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सुरक्षा परिषद (Security Council) की स्थापना कैसे हुई और क्या उदेश्य है इस संगठन का!

सुरक्षा परिषद के गठन, कार्य एवं शक्तियों का विस्तार वर्णन कीजिए। Explain fully the constitution, functions and power of security council.

सुरक्षा परिषद का गठन (Constitution Of Security Council)

सुरक्षा परिषद संयुक्त राष्ट्र का एक प्रमुख अंग है। चार्टर के अनुच्छेद 23 के अनुसार, इसमें कुल 15 सदस्य हैं जिनमें से 5 स्थाई तथा 10 अस्थाई सदस्य होंगे। 5 स्थाई सदस्यों में चीन, फ्रांस, सोवियत समाजवादी गणराज्य संघ, ग्रेट ब्रिटेन तथा संयुक्त राज्य अमेरिका होंगे। महासभा संयुक्त राष्ट्र के 10 अन्य सदस्यों को निर्वाचित करेगी जो सुरक्षा परिषद के अस्थाई सदस्य होंगे जिनका निर्वाचन 2 वर्ष के लिए सामान्य सभा से होता है। सुरक्षा परिषद के प्रत्येक सदस्य का एक-एक प्रतिनिधि होता है।
 
सुरक्षा परिषद की मतदान प्रक्रिया (Voting Procedure of Security)
 
सुरक्षा परिषद में मतदान प्रक्रिया एक विशिष्ट प्रणाली है। चार्टर के अनुच्छेद 27(1) के अनुसार, सुरक्षा परिषद के प्रत्येक सदस्य को एक मत देने का अधिकार है। अनुच्छेद 27(2) के अनुसार, प्रक्रिया संबंधी विषयों पर सुरक्षा परिषद द्वारा निर्णय 9 सदस्यों के सकारात्मक मतों के द्वारा किया जाएगा। अनुच्छेद 27(3) के अनुसार, अन्य सभी विषयों पर सुरक्षा परिषद के निर्णय स्थाई सदस्यों की सहमति 9 सदस्यों के सहमति सूचक मतों के अनुसार लिए जाएंगे, परंतु अध्याय 6 और अनुच्छेद 52 के पैरा 3 के अधीन निश्चयों के विवाद से संबंधित कोई पक्षकार मतदान नहीं करेगा।
 
उपयुक्त प्रावधानों से यह स्पष्ट होता है कि अनुच्छेद 27 में "प्रक्रिया संबंधी विषयों" एवं "अन्य सभी विषयों"  में एक भेद बतलाया गया है, अर्थात प्रक्रिया संबंधी विषयों के संबंध में निर्णय सुरक्षा परिषद के किन्हीं 9 सदस्यों के बहुमत द्वारा लिया जाएगा किंतु अन्य सभी विषयों के संबंध में सुरक्षा परिषद के निर्णय स्थाई सदस्यों के मतों के साथ 9 सदस्यों के सकारात्मक मतों से लिए जाएंगे, किंतु शर्त यह है कि अध्याय 6 और अनुच्छेद 52 के पैरा 3 के अंतर्गत किए गए निर्णयों में विवाद से संबंधित पक्ष मतदान करने से वर्जित रहेंगे।

दोहरा निषेधाधिकार ( Double Veto)

जब कभी सुरक्षा परिषद में यह विवाद उत्पन्न हो जाता है कि अमुक विषय पर प्रक्रियात्मक है अथवा मौलिक और उस पर यदि कोई स्थाई सदस्य उस विषय को मौलिक बने रहने के लिए अपना निषेधाधिकार का प्रयोग करता है। तत्पश्चात जब वह विषय मौलिक मान लिया जाता है और उस पर निर्णय लेते समय पुनः अपने निषेधाधिकार का प्रयोग करके निर्णय होने में अवरोध पैदा कर देता है तो यह दोहरा निषेधाधिकार का प्रयोग कहा जाता है। दूसरे शब्दों में जब किसी स्थाई सदस्य द्वारा सर्वप्रथम निषेधात्मक मत देकर उसे पर प्रक्रियात्मक विषय बनाने से रोका जाता है। फिर दूसरी बार निषेधाधिकार का प्रयोग करके उस मौलिक विषय पर निर्णय गिरा दिया जाता है।
 
