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अनुच्छेद 370 जम्मू-कश्मीर के अलावा पाकिस्तान के गले की फ़ांस क्यों बना था?
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कश्मीर आज़ादी के बाद से ही भारत के लिए ऐसा मुद्दा रहा है, जिसका हल अभी तक ढूंढा नहीं जा सका है। हाल ही में तुर्की के राष्ट्रपति ने रेचेप तैय्यप अर्दोआन ने पाकिस्तानी संसद के संयुक्त सत्र को संबोधित किया। अर्दोआन ने कहा कि कश्मीर जितना अहम पाकिस्तान के लिए है, उतना ही तुर्की के लिए भी है।
इसके अलावा पाकिस्तान की चार दिनों की यात्रा पर पहुंचे UN सेक्रेटरी जनरल एंटोनियो गुतारेस ने भी जम्मू-कश्मीर को लेकर दोनों देशों के बीच मध्यस्थता की पेशकश की है।
हालाँकि भारत ने इन दोनों घटनाक्रमों का खंडन किया है। जम्मू-कश्मीर के बारे में अर्दोआन की बातों पर नाराज़गी जाहिर करते हुए भारतीय विदेश मंत्रालय ने कहा कि वो भारत के अंदरूनी मामलों में दख़ल ना दें। इसके अलावा भारत ने UN सेक्रेटरी जनरल एंटोनियो गुतारेस की पेशकश को ठुकराते हुए ये कहा है कि यह क्षेत्र भारत का अभिन्न हिस्सा है और रहेगा। इस मुद्दे पर ध्यान देने की सबसे अधिक जरूरत पाकिस्तान द्वारा अवैध रूप से कब्जा किए गए क्षेत्र का समाधान करने की है।
पाकिस्तानी संसद के संयुक्त सत्र में तुर्की के राष्ट्रपति का पूरा भाषण
तुर्की के राष्ट्रपति ने कहा, ''हमारे कश्मीरी भाई और बहन दशकों से पीड़ित हैं। हम एक बार फिर से कश्मीर पर पाकिस्तान के साथ हैं। हमने इस मुद्दे को संयुक्त राष्ट्र की आम सभा में उठाया था। कश्मीर का मुद्दा जंग से नहीं सुलझाया जा सकता। इसे इंसाफ़ और निष्पक्षता से सुलझाया जा सकता है। इस तरह का समाधान ही सबके हक़ में है। तुर्की इंसाफ़, शांति और संवाद का समर्थन करता रहेगा।
इसके अलावा अर्दोआन ने कहा कि वो कश्मीरियों को कभी नहीं भूल सकते हैं। पाकिस्तान और तुर्की का रिश्ता मोहब्बत का रिश्ता है। पाकिस्तान का दुःख और दर्द हमारा दुख और दर्द है। पाकिस्तान की ख़ुशी हमारी ख़ुशी है। हम इस देश के लोगों को कैसे भूल सकते हैं जो तुर्की के लिए दुआ मांगते हैं। उन्होंने कहा कि तुर्की पाकिस्तान को फ़ाइनैंशियल एक्शन टास्क फ़ोर्स के मामले में भी समर्थन करेगा। पाकिस्तान शांति और स्थिरता के रास्ते पर है और ये कुछ दिनों में नहीं आता बल्कि इसमें वक़्त लगता है। अर्दोआन ने कहा, पाकिस्तान ने जिस तरह से आतंकवाद के ख़िलाफ़ युद्ध किया वो प्रशंसनीय है। पाकिस्तान धार्मिक कट्टरता का शिकार रहा है। अर्दोआन ने ये भी कहा कि इस्लामिक दुनिया में मतभेदों को मिटाने की ज़रूरत है।
UN सेक्रेटरी जनरल की कश्मीर पर टिप्पणी
पाकिस्तान के विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी से इस्लामाबाद में मुलाकात के बाद गुतारेस ने संवाददाता सम्मेलन के दौरान जम्मू कश्मीर की स्थिति तथा नियंत्रण रेखा पर जारी तनाव पर गहरी चिंता जतायी थी। पाकिस्तान के दौरे पर आये गुतारेस ने कहा कि अगर दोनों देश सहमत हों तो वह मध्यस्थता करने के लिए तैयार हैं।
यूएन महासचिव ने प्रेस कॉन्फ़्रेंस में कहा, ''हमने दोनों देशों के बीच बातचीत शुरू कराने के लिए प्रस्ताव रखा है लेकिन यह तभी संभव होगा जब दोनों देश तैयार होंगे। शांति और स्थिरता केवल बातचीत के ज़रिए ही आ सकती है। दोनों देशों को इस मामले में संयम बरतने की ज़रूरत है। यूएन चार्टर और सुरक्षा परिषद के प्रस्तावों ते तहत राजनयिक संवाद के ज़रिए ही शांति और स्थिरता तक पहुंचा जा सकता है। हम इस मामले में पहल करने के लिए तैयार हैं लेकिन दोनों देशों को इसके लिए सहमत होना होगा।
