सत्यमेव जयते!

Today's News

Right To Information Act 2005 परीक्षा के बाद अपनी जाँची गई कॉपी देखने का अधिकार देता है!

आरटीआई (RTI) कानून के तहत है छात्रों को अपनी खुद की उत्तर पुस्तिका के निरीक्षण का अधिकार प्राप्त है: सीआईसी (CIC)

सूचना का अधिकार अधिनियम 2005 (Right to Information Act 2005) के तहत एक परीक्षार्थी को अपनी उत्तर पुस्तिका की जांच या निरीक्षण करने का अधिकार है। इस मामलें में केंद्रीय सूचना आयोग यानि सीआईसी (CIC) ने यूजीसी में कार्यरत एक सीनियर रिसर्च फैलो की तरफ से दी गई अर्जी पर सुनवाई करते हुए टिपण्णी की।

इस मामले में एक आरटीआई (RTI) की अर्जी सीपीआईओ (CPIO), (नेशनल इंस्ट्टियूट ऑफ मेंटल हेल्थ एंड न्यूरो साइंस (एनआईएमएचएएनएस- NIMHANS) के खिलाफ दायर की गई थी। अर्जी दायर करने वाले ने अपनी उत्तर पुस्तिका के संबंध में सात तथ्यों पर जानकारी मांगी थी। 

यह उत्तर पुस्तिका उसकी एम.फिल (M. Phill) पीएसडब्ल्यू (PSW) के पार्ट-वन की वार्षिक व पूरक परीक्षा की थी जो उसने वर्ष 2017 में दी थी। इस आरटीआई (RTI) के जवाब में सीपीआईओ (CPIO) ने उसे एक पत्र के जरिए सभी तथ्यों का जवाब दे दिया लेकिन अर्जी दायर करने वाला इससे संतुष्ट नहीं हुआ और उसने एफएए (FAA) से पुनः जानकारी मांगी, जिन्होंने उसे कुछ अतिरिक्त जानकारी उपलब्ध करा दी। लेकिन इस बार प्रार्थी ने एफएए (FAA) के आदेश का पालन करते हुए सीआईसी के समक्ष अर्जी दायर कर दी।

सुनवाई के दौरान प्रार्थी ने दलील दी कि उसे पूरी सूचना उपलब्ध नहीं कराई गई और जो उत्तर पुस्तिका उसने मांगी थी, वह उपलब्ध कराने से इंकार कर दिया गया।

www.judicialguru.in

इसके लिए हवाला दिया गया कि एनआईएनएचएएनएस (NIMHANS) में ऐसा कोई सिस्टम नहीं है, जिसके तहत पीजी के छात्र को वह उत्तर पुस्तिका उपलब्ध कराई जाए, जिसका मूल्याकंन या जांच हो चुकी हो। 

इतना ही नहीं प्रार्थी ने और भी कई मुद्दे उठाए, जैसे कि जिन में संस्थान द्वारा परिणाम देने में देरी करने व पादर्शिता, पीएचडी कोर्स की मैरिट लिस्ट प्रकाशित न करना आदि शामिल था।

प्रतिवादी के वकील ने दलील दी कि आरटीआई एक्ट (RTI Act 2005) की धारा 6 के तहत प्रार्थी वह सूचना ले सकता है जो सार्वजनिक अथॉरिटी के तहत उपलब्ध है। इस मामले में एनआईएनएचएएनएस (NIMHANS) के वर्तमान सिस्टम के तहत ऐसा कोई प्रावधान नहीं है कि पीजी (PG) के किसी छात्र को वह उत्तर पुस्तिका उपलब्ध कराई जाए, जिसका मूल्यांकन या जांच हो चुकी हो, चूंकि सार्वजनिक अॅथारिटी की पहुंच इस तरह के परिणाम तक नहीं है इसलिए प्रार्थी को परिणाम उपलब्ध नहीं कराया गया।

सीआईसी (CIC) ने कहा कि एक छात्र की उसकी उत्तर पुस्तिका तक पहुंच के मामले में कानून पहले से ही तय हो चुका है। मौजूदा समय में इससे सम्बंधित कानून उपलब्ध है 

सीआईसी (CIC) ने सीबीएसई एंड अन्य बनाम अदित्य बंदोपाध्याय एडं अदर्स एसएलपी (सी) नंबर 7526/2009 केस का हवाला दिया, इस केस में सुप्रीम कोर्ट ने माना था कि हर परीक्षार्थी को अपनी मूल्यांकित हो चुकी उत्तर पुस्तिका की जांच या निरीक्षण करने या उसकी फोटो-कॉपी लेने का अधिकार है, बशर्ते इसको आरटीआई एक्ट 2005 की धारा 8 (1) E के तहत छूट न दी गई हो। 

सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा था कि जब कोई उम्मीदवार परीक्षा में भाग लेता है और अपना जवाब उत्तर पुस्तिका में लिखता है और उसे मूल्यांकन के लिए देता है,जिसके बाद परिणाम घोषित होता है और उत्तर पुस्तिका एक कागजात या रिकार्ड बन जाता है। उत्तर पुस्तिका में जो ''विचार'' लिखा गया होता है, वह आरटीआई (RTI) के तहत सूचना लेने योग्य है। मूल्यांकित उत्तर पुस्तिका को आरटीआई एक्ट (RTI Act 2005) की धारा 8 से छूट होगी और परीक्षार्थी तक इसकी पहुंच होगी।

ऐसे में सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश को देखते हुए पाया गया कि प्रार्थी ने अपनी उत्तर पुस्तिका तक अपनी पहुंच संस्थान के नियमों के तहत नहीं बल्कि आरटीआई एक्ट (RTI Act 2005) के तहत मांगी है इसलिए प्रार्थी यह सूचना पाने का हकदार है। आरटीआई एक्ट (RTI Act 2005) की धारा 22 के तहत इसके प्रावधान किसी अन्य कानून से उपर है। ऐसे में संस्थान के नियम या कानून से उपर आरटीआई (RTI Act 2005) के प्रावधान है।

सीआईसी (CIC) ने यह भी कहा कि अगर प्रार्थी छात्र को उसकी जांच का अधिकार नहीं दिया गया तो इससे उसके जीवन और आजीविका का अधिकार प्रभावित होगा। सीआईसी (CIC) ने महसूस किया जो मामला उनके समक्ष लाया गया है, उसमें व्यापक जनहित शामिल है, जो उन सभी छात्रों के भविष्य को प्रभावित करेगा जो अपनी उत्तर पुस्तिका या उनके द्वारा प्राप्त किए गए अंकों के संबंध में जानकारी लेना चाहते है। संभवता यह उनके भविष्य के कैरियर की संभावनाओं पर असर डालेगा

इसके साथ ही उनके जीवन व आजीविका का अधिकार को भी प्रभावित करेगा।  इसलिए आरटीआई एक्ट 2005 (Right to Information Act 2005) के तहत छात्रों को उनकी खुद की उत्तर पुस्तिका का निरीक्षण या जांच करने की अनुमति दी जा रही है।

इस मामले में सीआईसी (CIC) ने कई अन्य फैसलों का भी हवाला दिया और कहा कि सार्वजनिक अॅथारिटी का हर काम सार्वजनिक हित में होना चाहिए, जिससे देश की सामाजिक-आर्थिक कर्मशक्ति प्रभावित होती है। 

प्रार्थी द्वारा उठाए गए अन्य मुद्दों के संबंध में सीआईसी (CIC) ने कहा कि यह सभी मामले उनके अधिकार क्षेत्र से बाहर के है। उनका क्षेत्र सिर्फ यह देखना है कि मांगी गई सूचना उपलब्ध कराई गई है अथवा नहीं या किस आधार पर सूचना देने से मना किया गया है। इसलिए अन्य मामले उनके अधिकारक्षेत्र में नहीं आते है।

Find us on YouTube!

www.judicialguru.in
Judicial Guru

Comments

ख़बरें सिर्फ़ आपके लिए!

तलाक लेने में कितना खर्च आयेगा और यह खर्च कौन देगा? तलाक लेने से पहले यह कानून जान लें!

पति तलाक लेना चाहता और पत्नी नहीं तो क्या किया जाना चाहिए?

अब चेक बाउंस के मामले में जेल जाना तय है! लेकिन बच भी सकते हैं अगर यह क़ानूनी तरीका अपनाया तो!

तलाक़ के बाद बच्चे पर ज्यादा अधिकार किसका होगा माँ का या पिता का?

जानिए, पॉक्सो एक्ट (POCSO) कब लगता है? लड़कियों को परेशान करने पर कौन सी धारा लगती है?

बालिग लड़की का नाबालिग लड़के से शादी करने पर अपराध क्यों नहीं है? और क्या नाबालिग लड़की अपनी मर्ज़ी से शादी कर सकती है?

जमानत क्या है और किसी व्यक्ति की जमानत कैसे ले सकते हैं?

जानिए दाखिल खारिज़ क्यों ज़रूरी है और नहीं होने पर क्या नुकसान हो सकतें हैं?

लीगल खबरें आपके लिए!