुरुआत में बिना किसी अभिभावक (पैरेंटल कण्ट्रोल) वाला एक बड़ा जनसंचार माध्यम बन गया। जिसपर सरकार, न्यायपालिका जैसी किसी संस्था का कोई नियंत्रण नहीं। अखबार, पत्रिका आदि जैसे पारंपरिक प्रिंट मीडिया प्लैटफॉर्म की में एक ‘संपादक’ होता है जो तय करता है कि क्या चीज प्रकाशित की जाए और क्या नहीं लेकिन सोशल मीडिया में कोई ‘संपादक’ नहीं होता, इसलिए जिसका जो मन आता है पोस्ट कर देता है। वहीँ 'संपादक' परंपरागत रूप से न सिर्फ निगरानी रखते हैं, बल्कि अपने प्लैटफॉर्म पर किसी शख्स द्वारा लिखी बातों के लिए कानूनी तौर पर जिम्मेदार भी होते हैं। अब बिना संपादक के सोशल मीडिया प्लैटफॉर्म पर प्रकाशित बातों के लिए ऐसे प्लैटफॉर्मों की कोई कानूनी जिम्मेदारी नहीं होने की अवधारणा को मजबूत करने के लिए कुछ कानूनी बदलाव किए गए। उदाहरण के लिए यूएस कम्युनिकेशंस डिसेंसी एक्ट (US Communications Decency Act 1996) 1996 की धारा 230 यूजर्स द्वारा अपलोड किए गए कंटेंट की कानूनी जिम्मेदारी से स

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