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अब पूरी दुनिया में एक जैसा टैक्स स्लैब होगा!
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आखिर 15 फ़ीसदी ग्लोबल मिनिमम कारपोरेट टैक्स वसूले जाने के प्रस्ताव पर ऐतिहासिक सहमति हो गई।
आयरलैंड, एस्टोनिया और हंगरी इन तीनों देशों में लो टैक्स को को लेकर इस प्रस्ताव पर आपत्ति थी। गहन बातचीत में कई तरह की रियायतें और अपवाद सुनिश्चित करने के बाद तीनों देश मान गए और इस प्रस्ताव का अमल में आना लगभग तय हो गया। कुल 140 देशों में से 136 देशों ने इस प्रस्ताव का समर्थन किया है।
समझौते के लिए बातचीत की अगुवाई कर रहे संगठन को OECD ओईसीडी (ऑर्गेनाइजेशन फॉर इकनोमिक कॉ-ऑपरेशन एंड डेवलपमेंट) के मुताबिक यह समझौता वैश्विक अर्थव्यवस्था का 90 फ़ीसदी हिस्सा कवर कर लेगा।
इस समझौते की अहमियत इस बात में है कि इससे पिछले 40 वर्षों से विभिन्न देशों के बीच जारी टैक्स कम कर के निवेशकों और मल्टीनेशनल कंपनियों को लुभाने की होड़ कम करने में मदद मिलेगी। अभी तमाम बहुराष्ट्रीय कंपनियां अपना मुख्यालय उन देशों में रखती हैं जहां टैक्स सबसे कम होता है। नतीजा यह है कि यह कारोबार चाहे जिस देश में भी करें इनके प्रॉफिट का बड़ा हिस्सा उन देशों में शिफ्ट हो जाता है जहां इनका मुख्यालय है। इससे इन कंपनियों तथा उन लो टैक्स देशों का तो फायदा होता है लेकिन बाकी तमाम देशों को नुकसान होता है। इस स्थिति में बदलाव की जरूरत काफी समय से महसूस की जा रही थी। इस पर बातचीत भी चल रही थी।
कोरोना महामारी के चलते बातचीत को वर्चुअल मोड में लाना पड़ा लेकिन यही करोना इस समझौते तक पहुंचने में मददगार भी हुआ। इस दौरान लॉकडाउन के कारण सभी देश बजट पर जबरदस्त दबाव महसूस कर रहे थे। लिहाजा सबकी कोशिश थी कि समझौते पर जल्द से जल्द सहमति हो जाए। ओईसीडी का अनुमान है कि समझौता लागू हो जाने के बाद सालाना 15000 करोड डॉलर (करीब 11,27,000 करोड़ रुपए) का अतिरिक्त राजस्व आएगा। यही नहीं 12,500 करोड़ डॉलर (करीब 940,000 करोड रुपए) प्रॉफिट पर टैक्स लगाने का अधिकार उन देशों को शिफ्ट हो जाएगा जहां यह बहुराष्ट्रीय कंपनियां कमाई करती हैं। निश्चित रूप से यह रकम बड़ी है। फिर भी ऐसा नहीं है कि इस समझौते से हर कोई संतुष्ट ही है।
कहा जा रहा है कि कमजोर और विकासशील देशों के हित सुरक्षित रखने के लिए और कदम उठाने होंगे। यह भी कहा जा रहा है कि 15 फ़ीसदी रेट बहुत कम है और इससे टैक्स हेवन समाप्त नहीं होंगे बहरहाल, इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है कि यह समझौता सही दिशा में एक ठोस शुरुआत है। अब पहली जरूरत यह सुनिश्चित करने की है कि 13 अक्टूबर से शुरू हो रही जी-20 देशों के वित्त मंत्रियों की बैठक से और फिर महीने के अंत में रोम में होने वाले जी-20 शिखर सम्मेलन में स्वीकृति मिलने के बाद अगले साल तक तमाम देश अपने यहां कानून में आवश्यक बदलाव कर ले ताकि 2023 से यह समझौता लागू करने का लक्ष्य पूरा हो सके।
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