उक्त विवेचना के बाद हम स्थाई सदस्यों के द्वारा निषेधाधिकार के प्रयोग की वास्तविकता की एक झलक पाते हैं। साथ ही साथ इस निष्कर्ष पर भी पहुंचते हैं, कि यदि इसका दुरुपयोग न किया जाए तो निषेधाधिकार का प्रावधान अपने आप में बहुत ज्यादा गलत नहीं है।
 
सुरक्षा परिषद के कार्य और शक्तियां - सुरक्षा परिषद के प्रमुख कार्य और शक्तियां निम्न प्रकार हैं।

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अंतर्राष्ट्रीय शांति एवं सुरक्षा को बनाए रखना (To Maintain International Peace and Security)
 
चार्टर के अनुच्छेद 24 के अनुसार, अंतर्राष्ट्रीय शांति एवं सुरक्षा बनाए रखने की प्राथमिक जिम्मेदारी सुरक्षा परिषद की है। अनुच्छेद 25 के अनुसार, संयुक्त राष्ट्र के सभी सदस्य चार्टर के अनुसार सुरक्षा परिषद के निर्णय को स्वीकार करने और उनका पालन करने के लिए सहमत हैं। अनुच्छेद 26 के अनुसार, अंतर्राष्ट्रीय शांति और सुरक्षा की स्थापना तथा उसे बनाए रखने के लिए जिससे संसार के मानवीय और आर्थिक साधनों का शस्त्रीकरण के लिए उपयोग कम से कम हो, सुरक्षा परिषद की यह जिम्मेदारी होगी कि वह अनुच्छेद 47 में निर्दिष्ट सैनिक कर्मचारी समिति की सहायता से, शास्त्रीकरण के विनियमन की पद्धति स्थापित करने के लिए संयुक्त राष्ट्र के सदस्यों के समक्ष प्रस्तुत किए जाने के लिए योजनाएं तैयार करें।
 
विवादों का शांतिपूर्ण निपटारा (Peaceful Settlement of Disputes)
 
अंतर्राष्ट्रीय शांति एवं सुरक्षा की समस्याओं के समाधान के लिए संयुक्त राष्ट्र चार्टर में विवादों के शांतिपूर्ण हल के लिए विस्तृत उपबंध किए गए हैं। यदि किसी विवाद से अंतरराष्ट्रीय शांति और सुरक्षा को खतरा पहुंचने की आशंका है तो विवाद के पक्षकारों का कर्तव्य है कि वे अपनी समस्याएं सबसे पहले वार्ता, जांच, मध्यस्थता, समझौते, मध्यस्थम, न्यायिक निर्णय, क्षेत्रीय अभिकरण या व्यवस्थाओ या अपने द्वारा चयन किए गए अन्य शांतिपूर्ण साधनों का सहारा लेकर कर सकते हैं।
 
शांति भंग की आशंका, शांति भंग तथा अतिक्रमण के संबंध में प्रवर्तन कार्यवाही- इस कार्यवाही के संबंध में सुरक्षा परिषद को निम्नलिखित अधिकार है।
 
1- चार्टर के अनुच्छेद 39 के अंतर्गत सुरक्षा परिषद शांति के लिए संकट सिद्ध होने वाले, शांति भंग अथवा आक्रामक कृत्यों के विद्यमानता के संबंध में निर्णय करेगी और अंतरराष्ट्रीय शांति और सुरक्षा को बनाए रखने अथवा उसके पुनः स्थापना के लिए सिफारिश करेगी, अथवा यह निर्धारित करेगी कि अनुच्छेद 41 एवं 42 के अनुसार कौन से उपाय किए जा सकते हैं।
 
