अंतर धार्मिक विवाह करने के लिए किसकी अनुमति ज़रूरी है? क्या कोर्ट मैरिज रजिस्ट्रार विवाह पंजीकरण करने से इनकार कर सकता है? जानिए प्राविधान

सुप्रीम कोर्ट ने प्रवासी मजदूरों के मसले पर सुनवाई करते हुए कहा है कि अदालत (कोर्ट संस्था) सरकार का बंधक नहीं है। कोर्ट ने केंद्र सरकार से पूछा है कि क्या प्रवासी मजदूरों को घर भेजने का कोई प्रस्ताव लाइन में है। कोर्ट ने सरकार को 1 हफ्ते का समय दिया है इस वक्त में सरकार को कोर्ट में जवाब दाखिल करना होगा। एक याचिकाकर्ता द्वारा कोर्ट में गुहार लगाई गई है कि अगर प्रवासी मजदूरों का कोरोना टेस्ट नेगेटिव आता है तो उनके घर भेजने का इंतजाम किया जाए। यह व्यवस्था सरकार की ओर से होना चाहिए ताकि प्रवासी मजदूरों को किसी प्रकार की असुविधा ना हो
याचिकाकर्ता के वकील प्रशांत भूषण ने कहा कि सरकार का जो विचार है उस पर आंख मूंद कर भरोसा नहीं किया जाना चाहिए। इससे मजदूरों का मौलिक अधिकार प्रभावित हो रहा है। इस पर जस्टिस कौल ने कहा, अगर आपको हमारे ऊपर भी भरोसा नहीं है तो फिर हम आपकी बात पर क्यों सुनवाई करें। आप कहते हैं कि आप 30 साल से ज्यादा समय से सुप्रीम कोर्ट से जुड़े हैं तो क्या आपको यह लगता है कि कोर्ट सरकार के यहां बंधक है। इस पर प्रशांत भूषण ने कहा कि हमें कोर्ट पर पूरा भरोसा है। उन्होंने एक रिपोर्ट का हवाला देकर उन्होंने कहा कि 90 फ़ीसदी प्रवासी मजदूर जो फसे हुए हैं उन्हें राशन और जरूरी सामान नहीं मिल पाया है। सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि इस तरह की रिपोर्ट गलत है। सरकार प्रवासी मजदूरों के मामले को देख रही है।
सुनवाई के दौरान जजों ने यह भी कहा कि राज्य सरकार ने दूसरे राज्य में फंसे अपने लोगों को वापस लाने की दिशा में कदम उठा रही है। ऐसे में इस याचिका की क्या जरूरत है? इसका जवाब देते हुए प्रशांत भूषण ने कहा कि राज्य सरकारें सिर्फ छात्रों को वापस लाने की बात कर रही हैं। मजदूरों की तरफ किसी का ध्यान नहीं दिया जा रहा है।
सुप्रीम कोर्ट में दाखिल एक अन्य याचिका में कहा गया है कि लॉकडाउन के कारण फ्लाइट रद्द हो गई लेकिन एयरलाइंस पूरा पैसा वापस नहीं किया गया। कोर्ट ने कहा सुनवाई के दौरान मौखिक टिप्पणी में कहा कि पूरा रिफंड न किया जाना मनमाना लगता है। कोर्ट ने इस याचिका पर नागरिक उड्डयन मंत्रालय और डीजीसीए से नोटिस जारी कर जवाब दाखिल करने को कहा है। कोर्ट ने कहा कि एयरलाइंस इस मामले में गैर कानूनी तरीके से फायदा लेने की कोशिश में है और इस स्थिति को एक मौके के तौर पर देख रही है। उन्हें इस मामले पर मानवता दिखाना चाहिए ना की मनमाना रवैया अपनाना चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से कहा है कि वह उस पॉलिसी का रिकॉर्ड पेश करें जिसके तहत गृह मंत्रालय ने नोटिफिकेशन जारी कर कहा था कि लॉकडाउन के दौरान प्राइवेट ऑर्गेनाइजेशन पूरा वेतन दे। सुप्रीम कोर्ट में प्राइवेट संस्थानों ने केंद्र सरकार के नोटिफिकेशन को चुनौती दी है। नोटिफिकेशन में पूरी सैलरी देने की बात कही गई है और यह भी कहा गया है कि कोई भी कर्मचारी नौकरी से हटाया ना जाए।
वहीँ कोरोना काल के दौरान देश भर में प्राइवेट कर्मचारियों पर दोहरी मार पड़ी देश के अधिकांश प्राइवेट संस्थानों ने अपने कर्मचारीयों की ना केवल छटनी की बल्कि कई महीनों का आधा वेतन का भुगतान किया
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