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कर्मचारी द्वारा की गई झूठी घोषणा उसे नौकरी से निकालने के लिए काफ़ी है? : सुप्रीम कोर्ट
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कर्मचारी द्वारा की गई झूठी घोषणा या आपराधिक मामले में भागीदारी को होना, उस कर्मचारी को नियुक्ति के हक से वंचित किया जा सकता है ऐसे में वह अधिकार के रूप में सेवा मे जारी नहीं रख सकता हैः सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि एक कर्मचारी जिसने किसी योग्यता अथवा सेवा से जुड़ी किसी प्रकार की झूठी घोषणा की है या एक आपराधिक मामले में संलिप्त होते हुए भी अपने भौतिक तथ्य को छुपाने का प्रयास करते पाया गया था, तो वह नियुक्ति के लिए या अधिकार के रूप में सेवा में बने रहने का हकदार नहीं होगा।
जस्टिस एमआर शाह (MR Shah) और जस्टिस एएस बोपन्ना (AS Bopanna) की खंडपीठ ने कहा, "यदि जहां नियोक्ता को लगता है कि एक कर्मचारी जिसने शुरुआत में ही गलत बयान दिया और आवशयक भौतिक तथ्यों का खुलासा नहीं किया है या भौतिक तथ्यों को छुपाया है जबकि वह किसी आपराधिक कृत्य में संलिप्त था तो उसे सेवा में जारी रखने का कोई अधिकार नहीं हो सकता क्योंकि ऐसे कर्मचारी पर भविष्य में भी भरोसा नहीं किया जा सकता है, तब ऐसे परिस्थिति में नियोक्ता को ऐसे कर्मचारी को नौकरी पर रखने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता है। ऐसे कर्मचारी को जारी रखने या न रखने का विकल्प हमेशा नियोक्ता को दिया जाना चाहिए। जिससे की वह स्वतन्त्रतापूर्वक निर्णय लें सके।
मामला राजस्थान का है - केस शीर्षक: राजस्थान राज्य विद्युत प्रसारण निगम लिमिटेड बनाम अनिल कांवरिया
ऐसे ही एक मामले में राजस्थान राज्य विद्युत प्रसार निगम लिमिटेड के कर्मचारी ने दस्तावेज सत्यापन के दौरान एक घोषणा पत्र प्रस्तुत किया था जिसमें उसने स्वीकार किया था कि उसके खिलाफ न तो आपराधिक मामला लंबित है और न ही उसे किसी आपराधिक मामले में किसी अदालत द्वारा दोषी ठहराया गया है। जबकि जाँच में यह पाया गया कि उसे एक आपराधिक मामले में दोषी ठहराया गया था इसी के चलते उसकी सेवाओं को नियोक्ता द्वारा समाप्त कर दिया गया था। जिसके बाद उस कर्मचारी ने बर्खास्तगी के आदेश को हाईकोर्ट में चुनौती दी।
राजस्थान हाईकोर्ट ने अवतार सिंह बनाम यूनियन ऑफ इंडिया (2016) 8 एससीसी (SCC 471) के फैसले पर भरोसा करते हुए रिट याचिका की अनुमति देना उचित समझा और कर्मचारी की बर्खास्तगी के आदेश को रद्द कर दिया तथा सभी परिणामी लाभों के साथ कर्मचारी की बहाली का निर्देश भी दिया। तत्पश्चात अपील की अनुमति देने के लिए सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने कई पुराने निर्णयों का उल्लेख किया।
कर्मचारी की एक दलील यह थी कि उसे अधिनियम 1958 की धारा 12 का लाभ दिया गया था, जिसमें प्रावधान है कि एक व्यक्ति को दोषसिद्धि से संबंद्ध अयोग्यता का सामना नहीं करना पड़ेगा।
सुप्रीम कोर्ट ने मामले की सुनवाई के दौरान कहा कि, "बाद में अधिनियम 1958 की धारा 12 का लाभ प्रतिवादी को नहीं दिया सकता क्योंकि प्रश्न 14. 04. 2015 को एक झूठी घोषणा दाखिल करने के जुड़ा है। जिसमें उसने कहा था कि उसके खिलाफ न तो कोई आपराधिक मामला लंबित है और न ही उसे किसी अदालत द्वारा दोषी ठहराया गया है।
इस प्रकार का झूठा दावा सरकारी सेवा नियमावली के विरुद्ध है जो सत्र न्यायालय द्वारा पारित आदेश से बहुत पहले अधिनियम 1958 की धारा 12 का लाभ प्रदान करता था। लेकिन इस मामले में जैसा कि यहां देखा गया है, कि कर्मचारी बाद में बरी होने के मामले में भी एक बार झूठी घोषणा की और लंबित आपराधिक मामले के भौतिक तथ्य को दबाया है तो वह अधिकार के रूप में नियुक्ति पाने का हकदार नहीं होंगा।
मुद्दा भरोसे का है!
अपील की अनुमति देते हुए अदालत ने कहा, यहाँ सवाल यह नहीं है कि क्या कोई कर्मचारी किसी प्रकार के मामूली विवाद में शामिल था और जिसे बाद में बरी कर दिया गया था या नहीं।
सवाल ऐसे कर्मचारी की विश्वसनीयता और भरोसे का है, जो रोजगार के प्रारंभिक चरण में, यानी घोषणा/सत्यापन प्रस्तुत करते समय किसी पद के लिए आवेदन करते समय झूठी घोषणा करता है। सही तथ्यों का खुलासा नहीं करता है तो ऐसे आपराधिक मामले में शामिल होने के भौतिक तथ्य को दबाता है।
यदि सही तथ्यों का खुलासा किया गया होता तो नियोक्ता ने उसे नियुक्त नहीं किया होता। इसलिए ऐसी स्थिति में जहां नियोक्ता को लगता है कि एक कर्मचारी जिसने शुरूआती चरण में ही गलत बयान दिया है या महत्वपूर्ण तथ्यों का खुलासा नहीं किया है या महत्वपूर्ण तथ्यों को छुपाया है तो इस आधार पर उसे सेवा में जारी नहीं रखा जा सकता है क्योंकि ऐसे कर्मचारी पर नियोक्ता द्वारा भरोसा भी नहीं किया जा सकता है और ना ही भविष्य में, नियोक्ता को ऐसे कर्मचारी को जारी रखने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता है।
ऐसे कर्मचारी को सेवा जारी रखने या न रखने का विकल्प हमेशा नियोक्ता को दिया जाना चाहिए जिससे की वह स्वंत्रता पूर्वक निर्णय ले सके। ऐसा कर्मचारी अधिकार के रूप में नियुक्ति का दावा नहीं कर सकता है और ना ही उसे अधिकार के रूप में सेवा में बने रहने का अधिकार है।
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