2- चार्टर के अनुच्छेद 41 के अंतर्गत सुरक्षा परिषद यह निर्णय कर सकेगी कि उसके फैसले को लागू करने के लिए कौन से उपाय, जिनमें सशस्त्र बल का प्रयोग अन्तर्वलित न हो, काम में लाए जाने हैं और वह संयुक्त राष्ट्र के सदस्यों से अनुरोध कर सकेगी कि वे उन उपायों को काम में लावे। इसके अंतर्गत आर्थिक संबंधों और रेल, समुद्र, वायु, डाक, रेडियो तथा दूसरे संचार साधनों का पूर्ण या आंशिक व्यवधान और राजनयिक संबंधों का भंग सम्मिलित है।
 
3- चार्टर के अनुच्छेद 42 के अंतर्गत यह प्रावधान किया गया है कि यदि सुरक्षा परिषद यह समझती है कि अनुच्छेद 41 में उपबंधित उपाय अपर्याप्त होंगे या अपर्याप्त साबित हो चुके हैं तो वह अंतरराष्ट्रीय शांति और सुरक्षा को बनाए रखने अथवा उनकी पुनः स्थापना के लिए वायु, समुद्र अथवा स्थल सेवाओं के माध्यम से ऐसे कार्यवाही कर सकती है, जो आवश्यक प्रतीत हो। ऐसी कार्रवाइयों में सदस्यों की वायु ,समुद्र अथवा स्थल सेना द्वारा शक्ति प्रदर्शन, नाकेबंदी एवं दूसरी कार्यवाही भी शामिल हैं।
 
4- चार्टर के अनुच्छेद 47 में यह व्यवस्था उपलब्ध है कि सुरक्षा परिषद को अंतर्राष्ट्रीय शांति और सुरक्षा कायम करने के लिए तथा उसे नियंत्रणधीन सेवाओं के प्रयोग एवं समादेशन, शास्त्रीकरण के विनियमन और निरस्त्रीकरण से संबंधित सभी प्रश्नों पर उसको सलाह देने के लिए एक सैनिक स्टाफ समिति होगी जिसमें पांचों स्थाई सदस्यों के अध्यक्ष या उनके प्रतिनिधि उसके सदस्य होंगे। परंतु स्थाई सदस्यों के असहयोग के कारण यह प्रावधान अभी तक लागू नहीं हो सका है।

निषेधाधिकार तथा उसका प्रयोग (Veto and Its Use)

पांचों महान शक्तियों के पारंपरिक सहयोग के बिना आगामी पीढ़ियों को युद्ध की भीषण आपदा से मुक्त नहीं किया जा सकता इसलिए संयुक्त राष्ट्र की सुरक्षा परिषद में महान शक्तियों को प्राथमिकता दी गई है और तथाकथित "पांच बड़े राष्ट्रों" को निषेधाधिकार प्राप्त है। यह चार्टर में निषेधाधिकार का उपबंध न रहता तो इतने दिनों तक यह भूमंडल विश्वयुद्ध की भीषण आपदा से मुक्त नहीं रहता। 
वास्तव में विश्व की शांति एवं सुरक्षा महाशक्तियों के संयुक्त रहने पर ही संभव है। निषेधाधिकार का प्रावधान चार्टर के अनुच्छेद 27 में दिया गया है। अनुच्छेद 27 के अनुसार, सुरक्षा परिषद के पांच स्थाई सदस्यों (चीन, रूस, संयुक्त राज्य अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस) को निषेधाधिकार का अधिकार प्रदान किया गया है। इस अनुच्छेद में यह कहा गया है कि "प्रक्रिया संबंधी" विषयों में सुरक्षा परिषद का निर्णय 9 सदस्यों की सकारात्मक मतों से किया जाएगा और "अन्य सभी विषयों" में सुरक्षा परिषद के निर्णय पांचों स्थाई सदस्यों के मतों के साथ 9 सदस्यों के सकारात्मक मतों के आधार पर ले जाएंगे। इसका तात्पर्य है कि प्रक्रियात्मक मतों के अतिरिक्त अन्य सभी विषयों में निर्णय के लिए पांचों स्थाई सदस्यों की सहमति अनिवार्य है। 
यदि कोई स्थाई सदस्य इन विषयों पर निर्णय लेने समय अपना नकारात्मक मत प्रदान करता है तो सुरक्षा परिषद उस पर निर्णय लेने में असमर्थ हो जाती है, अर्थात कोई भी स्थाई सदस्य अपने नकारात्मक मत का प्रयोग करके सुरक्षा परिषद को निर्णय लेने से रोक सकता है। इस प्रकार, सुरक्षा परिषद के स्थाई सदस्यों को निषेधाधिकार की शक्ति प्राप्त है, जिसके प्रयोग द्वारा सुरक्षा परिषद को किसी महत्वपूर्ण प्रश्न पर निर्णय लेने से रोका जा सकता है।

