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Weekly Roundup: कर्ज वापस मांगना आत्महत्या के लिए उकसाना नहीं, जमानत के बाद चार्जशीट होने से दोबारा गिरफ्तारी नहीं,
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News 1
कर्ज वापस मांगना आत्महत्या के लिए उकसाना नहीं
मुंबई हाईकोर्ट की नागपुर पीठ ने फाइनेंस कंपनी के कर्मचारियों के खिलाफ दर्ज एफआईआर (FIR) रद्द कर दी है। कर्मचारी पर एक कर्जदार से कर्ज चुकाने की मांग करने पर आत्महत्या के लिए उकसाने का आरोप लगाया गया था। हाईकोर्ट ने कहा कि यह कर्मचारी की ड्यूटी का हिस्सा था। यह नहीं कहा जा सकता है कि उसने कर्जदार को जीवन खत्म करने के लिए उकसाया उसका मकसद कर्जदार को आत्महत्या के लिए उकसाने या प्रेरित करने का नहीं था।
जस्टिस विनय देशपांडे और जस्टिस अनिल किलोर की बेंच ने कहा कि याचिकाकर्ता रोहित नलबाडे फाइनेंस कंपनी का कर्मचारी होने के नाते कर्जदार प्रमोद चौहान से बकाया कर्ज की वसूली करने की कोशिश करके सिर्फ अपनी ड्यूटी कर रहा था। इस संबंध में 8 अगस्त 2018 को महाराष्ट्र के वाशिम जिले में एफआईआर दर्ज कराई गई थी।
अभियोजन पक्ष ने हाईकोर्ट को बताया कि चौहान ने एक नया वाहन खरीदने के लिए 6.21 लाख रुपए का कर्ज लिया था। समझौते के मुताबिक इस कर्ज का भुगतान 4 साल में ₹17800 की मासिक किस्तों के जरिए किया जाना था। चौहान जब कर्ज नहीं चुका सके तो उन्होंने आत्महत्या कर ली। रोहित पर आत्महत्या के लिए उकसाने के तहत मामला दर्ज किया गया। प्रमोद चौहान ने अपने खुदखुशी नोट में आरोप लगाया था कि कर्ज चुकाने के लिए याचिकाकर्ता उन्हे परेशान करने लगा था। बेंच ने अपने आदेश में कहा आरोप केवल इस प्रभाव के हैं कि आवेदक ने बकाया ऋण राशि की मांग की फाइनेंस कंपनी के कर्मचारी के रूप में यह उसकी नौकरी का हिस्सा था।
News 2
जमानत के बाद चार्जशीट होने से दोबारा गिरफ्तारी नहीं
समय पर चार्जशीट दाखिल न किए जाने के आधार पर अगर आरोपित को जमानत मिलती है तो चार्जशीट के बाद दोबारा गिरफ्तार नहीं किया जा सकता है। जमानत कैंसिल अन्य ग्राउंड पर हो सकती है। लेकिन चार्जशीट जमानत कैंसिल करने का आधार नहीं हो सकता। सुप्रीम कोर्ट में याचिका कर्ता आरोपित कमलेश की ओर से अर्जी दाखिल कर हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती दी गई थी।
कमलेश के खिलाफ राजस्थान में धोखाधड़ी और जालसाजी समेत अन्य धाराओं के तहत केस दर्ज किया गया था। आरोपित को तब जमानत मिल गई जब गिरफ्तारी से समय सीमा के भीतर अभियोजन पक्ष ने चार्जशीट दाखिल नहीं की। हाईकोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि आरोपी के खिलाफ जब चार्जशीट दाखिल हो जाएगी तो उसे दोबारा गिरफ्तार किया जा सकता है। हाईकोर्ट के इस आदेश के खिलाफ आरोपित ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया।
News 3
जो अयोग्य घोषित हो चुनाव न लड़ सके
सुप्रीम कोर्ट में मध्य प्रदेश की कांग्रेस नेता जया ठाकुर की ओर से अर्जी दाखिल की गई है। इसमें कहा गया है कि अगर एक बार कैंडिडेट को अयोग्य घोषित कर दिया जाए तो फिर उस टर्म में उनके चुनाव लड़ने पर रोक लगा देनी चाहिए। कोर्ट ने केंद्र और आयोग से जवाब मांगा है। याचिका में कहा गया है कि आर्टिकल 172 के तहत सदन के सदस्य का कार्यकाल 5 साल का होता है। एक बार अगर सदन से दसवीं अनुसूची के प्रावधान के तहत वह सदस्य अयोग्य हो जाता है तो उसे कार्यकाल के लिए चुनाव लड़ने की इजाजत नहीं होनी चाहिए।
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