अंतर धार्मिक विवाह करने के लिए किसकी अनुमति ज़रूरी है? क्या कोर्ट मैरिज रजिस्ट्रार विवाह पंजीकरण करने से इनकार कर सकता है? जानिए प्राविधान

इलाहाबाद हाईकोर्ट में सरकार का पक्ष रखने के लिए बनाई गई अधिवक्ताओं की फौज में कई ऐसे अधिवक्ता हैं जो कोर्ट के भीतर सरकार के पक्ष में बहस नहीं कर सकते। शासकीय अधिवक्ताओं के पैनल में किसी तरह उन्हें जगह तो मिल गई है लेकिन एडवोकेट रोल में नाम न शामिल होने की वजह से अदालतों में उनकी ड्यूटी रोक दी गई है। ऐसे वकीलों की संख्या तीन दर्जन से अधिक हैं। उनकी जगह दूसरे वकील खड़े किए जा रहे हैं। सवाल उठने लगा है कि आखिर सरकारी वकीलों की नियुक्ति से पहले उनके एडवोकेट रोल की जांच क्यों नहीं की गई।
उल्लेखनीय है कि इलाहाबाद हाईकोर्ट में इस समय लगभग 500 से अधिक राज्य विधि अधिकारी है। इनका दायित्व हाईकोर्ट में चल रहे विभिन्न मुकदमों में सरकार का पक्ष रखना और उसका बचाव करना है। नीतिगत मामलों से जुड़े विषयों में इनकी भूमिका अहम हो जाती है क्योंकि इसमें अच्छी पैरवी न होने पर राज्य सरकार को किरकिरी का सामना करना पड़ता है। विपक्ष को हमले करने का अवसर अलग से हासिल हो जाता है। इसलिए राज्य सरकारें दक्ष वकीलों की फौज खड़ी करती है।
सरकार बनने के बाद पिछली सरकार में नियुक्त राज्य विधि अधिकारियों को हटाकर लगभग 400 नए वकीलों की इन पदों पर नियुक्ति की गई। इनमें से कुछ पुराने वकीलों को भी नए सिरे से अनुबंधित किया गया। इस बीच हाईकोर्ट की लखनऊ खंडपीठ में एक मुकदमे की सुनवाई के दौरान न्यायमूर्ति सुधीर अग्रवाल ने एक शासकीय अधिवक्ता के संबंध में सवाल किया कि क्या वह एडवोकेट रोल में शामिल है? जवाब नहीं में मिला तो उन्होंने सख्त रवैया अख्तियार कर लिया। इसी बीच इलाहाबाद हाईकोर्ट ने भी इस मुद्दे को लेकर शक्ति की और प्रमुख सचिव न्याय तक को अदालत में आना पड़ गया। इसके बाद महाधिवक्ता कार्यालय भी चेता। सभी राज्य विधि अधिकारियों की जांच कराई तो पता चला कि तीन दर्जन ऐसे वकील पैनल में शामिल है जो एडवोकेट रोल में पंजीकृत नहीं है।
मुख्य स्थाई अधिवक्ता ने इसके बाद इन सभी वकीलों को अदालत में पक्ष रखने से रोक दिया। सूत्रों के अनुसार इस बारे में इसलिए सख्ती बरती गई क्योंकि प्रमुख सचिव न्याय को अदालत में पेश होना है और एडवोकेट रोल के बारे में वस्तुस्थिति की जानकारी देनी है।
गौरतलब है कि एडवोकेट रोल को लेकर हाईकोर्ट पहले से ही काफी सख्त है। हाईकोर्ट नियमावली में संशोधन किया जा चुका है कि हाईकोर्ट में वही वकालत कर सकता है जो एडवोकेट रोल में शामिल हो। वर्तमान समय में प्रदेश के लगभग 11000 वकीलों का नाम एडवोकेट रोल में शामिल है। इस जुलाई के पहले हफ्ते में एडवोकेट रोल में शामिल करने के लिए फिर से आवेदन किया जाएंगे।
क्या है एडवोकेट रोल?
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने नियमावली में संशोधन कर यह प्रावधान किया है कि सिर्फ वही वकील वकालतनामा दाखिल कर या बहस कर सकता है जिनका नाम एडवोकेट रोल में शामिल हो। इलाहाबाद के लिए अलग और लखनऊ के लिए अलग रोल तैयार किया गया है। इस व्यवस्था के पीछे उद्देश्य यह है कि अधिवक्ताओं को अनुशासन में रखा जा सके। अनुशासनहीनता करने वाले अधिवक्ताओं को रोल से बाहर किया जा सकता है।
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