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विवाहित बेटी को मृतक आश्रित (Dependent on deceased) कोटे में नहीं मिल सकती नौकरी
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अपने महत्वपूर्ण फैसले में कहा है कि विवाहित बेटी मृतक आश्रित कोटे में नियुक्ति पाने की हकदार नहीं हो सकती हैं। कोर्ट ने इसके 3 कारण बताते हुए कहा कि-
जिला निरीक्षक का फैसला सही
माधवी मिश्रा ने विवाहिता पुत्री के तौर पर विमला श्रीवास्तव केस के आधार पर मृतक आश्रित कोटे में नियुक्ति की मांग की। याची के पिता इंटर कॉलेज में तदर्थ प्रधानाचार्य पद पर कार्यरत थे। सेवाकाल में उनकी मृत्यु हो गई। सरकार की अपर मुख्य स्थाई अधिवक्ता का कहना था कि मृतक आश्रित नियमावली 1995, साधारण खंड अधिनियम 1904 इंटरमीडिएट शिक्षा अधिनियम 30 जुलाई 1992 के शासनादेश के तहत विधवा, विधुर, पुत्र, अविवाहित या विधवा बेटी को आश्रित कोटे में नियुक्ति पाने का हकदार माना गया है।
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1974 की मृतक आश्रित सेवा नियमावली कालेज की नियुक्ति पर लागू नहीं होती हैं। एकल पीठ ने गलत ढंग से इसके आधार पर नियुक्ति का आदेश दिया है। मृतक की विधवा पेंशन पा रही है। जिला विद्यालय निरीक्षक शाहजहांपुर ने नियुक्ति से इंकार कर गलती नहीं की है।
याची का कहना है था कि विमला श्रीवास्तव केस में कोर्ट ने बेटा-बेटी में विवाहित होने के आधार पर भेद करने को असंवैधानिक करार दिया है। नियमावली के अविवाहित शब्द को रद्द कर दिया है। कोर्ट ने कहा है कि आश्रित की नियुक्ति का नियम जीविकोपार्जन करने वाले की अचानक मौत से उत्पन्न आर्थिक संकट में मदद के लिए की जाती है। मान्यता प्राप्त एडिट कॉलेजों के आश्रित कोटे में नियुक्ति के अलग नियमावली है। ऐसे में सरकारी सेवकों की 1994 की नियमावली इसमें लागू नहीं होती हैं।
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