कश्मीर पर तुर्की के रुख से ख़फ़ा हुआ भारत
भारत सरकार के विदेश मंत्रालय ने जम्मू और कश्मीर को लेकर तुर्की के राष्ट्रपति रेचेप तैय्यप अर्दोआन के उन सभी दावों और बातों को ख़ारिज कर दिया है।
जम्मू-कश्मीर के बारे में अर्दोआन की बातों पर नाराज़गी जाहिर करते हुए भारतीय विदेश मंत्रालय ने कहा कि वो भारत के अंदरूनी मामलों में दख़ल ना दें।
विदेश मंत्रालय ने कहा - हम चाहते हैं कि तुर्की का नेतृत्व सभी तथ्यों की सही समझ बना पाए जिसमें पाकिस्तान से भारत में होने वाला आंतकवाद भी शामिल है। तुर्की के राष्ट्रपति रेचेप तैय्यप अर्दोआन ने शुक्रवार को पाकिस्तानी संसद के संयुक्त सत्र को संबोधित किया था और पाकिस्तान को समर्थन जारी रखने का वादा किया. इसके साथ ही उन्होंने कश्मीर और अन्य मुद्दों पर भी समर्थन देने की बात कही.
भारत से बिगड़ते तुर्की के रिश्ते
तुर्की ने ही 24 सितंबर 2019 को संयुक्त राष्ट्र की आम सभा को संबोधित करते हुए कश्मीर का मुद्दा उठाया था। उस वक़्त राष्ट्रपति अर्दोआन ने कहा कि अंतर्राष्ट्रीय समुदाय पिछले 72 सालों से कश्मीर समस्या का समाधान खोजने में नाकाम रहा है। अर्दोआन ने कहा था कि भारत और पाकिस्तान कश्मीर समस्या को बातचीत के ज़रिए सुलझाएं। तुर्की के राष्ट्रपति ने कहा कि संयुक्त राष्ट्र के प्रस्ताव के बावजूद कश्मीर में 80 लाख लोग फँसे हुए हैं।
अर्दोआन के अलावा मलेशिया ने भी यूएन की आम सभा में कश्मीर का मुद्दा उठाया था। यूएन की आम सभा में तुर्की और मलेशिया का यह रुख़ भारत के लिए झटका माना जा रहा था। तुर्की के इस रुख़ पर भारत ने खेद जताया था। हालाँकि उस वक़्त भी भारतीय विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रवीश कुमार ने कश्मीर को भारत का आंतरिक मामलाबताया और कहा कि तुर्की और मलेशिया का रुख़ बहुत ही अफ़सोसजनक है।
OIC में कश्मीर मुद्दा नहीं उठने पर पाकिस्तान लाचार
जम्मू कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाए जाने के बाद पाकिस्तान कश्मीर मुद्दे को लेकर OIC में एक विशेष बैठक आयोजित कराना चाहता है। हालाँकि सऊदी अरब ने पाकिस्तान की कश्मीर पर 'काउंसिल ऑफ़ फ़ॉरेन मिनिस्टर्स' (सीएफएम) का सत्र बुलाने की मांग को अब तक स्वीकार नहीं की और ख़बरों के मुताबिक़ सऊदी अरब की हिचकिचाहट पाकिस्तान के लिए मायूसी की वजह बन रही है।
इसी बारे में प्रधानमंत्री इमरान ख़ान ने मलेशिया के अपने हालिया दो दिवसीय दौरे में एक मलेशियाई थिंक टैंक से बात करते हुए कहा कि ओआईसी भारत प्रशासित कश्मीर में हो रहे मानवाधिकारों के उल्लंघन पर एक मत नहीं है। इमरान ख़ान ने कहा, "हम बंटे हुए हैं....हम अभी तक कश्मीर पर ओआईसी का सत्र नहीं बुला सके हैं।
क्या है OIC और CFM ?
ओआईसी (OIC) 57 मुस्लिम बहुसंख्यक देशों का संगठन है। इसके अंतर्गत ज़्यादातर समितियां मुस्लिम देशों में होने वाली समस्याओं पर काम करती हैं। इन सभी देशों के प्रमुखों की व्यस्तता और हर हफ्ते मुलाक़ात मुमकिन न होने की वजह से काउंसिल ऑफ़ फ़ॉरेन मिनिस्टर्स (CFM) यानी इन देशों के विदेश मंत्रियों की एक परिषद बना दी गई है,जो इन देशों की आपसी और दूसरे देशों के साथ समस्याओं पर बातचीत करती है।
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