निर्वाचन संबंधी कार्य (Functions Relating to Elections)

अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय की संविधि के अनुच्छेद 4 के अनुसार सुरक्षा परिषद और महासभा मिलकर न्यायालय के न्यायाधीशों के निर्वाचन में भाग लेते हैं। न्यायालय के न्यायाधीशों के चयन में सुरक्षा परिषद की मुख्य भूमिका होती है। इसके अतिरिक्त, संयुक्त राष्ट्र चार्टर के अनुच्छेद 97 के अनुसार संघ के महासचिव की नियुक्ति सुरक्षा परिषद की सिफारिश पर महासभा द्वारा की जाती है। महासचिव की नियुक्ति का प्रश्न जब सुरक्षा परिषद में उठता है तब परिषद के सदस्य अपनी सकारात्मक सहमति देते हैं। इसके लिए पांचों स्थाई सदस्यों के साथ नौ सकारात्मक मतों की आवश्यकता होती है जिससे महासचिव का चुनाव किया जा सके। इस प्रकार सुरक्षा परिषद संघ के प्रमुख निर्वाचन कार्यो को संपादित करती हैं।

पर्यवेक्षण संबंधी कार्य (Supervisory Functions)

अपने दायित्वों को पूरा करने के लिए सुरक्षा परिषद द्वारा अनेक समितियों तथा आयोगों का गठन किया गया है जो सुरक्षा परिषद के निदेशन और पर्यवेक्षण में कार्य करते हैं। चार्टर के अनुच्छेद 47 में एक "सैनिक स्टाफ समिति" के गठन का प्रावधान है जिससे सुरक्षा परिषद के अधीन रखा गया है। इस समिति से संबंधित व्यवस्था शस्त्र सेनाओं से संबंधित प्रश्नों पर परामर्श तथा सहायता देने के लिए की गई है। इसके अतिरिक्त 1946 में महासभा ने एक "आणविक ऊर्जा आयोग" का गठन किया था जिसके सदस्य तत्कालीन सुरक्षा परिषद के सभी तथा कनाडा राज्य है। यह आयोग परमाणु शक्ति के अंतरराष्ट्रीय नियंत्रण के संबंध में सुरक्षा परिषद को राय देता है और उसके पर्यवेक्षण में कार्य करता है। इसी के समान एक अन्य आयोग का गठन जो सुरक्षा परिषद ने स्वयं किया है उसे "परंपरागत अस्त्र-शस्त्र आयोग" कहते हैं। यह अयोग भी सुरक्षा परिषद के पर्यवेक्षण में कार्य करता है।

संवैधानिक कार्य (Constitutional

चार्टर के अनुच्छेद 108 के अनुसार, चार्टर में संशोधन संयुक्त राष्ट्र के सभी सदस्यों के लिए तब लागू होंगे वे महासभा के दो तिहाई सदस्यों के मतों से स्वीकार करा लिए गए और उनका अनुसमर्थन संयुक्त राष्ट्र के दो तिहाई सदस्यों द्वारा जिनमें सुरक्षा परिषद के सभी स्थाई सदस्य सम्मिलित हो, अपनी अपनी संवैधानिक प्रक्रियाओं के अनुसार कर दिया गया हो। इस प्रकार सुरक्षा परिषद के पांचों स्थाई सदस्यों की सहमति के संशोधन के लिए परमआवश्यक है। चार्टर में संशोधन बिना पांचों स्थाई सदस्यों की सहमति के लागू नहीं किया जा सकता है।
 
