अंतर धार्मिक विवाह करने के लिए किसकी अनुमति ज़रूरी है? क्या कोर्ट मैरिज रजिस्ट्रार विवाह पंजीकरण करने से इनकार कर सकता है? जानिए प्राविधान

जानिए रोगी के अधिकार
हॉस्पिटल में हम सब का वास्ता पड़ता है। मगर क्या कभी आपने और उन अधिकारों को भी जानने की कोशिश की है, जो हॉस्पिटल और इलाज से जुड़े हुए हैं। हालांकि हमारे देश में पेशेंट राइट नाम का कोई अलग से कानून नहीं है जबकि बाहर के देशों में पेशेंट को लेकर कई कानून बने हैं। लेकिन उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम भी हमारे अधिकारों की सुरक्षा करने के लिए काफी है। इसमें यह प्रावधान है कि आप इलाज, दवा या हॉस्पिटल से जुड़ी कोई भी जानकारी सूचना के अधिकार के तहत ले सकते हैं। हॉस्पिटल्स की मनमानी को रोकने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने भी कई जजमेंट दिए हैं, जो मरीजों को सुरक्षा प्रदान करते हैं।
सूचना का अधिकार
किसी भी मरीज के परिजन के लिए यह सबसे बड़ा हथियार है। इसके तहत सबसे पहले हमें डॉक्टर और अस्पताल से यह जानने का अधिकार होता है कि मरीज पर किस तरह का उपचार चल रहा है। अस्पताल की जांच में क्या निकल कर सामने आया है? हर टेस्ट की क्या कीमत है? दवाइयों का कोई सस्ता विकल्प है, तो वह क्या है? यह सारी जानकारी आप अस्पताल से ले मांग सकती हैं। या यूं कहें कि अपनी बीमारी चिकित्सा और दवाइयों के बारे में जानकारी प्राप्त करना हर मरीज का अधिकार है। वह डॉक्टर से सारी जानकारी अपनी भाषा में प्राप्त कर सकता है।
यदि किसी कारणवश मरीज को यह जानकारी नहीं दी जा सकती है, तो मरीज के किसी करीबी रिश्तेदार को सब जानकारी दी जानी चाहिए। यह नहीं, मरीज की चिकित्सा में लगे सभी लोगों के बारे में जानकारी प्राप्त करना भी आपका हक है। मरीज को यह अधिकार है कि वह अपने चिकित्सा में लगे सभी लोगों जैसे डॉक्टर, नर्स, फिजियोथैरेपिस्ट, सर्जन के बारे में जानकारी प्राप्त करें।
यह जानकारी आप अस्पताल प्रशासन से मांग सकते हैं। प्रिसक्रिप्शन पर दवाइयों का नाम साफ-साफ लिखा जाना चाहिए, इसके लिए आप डॉक्टर को बोल सकते हैं, ताकि आपको दवा लेते समय असुविधा न हो। इसके अलावा आप डॉक्टर से सस्ती दवाइयां लिखने के लिए भी कह सकती हैं, अगर उसका विकल्प है, तो विशेषकर जेनेरिक दवाइयां। मरीज को अधिकार है कि मैं अस्पताल से अपने मेडिकल रिकॉर्ड कॉपी प्राप्त करें। अस्पताल को मरीज के रिकॉर्ड की गोपनीयता को ध्यान में रखकर मरीज को कॉपी देनी होगी। अमूमन अस्पताल खुद यह सारी फाइलें नहीं देते हैं इसलिए बहुत जरूरी है कि मरीज अस्पताल से छुट्टी के समय ऐसा जरूर करें।
मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया ने भी डॉक्टर्स के लिए कुछ दिशा-निर्देश जारी किए हैं, जिसमें अगर आपको इमरजेंसी में इलाज की जरूरत है तो कोई डॉक्टर इसके लिए आपको मना नहीं कर सकता, जब तक फर्स्ट ऐड देकर मरीज की स्थिति खतरे से बाहर न कर ले।
राइट टू सेफ्टी के तहत मरीज का अधिकार है कि वह अपनी बीमारी के बारे में सेकंड ऑपिनियन या दूसरे डॉक्टर से सलाह ले सकता है। इस सलाह के लिए कोई भी डॉक्टर किसी भी मरीज के परिजन को हतोत्साहित नहीं कर सकता है। दोनों डॉक्टरों के सुझाव अगर अलग-अलग पाए जाते हैं, तो यह मरीज और उनके परिजन पर निर्भर करता है कि वह किन के बताए रास्ते पर चलते हैं। इस सूरत में किसी भी डॉक्टर को दोषी नहीं ठहराया जा सकता है।
राइट टू प्राइवेसी के तहत मरीज के पास उसकी बीमारी को गोपनीय रखने का अधिकार है। इसका मतलब कि अगर आप नहीं चाहते कि आपके परिवार के दूसरे सदस्य को आप की बीमारी के बारे में पता चले तो, डॉक्टर किसी भी सूरत में आपके परिवार को आपकी बीमारी के बारे में नहीं बताएंगे। इलाज से संबंधित कोई धोखा घड़ी हुई है, तो हॉस्पिटल के दोषी पाए जाने पर जुर्माने का प्रावधान भी है।
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