अन्य कार्य - (Residuary Functions) उपरोक्त कार्यो के अलावा सुरक्षा परिषद निम्नलिखित अन्य कार्य भी करती है-
 
  • चार्टर के अनुच्छेद 4 के पैरा के अनुसार, संयुक्त राष्ट्र की सदस्यता के लिए सुरक्षा परिषद की महासभा की संस्तुति आवश्यक होती है। सुरक्षा परिषद की संस्तुति पर ही महासभा किसी राज्य को संयुक्त राष्ट्र की सदस्यता प्रदान कर सकती हैं।
  • चार्टर के अनुच्छेद 5 के अंतर्गत किसी सदस्य को निलंबित करने तथा अनुच्छेद 6 के अंतर्गत किसी सदस्य को निष्कासित करने का अधिकार सुरक्षा परिषद को है। इस संबंध में महासभा को केवल संस्तुति करने का अधिकार दिया गया है।
  • चार्टर के अनुच्छेद 83 के पैरा 1 में न्यायसिता परिषद के सामरिक महत्व के क्षेत्रों के नियंत्रण तथा पर्यवेक्षण का अधिकार सुरक्षा परिषद को प्रदान किया गया है।
  • सुरक्षा परिषद उपरोक्त अनुच्छेद के अंतर्गत न्यायसिता कारारों के निबन्धनों का अनुमोदन कर सकती है। वह करार की शर्तों में परिवर्तन भी कर सकती है।
  • चार्टर के अनुच्छेद 52 के पैरा 3 के अंतर्गत सुरक्षा परिषद महासचिव से अनुरोध करके महासभा की विशेष बैठक या विशेष आपातकालीन बैठक बुला सकती है।
  • चार्टर के अनुच्छेद 29 के अंतर्गत सुरक्षा परिषद ऐसे सहायक अंगो की स्थापना कर सकती हैं जिन्हें अपने कार्यों का पालन करने के लिए आवश्यक समझती है।

इस प्रकार चार्टर में सुरक्षा परिषद को बहुत महत्वपूर्ण कार्य और अधिकार प्रदान किए गए हैं जिससे वह संयुक्त राष्ट्र के प्रभावशाली अंग के रूप में कार्य कर सकें और अंतरराष्ट्रीय शांति और सुरक्षा कायम रखने मे महत्वपूर्ण योगदान दे सके। इस संदर्भ में डॉ प्रयाग सिंह का यह कहना उचित ही है कि "सुरक्षा परिषद का गठन यह बताता है कि समूचे "विश्व समुदाय" के अंदर एक "5 शक्तियों का समुदाय" विद्यमान है जिसकी मित्रता और एक मत ही विश्व में शांति और सुरक्षा कायम कर सकती है।" सुरक्षा परिषद ने अंतराष्ट्रीय शांति और सुरक्षा कायम रखने में जो जिम्मेदारी निभाई है, वह काफी सीमा तक सराहनीय नहीं है परंतु इस दायित्व की पूर्ति में स्थाई सदस्यों की राजनीति ने बहुत प्रभावित किया है, जिसकी भर्त्सना अंतरराष्ट्रीय समाज द्वारा समय-समय पर की जाती रही है।

निष्कर्ष (Conclusion)

संक्षेप में यह कहा जा सकता है कि पांचों महा शक्तियों के आपसी सहयोग सहयोग के कारण सुरक्षा  परिषद अंतरराष्ट्रीय शांति और सुरक्षा को बनाए रखने में अपने उत्तरदायित्व को पूरी तरह निभाने में असफल रही है।

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